बिम्सटेक शिखर सम्मेलन और उसके विविध पहलू (BIMSTEC Summit)

Posted on September 13th, 2018 | Create PDF File

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किसी भी देश की संपूर्ण वैश्विक प्रगति और राष्ट्रीय सुरक्षा उसके सहयोगियों की प्रगतिशीलता, सैन्य शक्ति समन्वय और साझा विचारों की अनुकूलता पर निर्भर करती है। बिना क्षेत्रीय सहयोग और व्यापारिक तालमेल के खुली प्रतियोगिता और कूटनीतिक चुनौतियों से भरे इस युग में वैश्विक पटल पर अपनी मौजूदगी दर्ज करा पाना लगभग असंभव सा है। भारत जैसे विकासशील देशों के लिए तो इसका महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है। सार्क, आशियान, ब्रिक्स और बिम्सटेक इसी कड़ी के कुछ अलग- अलग प्रयास हैं। क्षेत्रीय आतंकवाद और सीमा विवाद जैसे महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर पाकिस्तान के नकारात्मक रवैये और उदासीनता के बाद लगभग औपचारिकता मात्र बचे दक्षिण एशियाई संगठन -सार्क के इस्लामाबाद सम्मेलन के स्थगित हो जाने तथा दक्षिण- प्रशांत एवं हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभुत्त्व को ध्यान में रखते हुए बिम्सटेक को एक विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। हाल ही में 19 अगस्त, 2018 काठमांडू, नेपाल में शुरु होने वाली इसकी चौथी शिखर वार्ता और इस संगठन में आई द्रुत गतिशीलता ने इसे भारतीय उपमहाद्वीपीय अंतरराष्ट्रीय बहस का केन्द्र बना दिया है।

 

बे ऑफ़ बंगाल इनीशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरियल टेक्निकल एण्ड इकॉनमिक को-ऑपरेशन यानी बिम्सटेक (BIMSTEC) दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का एक आर्थिक और तकनीकी सहयोग संगठन है, जिसकी स्थापना 6 जून 1997 को बैंकाक घोषणा के माध्यम से की गई थी। इसका प्रमुख उद्देश्य आपसी व्यापार, ऊर्जा, मत्स्य पालन, परिवहन और प्रौद्योगिकी में सहयोग कर उसे विकसित करना था। बाद में इसमें कृषि विकास, गरीबी उन्मूलन, आतंकवाद, संस्कृति संरक्षण, जनसंम्पर्क बढ़ाने, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास करने, पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन तथा प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के प्रयासों को भी साझा करने पर आपसी सहमति बनी। भारत, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार, भूटान और थाईलैंड सहित इसके सदस्य देशों की कुल संख्या 7 है। प्रारंभ में इसके सहयोगी देशों की संख्या केवल चार ( भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका और थाईलैंड) हुआ थी, तथा इसका नाम BIST- EC था। वर्ष 1997 में इसमें म्यांमार के शामिल हो जाने के बाद इसका नाम बदलकर BIMST- EC कर दिया गया। उसके बाद पुनः 31 जुलाई 2004 को नेपाल इस संगठन से आधिकारिक सहयोगी के रूप से जुड़ा, तबसे इसे BIMSTEC के नाम से जाना जाता है। इसका मुख्यालय ढ़ाका, बांग्लादेश में स्थित है। BIMSTEC की अब तक 4 शीर्ष बैठकें आयोजित हो चुकी हैं। इसका पहला शिखर सम्मेलन 2004 में बैंकाक में, दूसरा 2008 नई दिल्ली में, 2014 म्यांमार में तथा चौथा अभी हाल ही में इसी वर्ष काठमांडू, नेपाल में सम्पन्न हुआ। इसके शिखर सम्मेलनों की अध्यच्छता इसके नाम में आये शब्दों के अल्फाबेटिकल आर्डर के मुताबिक तय होती है। भारत अबतक दो बार इस संगठन की अध्यच्छता कर चुका है। वहीं भूटान इकलौता ऐसा देश है, जिसने अब तक इस संगठन की अध्यच्छता करने का कार्यभार एकबार भी नहीं संभाला है। इस संगठन की संरचनात्मक क्रियाविधि इसकी योजना निर्मात्री निकाय, क्रियान्वयन निकाय, सहयोगी निकाय पर निर्भर होते हैं। योजना निर्माण निकाय में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन तथा मंत्रिपरिषदीय बैठकें शामिल हैं। वहीं योजना क्रियान्वयन निकाय के अंतर्गत विशिष्ट आधिकारिक बैठकें (SOM) तथा विशिष्ट व्यापारिक एवं आर्थिक विकास बैठकें(STEMO) हिस्सा लेतीं हैं। इस संगठन की उपयोगिता और महत्त्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि- इसके सदस्य देश विश्व की 22 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं। साथ ही समुद्र से होने वाले सालाना वैश्विक व्यापार का एक- चौथाई हिस्सा अकेले इसके परिक्षेत्र में स्थित बंगाल की खाड़ी में होता है। इसके 7 सदस्य देशों में से 5 देश दक्षेस (सार्क) के, जबकि बाकी 2 आसियान समूह के सदस्य हैं। इतना ही नहीं इसकी भौगोलिक स्थिति हिंद महासागर और दक्षिणी प्रशांत महासागर से जुड़े सभी देशों के लिए व्यापारिक और सामरिक दृष्टि से बहुत मायने रखती है। चौथे बिम्सटेक शिखर सम्मेलन, जिसे इस संगठन के नवीनीकरण के रूप में भी देखा जा रहा है, के काठमांडू घोषणा पत्र में जिन अहम बातों का जिक्र हुआ है, उनमें से प्र मुख हैं- संयुक्त GDP को बढ़ाकर 2.8 ट्रिलियन डॉलर तक लेकर जाने का लक्ष्य,  छात्रों एवं युवाओं को जाड़ने के लिए विश्विद्यालयी हेकाथान प्रतियोगिता का आयोजन, आपदा प्रबंधन में आपसी सहयोग पर समझौता, नालंदा विश्वविद्यालय में प्रति वर्ष 30 छात्रवृत्ति दिये जाने की घोषणा, एडवांस मेडिकल के क्षेत्र में 12 रिसर्च फेलोशिप दिए जाने का प्रबंध, विभिन्न क्षेत्रों में भारत के 100 प्रौद्योगिकी एवं आर्थिक विकास कार्यक्रमों की शुरुआत, बिम्सटेक राजनयिकों के लिए विशेष पाठ्यक्रम की शुरुआत, बिम्सटेक महिला सांसदों के फोरम का गठन, क्षेत्रीय आतंकवाद एवं मादक पदार्थों की तस्करी रोकने पर समझौता, तथा अगस्त 2020 के अंत में भारत में अतर्राष्ट्रीय बौध्द सम्मेलन का आयोजन किया जाना है। इनके अतिरिक्ति प्रत्येक वर्ष के अंत में सभी सदस्य देशों के स्टार्टअप सम्मेलन तथा सितम्बर 2018 में पुणे, भारत में बिम्सटेक देशों के संयुक्त युध्दाभ्यास के आयोजनों का किया जाना तय हुआ है। इसके अंतर्गत वर्ष 2005 में एशिया विकास बैंक(ADB) की स्थापना की जा चुकी है जो BTILS ( बिम्सटेक ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर लॉजिस्टिक्स स्टडी) को संचालित करने के लिए काम कर रहा है।

 

भारत के लिए यह संगठन कई मायनों में महत्त्वपूर्ण है। एक ओर जहां पाकिस्तान और मालदीव के नकारात्मक और अड़ियल रवैये के वजह से दक्षेस अपने जिन प्रगतिशील उद्देश्यों को पाने में असफल रहा उन्हें फिर से साकार किए जाने के विकल्प के तौर पर इसकी भूमिका देखी जा रही है और इसे उसी दिशा में विकसित भी किये जाने का प्रयास है। वहीं दूसरी ओर चीन के हिंद महासागर में बढ़ते हस्तक्षेप और शक्ति संवर्धन को देखते हुए भारत की अगुआई में इसे सदस्य एशियाई देशों की दूरगामी कूटनीतिक रणनीति के रूप में भी देखा जा रहा है। बिम्सटेक देशों के बीच हर प्रकार की (जल, वायु, स्थल, साइबर स्पेस आदि) कन्क्टिविटी बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। यदि नेपाल और भूटान को छोड़ दें, तो शेष सभी सदस्य देशों की सीमायें हिंद महासागर से मिलती हैं। जो कि अपने आप में विश्व-व्यापार का एक बढ़ा ज़रिया है। इसलिए आपसी कानूनों को शिथिल करके समुद्र के माध्यम से बाधामुक्त व्यापार और परिवहन विकसित करने के लिए बिम्सटेक और उसके सदस्य देशो के बीच सी-कनेक्टिविटी का बढ़ना काफी लाभप्रद होगा। इसके अतिरिक्त भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से होते हुए थाइलैंड को जोड़ने वाले सड़क मार्ग  को भी विकसित किए जाने की योजना है। वैश्वीकरण और सूचना के इस दौर में भारत सहित प्रत्येक विकासशील देश के लिए साइबर स्पेस कनेक्टिविटी और उस पर नियंत्रण बहुत आवश्यक है, जिसका लक्ष्य इस संगठन में रखा गया है। साथ ही नये सदस्य देशों ( नेपाल और भूटान) जिनकी सीमायें समुद्र से नहीं मिलतीं उन्हें व्यापारिक हितों के लिए समुद्री तटबंध (ब्लू- इकॉनमी) उपलब्ध करवाना और इन देशों की पर्वतीय-अर्थव्यवस्था (माउंटेन- इकॉनमी) का साझा लाभ कमाने की भी योजना है। जिससे भारत सहित तमाम अन्य सदस्य देशों को भी काफी फायदा मिलेगा।

 

बिम्सटेक देशों के बीच आतंकवाद से निपटने पर साझा सहमति बनी है। इससे भारत की पूर्वोत्तर सीमा से होने वाली घुसपैठ और उग्रवाद पर लगाम लगाने में काफी मदद मिलेगी। ज्ञात हो कि पूर्वोत्तर राज्यों में असम लिबरेशन आर्मी, नागा लिबरेशन फंट सहित कई सशस्त्र उग्रवादी दल सक्रिय हैं। अभी कुछ दिनों पहले ही भारतीय सेना द्वारा म्यांमार की सीमा में जाकर उग्रवादी संगठनों के कैंपों को ध्वस्त करने की घटना इस सहयोग का ही एक ताजा तरीन उदाहरण है। इसके अतिरिक्त बांग्लादेश व अन्य सीमावर्तीं क्षेत्रों से होने वाली घुसपैठ और मादक पदार्थों की तस्करी पर भी प्रभावी नियंत्रण किया जा सकेगा। प्राकृतिक आपदायें और उनमें होने वाले नुकसान से निपटने में सभी सदस्य देशों ने अपनी स्वीकृति जताई है। समुद्री तूफान एवं सुनामी, पर्वतीय क्षेत्रों के भू-स्खलन, बाढ़, नेपाल के भूकंप की भारी तबाही तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं के समय सदस्य देशों के आपसी आर्थिक सहयोग और समन्वय की भूमिका प्रभावित इलाकों को शीघ्रातिशीघ्र विकास के पथ पर लौटने में सहायक सिध्द होगी। पुणे में होने वाले सामूहिक युध्दाभ्यास सभी देशों के सशस्त्रबलों को एक-दूसरे की युध्द तकनीकियों को समझने, संयुक्त राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रश्न पर एकजुट होने तथा सामरिक समरसता विकसित करने में कारगर साबित होगा।

 

भारत- नेपाल और शेष बिम्सटेक देशों को जोड़ने के लिए भारत के पूर्वोत्तर राज्य अपनी भौगोलिक स्थिति के चलते काफी अहम भूमिका निभा सकते हैं। इन्हें पूर्वी- पश्चिमी एशिया कोरिडोर के रूप में भी विकसित किया जा सकता है। जिससे इन राज्यों की विकासनीति पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा सुधरेगी। इसके अतिरिक्त दक्षेस सदस्यों की अक्सर शिकायत रही है कि भारत-पाकिस्तान संबंधों की वजह से उनके भी हित जाया हो रहे हैं। ऐसे में बिम्सटेक दक्षेस देशों का ही एक ऐसा वैकल्पिक एशियाई संगठन बनकर उभर रहा है जिससे दोबारा उसके लक्ष्यों को साधा जा सकता है। जैसा कि नेपाल के प्रधानमंत्री ओली ने अपने समापन भाषण में कहा- हम दक्षेस के असफल लक्ष्यों को ऊर्जा देने की दिशा मे काम करेंगें। ज्ञात हो कि - पाकिस्तान, मालदीव और अफगानिस्तान बिम्सटेक के सदस्य देश नहीं हैं। जिससे भारत जहां एकतरफ एशिया के नेतृत्वशाली देश के रूप में सशक्त होगा वहीं दूसरी ओर इसकी लुक-ईस्ट और एक्ट- ईस्ट पॉलिसी को भी बल मिलेगा। इस प्रकार भारत के लिए यह संगठन राजनैतिक कारणों से भी काफी मददगार साबित होने वाला है। विकास किसी पड़ोसी देश के सुधरने का इंतजार नहीं कर सकता। हमें किसी न किसी रूप में तो आगे बढ़न ही होगा। वाणिज्य तथा व्यापार के खुल जाने से भारत में निवेश के तहत यहां की मेक इन इंडिया तथा ईज ऑफ डूइंग बिजनेस स्कीम को काफी लाभ पहंचने वाला है। साथ ही बाजार के विस्तृत हो जाने, आयात-निर्यात शुल्क में कटौती और अन्य आर्थिक साधनों के सुगम हो जाने से देश की सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ोत्तरी के निश्चित अनुमान हैं। इन सबसे इतर सांस्कृतिक व ऐतिहासिक दृष्टि से ये एशियाई देश अपने साझा इतिहास, पुरानी संस्कृति, अखण्ड भौगोलिक बनावट, प्रकृतिक संसाधन, पारंपरिक रीति-रिवाजों, लोगों, बौध्द, इस्लामिक और हिंदू कल्चर तथा पुरातत्व और साझी विरासत से जुड़े हुए हैं, जो इस दिशा में इनके कदमों को और मजबूती देगा।

 

इन सब सकारात्मक पहलुओं के होते हुए बिमसटेक देशों की अपनी कुछ समस्याऐं भी हैं। जिनपर पार पाना इनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण होगा। इसमें इनके आंतरिक मसले, रोहिंग्या समस्या, बांग्लादेशी घुसपैठ, चीन का सदस्य देशों में भारी निवेश और राजनैतिक दबाव, आर्थिक रूप से अक्षमता( विकासशील अर्थव्यवस्थायें), नेपाल- भारत संबंधों के दुराव (नये संविधान निर्माण को लेकर), श्रीलंका—भारत संबंधों का इतिहास (तमिल समस्या), उग्रवाद, वायापारिक-घाटा, धार्मिक विभिन्नता तथा टकराव, और सबसे महत्त्वपूर्ण योजनाओं का क्रियान्वयन । दरअसल भारत की विदेश नीति का सबसे नाजुक पहलू यही है कि वह योजनाऐं तो बना लेता है, समझौते तो कर लेता है, लेकिन समय रहते उनकी डिलीवरी और इम्प्लीमेंटेशन (लागू करने) के मामले में उसका बहुत ही खराब रिकार्ड रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए अपनी पुरानी गलतियों को न दोहराते हुए यह क्षेत्रीय एशियाई संगठन इसी गति से सक्रिय रहकर भविष्य में सकारात्मक रूप से काम कर पायेगा, तथा दक्षिण एशिया एवं दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को आर्थिक मामलों में आत्मनिर्भर और संपन्न अर्थव्यवस्थाओं की श्रेणी तक ले जाकर खड़ा कर सकेगा।