भारत - रूस संबंधों की यात्रा, भाग - 2 (A Journey of India - Russia Relationship, Part - 2)

Posted on October 13th, 2018 | Create PDF File

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भारत - रूस संबंधों की यात्रा

 

भाग - 2

 


1971 में, पूर्वी पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान से अलग हो गया। भारत ने बांग्लादेश के गठन में काफी सहायता की। इस दौरान भारत ने मित्रता और सहयोग की भारत-सोवियत संधि पत्र पर भी हस्ताक्षर किए जो भारत द्वारा बनाए गई गुट-निरपेक्षता की नीति से भारत का पहला पलायन कहा जाता है। भारत का सोवियत की ओर यह झुकाव अमेरिका-चीन नजदीकी का तात्कालिक कारण बनी थी। भारत और रूस के मध्य संबंधों को प्रभावित करने में चीन सदैव एक कारक रहा है। चीन के खतरे ने भारत और रूस को एक-दूसरे के नजदीक ला दिया था किंतु शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् रूस और चीन के मध्य संबंधों के समीकरणों में बदलाव आया है। रूस और चीन के मध्य सीमा-विवादों के सुलझने, आर्थिक व व्यापारिक संबंधों में विस्तार और रूसी हथियारों व रक्षा प्रौद्योगिकी को चीन द्वारा बड़े स्तर पर आयात करने के कारण रूस का दृष्टिकोण चीन को लेकर थोड़ा लचीला हुआ है। सामरिक हितों को लेकर अभी भी रूस और चीन के संबंधों में निकटता बढ़ रही है। ब्रिक्स और एस.सी.ओ. जैसे मंचों पर भारत-चीन-रूस एक साथ खड़े हैं। भारत को रूस और चीन के नए एवं सकारात्मक संबंधों के साथ समायोजन करने की आवश्यकता है।

 

बहरहाल साल 1991 में सोवियत संघ विघटित हो गया, लेकिन भारत में रक्षा उपकरणों के सबसे महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता के रूप में इसकी भूमिका फिर भी बनी रही। समय के साथ दोनों देशों के बीच संबंध अब एक खरीददार और विक्रेता के बीच प्रतिबंधित होने की बजाय और भी प्रगाढ़ होते गए । इनमें रक्षा समझौतों के अतिरिक्त संयुक्त अनुसंधान और विकास अनुबंध भी शामिल हुए। 1997 में रूस और भारत ने सैन्य-तकनीकी सहयोग के लिए दस साल के समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसमें हथियारों का उत्पादन, हथियार और सैन्य प्रौद्योगिकियों का विपणन शामिल था। भारत और रूस के बीच अंतिम संयुक्त नौसेना अभ्यास 2007 में जापान के सागर (पूर्वी सागर) में आयोजित किया गया था तथा अंतिम संयुक्त वायुसेना अभ्यास सितंबर 2007 में रूस में आयोजित किया गया था।

 


1998 में, भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और रूस के फेडरल स्टेट यूनिटरी एंटरप्राइज एनपीओ मैशिनोस्ट्रायोनिया (एनपीओएम) के बीच ब्राह्मोस एयरोस्पेस के रूप में एक संयुक्त उद्यम की स्थापना हुई थी। ब्राह्मोस एक क्रूज मिसाइल है जिसे विमानों, जहाजों या भूमि से लक्ष्य पर छोड़ा जा सकता है। 2004 से ब्राह्मोस के कई परीक्षण आयोजित किए गए हैं। उसके बाद साल 2016 में  दोनों देशों ने उच्च मिसाइल रेंज के साथ ब्राह्मोस की नई पीढ़ी बनाने के लिए एक समझौते में प्रवेश किया। 2012 में, जब राष्ट्रपति पुतिन ने भारत का दौरा किया, तो दोनों देशों ने 42 नए सुखोई विमानों के उत्पादन के लिए रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। यह 230 सुखोइ की एक खेप थी, जो पहले ही रूस से अनुबंधित थी। इनके अलावा, भारत ने रूस से कई अन्य सैन्य हार्डवेयर खरीदे हैं जिनमें अकुला- II परमाणु पनडुब्बी और आईएनएस विक्रमादित्य, आईएनएस चक्र, टी -70 और टी-9 0 टैंक शामिल हैं।

 

अब साल 2018 में 19वें वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान हुआ यह सौदा, संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा भारत का रूस के साथ रक्षा समझौते न करने की चेतावनी के बाद हुआ है। इससे वाशिंगटन के साथ नई दिल्ली के सहयोग व रिश्ते प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही थी लेकिन अमेरिका की इस डील पर नरमी के बाद तमाम संभावनाओं पर पानी फिर गया है। गौरतलब है कि अमेरिका ने रूस पर कड़े रक्षा अनुबंध लगा रखे हैं, जिनके मुताबिक रूस से किसी भी प्रकार का रक्षा सौदा करना प्रतिबंधित है। पुतिन के इस दौरे से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने चेतावनी जारी करते हुए कहा था कि यह रक्षा सौदा अमेरिका के रक्षा व्यापार प्रतिबंध अधिनियम (सीएएटीएसए) के खिलाफ है, जो रूस, ईरान और उत्तरी कोरिया से रक्षा खरीद को प्रतिबंधित करता है। हालांकि, भारत इस प्रतिबंध से छूट के लिए अमेरिकी प्रशासन के साथ लगातार बातचीत कर रहा था, लेकिन सौदा होने तक अमेरिका की ओर से ऐसा कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया गया था कि वह इस समझौते को छूट प्रदान करेगा। ज्ञात हो कि पिछले महीने ही राष्ट्रपति ट्रम्प ने इस प्रतिबंध के अंतर्गत चीन को भी शामिल करने का ऐलान कर दिया था, क्योंकि उसने रूस से सु - 35 लड़ाकू जेट और एस - 400 सिस्टम की डिलीवरी शुरू कर दी थी।

 

भारत और रूस के बीच हुई इस रक्षा डील पर अमेरिका ने सधी हुई प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि “ भारत के साथ रूस का यह रक्षा समझौता अपने वैश्विक भागीदारों को समर्थ बनाने के मकसद से किया गया है। इसका लक्ष्य किसी देश की सैन्य शक्ति को बढ़ावा देना या किसी देश को दबाव में लाने का नहीं है। अगर इन रक्षा सौदों का गलत प्रयोग नहीं किया जाता है, तो भारत जैसे कमजोर देशों के लिए रक्षा प्रतिबंधों में छूट दी जा सकती है। ” साथ ही अमेरिका ने कहा कि पहले से तय रक्षा समझौतों और खरीदे गए हथियारों के रक्षा उपकरणों के संदर्भ में काट्सा रक्षा प्रतिबंधों में ढील दिए जाने में कोई हर्ज नहीं है।

 

एस- 400 डिफेंस सिस्टम भारत के लिए अत्यंत महतत्वपूर्ण है। इससे दुश्मन देशों की सेना द्वारा भारतीय वायु सीमा में दाखिल होना एक तरीके से नामुमकिन हो जायेगा। इस सिस्टम के जरिए भारत न केवल अपनी धरती और आसमान की सुरक्षा करेगा बल्कि पाकिस्तान और चीन के न्यूक्लियर हमले का भी माकूल जबाव देने में सक्षम होगा। रूस के सबसे एडवांस डिफेंस सिस्टम से भारत पाकिस्तान या चीन की 36 न्यूक्लियर पावर्ड बैलेस्टिक मिसाइलों को एक वक्त में एक साथ टारगेट कर ध्वस्त कर सकेगा। इस एयर डिफेंस सिस्टम में 400 किमी. दूर से आ रहे किसी भी टारगेट को ट्रैक करने की क्षमता होगी। विशेषज्ञों का दावा है कि एस-400 सिस्टम पांचवी पीढ़ी के अत्याधुनिक अमेरिकी एफ-35 लड़ाकू विमानों को भी मार गिराने में सक्षम है। इसी तरह के अपने 5वीं पीढ़ी के एक फाइटर प्लेन जे - 20ए का परीक्षण चीन भी कर चुका है। साथ ही पाकिस्तान भी चीन की मदद से 5वीं पीढ़ी के प्लेन विकसित करने के लिए प्रोजेक्ट एजेडएफ पर काम कर रहा है। जो भारत के लिए खतरे की घंटी है। ऐसे में भारत को अपनी सुरक्षा प्रणाली अभेद्य बनाना जरूरी है। एस-400 सिस्टम के सेना में शामिल होने से सेना की सुरक्षा प्रणाली बेहद मजबूत होगी।

 

बता दें कि पिछले दिनों ही अमेरिका और भारत के बीच 2+2 वार्ता हुई है, जिसमें भारत ने संयुक्त राष्ट्र के साथ एक तीसरे आधारभूत समझौते- संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (COMCASA) पर हस्ताक्षर किए हैं। भारत का कहना है कि रूस के साथ उसके संबंध काफी पुराने हैं। साथ ही रूस के साथ भारत का यह रक्षा सौदा भारत की रणनीतिक स्वायत्तता का एक हिस्सा है।

 

भारत के भूमि प्रणालियों के संयुक्त सचिव और रूस के रोसोबोरोनक्सपोर्ट के महानिदेशक, के बीच शुक्रवार 11 बजे इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इस मिसाइल प्रणाली की डिलीवरी 24 महीने के भीतर 2020 के अंत तक शुरू हो जाएगी। इसके अलावा दोनों देशों ने भारत के महत्वाकांक्षी मानव अंतरिक्ष मिशन परियोजना गगनयान पर सहयोग सहित कुल आठ समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं। भारतीय स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) और फेडरल स्पेस एजेंसी ऑफ रूस ‘रोस्कोमोस’ के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए, जिसमें मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम गगनयान के क्षेत्र में संयुक्त गतिविधियां शामिल थीं। दोनों देशो ने कहा कि वे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सहयोग करने के लिए एक-दूसरे के प्रति प्रतिबद्ध हैं। साथ ही दोनों देशों के बीच संयुक्त व्यापार को साल 2020 तक 30 बिलियन अमेरिकी डालर तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। मौजूदा वक्त में दोनों देशों का व्यापार 10.17 अरब डालर तक पहुंच गया है।