( द हिंदू से )विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी समसामियिकी 1 (11-Feb-2019)
शरीर के अंदर पहला जीन संपादन
(First Gene Edit Within Body)

Posted on February 11th, 2019 | Create PDF File

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हाल ही में किये गए कुछ परीक्षणों के बाद वैज्ञानिकों को ऐसा लग रहा है कि उन्होंने शरीर के अंदर प्रथम जीन संपादन के मुकाम को हासिल कर लिया है। इन परीक्षणों के तहत वयस्कों के डीएनए में बदलाव कर बीमारी का इलाज करने की कोशिश की गई।

 

प्रारंभिक परिणामों से पता चला है कि दुर्लभ बीमारी वाले दो पुरुषों के जीन में सुधार देखा जा रहा है। हालाँकि यह सुधार बहुत ही कम स्तर पर है जो चिकित्सकीय इलाज़ को सफल बनाने के लिये पर्याप्त नहीं हो सकता है फिर भी यह परिणाम भविष्य में इस क्षेत्र में सफलता दिला सकता है।जीन संपादन क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि यह सफलता एक बड़ी उपलब्धि है।जीन एडिटिंग का उद्देश्य जीन थेरेपी है जिससे खराब जीन को निष्क्रिय किया जा सके या किसी अच्छे जीन के लापता होने की स्थिति में उसकी आपूर्ति की जा सके।

 

वैज्ञानिक अनुसंधान में पहले से ही व्यापक रूप से  जीन एडिटिंग का उपयोग किया जाता है, क्रिस्पर-कैस 9 को HIV, कैंसर या सिकल सेल रोग जैसी बीमारियों के लिये संभावित जीनोम एडिटिंग उपचार हेतु एक आशाजनक तरीके के रूप में भी देखा गया है।इस तरह इसके माध्यम से चिकित्सकीय रूप से बीमारी पैदा करने वाले जीन को निष्क्रिय किया जा सकता है या आनुवंशिक उत्परिवर्तन को सही कर सकते हैं। क्रिस्पर जीन एडिटिंग जेनेटिक हेरफेर के लिये एक टूलबॉक्स प्रदान करती है।क्रिस्पर सिस्टम पहले से ही मौलिक बीमारी अनुसंधान, दवा जाँच और थेरेपी विकास, तेजी से निदान, इन-विवो एडिटिंग (In Vivo Editing) और ज़रूरी स्थितियों में सुधार के लिये बेहतर आनुवंशिक मॉडल प्रदान कर रहा है।वैज्ञानिक इस सिद्धांत पर काम कर रहे हैं कि क्रिस्पर का उपयोग शरीर की टी-कोशिकाओं (T-Cells) के कार्य को बढ़ावा देने में किया जा सके ताकि प्रतिरक्षा प्रणाली कैंसर को पहचानने और नष्ट करने में बेहतर हो तथा रक्त और प्रतिरक्षा प्रणाली के विकार और अन्य संभावित बीमारियों को लक्षित किया जा सके।

 


कैलिफ़ोर्निया में विश्व के पहले जीन-एडिटिंग परीक्षण में HIV के लगभग 80 रोगियों के खून से HIV प्रतिरक्षा कोशिकाओं को (Zinc-finger nucleases) ZFNs नामक एक अलग तकनीक का प्रयोग कर हटाया गया। चीन में शोधकर्त्ताओं ने मानव भ्रूण के एक दोषपूर्ण जीन को सही करने की कोशिश के लिये संपादित किया जो विरासत में रक्त विकार का कारण बनता है।

 

वैज्ञानिकों ने कहा कि उन्होंने मलेरिया को दूर करने के लिये भी जीन एडिटिंग का उपयोग किया था जिससे मलेरिया का प्रतिरोध किया जा सकता है।फसलों को रोग प्रतिरोधी बनाने के लिये क्रिस्पर तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। चिकित्सकीय क्षेत्र में, जीन एडिटिंग संभावित आनुवंशिक बीमारियों का इलाज कर सकती है, जैसे हृदय-रोग और कैंसर के कुछ रूप या एक दुर्लभ विकार जो दृष्टिबाधा या अंधेपन का कारण बन सकता है।कृषि क्षेत्र में यह तकनीक उन पौधों को पैदा कर सकती है जो न केवल उच्च पैदावार में कारगर होंगे, जैसे कि लिप्पमैन के टमाटर, बल्कि यह सूखे और कीटों से बचाव के लिये फसलों में विभिन्न परिवर्तन कर सकते हैं ताकि आने वाले सालों में चरम मौसमी बदलावों में भी फसलों को हानि से बचाया जा सके।

 

दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग पर चिंता जताते हुए इसे विज्ञान और नैतिकता के खिलाफ बताया है क्योंकि इससे भविष्य में ‘डिजाइनर बेबी’ के जन्म की अवधारणा को और बल मिलेगा। यानी बच्चे की आँख, बाल और त्वचा का रंग ठीक वैसा ही होगा, जैसा उसके माता-पिता चाहेंगे।इसके अलावा, मानव भ्रूण एडिटिंग अनुसंधान को पर्याप्त रूप से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि जीन-एडिटेड बच्चों को बनाने के लिये विभिन्न प्रयोगशालाओं को बढ़ावा मिल सकता है।इस क्षेत्र के कुछ प्रमुख वैज्ञानिकों द्वारा आशंका जताई गई है कि इस तकनीक का संभावित दुरुपयोग आनुवंशिक भेदभाव पैदा करने के लिये भी हो सकता है।

 


क्रिस्पर Cas9 तकनीक-

 

क्रिस्पर-कैस 9 (CRISPR-Cas9) एक ऐसी तकनीक है जो वैज्ञानिकों को अनिवार्य रूप से डीएनए काटने और जोड़ने की अनुमति देती है, जिससे रोग के लिये आनुवंशिक सुधार की उम्मीद बढ़ जाती है।क्रिस्पर (Clustered Regualarly Interspaced Short Palindromic Repeats) डीएनए के हिस्से हैं, जबकि कैस-9 (CRISPR-ASSOCIATED PROTEIN9-Cas9) एक एंजाइम है। हालाँकि, इसके साथ सुरक्षा और नैतिकता से संबंधित चिंताएँ जुड़ी हुई हैं।