हालिया दिनों में आये शीर्ष अदालत के शीर्ष फैसले-4 (सबरीमाला मंदिर प्रकरण-Sabarimala Temple Verdict )
Posted on September 29th, 2018
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आठ दिनों तक सुनवाई करने के उपरांत केरल के सबरीमाला मंदिर में 10-50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर रोक को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 28 सितंबर को ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश ना करने की परंपरा को संविधान की धारा 14 के अंतर्गत असंवैधानिक करार देते हुए मंदिर के अंदर सभी महिलाओं के प्रवेश को इजाजत दे दी है। कोर्ट ने कहा सभी श्रद्धालुओं को पूजा का अधिकार है। दोतरफा नजरिए से महिला की गरिमा को ठेस पहुंचती है। सालों से चले आ रहे पितृसत्तात्मक नियम अब बदले जाने चाहिए। जैविक आधार पर किसी को मंदिर में प्रवेश से रोका नहीं जा सकता। हालांकि जस्टिस इंदू मल्होत्रा की राय अलग थी। उनके मुताबिक कोर्ट को धार्मिक मान्यताओं में दख़ल नहीं देना चाहिए और इसका दूसरे धार्मिक स्थलों पर भी असर पड़ेगा।
दरअसल सबरीमाला भारत के प्रमुख हिंदू मंदिरों में एक है। पूरी दुनिया से लाखों श्रद्धालु आशीर्वाद लेने के लिए इस मंदिर परिसर में आते हैं। मंदिर में प्रवेश के लिए तीर्थयात्रियों को 18 पवित्र सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। श्रद्धालुओं को मंदिर जाने से पहले कुछ रस्में भी निभानी पड़ती हैं। सबरीमाला के तीर्थयात्री काले या नीले रंग के कपड़े पहनते हैं और जब तक यात्रा पूरी न हो जाए, उन्हें शेविंग की इजाज़त भी नहीं होती। इस तीर्थयात्रा के दौरान वे अपने माथे पर चंदन का लेप भी लगाते हैं। साथ ही प्रतिबंध का समर्थन करने वालों का तर्क देते हैं कि यह परंपरा कई सालों से चली आ रही है। वे ये भी तर्क देते हैं कि श्रद्धालुओं को मंदिर में आने के लिए कम से कम 41 दिनों तक व्रत रखना ज़रूरी होता है और शारीरिक कारणों से वे महिलाएं ऐसा नहीं कर सकतीं, जो माहवारी की उम्र से गुजर रही होती हैं।
हालिया दिनों में आये शीर्ष अदालत के शीर्ष फैसले-4 (सबरीमाला मंदिर प्रकरण-Sabarimala Temple Verdict )
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आठ दिनों तक सुनवाई करने के उपरांत केरल के सबरीमाला मंदिर में 10-50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर रोक को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 28 सितंबर को ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश ना करने की परंपरा को संविधान की धारा 14 के अंतर्गत असंवैधानिक करार देते हुए मंदिर के अंदर सभी महिलाओं के प्रवेश को इजाजत दे दी है। कोर्ट ने कहा सभी श्रद्धालुओं को पूजा का अधिकार है। दोतरफा नजरिए से महिला की गरिमा को ठेस पहुंचती है। सालों से चले आ रहे पितृसत्तात्मक नियम अब बदले जाने चाहिए। जैविक आधार पर किसी को मंदिर में प्रवेश से रोका नहीं जा सकता। हालांकि जस्टिस इंदू मल्होत्रा की राय अलग थी। उनके मुताबिक कोर्ट को धार्मिक मान्यताओं में दख़ल नहीं देना चाहिए और इसका दूसरे धार्मिक स्थलों पर भी असर पड़ेगा।
दरअसल सबरीमाला भारत के प्रमुख हिंदू मंदिरों में एक है। पूरी दुनिया से लाखों श्रद्धालु आशीर्वाद लेने के लिए इस मंदिर परिसर में आते हैं। मंदिर में प्रवेश के लिए तीर्थयात्रियों को 18 पवित्र सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। श्रद्धालुओं को मंदिर जाने से पहले कुछ रस्में भी निभानी पड़ती हैं। सबरीमाला के तीर्थयात्री काले या नीले रंग के कपड़े पहनते हैं और जब तक यात्रा पूरी न हो जाए, उन्हें शेविंग की इजाज़त भी नहीं होती। इस तीर्थयात्रा के दौरान वे अपने माथे पर चंदन का लेप भी लगाते हैं। साथ ही प्रतिबंध का समर्थन करने वालों का तर्क देते हैं कि यह परंपरा कई सालों से चली आ रही है। वे ये भी तर्क देते हैं कि श्रद्धालुओं को मंदिर में आने के लिए कम से कम 41 दिनों तक व्रत रखना ज़रूरी होता है और शारीरिक कारणों से वे महिलाएं ऐसा नहीं कर सकतीं, जो माहवारी की उम्र से गुजर रही होती हैं।