कला एवं संस्कृति समसामियिकी 1 (10-Jan-2021)^जल्लीकट्टू ^(Jallikattu)
Posted on January 10th, 2021
पशुओं के साथ नैतिक व्यवहार की वकालत करने वाले पशु अधिकार संगठन पेटा ने तमिलनाडू सरकार से जल्लीकट्टू खेल को आयोजित करने के आदेश को वापस लेने का आग्रह किया है।पीपल्स फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) ने यह आग्रह 50 से अधिक डॉक्टरों के हस्ताक्षर युक्त पत्र के आधार पर किया है, जिसमे कहा गया है कि खेल एक गैर-आवश्यक गतिविधि है और इससे कोविड-19 के फैलने का खतरा है।
जल्लीकट्टू ‘मट्टू पोंगल’ के दिन आयोजित किया जाने वाला एक परंपरागत खेल है जिसमें बैलों को इंसानों द्वारा नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है।मट्टू पोंगल तमिलनाडू में चार दिन तक चलने वाले त्योहार पोंगल के तीसरे दिन मनाया जाता है।जल्लीकट्टू तमिल शास्त्रीय युग (400-100 ईसा पूर्व) से संबंधित एक प्राचीन खेल है। इसका वर्णन प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य शिलप्पदिकारम और दो अन्य ग्रन्थों मालीपादुकादम और कालीथोगई में भी मिलता है। इसके अलावा, एक 2500 साल पुरानी गुफा पेंटिंग में एक बैल को नियंत्रित करने वाले एक आदमी को दर्शाया गया है जिसे इसी खेल से जोड़ा जाता है।जल्लीकट्टू को येरुथा ज़ुवुथल, मदु पिदिथल, पोलरुधु पिदिथल जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है।
2010 में एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ़ इंडिया की अगुवाई में हुई एक जाँच कहा गया कि जल्लीकट्टू स्वाभाविक रूप से जानवरों के लिए क्रूर है। इसके बाद से भारतीय पशु संरक्षण संगठनों के संघ (FIAPO) और पेटा इंडिया जैसे पशु कल्याण संगठनों ने इस प्रथा का विरोध करना शुरू कर दिया है।वर्ष 2014 में पेटा की एक याचिका पर सुनवाई करने के बाद माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू को प्रतिबंधित कर दिया था।सुप्रीम कोर्ट द्वारा जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद राज्य भर में भारी विरोध प्रदर्शन हुये।इसके बाद 2017 में तमिलनाडू सरकार ने सर्वसम्मति से पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 में संशोधन करने के लिए "सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और बैल की देशी नस्लों के अस्तित्व और निरंतरता को सुनिश्चित करने" के लिए एक कानून बनाया और इसके बाद जल्लीकट्टू आयोजन पर प्रतिबंध भी समाप्त हो गया। हालांकि अभी भी भारतीय पशु संरक्षण संगठनों के संघ (FIAPO) और पेटा इंडिया जैसे पशु कल्याण संगठनों समेत पशु प्रेमियों द्वारा इस प्रथा का विरोध किया जाता है।
पीपल्स फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स- पेटा (People for the Ethical Treatment of Animals-PETA) एक पशु-अधिकार संगठन है। इस संगठन में पशुओं के साथ नैतिक व्यवहार के पक्षधर लोग काम करते है।यह संस्था जानवरों के अधिकारों की स्थापना और बचाव के लिए समर्पित है। यहाँ पशुओं की देख रेख से लेकर उनके रख –रखाव तक का पूरा ध्यान रखा जाता है।पेटा का गठन 1980 में इनग्रिड न्यूकिर्क और एलेक्स पचेको द्वारा किया गया था। यह पूरे संसार का सबसे बड़ा पशु- अधिकार संगठन है। इसका मुख्यालय यूएसए के वर्जिनिया के नॉर्फोल्क (Norfolk) में स्थित है।
कला एवं संस्कृति समसामियिकी 1 (10-Jan-2021)जल्लीकट्टू (Jallikattu)
पशुओं के साथ नैतिक व्यवहार की वकालत करने वाले पशु अधिकार संगठन पेटा ने तमिलनाडू सरकार से जल्लीकट्टू खेल को आयोजित करने के आदेश को वापस लेने का आग्रह किया है।पीपल्स फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) ने यह आग्रह 50 से अधिक डॉक्टरों के हस्ताक्षर युक्त पत्र के आधार पर किया है, जिसमे कहा गया है कि खेल एक गैर-आवश्यक गतिविधि है और इससे कोविड-19 के फैलने का खतरा है।
जल्लीकट्टू ‘मट्टू पोंगल’ के दिन आयोजित किया जाने वाला एक परंपरागत खेल है जिसमें बैलों को इंसानों द्वारा नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है।मट्टू पोंगल तमिलनाडू में चार दिन तक चलने वाले त्योहार पोंगल के तीसरे दिन मनाया जाता है।जल्लीकट्टू तमिल शास्त्रीय युग (400-100 ईसा पूर्व) से संबंधित एक प्राचीन खेल है। इसका वर्णन प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य शिलप्पदिकारम और दो अन्य ग्रन्थों मालीपादुकादम और कालीथोगई में भी मिलता है। इसके अलावा, एक 2500 साल पुरानी गुफा पेंटिंग में एक बैल को नियंत्रित करने वाले एक आदमी को दर्शाया गया है जिसे इसी खेल से जोड़ा जाता है।जल्लीकट्टू को येरुथा ज़ुवुथल, मदु पिदिथल, पोलरुधु पिदिथल जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है।
2010 में एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ़ इंडिया की अगुवाई में हुई एक जाँच कहा गया कि जल्लीकट्टू स्वाभाविक रूप से जानवरों के लिए क्रूर है। इसके बाद से भारतीय पशु संरक्षण संगठनों के संघ (FIAPO) और पेटा इंडिया जैसे पशु कल्याण संगठनों ने इस प्रथा का विरोध करना शुरू कर दिया है।वर्ष 2014 में पेटा की एक याचिका पर सुनवाई करने के बाद माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू को प्रतिबंधित कर दिया था।सुप्रीम कोर्ट द्वारा जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद राज्य भर में भारी विरोध प्रदर्शन हुये।इसके बाद 2017 में तमिलनाडू सरकार ने सर्वसम्मति से पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 में संशोधन करने के लिए "सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और बैल की देशी नस्लों के अस्तित्व और निरंतरता को सुनिश्चित करने" के लिए एक कानून बनाया और इसके बाद जल्लीकट्टू आयोजन पर प्रतिबंध भी समाप्त हो गया। हालांकि अभी भी भारतीय पशु संरक्षण संगठनों के संघ (FIAPO) और पेटा इंडिया जैसे पशु कल्याण संगठनों समेत पशु प्रेमियों द्वारा इस प्रथा का विरोध किया जाता है।
पीपल्स फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स- पेटा (People for the Ethical Treatment of Animals-PETA) एक पशु-अधिकार संगठन है। इस संगठन में पशुओं के साथ नैतिक व्यवहार के पक्षधर लोग काम करते है।यह संस्था जानवरों के अधिकारों की स्थापना और बचाव के लिए समर्पित है। यहाँ पशुओं की देख रेख से लेकर उनके रख –रखाव तक का पूरा ध्यान रखा जाता है।पेटा का गठन 1980 में इनग्रिड न्यूकिर्क और एलेक्स पचेको द्वारा किया गया था। यह पूरे संसार का सबसे बड़ा पशु- अधिकार संगठन है। इसका मुख्यालय यूएसए के वर्जिनिया के नॉर्फोल्क (Norfolk) में स्थित है।