भारत - रूस संबंधों की यात्रा, भाग - 1 (A Journey of India - Russia Relationship, Part - 1)
Posted on October 13th, 2018
भारत - रूससंबंधोंकीयात्रा
भाग - 1
भारत और रूस दोस्ती नए मुकाम पर है। हाल ही में रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन का भारत दौरा खासा सफल रहा। इस दौरान दोनों देशों के बीच 19वां सालाना शिखर सम्मेलन हुआ। दोनों देशों के बीच एस-400 मिसाइल प्रणाली सहित कुल 8 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। इसके अलावा कई अन्य अहम समझौतों में परमाणु ऊर्जा सहयोग, पर्यटन, गगनयान मिशन में भागीदारी और दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा दिए जाने पर भी आपसी सहमति बनी। एस-400 रक्षा सौदे की डील के बाद दोनों देशों के रक्षा सहयोग को नई मजबूती मिली है। इससे जहां एक ओर भारत का सुरक्षा तंत्र मजबूत होगा वहीं दूसरी ओर अमेरिका और चीन जैसी वैश्विक महाशक्तियों सहित भारत के पड़ोसी देशों की प्रतिक्रिया पर भी इस समझौते के दूरगामी परिणाम देखने में सामने आयेंगे।
हाल ही में हैदराबाद हाउस में भारत और रूस के बीच बहुप्रतीक्षित एस-400 रक्षा समझौता हो गया है। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच शुक्रवार को नई दिल्ली में तीन दौर की बातचीत चलने के बाद दोनों देशों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। 5 अरब डालर से ज्यादा का यह करार भारत की रक्षा क्षमता बढ़ाने में एक मील का पत्थर है। दोनों देशों के बीच हुए इस रक्षा संबंध को 1960 के दशक के भारत-रूस रिश्तों की प्रगाढ़ता के संदर्भ में देखा जा रहा है, जब शीत युद्ध की राजनीति ने दुनिया को लगभग दो धड़ों में विभाजित कर दिया था। बाद में सोवियत संघ टूट गया और धीरे-धीरे वैश्विक राजनैतिक भूगोल द्विध्रुवीय से बहुपक्षीय होता चला गयालेकिन इस बदलते वैश्विक परिदृश्य में एक चीज कभी नहीं बदली और वो थी- भारत रूस के बीच रक्षा संबंध। ज्ञात हो कि रूस भारत के संपूर्ण भारतीय रक्षा आयात का 68 प्रतिशत का साझेदार है।
गौरतलब है कि भारतीय स्वतंत्रता के तुरंत बाद के वर्षों में, सोवियत संघ ने गुट निरपेक्षता की भारत की नीति का जोरदार विरोध किया था। लेकिन स्टालिन के शासनकाल के बाद भारत-रूस के बीच रिश्तों में काफी सुधार हुआ। और सोवियत संघ को भारत के लिए एक प्रमुख सहयोगी के रूप में देखा गया। कई परियोजनाओं में सोवियत संघ ने भारत की सहायता की। दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की बहाली जून 1955 में, पं. नेहरू की सोवियत यात्रा से हुई और इसी साल के अंत में निकिता खुर्शेद ने भारत का दौरा किया। खुर्शेद ने उस समय कश्मीर और गोवा की दावेदारी पर भारत का समर्थन किया। गोवा उस वक्त पुर्तगाल के कब्जे में था। उसके बाद कई दफा अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सोवियत संघ भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध निभाता रहा। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सोवियत संघ ने 22 जून 1962 को वीटो पावर का इस्तेमाल कर कश्मीर मुद्दे पर भारत का समर्थन किया। दरअसल सुरक्षा परिषद में कश्मीर मुद्दे को लेकर आयरलैंड ने एक प्रस्ताव पेश किया था जिसका अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन के अलावा आयरलैंड, चिली और वेनेजुएला ने समर्थन किया था। इस प्रस्ताव के पीछे भारत के खिलाफ पश्चिमी देशों की बड़ी साजिश थी। इसका मकसद कश्मीर को भारत से छीनकर पाकिस्तान को देने की योजना थी। लेकिन रूस ने उस वक्त भारत से दोस्ती निभाई और इस प्रस्ताव को वीटो कर नाकाम कर दिया। इससे पहले भी एक बार 1961 में सोवियत ने वीटो का इस्तेमाल भारत के लिए ही किया था। उस बार रूस का वीटो गोवा मसले पर भारत के पक्ष में था। 1962 के युध्द में चीन को उम्मीद थी कि भारत-चीन युध्द में रूस उसकी मदद करेगा, लेकिन रूस ने इसमें किसी का समर्थन नहीं किया। 1960 तक स्थिति यह हो गई कि रूस चीन से ज्यादा आर्थिक मदद भारत की करने लगा। सोवियत संघ ने पहली बार 1955 में भारत को दो II -14 परिवहन विमान प्रदान किए थे। उसके बाद इसी क्रम में 1960 में, 24 Il-14 भारत को बेचे गए। साल 1 9 61 में 10एमआई -14 हेलीकॉप्टर, आठ एन -12 परिवहन विमान, छह जेट इंजन, 16 एमआई -4 एस और 8 एन -12 एस सहित कई उपकरण रूस से खरीद पर सहमति बनी। 1 9 62 में, अमेरिका से खरीदे गए लड़ाकू विमानों के लिए दोनों देशों के बीच मिग -21 सौदा किया गया। उल्लेखनीय है कि भारत-सोवियत रक्षा संबंधों से पहले, भारत अपने सभी सैन्य उपकरणों के लिए अपने पूर्व शासकों पर पूरी तरह से निर्भर था। मिग -21 सौदा वास्तव में अंग्रेजों के लिए गहरी परेशानी का विषय था, क्योंकि वे भारत-ब्रिटिश सैन्य सहयोग व्यवस्था के टूटने से डरते थे।
1962 के भारत-चीन युध्द के बाद, भारत सरकार ने अपने रक्षा उपकरणों को और अधिकआधुनिक युद्ध उपकरणों के साथ मजबूत करने की आवश्यकता को महसूस किया। इस अवधि के दौरान, भारत पहली बार अमेरिकी रक्षा सहायता के लिए अग्रसर हुआ। लेकिन गुटों में बॅंटी विश्व राजनीति के चलते उसे खाली हाथ ही वापस होना पड़ा। 60 और 70 के दशक कीइन परिस्थितियों में भारत की सहायता करने वाला एकमात्र प्रमुख हथियार निर्यातक देश सोवियत संघ था और भारत अपनी रक्षा आवश्यकता के लिए सोवियत संघ पर लगभग पूरी तरह से निर्भर था। तब से लेकर अब तक रूस, भारत को रक्षा उपकरणों के सबसे महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता देशों में से एक बना हुआ है।
भारत - रूस संबंधों की यात्रा, भाग - 1 (A Journey of India - Russia Relationship, Part - 1)
भारत और रूस दोस्ती नए मुकाम पर है। हाल ही में रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन का भारत दौरा खासा सफल रहा। इस दौरान दोनों देशों के बीच 19वां सालाना शिखर सम्मेलन हुआ। दोनों देशों के बीच एस-400 मिसाइल प्रणाली सहित कुल 8 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। इसके अलावा कई अन्य अहम समझौतों में परमाणु ऊर्जा सहयोग, पर्यटन, गगनयान मिशन में भागीदारी और दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा दिए जाने पर भी आपसी सहमति बनी। एस-400 रक्षा सौदे की डील के बाद दोनों देशों के रक्षा सहयोग को नई मजबूती मिली है। इससे जहां एक ओर भारत का सुरक्षा तंत्र मजबूत होगा वहीं दूसरी ओर अमेरिका और चीन जैसी वैश्विक महाशक्तियों सहित भारत के पड़ोसी देशों की प्रतिक्रिया पर भी इस समझौते के दूरगामी परिणाम देखने में सामने आयेंगे।
हाल ही में हैदराबाद हाउस में भारत और रूस के बीच बहुप्रतीक्षित एस-400 रक्षा समझौता हो गया है। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच शुक्रवार को नई दिल्ली में तीन दौर की बातचीत चलने के बाद दोनों देशों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। 5 अरब डालर से ज्यादा का यह करार भारत की रक्षा क्षमता बढ़ाने में एक मील का पत्थर है। दोनों देशों के बीच हुए इस रक्षा संबंध को 1960 के दशक के भारत-रूस रिश्तों की प्रगाढ़ता के संदर्भ में देखा जा रहा है, जब शीत युद्ध की राजनीति ने दुनिया को लगभग दो धड़ों में विभाजित कर दिया था। बाद में सोवियत संघ टूट गया और धीरे-धीरे वैश्विक राजनैतिक भूगोल द्विध्रुवीय से बहुपक्षीय होता चला गयालेकिन इस बदलते वैश्विक परिदृश्य में एक चीज कभी नहीं बदली और वो थी- भारत रूस के बीच रक्षा संबंध। ज्ञात हो कि रूस भारत के संपूर्ण भारतीय रक्षा आयात का 68 प्रतिशत का साझेदार है।
गौरतलब है कि भारतीय स्वतंत्रता के तुरंत बाद के वर्षों में, सोवियत संघ ने गुट निरपेक्षता की भारत की नीति का जोरदार विरोध किया था। लेकिन स्टालिन के शासनकाल के बाद भारत-रूस के बीच रिश्तों में काफी सुधार हुआ। और सोवियत संघ को भारत के लिए एक प्रमुख सहयोगी के रूप में देखा गया। कई परियोजनाओं में सोवियत संघ ने भारत की सहायता की। दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की बहाली जून 1955 में, पं. नेहरू की सोवियत यात्रा से हुई और इसी साल के अंत में निकिता खुर्शेद ने भारत का दौरा किया। खुर्शेद ने उस समय कश्मीर और गोवा की दावेदारी पर भारत का समर्थन किया। गोवा उस वक्त पुर्तगाल के कब्जे में था। उसके बाद कई दफा अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सोवियत संघ भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध निभाता रहा। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सोवियत संघ ने 22 जून 1962 को वीटो पावर का इस्तेमाल कर कश्मीर मुद्दे पर भारत का समर्थन किया। दरअसल सुरक्षा परिषद में कश्मीर मुद्दे को लेकर आयरलैंड ने एक प्रस्ताव पेश किया था जिसका अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन के अलावा आयरलैंड, चिली और वेनेजुएला ने समर्थन किया था। इस प्रस्ताव के पीछे भारत के खिलाफ पश्चिमी देशों की बड़ी साजिश थी। इसका मकसद कश्मीर को भारत से छीनकर पाकिस्तान को देने की योजना थी। लेकिन रूस ने उस वक्त भारत से दोस्ती निभाई और इस प्रस्ताव को वीटो कर नाकाम कर दिया। इससे पहले भी एक बार 1961 में सोवियत ने वीटो का इस्तेमाल भारत के लिए ही किया था। उस बार रूस का वीटो गोवा मसले पर भारत के पक्ष में था। 1962 के युध्द में चीन को उम्मीद थी कि भारत-चीन युध्द में रूस उसकी मदद करेगा, लेकिन रूस ने इसमें किसी का समर्थन नहीं किया। 1960 तक स्थिति यह हो गई कि रूस चीन से ज्यादा आर्थिक मदद भारत की करने लगा। सोवियत संघ ने पहली बार 1955 में भारत को दो II -14 परिवहन विमान प्रदान किए थे। उसके बाद इसी क्रम में 1960 में, 24 Il-14 भारत को बेचे गए। साल 1 9 61 में 10एमआई -14 हेलीकॉप्टर, आठ एन -12 परिवहन विमान, छह जेट इंजन, 16 एमआई -4 एस और 8 एन -12 एस सहित कई उपकरण रूस से खरीद पर सहमति बनी। 1 9 62 में, अमेरिका से खरीदे गए लड़ाकू विमानों के लिए दोनों देशों के बीच मिग -21 सौदा किया गया। उल्लेखनीय है कि भारत-सोवियत रक्षा संबंधों से पहले, भारत अपने सभी सैन्य उपकरणों के लिए अपने पूर्व शासकों पर पूरी तरह से निर्भर था। मिग -21 सौदा वास्तव में अंग्रेजों के लिए गहरी परेशानी का विषय था, क्योंकि वे भारत-ब्रिटिश सैन्य सहयोग व्यवस्था के टूटने से डरते थे।
1962 के भारत-चीन युध्द के बाद, भारत सरकार ने अपने रक्षा उपकरणों को और अधिकआधुनिक युद्ध उपकरणों के साथ मजबूत करने की आवश्यकता को महसूस किया। इस अवधि के दौरान, भारत पहली बार अमेरिकी रक्षा सहायता के लिए अग्रसर हुआ। लेकिन गुटों में बॅंटी विश्व राजनीति के चलते उसे खाली हाथ ही वापस होना पड़ा। 60 और 70 के दशक कीइन परिस्थितियों में भारत की सहायता करने वाला एकमात्र प्रमुख हथियार निर्यातक देश सोवियत संघ था और भारत अपनी रक्षा आवश्यकता के लिए सोवियत संघ पर लगभग पूरी तरह से निर्भर था। तब से लेकर अब तक रूस, भारत को रक्षा उपकरणों के सबसे महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता देशों में से एक बना हुआ है।