आरोपों-प्रत्यारोपों के दल-दल में फंसी सीबीआई (Latest Dispute In CBI)
Posted on October 25th, 2018 | Create PDF File
केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानी सीबीआई भारत की प्रमुख केन्द्रीय जांच एजेंसी है। यह राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले अपराधों जैसे- हत्या, घोटालों और भ्रष्टाचार से जुड़े सभी मामलों की भारत सरकार की तरफ से जांच करती है। उद्यमिता, निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा सीबीआई का आदर्श वाक्य है। अपनी स्थापना के बाद से ही इसने देश मे अपनी अलग पहचान बनाने मे कामयाबी पाई है। सीबीआई गंभीर आपराधिक मामलों की जांच के साथ साथ कानून लागू करने में अंतर्राज्यीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक युगल एजेंसी के रूप में काम करती है। यह देश की सबसे भरोसेमंद जांच एजेंसी है और इसे हमेशा चुनौतीपूर्ण मामले सौपे जाते हैं। जिसके अक्सर बेहतरीन नतीजे देखने को मिले हैं। इसके बावजूद यह भी सच है कि केन्द्रीय अनुसंधान ब्यूरो प्रायः विवादों और आरोपों से घिरी रहती है। इस पर केन्द्रीय सरकार के एजेंट के रूप में पक्षपातपूर्ण काम करने का आरोप लगता रहा है। बीते कुछ दिनों से इसके दो वरिष्ठ अधिकारियों के बीच मचे घमासान की वजह से यह जांच एजेंसी फिलहाल चर्चा के केंद्र में है।
सुर्खियों मे क्यों है-
दरअसल सीबीआई के अपने 55 सालों के इतिहास में या कहे कि देश में पहली बार एक अभूतपूर्व घटनाक्रम के तहत सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना से रातोंरात उनकी जिम्मेदारियां पूरी तरह से वापस ले ली गईं हैं। परिवर्तन के तौर पर केंद्र सरकार ने केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक आलोक वर्मा की जगह जॉइंट डायरेक्टर एम नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक नियुक्त किया है।
कौन हैं एम.नागेश्वर राव-
एम. नागेश्वर राव तेलंगाना के वारंगल जिले के रहने वाले हैं। वह ओडिशा कैडर के 1986 बैच के आईपीएस (IPS) अधिकारी हैं। इससे पहले वह ओडिशा पुलिस (रेलवे) में एडिशनल डायरेक्टर रह चुके हैं। उन्होंने ओसमानिया यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई की है। इसके बाद उन्होंने आईआईटी मद्रास से रिसर्च किया था। सीबीआई मुख्यालय में आने के बाद नागेश्वर राव पर ओडिशा, जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों की जिम्मेदारी रही है। अपनी बेहतरीन सेवाओं के लिए नागेश्वर राव राष्ट्रपति पुलिस मेडल, विशेष कर्तव्य मेडल और ओडिशा गवर्नर मेडल से भी सम्मानित हो चुके हैं।
गौरतलब है कि एम. नागेश्वर राव ऐसे पहले अधिकारी थे जिन्होंने वर्ष 1996 में जगतसिहंपुर जिले में हुए एक बलात्कार के मामले का पता लगाने के लिए क्राइम इन्वेस्टिगेशन में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग तकनीक का उपयोग किया था। सीबीआई की क्राइम ब्रांच में उनका अहम योगदान है।
इसके अलावा मणिपुर में सीआरपीएफ के डीआईजी (ऑपरेशन्स) के पद पर रहते हुए उग्रवाद के खिलाफ नागेश्वर राव के कार्य को काफी सराहना मिली थी। कोलकाता में नक्सलियों के खिलाफ वर्ष 2008 में लालगढ़ ऑपरेशन में भी राव की मुख्य भूमिका रही है। वर्ष 2008 में कंधमाल हिंसा के दौरान इलाके में व्याप्त तनाव को दूर करने में तत्कालीन सीआरपीएफ आईजी के रूप में भी राव ने अहम भूमिका निभाई।
ज्ञात हो कि नागेश्वर राव ने 24 अक्टूबर 2018 को कार्यभार संभाला है। आधीरात के करीब प्रभार लेने के फौरन बाद राव ने करीब एक दर्जन अधिकारियों के स्थानांतरण का आदेश दिया जिनमें से एक को पोर्ट ब्लेयर भेजा गया है। उन्होने सीबीआई के मुख्यालय में छापेमारी करवाई। इसके अंतर्गत दो अधिकारियों- मनीष सिन्हा और एके शर्मा के खिलाफ एक्शन लिया गया है। इसके साथ ही उन्होंने अस्थाना के खिलाफ घूस और जबरन वसूली के आरोपों की जांच के लिये नए सिरे से टीम का गठन किया है। जिन अधिकारियों का स्थानांतरण किया गया है उनमें से अधिकतर गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी अस्थाना के खिलाफ जांच कर रही टीम का हिस्सा थे।
मामला क्या है?
गौरतलब है कि सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा पर भ्रष्टाचार और दस्तावेजों के गलत निरूपण करने का आरोप लगाया था। उन पर लालू प्रसाद यादव मामले में जांच को प्रभावित करने और उसमें हस्तक्षेप करने का भी आरोप लगाया गया था। जिसके बाद जबाव देते हुए आलोक वर्मा ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों का खण्डन किया और कहा कि जिन मामलों में छेड़छाड़ की बात अस्थाना कर रहे हैं, उनमें आधा दर्जन से ज्यादा जांचों में वे खुद मेरे साथ थे। यहीं से आरोप- प्रत्यारोपों का दौर शुरू होता है।
इसी संबंध में केन्द्रीय सतर्कता आयोग सीवीसी ने सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना और कई अन्य के खिलाफ कथित रूप से मांस कारोबारी मोइन कुरैशी से 3 करोड़ की घूस लेने के आरोप में 21 अक्टूबर 2018 को एक एफआईआर दर्ज की थी। उसके बाद उन्हें 3 नोटिस भेजे गए। जिनमें उनसे कथित आरोपों पर 3 हफ्ते के अंदर जबाव देने को कहा गया था। लेकिन उन्होने कोई जबाव नही दिए।
वहीं, मामला दर्ज किए जाने के एक दिन बाद डीएसपी देवेंद्र कुमार को गिरफ्तार किया गया था। जिन्हें पटियाला हाउस कोर्ट की विशेष अदालत ने सात दिन की सीबीआइ रिमांड पर भेज दिया है।
सीवीसी का आरोप है कि अस्थाना नें इस जांच में सहयोग नही किया। बता दें कि घूसखोरी के मामले में एफआईआर के बाद अब सीबीआई ने अस्थाना पर फर्जीवाड़े और जबरन वसूली का मामला भी दर्ज किया है।
सीबीआई में विवाद के बाद केंद्र के दखल पर हुई कार्रवाई का मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। आलोक वर्मा से सीबीआई निदेशक का कामकाज छीने जाने और एम नागेश्वर राव की अंतरिम डायरेक्टर के तौर पर नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। यह याचिका एनजीओ कॉमन कॉज ने दाखिल की है।
आलोक वर्मा की याचिका के मुताबिक, 23 अक्तूबर को रातोंरात रैपिड फायर के तौर पर CVC और DoPT ने तीन आदेश जारी किए। यह फैसले मनमाने और गैरकानूनी हैं, इन्हें रद्द किया जाना चाहिए।
वहीं केंद्र सरकार ने कहा है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो(सीबीआई) के निदेशक वर्मा से इसलिए कार्यभार ले लिया गया, क्योंकि वह केंद्रीय सतर्कता आयोग(CVC) के साथ सहयोग नहीं कर रहे थे और आयोग की कार्यप्रणाली में 'जानबूझकर बाधा' उत्पन्न कर रहे थे। इसके अलावा शीर्ष अधिकारियों द्वारा एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के 'गंभीर' आरोपों ने संगठन के आधिकारिक माहौल को खराब कर दिया था, जिसे बदले जाने की जरूरत थी। इससे शीर्ष जांच एजेंसी की विश्वसनीयता और छवि को गंभीर क्षति पहुंच रही थी। सरकार ने कहा कि अधिकारियों द्वारा एक-दूसरे पर लगाए गए रिश्वतखोरी के आरोपों की जांच के लिए एक एसआईटी का गठन किया जाएगा।
क्या है सीबीआई-
केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation) या सीबीआई भारत सरकार की प्रमुख जाँच एजेन्सी है। इसकी स्थापना भारत सरकार द्वारा सन् 1941 में विशेष पुलिस प्रतिष्ठान(Special Police Establishment) के रूप में हुई थी। उस समय विशेष पुलिस प्रतिष्ठान का कार्य द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय युद्ध और आपूर्ति विभाग में लेन-देन में घूसखोरी और भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करना था।
मौजूदा समय में सीबीआई आपराधिक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हुए भिन्न-भिन्न प्रकार के मामलों की जाँच करने के लिये लगायी जाती है। यह कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के अधीन कार्य करती है। इसके अधिकार एवं कार्य दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापन अधिनियम(Delhi Special Police Establishment Act), 1946 से परिभाषित हैं। भारत के लिये सीबीआई ही इन्टरपोल की आधिकारिक इकाई है। साल 1963 में इसका नाम बदलकर ‘केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ कर दिया गया।
धीरे-धीरे, बड़ी संख्या में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की स्थापना के साथ ही इन उपक्रमों के कर्मचारियों को भी केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के क्षेत्र के अधीन लाया गया। इसी प्रकार, सन्1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और उनके कर्मचारी भी केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के क्षेत्र के अधीन आ गए।
सीबीआई, एक निदेशक (आईपीएस अधिकारी) के नेतृत्व में काम करती है। निदेशक सीवीसी अधिनियम 2003 के द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के आधार पर चुना जाता है। उसका कार्यकाल 2 साल का होता है।
इस घटनाक्रम के संभावित प्रभाव-
चुनावों से पहले सीबीआई विवाद की वजह से पूरे देश में हंगामा मचा हुआ है। ऐसे में चिंता इस बात की भी है कि जो महत्वपूर्ण मामले सीबीआई के पास हैं, उनका क्या होगा? ज्ञात हो कि राकेश अस्थाना अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर, विजय माल्या, नीरव मोदी, कोयला घोटाला, राबर्ट वाड्रा, भूपिंदर सिंह हुडा, दयानिधि मारन मामला, शारदा स्कैम, रोज वैली चिट फंड स्कैम और नारदा स्टिंग ऑपरेशन केस, उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाला आदि संवेदनशील केसों की जांच कर रहे थे।
इसके अलावा सीबीआई में विपक्षी पार्टी के नेताओं से जुड़े करीब दो दर्जन मामलों की भी जांच कर रही है। इन मामलों में भ्रष्टाचार से जुड़े मामले हैं, जिनमें हिमाचल प्रदेश के पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह, उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत, हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, आरजेडी प्रमुख लालू यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव, दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र कुमार जैन, टीएमसी के नेता सुदीप बंधोपाध्याय, आईएनएक्स मीडिया केस में कार्ति चिदंबरम और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व केंद्रीय मंत्री सचिन पायलट और बीएसपी प्रमुख मायावती के नाम भी शामिल हैं।
सीबीआई ने वाईएसआर प्रमुख जगन रेड्डी के खिलाफ 11 आरोपपत्र दायर किए हैं। इसके अलावा एजेंसी ने हाल ही में बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में भी रिपोर्ट तैयार की है। जानकारों का मानना है कि सीबीआई में आपसी तकरार से इन सब प्ररणों सहित शराब कारोबारी विजय माल्या के भारत प्रत्यर्पण का मामला भी कमजोर पड़ सकता है।
सारांश-
यूं तो फौरी तौर पर सीबीआई एक लगभग स्वायत्त संस्था है ही। लेकिन हकीकत क्या है,इस पर सीबीआई बराबर आलोचना का शिकार होती रही है। यह किसी से छिपा नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय खुद अपनी एक टिप्पणी में इसे ‘पिंजरे में बंद तोता’ बता चुका है। हालांकि सभी संस्थाएं किसी-न-किसी के प्रति जवाबदेह होती ही हैं। कोई कार्यपालिका, कोई विधायिका और कुछ न्यायपालिका के प्रति जवाबदेह होती हैं। लेकिन इसका यह अर्थ नही निकाल लेना चाहिए, अब वो संस्थान आपके आधीन, आपके अनुसार काम करेगा। और अगर करता है, तो इससे उसकी साख और लोकतंत्र की संस्था कमजोर पड़ती है, जो कि संविधान की मूल भावना के विपरीत है।
विपक्षकार यह मानते हैं कि सत्ता में बैठी सरकार यह तय करती है कि सीबीआई कैसे कार्य करेगी; और यह उन चीज़ों से स्पष्ट हो जाता है कि क्या किया गया है और क्या नहीं?
अगर हम वास्तव में सीबीआई को एक स्वतंत्र, उद्देश्यपरक और निष्पक्ष जाँच एजेंसी के रूप में काम करते देखना चाहते हैं तो हमें इसकी स्वतंत्रता और जबावदेही को ध्यान में रखना होगा। तभी भविष्य में यह जनता, न्यायपालिका और मीडिया का विश्वास जीतने में कामयाब हो पाएगी।
कई बार ऐसा होता है जब प्रतिक्रियाएँ एक राजनीतिक एजेंडा के तहत आगे बढ़ती प्रतीत होती हैं। और कई बार ऐसा भी होता है जब प्रतिक्रियाएँ किसी स्थिति से निपटने की वास्तविक इच्छा को दर्शाती हैं। दोनों ही स्थितियों में इस संस्थान को उन्नत करने और उनके आधुनिकीकरण करने की आवश्यकता है।