एआरआई के अनुसंधानकर्ताओं ने रोगाणुओं का कुशलतापूर्वक पता लगाने के लिए बग स्निफर विकसित किया ^ (ARI researchers develop bug sniffer for efficient detection of pathogens)
Posted on April 19th, 2020
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के तहत एक स्वायत्त संस्थान के आघारकर अनुसंधान संस्थान (एआरआई), पुणे के अनुसंधानकर्ताओं ने बैक्टीरिया का तेजी से पता लगाने के लिए एक संवेदनशील और किफायती सेंसर विकसित किया है। यह पोर्टेबल उपकरण केवल 30 मिनट में एक मिलीलीटर नमूना से इतना कम कि केवल दस बैक्टीरिया कोशिकाओं का भी पता लगा सकता है। वर्तमान में, वे एक विधि पर काम कर रहे हैं जिसमे इस्चेरिचिया कोलाई और साल्मोनेला टाइफिम्यूरियम को अलग करने और इनका पता लगाने का काम साथ-साथ किया जा सकेगा।
प्रमुख अनुसंधानकर्ता डॉ धनंजय बोडास और एआरआई की उनकी टीम ने इसे 'बग स्निफर' कहा है, जो एक बायोसेंसर है। यह बैक्टीरिया की उपस्थिति का पता लगाने के लिए सिंथेटिक पेप्टाइड्स, चुंबकीय नैनोपार्टिकल्स और क्वांटम डॉट्स का उपयोग करता है। यह एक किफायती है और कम समय में जल और खाद्य जनित रोगाणुओं की जांच का प्रभावी तरीका प्रदान करता है। अनुसंधानकर्ताओं ने तांबे के तारों और पॉली (डाइमिथाइलसिलोक्सेन) से बने माइक्रो चैनल से युक्त एक चिप भी विकसित किया है। रोगाणुओं का पता लगाने के लिए उपलब्ध पारंपरिक तकनीकें कम संवेदनशील हैं और कोशिकाओं की कम संख्या पता नहीं लगा सकती हैं। इसके अलावा पारंपरिक तारीके में समय तथा म्हणत अधिक लगता है। एआरओ उपकरण में 30 मिनट के भीतर प्रति 1 एमएल नमूने में 10 कोशिकाओं (निम्न सीमा) का पता लगाने की क्षमता है।
सबसे ज्यादा रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया इस्चेरिचिया कोलाई और साल्मोनेला टायफिम्यूरियम को अलग-अलग रूप से और साथ-साथ सिंथेटिक पेप्टाइड्स का उपयोग करके पता लगाया जा सकता है, जो एक पहचान तत्व के रूप में कार्य करते हैं और पता लगाने की प्रक्रिया को विशिष्टता प्रदान करते हैं। यइन पेप्टाइड्स में, जो पता लगाए जाने वाले बैक्टीरिया के लिए अत्यधिक विशिष्ट हैं, बहुत कम विरोधी- प्रतिक्रिया होती है। यह जैव प्रौद्योगिकी जर्नल में प्रकाशित हुआ था। शुरू में, पेप्टाइड्स से जुड़े चुंबकीय नैनोकणों को बैक्टीरिया के साथ माइक्रोचैनल के माध्यम से प्रवाह करने की अनुमति दी गई थी।
बाहरी चुंबकीय क्षेत्र का अनुप्रयोग करने पर, पेप्टाइड से जुड़े बैक्टीरिया को पृथक किया गया। अंत में, क्वांटम डॉट्स के साथ टैग किए गए पेप्टाइड को जाँच पूरा करने के लिए माइक्रोचैनल्स के माध्यम से प्रबाहित किया गया। बैक्टीरिया को पकड़ने के बादक्वांटम-डॉट- से जुड़े पेप्टाइड्स के कारण माइक्रोचैनल्स ने मजबूत और स्थिर प्रतिदीप्ति का प्रदर्शन किया।
बग स्निफर किफायती है, और इसे बनाने के लिए आवश्यक कच्चा माल आसानी से उपलब्ध हैं। प्रमुख अनुसंधानकर्ता डॉ धनंजय बोडास ने कहा कि नैनोसेंसर और इसे विकसित करने के लिए किए गए शोध में तेजी से लैब-ऑन-ए-चिप निदान के लिए कई संभावनाएं खुलेंगी।
वर्तमान में, अनुसंधानकर्ताइस्चेरिचियाकोलाई और साल्मोनेला टाइफिम्यूरियम का पता लगाने के साथ-साथ पृथक करने पर काम कर रहे हैं। इसके लिए लैंप (लूप-मेडीएतेड आईसोथर्मल एम्पलीफिकेशन) का उपयोग किया जा रहा है। डीएनए के प्रवर्धन के लिए यह एकल-ट्यूब तकनीक है और कुछ बीमारियों का पता लगाने के लिए कम लागत वाला विकल्प है। यह कार्य आईसीएमआर द्वारा वित्त पोषित है।
एआरआई के अनुसंधानकर्ताओं ने रोगाणुओं का कुशलतापूर्वक पता लगाने के लिए बग स्निफर विकसित किया (ARI researchers develop bug sniffer for efficient detection of pathogens)
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के तहत एक स्वायत्त संस्थान के आघारकर अनुसंधान संस्थान (एआरआई), पुणे के अनुसंधानकर्ताओं ने बैक्टीरिया का तेजी से पता लगाने के लिए एक संवेदनशील और किफायती सेंसर विकसित किया है। यह पोर्टेबल उपकरण केवल 30 मिनट में एक मिलीलीटर नमूना से इतना कम कि केवल दस बैक्टीरिया कोशिकाओं का भी पता लगा सकता है। वर्तमान में, वे एक विधि पर काम कर रहे हैं जिसमे इस्चेरिचिया कोलाई और साल्मोनेला टाइफिम्यूरियम को अलग करने और इनका पता लगाने का काम साथ-साथ किया जा सकेगा।
प्रमुख अनुसंधानकर्ता डॉ धनंजय बोडास और एआरआई की उनकी टीम ने इसे 'बग स्निफर' कहा है, जो एक बायोसेंसर है। यह बैक्टीरिया की उपस्थिति का पता लगाने के लिए सिंथेटिक पेप्टाइड्स, चुंबकीय नैनोपार्टिकल्स और क्वांटम डॉट्स का उपयोग करता है। यह एक किफायती है और कम समय में जल और खाद्य जनित रोगाणुओं की जांच का प्रभावी तरीका प्रदान करता है। अनुसंधानकर्ताओं ने तांबे के तारों और पॉली (डाइमिथाइलसिलोक्सेन) से बने माइक्रो चैनल से युक्त एक चिप भी विकसित किया है। रोगाणुओं का पता लगाने के लिए उपलब्ध पारंपरिक तकनीकें कम संवेदनशील हैं और कोशिकाओं की कम संख्या पता नहीं लगा सकती हैं। इसके अलावा पारंपरिक तारीके में समय तथा म्हणत अधिक लगता है। एआरओ उपकरण में 30 मिनट के भीतर प्रति 1 एमएल नमूने में 10 कोशिकाओं (निम्न सीमा) का पता लगाने की क्षमता है।
सबसे ज्यादा रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया इस्चेरिचिया कोलाई और साल्मोनेला टायफिम्यूरियम को अलग-अलग रूप से और साथ-साथ सिंथेटिक पेप्टाइड्स का उपयोग करके पता लगाया जा सकता है, जो एक पहचान तत्व के रूप में कार्य करते हैं और पता लगाने की प्रक्रिया को विशिष्टता प्रदान करते हैं। यइन पेप्टाइड्स में, जो पता लगाए जाने वाले बैक्टीरिया के लिए अत्यधिक विशिष्ट हैं, बहुत कम विरोधी- प्रतिक्रिया होती है। यह जैव प्रौद्योगिकी जर्नल में प्रकाशित हुआ था। शुरू में, पेप्टाइड्स से जुड़े चुंबकीय नैनोकणों को बैक्टीरिया के साथ माइक्रोचैनल के माध्यम से प्रवाह करने की अनुमति दी गई थी।
बाहरी चुंबकीय क्षेत्र का अनुप्रयोग करने पर, पेप्टाइड से जुड़े बैक्टीरिया को पृथक किया गया। अंत में, क्वांटम डॉट्स के साथ टैग किए गए पेप्टाइड को जाँच पूरा करने के लिए माइक्रोचैनल्स के माध्यम से प्रबाहित किया गया। बैक्टीरिया को पकड़ने के बादक्वांटम-डॉट- से जुड़े पेप्टाइड्स के कारण माइक्रोचैनल्स ने मजबूत और स्थिर प्रतिदीप्ति का प्रदर्शन किया।
बग स्निफर किफायती है, और इसे बनाने के लिए आवश्यक कच्चा माल आसानी से उपलब्ध हैं। प्रमुख अनुसंधानकर्ता डॉ धनंजय बोडास ने कहा कि नैनोसेंसर और इसे विकसित करने के लिए किए गए शोध में तेजी से लैब-ऑन-ए-चिप निदान के लिए कई संभावनाएं खुलेंगी।
वर्तमान में, अनुसंधानकर्ताइस्चेरिचियाकोलाई और साल्मोनेला टाइफिम्यूरियम का पता लगाने के साथ-साथ पृथक करने पर काम कर रहे हैं। इसके लिए लैंप (लूप-मेडीएतेड आईसोथर्मल एम्पलीफिकेशन) का उपयोग किया जा रहा है। डीएनए के प्रवर्धन के लिए यह एकल-ट्यूब तकनीक है और कुछ बीमारियों का पता लगाने के लिए कम लागत वाला विकल्प है। यह कार्य आईसीएमआर द्वारा वित्त पोषित है।