पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी समसामयिकी 1(11-June-2022)
पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक
(Environmental Performance Index)

Posted on June 12th, 2022 | Create PDF File

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हाल ही में, ‘पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक’ (Environmental Performance Index – EPI) का नवीनतम संस्करण (2022) जारी किया गया था।

 

यह रिपोर्ट निम्नलिखित संस्थानों के शोधकर्ताओं द्वारा तैयार की गयी है:

 

येल विश्वविद्यालय का ‘पर्यावरण कानून और नीति’ केंद्र (Yale Centre for Environmental Law &Policy)।

 

सेंटर फॉर इंटरनेशनल अर्थ साइंस इंफॉर्मेशन नेटवर्क अर्थ इंस्टीट्यूट, कोलंबिया यूनिवर्सिटी।

 

‘पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक’ :

 

‘पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक’ (EPI), दुनिया भर में ‘संवहनीयता’ की स्थिति का डेटा-आधारित संक्षिप्त विवरण प्रदान करता है।

 

यह सूचकांक वर्ष 2002 में पहली बार प्रकाशित पायलट पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक से विकसित किया गया था, तथा इसे संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों में निर्धारित पर्यावरण लक्ष्यों को पूरा करने के लिए निर्मित किया गया था।

 

यह ‘सूचकांक’ जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय सार्वजनिक स्वास्थ्य, जैव विविधता आदि सहित 40 प्रदर्शन संकेतकों पर 180 देशों की रैंकिंग करता है।

 

यह सूचकांक, देशों की नीतियों के पर्यावरणीय प्रदर्शन का आंकलन करने की एक विधि है, और यह भागीदार देशों का एक स्कोरकार्ड प्रदान करता है जोकि पर्यावरण प्रदर्शन में अग्रणी और पिछड़े देशों के बारे में जानकारी देता है।

 

यह संवहनीय भविष्य की ओर बढ़ने की इच्छा रखने वाले देशों के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शन भी प्रदान करता है।

 

भारत एवं अन्य देशों का प्रदर्शन :

 

रिपोर्ट में 180 देशों की सूची में भारत को सबसे निचला स्थान दिया गया है।

 

सूचकांक में, भारत (18.9), म्यांमार (19.4), वियतनाम (20.1), बांग्लादेश (23.1) और पाकिस्तान (24.6) को सबसे कम अंक दिए गए हैं।

 

अमेरिका को 43वें स्थान पर रखा गया है और वर्तमान में सबसे बड़े उत्सर्जक चीन को सूचकांक में 160वें स्थान पर रखा गया है।

 

सूचकांक में शीर्ष 5 देश: डेनमार्क, यूनाइटेड किंगडम, फिनलैंड, माल्टा और स्वीडन को उनके बेहतर प्रदर्शन के कारण शीर्ष पांच स्थानों पर रखा गया है।

 

भारत को सूचकांक में सबसे निचले स्थान पर रखे जाने का कारण :

 

रिपोर्ट के अनुसार, भारत के द्वारा पर्यावरण की बजाय आर्थिक विकास को प्राथमिकता दी जा रही है।

 

भारत की वायु गुणवत्ता काफी खराब है और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन तेजी से बढ़ रहा है।

 

भारत के द्वारा इस रिपोर्ट को खारिज किए जाने के कारण :

 

भारतीय सरकार के अनुसार, रिपोर्ट में निराधार मान्यताओं के आधार पर कई संकेतकों का उपयोग किया गया है।

 

इसकी कार्यप्रणाली, प्रति व्यक्ति उत्सर्जन और देशों में विभिन्न सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर विचार नहीं करती है।

 

जिन संकेतकों में भारत अच्छा प्रदर्शन कर रहा था, उनका भार कम कर दिया गया है।

 

प्रति व्यक्ति GHG उत्सर्जन और GHG उत्सर्जन तीव्रता प्रवृत्ति जैसे संकेतकों के रूप में इक्विटी के सिद्धांत को बहुत कम महत्व दिया गया है।

 

‘सामूहिक किंतु भिन्न जिम्मेदारियां और संबंधित क्षमताएं’ (Common but Differentiated Responsibilities and Respective Capabilities : CBDR-RC) सिद्धांत भी इस सूचकांक की संरचना में बमुश्किल ही परिलक्षित होता है।

 

वन और आर्द्रभूमि, जो महत्वपूर्ण कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, को पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक’ 2022 (EPI 2022) द्वारा 2050 तक के अनुमानित GHG उत्सर्जन प्रक्षेपवक्र की गणना करते समय शामिल नहीं किया गया है।