चाबहार बंदरगाह और भारत की यूरेशिया रणनीति
(Chabahar Port and India's Eurasia Strategy)

Posted on February 12th, 2019 | Create PDF File

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चाबहार बंदरगाह भारत के लिए कई मायनों में फायदेमंद होगा। भारत के पश्चिमी तट से ईरान के दक्षिणी तट तक आसानी से पहुँचा जा सकता है जो ऊर्जा संसाधनों से काफी समृद्ध है।


सामरिक रूप से महत्वपूर्ण ईरान स्थित चाबहार के शहीद बेहस्ती बंदरगाह के संचालन की कमान भारत ने पिछले महीने 24 दिसंबर को संभाल ली है। यह पहली बार है जब भारत अपने क्षेत्र के बाहर एक बंदरगाह का संचालन करेगा। भारत के लिए मध्य एशिया में अपनी आर्थिक और सामरिक महत्वाकांक्षाओं को साकार करने में यह पहल मील का पत्थर साबित होगा। इस समझौते का उद्देश्य बंदरगाह को अंतरराष्ट्रीय माल परिवहन के लिए लोकप्रिय बनाना है। पिछले महीने चाबहार में भारत-अफगानिस्तान-ईरान के बीच हुई अधिकारी स्तर की त्रिपक्षीय बैठक में जल्द ही त्रिपक्षीय ट्रांजिट समझौते को भी लागू करने पर सहमति बनी। भारत की ओर से इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड कंपनी ने चाबहार में अपने कार्यालय की शुरुआत कर ली है।

 

चाबहार बंदरगाह की स्थिति भारत और ईरान दोनों के लिए आर्थिक और सामरिक रूप से काफी अहम है। यह ईरान को हिन्द महासागर तक जाने लिए सुगम मार्ग प्रदान करता है। इस बंदरगाह के जरिये स्थल-बद्ध देश अफगानिस्तान की समुद्र तक पहुंच के लिए पाकिस्तान पर निर्भरता भी कम होगी। इसके अलावा मध्य एशिया के स्थल-बद्ध देशों को तुर्की, रूस, बाल्टिक राज्यों, चीन और ईरान (बंदर अब्बास के माध्यम से) के बंदरगाहों पर निर्भर रहना पड़ता हैं। चाबहार के माध्यम से उन्हें एक वैकल्पिक और छोटा स्थल मार्ग मिलेगा जो उनके समुद्री व्यापार का संचालन करेगा। ईरान के खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों ने भारत की चिंता को बढ़ा दिया था लेकिन बाद में ट्रम्प ने भारत को इन प्रतिबंधों से राहत दी और ईरान में चाबहार बंदरगाह के विकास की छूट।

 

चाबहार बंदरगाह के पहले चरण का उद्घाटन दिसंबर 2017 में ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने किया था, जिसमें ईरान, भारत और अफगानिस्तान को जोड़ने वाले एक नए सामरिक मार्ग को खोला गया था। इसके संचालन से भारत पाकिस्तान को बाईपास कर सकेगा और अफगानिस्तान में जहाजों द्वारा ज्यादा माल पहुंचा सकेगा। इस बंदरगाह के जरिये भारत हॉर्मुज स्ट्रेट (जलडमरूमध्य) के मुहाने पर रणनीतिक रूप से मजबूत स्थिति में रहेगा जहाँ से दुनिया का एक तिहाई तेल गुजरता है। इस क्षेत्र में चीन की उपस्थिति हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ी है, विशेष रूप से ग्वादर बंदरगाह में, जो पकिस्तान द्वारा चीन को 40 साल के लिए पट्टे पर दिया गया है।

 

चाबहार बंदरगाह भारत के लिए कई मायनों में फायदेमंद होगा। भारत के पश्चिमी तट से ईरान के दक्षिणी तट तक आसानी से पहुँचा जा सकता है जो ऊर्जा संसाधनों से काफी समृद्ध है। साथ ही साथ भारत ग्वादर में चल रही चीन की गतिविधियों पर निगरानी रख सकेगा क्योकि यहाँ से ग्वादर बंदरगाह महज 72 किलोमीटर ही है। चाबहार बंदरगाह को भारत, ईरान और अफगानिस्तान द्वारा मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार के सुनहरे अवसरों का प्रवेश द्वार माना जा रहा है। इस बंदरगाह पर निवेश, विकास और इसके संचालन से भारत और ईरान के सम्बन्ध और मजबूत होंगे। इसके आलावा भारत ईरान का तीसरा सबसे बड़ा तेल सप्लायर देश है। बंदरगाहों, सड़कों और रेल नेटवर्क सहित कनेक्टिविटी के बुनियादी ढांचे के एकीकृत विकास से क्षेत्रीय बाजार तक पहुंच के लिए अधिक अवसर खुलेंगे और तीन देशों और क्षेत्र के आर्थिक एकीकरण और लाभ की दिशा में योगदान होगा। चाबहार बंदरगाह के कार्यशील होने से भारत में लौह अयस्क, चीनी और चावल के आयात में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। चाबहार बंदरगाह को अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) के फीडर पोर्ट के रूप में भी देखा जाता है, जिसमें भारत, रूस, ईरान, यूरोप और मध्य एशिया के बीच समुद्री, रेल और सड़क मार्ग हैं।

 

इस व्यापारिक गलियारे से मध्य एशियाई गणराज्यो के साथ भारत के व्यापारिक संबंधों का विस्तार हो सकता है। वर्तमान समय में इन देशों के साथ भारत का व्यापार महज 1.5 बिलियन डॉलर का है जो कुल भारतीय व्यापार का मात्र 0.11 प्रतिशत है। एक बार जब चाबहार बंदरगाह अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे से जुड़ जायेगा तो भारत का यूरेशिया के लिए भी प्रवेश द्वार बन जायेगा। एक अनुमान के मुताबिक चाबहार बंदरगाह और INSTC के परिचालन के साथ, यूरेशिया के साथ भारत का व्यापार $170 बिलियन तक पहुंच सकता है।

 

भारत चाबहार में पांच चरणों में शहीद बेहस्ती टर्मिनल का विकास कर रहा है और पूरा होने पर, बंदरगाह की क्षमता लगभग 82 मिलियन मीट्रिक टन (MT) प्रति वर्ष होगी। राज्य द्वारा संचालित इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (आईपीजीएल) 18 महीने की अस्थायी अवधि के लिए बंदरगाह के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होगा और यदि दोनों पक्ष पट्टे को विस्तारित करने पर सहमत होते हैं, तो उसके बाद 10 साल के लिए बढ़ाया जा सकता है।

 

चीन चाबहार परियोजना पर अपना प्रभाव डाल सकता है। क्योकि चीन पहले से ही ग्वादर बंदरगाह के निर्माण और संचालन चाबहार को ध्यान में रखकर कर रहा है। ग्वादर बंदरगाह न केवल चाबहार से एक दशक आगे है, बल्कि चीन का यहाँ बहुत बड़ा निवेश है और जिस गति से यह ग्वादर से काश्गर तक सड़क और रेल का निर्माण कर रहा है, उससे तो यही लगता है कि ग्वादर बंदरगाह व्यापार आकर्षित करने में चाबहार से बहुत आगे है।

 

चीन चाबहार बंदरगाह परियोजना में भाग ले सकता है। ईरान ने कई बार स्पष्ट किया है कि वह चाबहार परियोजना में भाग लेने के लिए चीन और पाकिस्तान सहित कई देशों को आमंत्रित करना चाहता है।

 

इस परियोजना में चीन के शामिल होने को लेकर भारत की कुछ चिंताएं हैं, खासकर बीजिंग और तेहरान के बीच पहले से ही एक मजबूत आर्थिक और सैन्य संबंध हैं। चीन की भागीदारी [चाबहार में] लंबे समय में उपयोगी साबित होगी, क्योंकि यह चाबहार और ग्वादर के बीच तालमेल बना सकता है। इसके आलावा आने वाले वर्षों में और कई चुनौतियां भी परियोजना को पटरी से उतार सकती हैं। अमेरिकी-ईरान तनाव और अफगानिस्तान में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति भी मुख्य चुनौतियां है।

 

ईरान यह अच्छी तरह जनता है कि चीन इस बंदरगाह तक पहुंच और पूर्ण नियंत्रण की मांग करेगा। लेकिन ईरान संप्रभुता के मुद्दों पर बड़ा संवेदनशील है। फिलहाल, भारत को इस क्षेत्र में चीन के बजाय अपने सामरिक हितों को और सुरक्षित और संरक्षित करने की जरुरत है।