अंतर्राष्ट्रीय समसामियिकी 1 (27-Feb-2019)
भारतीय मूल की महिला जासूस नूर इनायत खान को ब्रिटेन में सम्मानित किया जाएगा
(Indian origin female detective Noor Inayat Khan will be honored in Britain)

Posted on February 28th, 2019 | Create PDF File

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द्वितीय विश्वयुद्ध में जासूसी करने वाली भारतीय मूल की पहली महिला नूर इनायत खान को ब्रिटेन में सम्मानित किया जाएगा। नूर इनायत खान के ब्लूम्सबरी स्थित 4, टेविटन स्ट्रीट स्थित पूर्व आवास को ब्ल्यू प्लाक दिया जाएगा, जहां वह द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जासूस के तौर पर रही थीं। यह वही घर है, जिसे नूर ने अपने अंतिम मिशन पर जाने से पहले छोड़ा था। 

 

ब्ल्यू प्लाक योजना ब्रिटिश विरासत सम्मान द्वारा चलाई जाती है। इसके तहत उन विख्यात लोगों को सम्मानित किया जाता है, जो लंदन में या तो किसी खास इमारत में रहे हों या उसमें रहकर काम किया हो। आपको बता दें कि हिंदुस्तानी सूफी संत हजरत इनायत खान की बेटी नूर द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन के स्पेशल ऑपरेशन एग्जक्यूटिव की एजेंट थीं। बाद में 1944 में 30 वर्ष की आयु में नाज़ियों ने उन्हें बंदी बना लिया और उनकी हत्या कर दी। लंदन में नूर इनायत खान की प्रतिमा भी लगाई जा चुकी है।

 

नूर-उन-निसा इनायत ख़ान भारतीय मूल की ब्रिटिश गुप्तचर थीं, जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मित्र देशों के लिए जासूसी की। ब्रिटेन के स्पेशल ऑपरेशंस एक्जीक्यूटिव के रूप में प्रशिक्षित नूर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान फ्रांस के नाज़ी अधिकार क्षेत्र में जाने वाली पहली महिला वायरलेस ऑपरेटर थीं। जर्मनी द्वारा गिरफ़्तार कर यातनायें दिए जाने और गोली मारकर उनकी हत्या किए जाने से पहले द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान वे फ्रांस में एक गुप्त अभियान के अंतर्गत नर्स का काम करती थीं। फ्रांस में उनके इस कार्यकाल तथा उसके बाद आगामी 10 महीनों तक उन्हें यातनायें दी गईं और पूछताछ की गयी, किन्तु पूछताछ करने वाली नाज़ी जर्मनी की ख़ुफिया पुलिस गेस्टापो द्वारा उनसे कोई राज़ नहीं उगलवाया जा सका। उनके बलिदान और साहस की गाथा युनाइटेड किंगडम और फ्रांस में प्रचलित है। उनकी सेवाओं के लिए उन्हें युनाइटेड किंगडम एवं अन्य राष्ट्रमंडल देशों के सर्वोच्च नागरिक सम्मान जॉर्ज क्रॉस से सम्मानित किया गया। उनकी स्मृति में लंदन के गॉर्डन स्क्वेयर में स्मारक बनाया गया है, जो इंग्लैण्ड में किसी मुसलमान को समर्पित और किसी एशियाई महिला के सम्मान में इस तरह का पहला स्मारक है।