अन्तर्राष्ट्रीय समसामियिकी 1 (23-Nov-2020)
शरणार्थियों का पुनर्वासन
(Refugees Resettlement)

Posted on November 23rd, 2020 | Create PDF File

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संयुक्‍त राष्‍ट्र शरणार्थी उच्‍चायुक्‍त कार्यालय (United Nations High Commissioner for Refugees - UNHCR) ने इस वर्ष पुनर्वासित (resettled) होने वाले शरणार्थियों (refugees) की संख्या में भारी कमी (drastic reduction) आने की बात कही है।


संयुक्‍त राष्‍ट्र शरणार्थी उच्‍चायुक्‍त कार्यालय (UNHCR) के मुताबिक 2020 के प्रथम नौ महीनों में महज़ 15 हज़ार 425 लोगों के लिये ही पुनर्वास सम्भव हो पाया है जबकि 2019 में यह संख्या 50 हज़ार से ज़्यादा थी। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2016 में पुनर्वासित शरणार्थियों की संख्या एक लाख 26 हज़ार से ज़्यादा थी।यूएनएचसीआर के अनुसार, शरणार्थियों के पुनर्वासित होने की मौजूदा दर पिछले दो दशकों में पुनर्वास के सबसे कम स्तर को दर्शाती है। यह शरणार्थी संरक्षण के लिये और मानव समुदाय की ज़िन्दगियाँ बचाने तथा जोखिम का सामना कर रहे लोगों की रक्षा करने के प्रयासों को एक बड़ा झटका है।

 

यूएन एजेंसी के मुताबिक, कोविड-19 महामारी के कारण शरणार्थियों को अन्य देशों में भेजा जाना मुश्किल हो गया है। यही कारण है कि शरणार्थियों के पुनर्वासन में दिक्कत आ रही है।जनवरी से सितम्बर महीनों के बीच पुनर्वासित 15 हज़ार लोगों में लगभग 30 फ़ीसदी हिंसा या यातना के शिकार रहे हैं।पुनर्वास सहित अन्य सुरक्षित और क़ानूनी रास्तों से संरक्षणों का दायरा बढ़ाने से शरणार्थियों की ज़िन्दगियों की रक्षा होती है और इससे उनके द्वारा भूमि और समुद्री मार्ग से ख़तरनाक यात्राओं पर जाने की मजबूरी को कम किया जा सकता है।पुनर्वास प्रयासों के तहत शरणार्थियों को शरण लेने वाले को एक देश से उन देशों में भेजा जाता है जो उन्हें स्वीकार करने और स्थायी रूप से बसाने के लिये राज़ी हो गए हों।संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी ने विश्व समुदाय से और अधिक संख्या में शरणार्थियों को स्थान देने का आग्रह किया है।

 


संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) ने कहा कि “इस वर्ष सबसे बड़ी संख्या में सीरियाई नागरिक (41 फ़ीसदी) पुनर्वासित किये गए हैं। इसके बाद काँगो लोकतान्त्रिक गणराज्य (16 प्रतिशत) का स्थान आता है। अन्य शरणार्थी इराक़, म्याँमार और अफ़ग़ानिस्तान से पुनर्वासित किये गए हैं।”महामारी की वजह से लीबिया से शरणार्थियों के लिये सहायता प्रयासों में रुकावटें आई हैं और पुनर्वास प्रक्रिया 15 अक्टूबर को ही शुरू हो पाई है।



शरणार्थी वो इंसान होता है जो उत्पीड़न, युद्ध या हिंसा के कारण अपना देश छोड़कर किसी दूसरे देश में रहने के लिए जाता है और डर के कारण वापस अपने मुल्क़ लौटना नहीं चाहता है। किसी देश में मौजूद राजनीतिक, धार्मिक और साम्प्रदायिक उत्पीड़न के कारण भी लोग शरणार्थी बनते हैं।


शरणार्थी संकट के कारण- संघर्ष,हिंसा,युद्ध,बढ़ती अमीरी-ग़रीबी,आंतरिक अस्थिरता,बाहरी राजनीतिक हस्तक्षेप,शरणार्थी संकट का असर,मानवाधिकारों का हनन,मानव तस्करी,पहचान का संकट,राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरा (आतंकवाद),राजनीतिक अस्थिरता,जनसँख्या में वृद्धि,अराजकता,अलगावाद की समस्या।


शरणार्थियों को रास्ते में कई मुश्किलों का भी सामना करना पड़ता है जिसमें उनकी जान भी चली जाती है।

 

संयुक्‍त शरणार्थी उच्‍चायुक्‍त कार्यालय-


संयुक्‍त शरणार्थी उच्‍चायुक्‍त कार्यालय की स्‍थापना 14 दिसम्‍बर, 1950 को संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा ने की थी। एजेंसी का कार्य क्षेत्र दुनिया भर में शरणार्थियों के संरक्षण और शरणार्थी समस्‍याओं के समाधान के लिए अंतर्राष्‍ट्रीय कार्रवाई का नेतृत्‍व और उसमें समन्‍वय करना है। इसका मूल उद्देश्‍य शरणार्थियों के अधिकारों और कल्‍याण की रक्षा करना है।यूएनएचसीआर यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करता है कि हर कोई किसी दूसरे देश में शरण मांगने और सुरक्षित शरण पाने के अधिकार का उपयोग कर सके। उसे स्‍वेच्‍छा से स्‍वदेश लौटने, स्‍थानीय समुदाय में घुलमिल जाने अथवा किसी तीसरे देश में बस जाने का विकल्‍प भी मिले। यूएनएचसीआर को राष्‍ट्रविहीन लोगों की मदद करने का काम भी सौंपा गया है।


शरणार्थी संकट के लिए क़ानून-


1951 का शरणार्थी कन्वेंशन एक ऐसा अंतर्राष्ट्रीय क़ानून है जो शरणार्थियों को परिभाषित करता है। इस कन्वेंशन के मुताबिक़ इस पर दस्तख़त करने वाले देशों पर शरण देने वाले व्यक्तियों के सभी कानूनी सुरक्षा, सहायता और सामाजिक अधिकारों का पालन करना होता है।उल्लेखनीय है कि भारत ने न तो शरणार्थी कन्वेंशन 1951 पर दस्तख़त किए हैं और न ही शरणार्थी कन्वेंशन से जुड़े 1967 के प्रोटोकॉल पर।