राजव्यवस्था समसामियिकी 1 (11-Feb-2020)^कैदियों के लिए मताधिकार का अनुरोध करने वाली याचिका खारिज ^(Petition requesting suffrage for prisoners dismissed)
Posted on February 12th, 2020
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कैदियों को मतदान का अधिकार देने का अनुरोध करने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) यह कहते हुए खारिज कर दी कि यह सुविधा कानून के तहत उपलब्ध है और इसे कानून के माध्यम से छीना जा सकता है।
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय की व्यवस्था है कि मतदान का अधिकार कोई मौलिक अधिकार नहीं है और यह महज कानून द्वारा प्रदत्त है।
पीठ ने कहा कि मताधिकार का प्रावधान जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत है जो कानून द्वारा लागू सीमाओं के अधीन है और यह कैदियों को जेल से वोट डालने की अनुमति नहीं देता।
उच्च न्यायालय ने कहा कि शीर्ष अदालते के फैसले और कानूनी स्थिति के मद्देनजर, उसे यह याचिका विचार योग्य नहीं मालूम होती और इसे खारिज किया जाता है।
यह फैसला कानून के तीन छात्रों - प्रवीण कुमार चौधरी, अतुल कुमार दूबे और प्रेरणा सिंह की ओर से दायर एक याचिका पर आया है जिसमें देश की सभी जेलों में बंद कैदियों को मतदान का अधिकार देने का अनुरोध किया गया था।
इस याचिका में लोक प्रतिनिधित्व कानून की धारा 62 (5) की वैधता को चुनौती दी गई थी जो कैदियों को मतदान का अधिकार नहीं देती है।
निर्वाचन आयोग ने याचिका का यह कहते हुए विरोध किया कि कानून के तहत कैदियों को मतदान का अधिकार नहीं है और उच्चतम न्यायालय ने इसका समर्थन किया था।
राजव्यवस्था समसामियिकी 1 (11-Feb-2020)कैदियों के लिए मताधिकार का अनुरोध करने वाली याचिका खारिज (Petition requesting suffrage for prisoners dismissed)
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कैदियों को मतदान का अधिकार देने का अनुरोध करने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) यह कहते हुए खारिज कर दी कि यह सुविधा कानून के तहत उपलब्ध है और इसे कानून के माध्यम से छीना जा सकता है।
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय की व्यवस्था है कि मतदान का अधिकार कोई मौलिक अधिकार नहीं है और यह महज कानून द्वारा प्रदत्त है।
पीठ ने कहा कि मताधिकार का प्रावधान जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत है जो कानून द्वारा लागू सीमाओं के अधीन है और यह कैदियों को जेल से वोट डालने की अनुमति नहीं देता।
उच्च न्यायालय ने कहा कि शीर्ष अदालते के फैसले और कानूनी स्थिति के मद्देनजर, उसे यह याचिका विचार योग्य नहीं मालूम होती और इसे खारिज किया जाता है।
यह फैसला कानून के तीन छात्रों - प्रवीण कुमार चौधरी, अतुल कुमार दूबे और प्रेरणा सिंह की ओर से दायर एक याचिका पर आया है जिसमें देश की सभी जेलों में बंद कैदियों को मतदान का अधिकार देने का अनुरोध किया गया था।
इस याचिका में लोक प्रतिनिधित्व कानून की धारा 62 (5) की वैधता को चुनौती दी गई थी जो कैदियों को मतदान का अधिकार नहीं देती है।
निर्वाचन आयोग ने याचिका का यह कहते हुए विरोध किया कि कानून के तहत कैदियों को मतदान का अधिकार नहीं है और उच्चतम न्यायालय ने इसका समर्थन किया था।