अर्थव्यवस्था समसामयिकी 1 (15-Apr-2021)
उभरती अर्थव्यवस्थाओं में भारत का ‘लोक ऋण’ स्तर सर्वाधिक
(India's 'Public Debt' Level Highest Among Emerging Economies)

Posted on April 15th, 2021 | Create PDF File

hlhiuj

मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस के अनुसार, भारत के ‘लोक ऋण’ (Public Debt) का स्तर उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में उच्चतम है, हालांकि देश में मात्रात्मक सुधार कार्यक्रम (Quantitative Easing Programme) जारी है, फिर भी इसकी ऋण वहन क्षमता सबसे कमजोर है।

 

‘लोक ऋण’ :

 

किसी देश की सरकार द्वारा उधार ली गई कुल राशि को ‘लोक ऋण’ (Public Debt) कहा जाता है।

 

भारतीय संदर्भ में, ‘लोक ऋण’ के तहत, भारित की संचित निधि पर भारित केंद्र सरकार की कुल देनदारियाँ शामिल होती हैं। इसके तहत, लोक खाते (Public Account) के ऊपर अनुबंधित देनदारियों को शामिल नहीं किया जाता है।

 

‘लोक ऋण’ के स्रोत:

दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियाँ अथवा जी-सेक (G-secs)

 

ट्रेजरी बिल अथवा टी-बिल (T-Bills)

 

बाह्य सहायता

 

अल्पकालिक ऋण

 

संविधान के अनुच्छेद 292 के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा भारत की संचित निधि के ऊपर अनुबंधित देनदारियों को ‘लोक ऋण’ के रूप में वर्णित किया जाता है।

 

 

‘लोक ऋण’ के प्रकार:

 

‘लोक ऋण’ को आंतरिक और बाह्य ऋण में वर्गीकृत किया जाता है।

 

आंतरिक ऋण (Internal debt) के लिए विपणनयोग्य (Marketable) और गैर-विपणन योग्य (Non-Marketable) प्रतिभूतियों में वर्गीकृत किया जाता है।

  • ‘विपणन योग्य सरकारी प्रतिभूतियों’ में नीलामी के माध्यम से जारी की जाने वाली ‘जी-सेक’ (सरकारी प्रतिभूतियां) और ‘ट्रेज़री-बिल’ शामिल होते हैं।
  • ‘गैर-विपणन योग्य प्रतिभूतियों’ में राज्य सरकार को जारी किए जाने वाले मध्यवर्ती ट्रेजरी बिल, राष्ट्रीय लघु बचत कोष को जारी की जाने वाली विशेष प्रतिभूतियां आदि शामिल होती हैं।

 

‘ऋण-जीडीपी अनुपात’ क्या है?

‘ऋण-जीडीपी अनुपात’ (Debt-to-GDP Ratio) किसी देश द्वारा अपने ऋण का भुगतान करने की क्षमता के बारे में बताता है। निवेशको द्वारा किसी देश की ऋण चुकाने की क्षमता का आकलन करने के लिये ‘ऋण-जीडीपी अनुपात’ (Debt-to-GDP Ratio) का अवलोकन किया जाता है। उच्च ‘ऋण-जीडीपी अनुपात’, विश्व भर में आर्थिक संकटों को हवा दे चुके हैं।

 

 

‘ऋण-जीडीपी अनुपात’ का स्वीकार्य स्तर :

राजकोषीय जवाबदेही एवं बजट प्रबंधन (FRBM) पर एन के सिंह समिति द्वारा सामान्य सरकारी ऋण-जीडीपी अनुपात’ कुल 60 प्रतिशत रखने का लक्ष्य निर्धारित करते हुए केंद्र सरकार के लिए ‘ऋण-जीडीपी अनुपात’ 40 प्रतिशत और राज्यों के लिए 20 प्रतिशत परिकलिप्त किया गया था।