अर्थव्यवस्था समसामियिकी 1 (29-Dec-2019)
आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिये पूंजीगत खर्च बढ़ाने, राजस्व घाटा कम करने की जरूरत: विशेषज्ञ
(Need to increase capital expenditure, reduce revenue deficit to deal with economic slowdown: Expert)

Posted on December 29th, 2019 | Create PDF File

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आर्थिक क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा आर्थिक सुस्ती के दौर में सरकार को अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिये पूंजीगत खर्च बढ़ाने की जरूरत है। उनका कहना है कि राजकोषीय घाटा बढ़ने की कीमत पर भी यदि पूंजीगत खर्च बढ़ता है तो इसे बढ़ाया जाना चाहिये लेकिन राजस्व घाटे को नियंत्रित रखते हुये ‘शून्य’ पर लाने के प्रयास होने चाहिये।

 

देश- दुनिया में गहराती आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिये सरकार ने कारपारेट कर में कटौती, रीयल एस्टेट क्षेत्र को प्रोत्साहन देने, बैंकिंग क्षेत्र में नई पूंजी डालने, गैर- बैंकिंग क्षेत्र में नकदी की तंगी दूर करने सहित हाल में कई कदमों की घोषणा की है। इसके बावजूद चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर कम होकर 4.5 प्रतिशत रह गई। इससे पिछली तिमाही में यह पांच प्रतिशत और उससे भी पिछली तिमाही में 5.8 प्रतिशत दर्ज की गई थी।

 

नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पब्लिक फाइनेंस एण्ड पालिसी (एनआईपीएफपी) के जाने माने प्रोफेसर एन.आर. भानुमूर्ति ने ‘भाषा’ से बातचीत में कहा, ‘‘लगता है सरकार राजकोषीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) कानून के मूल लक्ष्य को भूल गई है। इस कानून में राजस्व घाटे को शून्य पर लाने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन उसे भुला दिया गया है। अब केवल राजकोषीय घाटे पर ध्यान दिया जाता है। आर्थिक मजबूती के लिये राजस्व घाटे को कम करना और उसे शून्य पर लाना जरूरी है।’’ चालू वित्त वर्ष 2019-20 के बजट में राजस्व घाटा 2018- 19 के 2.2 प्रतिशत से बढ़कर 2.3 प्रतिशत पर पहुंचने का अनुमान लगाया गया है। वहीं राजकोषीय घाटा पिछले वित्त वर्ष में 3.3 प्रतिशत के बजट अनुमान के बाद संशोधित अनुमान में 3.4 प्रतिशत पर पहुंच गया और चालू वित्त वर्ष के दौरान इसके 3.3 प्रतिशत पर रहने का बजट अनुमान है।

 

कर्मचारियों के वेतन, नकद सब्सिडी, सरकारी सहायता पर होने वाला खर्च राजस्व व्यय में आता है जबकि आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने वाला कारखानों, बंदरगाहों, हवाईअड्डों, सड़क निर्माण पर होने वाला खर्च पूंजीगत खर्च कहलाता है।

 

प्रोफेसर भानुमूर्ति का कहना है कि सरकार की विभिन्न योजनाओं में कई तरह की सब्सिडी दी जा रही है। पेट्रोलियम, उर्वरक सब्सिडी से लेकर ग्रामीण विद्युतीकरण, सस्ता आवास सहित कई तरह की योजनाओं में सब्सिडी दी जा रही है। इसमें सरकार का खर्च तेजी से बढ़ रहा है। इस तरह की सब्सिडी को नियंत्रित किया जाना चाहिये, इससे सरकार का राजस्व घाटा बढ़ रहा है। इसके विपरीत वित्तीय घाटा यदि थोड़ा बहुत बढ़ता भी है तो भी सरकार को पूंजी निर्माण के क्षेत्र में प्रोत्साहन देना चाहिये। बड़ी परियोजनाओं पर खर्च बढ़ाना चाहिये। इसके लिये प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर दोनों क्षेत्रों में राजकोषीय प्रोत्साहन देने की जरूरत है।

 

नेशनल काउंसिल आफ एपलॉयड इकनोमिक रिसर्च (एनसीएईआर) के विशिष्ट फेलो सुदीप्तो मंडल ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि सरकार को आगामी बजट में एक तरफ सब्सिडी नियंत्रित करने पर ध्यान देना चाहिये जबकि दूसरी तरफ पूंजी निर्माण और मांग बढ़ाने के उपायों पर ध्यान देना चाहिये। इस तरह के उपायों को अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने में मदद मिलेगी।

 

मंडल ने कहा,‘‘गरीबों, किसानों के हाथ में अधिक पैसा आना चाहिये। जबकि इस तरह की सब्सिडी को कम किया जाना चाहिये जिसका लाभ गरीबों को न मिलकर कंपनियों और अमीरों के हाथ में पहुंचता है। पीएम किसान जैसी योजनाओं का लाभ केवल किसानों को ही नहीं बल्कि सभी गरीबों को दिया जाना चाहिये। सरकार को समूचे गरीब तबके लिये एक ‘‘सार्वभौमिक मूलभूत आय’’ योजना पेश करनी चाहिये।’’ भानुमूर्ति ने कहा आयकर स्लैब में पिछले कई सालों से कोई बदलाव नहीं किया गया है। अब सरकार को प्रत्यक्ष कर संहिता में दिये गये सुझावों पर गौर करते हुये कर स्लैब में बदलाव करना चाहिये। हालांकि, उन्होंने इस बारे में स्पष्ट कुछ नहीं कहा कि कर की दर में कोई बदलाव होना चाहिये अथवा नहीं। उनका कहना है, ‘‘यदि कर की दर बढ़ाई जाती है तो जरूरी नहीं कि राजस्व प्राप्ति बढ़ेगी ही। अनुपालन कितना बढ़ेगा यह देखना होगा। बहरहाल, आपको स्लैब पर जरूर गौर करना चाहिये।’’ लोगों के हाथ में अधिक पैसा बचेगा तो अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ेगी।

 

वर्तमान में ढाई लाख रुपये तक की सालाना आय करमुक्त है जबकि ढाई से पांच लाख रुपये की आय पर पांच प्रतिशत, पांच से दस लाख रुपये तक की वार्षिक आय पर 20 प्रतिशत और दस लाख रुपये से अधिक की आय पर 30 प्रतिशत की दर से आयकर लागू है। सरकार ने 2019- 20 के बजट में पांच लाख रुपये तक की कर योग्य सालाना आय होने पर उसे कर से पूरी तरह छूट देने का प्रावधान किया है।

 

भानुमूर्ति ने कहा कि राजस्व प्राप्ति के लिये सरकार की विनिवेश पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। विनिवेश के तय लक्ष्य को हासिल करना हर समय चुनौती भरा रहा है। राजस्व प्राप्ति और घाटे की भरपाई के लिये दूसरे विकल्पों की तलाश होनी चाहिये। गैर- कर राजस्व पर ध्यान बढ़ाना होगा।

 

वहीं मंडल ने कहा कि विनिवेश के क्षेत्र में इस सरकार का रिकार्ड अच्छा रहा है। सरकार हर साल बड़ा लक्ष्य रखती है लेकिन विनिवेश से होने वाली प्राप्ति को केवल पूंजी निर्माण कार्यों में ही खर्च किया जाना चाहिये। सरकारी कर्मचारियों के वेतन पर इस राशि को खर्च नहीं किया जाना चाहिये। ‘‘विनिवेश से मिलने वाली राशि से आप रेलवे परियोजनाओं को पूरा कीजिये, हवाईअड्डे बनाइये, सड़के और बड़े कारखाने लगाइये, लेकिन इसे आप वेतन देने अथवा दूसरी देनदारी को पूरा करने पर खर्च मत कीजिये। अपने बेशकीमती नगीनों को बेचकर नई पूंजी खड़ी कीजिये, राजस्व खर्च में उसे मत उड़ाइये।’’