राष्ट्रीय समसामियिकी 1 (11-Feb-2019)
महामस्तकाभिषेक महोत्सव
(Mahamastakabhishek Festival)

Posted on February 11th, 2019 | Create PDF File

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हाल ही में श्रवणबेलगोला स्थित भगवान गोमतेश्वर बाहुबली की मूर्ति का अनावरण कर राष्ट्रपति ने महामस्तकाभिषेक महोत्सव का उद्घाटन किया। यह महोत्सव 9-18 फरवरी, 2019 तक मनाया जाएगा।

 

महामस्तकाभिषेक 12 वर्षों में एक बार मनाया जाता है। अब तक का यह चौथा महामस्तकाभिषेक है इससे पहले यह वर्ष 1982, 1995, 2007 में मनाया गया।


भगवान बाहुबली पहले जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभनाथ के पुत्र थे।


जैन मान्यताओं के अनुसार, बाहुबली ने निरंतर लंबी अवधि तक ध्यान में रहकर सांसारिक विषय-विकारों से मुक्ति प्राप्त की थी एवं मोक्ष भी सबसे पहले बाहुबली को ही प्राप्त हुआ था।

 

महामस्तकाभिषेक, दो शब्दों के मेल से बना है– महा और मस्तकाभिषेक जिसका अर्थ होता है, बड़े स्तर पर आयोजित होने वाला अभिषेक। सबसे प्रचलित महामस्तकाभिषेक गोमटेश्वर बाहुबली का होता है जो 12 वर्ष के अन्तराल पर दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य के श्रवणबेलगोला शहर में आयोजित किया जाता है। यहाँ पर भगवान बाहुबली की 18 मी. उँची एकाश्म मूर्ति स्थापित है। यह अभिषेक जल, इक्षुरस, दूध, चावल का आटा, लाल चंदन, हल्दी, अष्टगंध, चंदन चुरा, चार कलश, केसर वृष्टि, आरती, सुगंधित कलश, महाशांतिधारा एवं महाअर्घ्य के साथ भगवान नेमिनाथ को समर्पित किया जाता है।

 

ग्रेनाइट के विशाल अखण्ड शिला से तराशी बाहुबली की प्रतिमा बंगलोर से 158 किलोमीटर की दूरी ओर स्थित श्रवणबेलगोला में है। इसका निर्माण गंगा वंश के मंत्री और सेनापति चामुण्डराय ने वर्ष 981 में करवाया था।57 फुट ऊंची यह प्रतिमा विश्व की चंद स्वतः खड़ी प्रतिमाओं में से एक है।25 किलोमीटर की दूरी से भी इस प्रतिमा के दर्शन होते है और श्रवणबेलगोला जैनियों का एक मुख्य तीर्थ स्थल है। हर बारह वर्ष के अंतराल पर इस प्रतिमा का अभिषेक किया जाता है जिसे महामस्तकाभिषेक नामक त्योहार के रूप में मनाया जाता है।

 

बाहुबली-

 

बाहुबली प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र थे।अपने बड़े भाई भरत चक्रवर्ती से युद्ध के बाद वह मुनि बन गए। उन्होंने एक वर्ष तक कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यान किया जिससे उनके शरीर पर बेले चढ़ गई। एक वर्ष के कठोर तप के पश्चात् उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और वह केवली कहलाए।अंत में उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई और वे जीवन और मरण के चक्र से मुक्त हो गए।

 

गोम्मटेश्वर प्रतिमा के कारण बाहुबली को गोम्मटेश भी कहा जाता है। यह मूर्ति श्रवणबेलगोला, कर्नाटक, भारत में स्थित है और इसकी ऊंचाई 57 फुट है।इसका निर्माण वर्ष 981 में गंगा मंत्री और सेनापति चामुंडराय ने करवाया था। यह विश्व की चंद स्वतः रूप से खड़ी प्रतिमाओं में से एक है।

 

बाहुबली का जन्म ऋषभदेव और सुनंदा के यहाँ इक्षवाकु कुल में अयोध्या नगरी में हुआ था। उन्होंने चिकित्सा, तीरंदाज़ी, पुष्पकृषि और रत्नशास्त्र में महारत प्राप्त की। उनके पुत्र का नाम सोमकीर्ति था जिन्हें महाबल भी कहा जाता है। जैन ग्रंथों के अनुसार जब ऋषभदेव ने संन्यास लेने का निश्चय किया तब उन्होंने अपना राज्य अपने १०० पुत्रों में बाँट दिया।भरत को विनीता (अयोध्या) का राज्य मिला और बाहुबली को अम्सक का जिसकी राजधानी पोदनपुर थी। भरत चक्रवर्ती जब छ: खंड जीत कर अयोध्या लौटे तब उनका चक्र-रत्न नगरी के द्वार पर रुक गया। जिसका कारण उन्होंने पुरोहित से पूछा। पुरोहित ने बताया की अभी आपके भाइयों ने आपकी आधीनता नहीं स्वीकारी है। भरत चक्रवर्ती ने अपने सभी 99 भाइयों के यहाँ दूत भेजे। 98 भाइयों ने अपना राज्य भरत को दे दिया और जिन दीक्षा लेकर जैन मुनि बन गए। बाहुबली के यहाँ जब दूत ने भरत चक्रवर्ती का अधीनता स्वीकारने का सन्देश सुनाया तब बाहुबली को क्रोध आ गया। उन्होंने भरत चक्रवर्ती के दूत को कहा की भरत युद्ध के लिए तैयार हो जाएँ।

 

सैनिक-युद्ध न हो इसके लिए मंत्रियों ने तीन युद्ध सुझाए जो भरत और बाहुबली के बीच हुए। यह थे, दृष्टि युद्ध, जल-युद्ध और मल-युद्ध। तीनों युद्धों में बाहुबली की विजय हुयी।



इस युद्ध के बाद बाहुबली को वैराग्य हो गया और वे सर्वस्व त्याग कर दिगम्बर मुनि बन गये। उन्होंने एक वर्ष तक बिना हिले खड़े रहकर कठोर तपस्या की। इस दौरान उनके शरीर पर बेले लिपट गयी। चींटियों और आंधियो से घिरे होने पर भी उन्होंने अपना ध्यान भंग नही किया और बिना कुछ खाये पिये अपनी तपस्या जारी रखी। एक वर्ष के पश्चात भरत उनके पास आये और उन्हें नमन किया। इससे बाहुबली के मन में अपने बड़े भाई को नीचा दिखाने की ग्लानि समाप्त हो गई और उनके चार घातिया कर्मो का नाश हो गया। तब उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे इस अर्ध चक्र के प्रथम केवली बन गए। इसके पश्चात उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।

 

आदिपुराण के अनुसार बाहुबली इस युग के प्रथम कामदेव थे।इस ग्रंथ की रचना आचार्य जिनसेन ने 9वीं शताब्दी में संस्कृत भाषा में की थी। यह ग्रंथ भगवान ऋषभदेव के दस पर्यायों तथा उनके पुत्र भरत और बाहुबली के जीवन का वर्णन करता है।