1875 के पश्चात SI ईकाईयों मे सबसे बड़ा परिवर्तन
( The biggest change in SI units since 1875)

Posted on February 6th, 2019 | Create PDF File

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मापन ईकाईयो मे 1875 के पश्चात सबसे बड़े क्रांतिकारी परिवर्तन के लिये अंतराष्ट्रीय स्तर पर मतदान हुआ और इस बदलाव के फ़लस्वरूप चार मूलभूत ईकाईयों की परिभाषायें पुननिर्धारित की गई, ये ईकाईयाँ हैं – एम्पीयर, किलोग्राम, केल्विन और मोल।

 

अंतराष्ट्रीय ईकाईयो की प्रणाली जिसे संक्षेप मे SI भी कहा जाता है, में अब सभी ईकाईयाँ प्रकृति के विभिन्न मूलभूत स्थिरांको पर आधारित होंगी। यह नये मानक पुरानी वस्तुओं पर आधारित ईकाईयों के वर्तमान मूल्यों को मूलभूत स्थिरांको के रूप मे विभिन्न प्रयोगो द्वारा परिवर्तन कर निर्धारित किये गये है। वर्तमान मे प्रचलित मापन ईकाई किसी भौतिक वस्तु या अनियमित संदर्भ पर आधारित है।

 

यह परिवर्तन क्यों आवश्यक था ?

 

किसी भी चीज़ को अनन्त शुद्धता से मापन संभव नही है। आपका एक मीटर वाला स्केल 1.00 मीटर का जरूर होगा मग़र अगर उस स्केल को और अच्छे यन्त्र से मापें तो 1.0025 मीटर हो सकता है। और उसे और भी अच्छे यंत्र से मापेंगे तो हो सकता है वह 1.002523 मीटर निकले। इसमें यह मापन बेहतर उपकरण से करते जाएँगे और स्केल की लंबाई का पता उतनी ही शुद्धता से लगता जाएगा मग़र लंबाई की जानकारी में कुछ न कुछ अशुद्धता हमेशा ही बनी रहेगी। इसी तरह मापने वाली आप किसी भी चीज़ को ले लें जैसे समय या द्रव्यमान; यह बात सबके लिये सत्य है।

 

वर्तमान मे इसमें एक अपवाद है। वो अपवाद है फ़्रान्स में 90% प्लेटिनम और 10% इरेडिम के सम्मिश्रण से बनी और निहायत ही कड़ी सुरक्षा में रखी एक चीज़ जिसे IPK या ‘इंटर्नैशनल प्रोटोटाइप ऑफ़ दि किलोग्राम’ कहते हैं। इसका द्रव्यमान एक किलोग्राम है। और वो इसलिए नहीं क्योंकि इसे बड़ी ही सावधानीपूर्वक तौलकर बनाया गया है बल्कि वो इसलिए क्योंकि उसी के द्रव्यमान से एक किलोग्राम को परिभाषित किया गया है। यानी उसका जो द्रव्यमान है उसको ही “एक किलोग्राम” कहते हैं। 1889 में GCPM या ‘जनरल कॉन्फ्रेंस ऑन वेट्स एंड मेज़र्स’ का पहला सम्मेलन हुआ था और उसी में किलोग्राम के इस प्रोटोटाइप को स्वीकार किया गया था और तब से आजतक पूरे विश्व में किलोग्राम का जो मानक है वो वही है।

 

 

 

1889 में जब इस प्रोटोटाइप को स्वीकार किया गया तब इसकी कई प्रतिकृतियाँ भी बनवायी गयीं। मुख्य IPK और उसकी 6 मुख्य प्रतिकृति फ्रांस में ही BPIM या ‘इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ़ वेट्स एंड मेज़र्स’ में शान्ति से कड़ी सुरक्षा में रखी हैं। फ़्रांस में ही इसकी दस प्रतिकृति और हैं और वो ही काम में लायी जाती हैं। इसके साथ ही BPIM ने हर सदस्य देश को भी एक एक प्रतिकृति मुहैया करवाई है। हर देश के अंदर किलोग्राम का जो मानक होता है वो उसके देश को मिली प्रतिकृति पर ही निर्भर करता है। भारत तो उस समय था नहीं इसलिए भारत को अपनी प्रतिकृति 1958 में मिली और ये प्रतिकृति दिल्ली स्थित नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी में रखी है। भारत वाली प्रतिकृति का नंबर K57 है। 


इतना सब तो ठीक है मगर IPK की ये जो इतनी प्रतिकृति हैं तो इनका वजन भी एक किलोग्राम है?

 

नहीं!

 

यह संभव ही नहीं है। लेकिन ये सभी प्रतिकृति उस मूल से जितना ज्यादा संभव हो सकता है उतनी समान हैं। इन सभी प्रतिकृति में समय के साथ-साथ एक किलोग्राम के लाखवें हिस्से जितना कम-ज़्यादा होता रहता है। इसलिए हर देश की प्रतिकृति समय-समय पर फ़्रांस में BPIM फ़िर से कैलिबरेट करवाने के लिए भेजी जाती है। भारत में जो प्रतिकृति है वो 1985, 1992, 2002 और 2012 में कैलिबरेट करवायी गयी। IPK में समस्या तो दिखने ही लगी होगी। सबसे पहली बात तो इस तक पहुंचना बहुत ही मुश्किल है तो उसका प्रयोग नामुमकिन जैसा है। देशों को उसकी प्रतिकृति से काम चलाना होता है जो कि भले ही एक किलो हैं पर परिपूर्ण एक किलो नहीं हैं। दूसरी बात सबको एक प्रतिकृति देने से भी काम कहाँ चल जायेगा। हर देश में इतनी सारी प्रयोगशालाएं हैं, सबको कैसे मिलेगा अपने देश की ही प्रतिकृति तक पहुच देना कठिन है? ऊपर से ये स्वयं भी अपना द्रव्यमान बनाये नहीं रख पाता जो सबसे ज़रूरी है। माइक्रोग्राम में ही सही पर कमी बढोत्तरी तो होती ही है।

 

इसलिये मापन ईकाईयों के मूल्य निर्धारण के लिये कुछ ऐसा चाहिए जो विश्वव्यापी हो और जो समय के साथ भी कभी भी न बदले। कुछ ऐसा जो खुद में ही परिभाषित हो और प्रायोगिक तौर पर भी सर्वसुलभ हो। ऐसा क्या हो सकता है?

 

इसका उत्तर है मूलभूत भौतिक नियतांक। ये वो स्थिरांक हैं जिन्हें आप भले ही पूर्ण शुद्धता से माप न पाओ लेकिन इनका मूल्य स्थिर होता हैं जो कभी नहीं बदलता। हर देश-काल में एक जैसी ही रहती हैं। फिर क्यों न किलो आदि की परिभाषा इनपे ही आधारित कर दी जाये?

 

ईकाईयों के प्रयोग मे स्थिरांको/नियतांको का प्रयोग

 

यही सब सोचते हुए 2011 में हुए GCPM के 24 वें सम्मलेन में वैज्ञानिकों ने इस आवश्यकता के कारण प्राकृतिक नियतांकों के आधार पर मापन की मूलभूत ईकाइयों को परिभाषित करने का प्रस्ताव सामने रखा। 2014 में 25वां सम्मलेन हुआ और इसमें भी इस बात पर चर्चा हुई मगर अंतिम फैसला नहीं हुआ क्यूंकि इन नियतांकों की जो भी मूल्य है वो हमेशा हमेशा के लिए एक परिभाषा के द्वारा स्थिर की जानी थी और उसके लिए प्रयोगों द्वारा इन नियतांकों की सबसे शुद्धतम मूल्य का ज्ञात होना बहुत ज़रूरी था, जिससे कि नयी परिभाषा आने के बाद भी आम रोजमर्रा के कार्य में कोई प्रभाव नहीं पड़े और नया किलोग्राम पुराने किलोग्राम से जितना निकट हो सके उतना निकट हो।

 

मापन की ईकाईयों के आधार मे प्राकृतिक स्थिरांको के प्रयोग का विचार अपरिवर्तनीय है और वह किसी एक देश से संबधित नही है। यह विचार 19वी सदी के अंत मे प्रस्तावित किया गया था लेकिन इसके प्रयोग मे लाने के लिये 150 वर्ष लग गये।

 

यह तय हुआ कि इन नियतांकों के आधार पर परिभाषा तो बनेगी मगर उससे पहले इन नियतांकों को पुनः पूरी शक्ति के साथ और भी अधिकतम शुद्धता से मापा जाये। तो इतने सालों से दुनियाभर के अनेकों वैज्ञानिक इन नियतांकों को नयी नयी तकनीकें अपनाकर जितना हो सके उतनी शुद्धता से मापने की कोशिश करते रहे।

 

विद्युत पर कार्य करते वैज्ञानिक अपने प्रयोगो को उन्नत करते रहे और वे इलेक्ट्रानो की संख्या की गिनती करने मे जुटे रहे जिससे कि वे एक अकेले कण के आवेश के प्रयोग से एक एम्पीयर को परिभाषित कर सके। वर्तमान एम्पीयर की परिभाषा एक वैचारिक प्रयोग पर आधारित है जिसमे दो अनंत लंबाई के तारों का प्रयोग होता है। एम्पीयर की ईकाई मे यह परिवर्तन विद्युत इंजीनियरो द्वारा 1990 से प्रयुक्त प्रणाली के जैसे ही है जिसे वे अचूकता के लिये प्रयोग करते रहे है।

 

केल्विन को अब बोल्ट्जमैन स्थिरांक के प्रयोग से परिभाषित किया जायेगा जो कि ऊर्जा और तापमान को जोड़ता है। जबकि वर्तमान मानक जल के विशिष्ट तापमान के संदर्भ मे है जिसे तिहरा बिंदु(Triple Point) कहते है।

 

जबकी मात्रा की मानक ईकाई मोल जोकि वर्तमान के कार्बन 12 के 0.012 किलोग्राम मे परमाणुओं की संख्या के तुल्य है, अब अवोगाड्रो संख्या(Avogadro’s number) के तुल्य होगी।

 

परिवर्तन-

 

मापन ईकाईयो मे 1875 के पश्चात सबसे बड़े क्रांतिकारी परिवर्तन के लिये अंतराष्ट्रीय स्तर पर मतदान हुआ और इस बदलाव के फ़लस्वरूप चार मूलभूत ईकाईयों की परिभाषाये पुननिर्धारित की गई, ये ईकाईयाँ है – एम्पीयर, किलोग्राम, केल्विन और मोल।

 

16 नवंबर 2018 को , वर्सेल्स फ़्रांस(Versailles, France) मे विश्व के 60 देशों की सरकारो के प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से इन बदलावो को स्वीकार किया। यह परिवर्तन 20 मई 2019 से प्रभावी होंगे।

 

अंतराष्ट्रीय ईकाईयो की प्रणाली जिसे संक्षेप मे SI भी कहा जाता है, में अब सभी ईकाईयाँ प्रकृति के विभिन्न मूलभूत स्थिरांको पर आधारित होंगी। यह नये मानक पुरानी वस्तुओं पर आधारित ईकाईयों के वर्तमान मूल्यों को मूलभूत स्थिरांको के रूप मे विभिन्न प्रयोगो द्वारा परिवर्तन कर निर्धारित किये गये है। वर्तमान मे प्रचलित मापन ईकाई किसी भौतिक वस्तु या अनियमित संदर्भ पर आधारित है।

 

GCPM यानी ‘जनरल कॉन्फ्रेंस ऑन वेट्स एंड मेज़र्स’ का 26 वाँ सम्मेलन , इस सम्मेलन में प्लांक नियतांक, बोल्ट्समैन नियतांक, आवोगाद्रो नियतांक और मूलभूत आवेश या एक इलेक्ट्रॉन के आवेश को स्थिर कर दिया गया और इनके आधार पर किलोग्राम, एम्पियर, केल्विन और मोल को फ़िर से परिभाषित किया गया और यह तय किया गया कि आने वाले 20 मई 2019 से अंतर्राष्ट्रीय इकाई प्रणाली या SI सिस्टम में इन चार नियतांकों का मूल्य इस प्रकार रहेगा:

 

  • प्लैंक स्थिरांक(Planck constant) h = 6.626 070 15 × 10−34 J s, (किलोग्राम के लिए)
  • मूलभूत आवेश(Elementary Charge) e = 1.602 176 634 × 10−19 C, (एम्पियर के लिए)
  • बोल्टजमैन स्थिरांक( Boltzmann constant) k = 1.380 649 × 10−23 J/K, (केल्विन के लिए)
  • अवागाड्रो स्थिरांक (the Avogadro constant) NA = 6.022 140 76 × 1023 mol-1, (मोल के लिए)

 

ध्यान रहे कि इस परिभाषा के लागू हो जाने के बाद से इन नियतांकों का यह मूल्य हमेशा-हमेशा के लिए स्थाई हो जाएगा और इनमें कोई भी अशुद्धता नहीं रह जाएगी। इसका अर्थ यह है कि इसके बाद से इन नियतांकों के मूल्य का मापन करना या ज़्यादा शुद्धता से मापन करना जैसी बातें अर्थहीन हो जाएँगी क्योंकि अब यह नियतांक किसी प्रयोग से आया मूल्य के रूप मे नहीं हैं जिनमें कुछ न कुछ अशुद्धता हो सकती है। बल्कि अब इन नियतांकों को यह मूल्य एक परिभाषा के माध्यम से मि्ला है जिससे इनमें अनंत शुद्धता है। नयी परिभाषा लागू होने से पहले इन नियतांकों के मूल्य में जो प्रयोगात्मक अशुद्धता थी वो अशुद्धता अब अपने किलोग्राम के प्रोटोटाइप में ट्रांसफर हो जाएगी, जिससे फ़्रांस में रखे अपने उस प्रोटोटाइप का मूल्य परिपूर्ण एक किलोग्राम नहीं रह जाएगी और उसमें कुछ अशुद्धता आ जाएगी जो कि फ़िलहाल दस करोड़ में एक हिस्से के बराबर है। भविष्य में भी उस प्रोटोटाइप का द्रव्यमान कितना बदलता है अब यह प्रयोगों के माध्यम से तय किया जायेगा। यानी पहले लोग जिससे खुद की तुलना करते थे, जो ख़ुद को बस ख़ुद से तुलना करता था, वो जो ख़ुदा था, उसकी गद्दी छिन गयी है। अब उसकी भी तुलना होगी हालाँकि वो अभी भी वहीं रहेगा जैसे पिछले 129 सालों से रह रहा है। वैज्ञानिक उसके द्रव्यमान की जाँच नए मानक के हिसाब से समय समय पर करते रहेंगे।

 

मूलभूत इकाइयाँ सात होती हैं. इनमें से तीन को नियतांकों के आधार पर पहले ही परिभाषित किया जा चुका था। GCPM के 1967 में हुए 13वें सम्मलेन में सेकण्ड को, 1979 में हुए 16वें सम्मलेन में कैंडेला को और 1983 में हुए 17वें सम्मेलन में मीटर को पुनः परिभाषित किया गया था। और जो तीन नियतांक स्थाई किये गए थे वे हैं:

 

  1. सीजीयम 133 परमाणु मे दो हायपरफ़ाईन स्तरो के मध्य संक्रमण की आवृत्ती :9 192 631 770 Hz, (सेकण्ड के लिए)
  2. 540 × 1012 Hz आवृत्ति वाले मोनोक्रोमोटिक विकिरण की प्रकाशदीप्ती 683 lm/W, (कैंडेला के लिए)
  3. निर्वात मे प्रकाशगति c = 299 792 458 m/s, (मीटर के लिए)

 


SI ईकाईयों मे परिवर्तन

 


 

किब्बल तुला से किलोग्राम का मापन-

 

किलोग्राम ईकाई के संबंध में नई परिभाषा गढ़ने के लिये प्लैन्क स्थिरांक का मापन आवश्यक था। यह स्थिरांक क्वांटम स्तर पर ऊर्जा के पैकेट का आकार सटिकता से परिभाषित करता है। एक विशिष्ट विधि किब्ब्ल संतुलन(Kibble balance) के द्वारा प्लैंक स्थिरांक की गणना ज्ञात द्रव्यमान को विद्युत चुंबकीय बल की तुलना मे मापा जाता है।

 

दूसरी विधि मे सिलिकान-28 के दो गोलो मे परमाणुओं की गणना कर अवागाड्रो संख्या ज्ञात की जाती है, इस संख्या से प्लैंक स्थिरांक की गणना की जाती है।

 

दोनो विधियों के प्रयोग से प्लैंक स्थिरांक की अचूक गणना 2015 मे ही संभव हो पाई थी।

 

क्युइन कहते है कि दोनो विधियो से गणना से प्राप्त स्थिराक मे अंतर 100 लाख मे कुछ भाग ही है, जोकि एक असाधारण सफलता है क्योंकि दोनो विधि भौतिकी की दो अलग शाखाओं से संबधित है।

 

इन स्थिरांको को सर्वसम्मत स्थाई संख्या पर निश्चित किया जायेगा। 1983 मे यह प्रक्रिया मीटर की परिभाषा के लिये प्रकाश गति को आधार बनाते हुये प्रयुक्त की गई थी जब प्रकाशगति की सबसे सटीक माप की गई गति को मीटर की परिभाषा के लिये स्थाई कर दिया गया था। अब ईकाई को परिभाषित करने के लिये वैज्ञानिक विधि को उलट देंगे अर्थात स्थिरांक ज्ञात करने की विधि को पलट देंगे। उदाहरण के लिये वे प्लैन्क स्थिरांक के स्थाई मूल्य को किब्बल संतुलन मे विद्युत चुंबकीय बल के साथ अज्ञात द्रव्यमान के मापन मे प्रयोग मे लायेंगे।

 

प्लैंक स्थिरांक का यह मूल्य SI प्रणाली मे स्थाई हो जायेगा साथ ही इस मूल्य को NIST मे भी स्थाई कर दिया जायेगा।

 

भौतिक वस्तुओ के साथ खो जाने या क्षतिग्रस्त हो जाने की समस्या होती है, स्थिरांक के प्रयोग से यह समस्या नही रहती है और द्रव्यमान की परिभाषा अधिक प्रभावी हो जाती है। ले ग्रांड के(Le Grand K) का माप परिभाषा के अनुसार हमेशा 1 किलोग्राम रहा है, लेकिन उसकी प्रतिकृतियों की तुलना मे उसके द्रव्यमान मे आंशिक परिवर्तन आया है। यह कहना मुश्किल है कि ले ग्रांड के(Le Grand K) ने परमाणु खोये है या प्राप्त किये है। लेकिन भविष्य के अध्यन इसे ज्ञात कर पायेंगे।

 

नया किलोग्राम-

 

द्रव्यमान मापन की नई परिभाषा तय कर रहे वैज्ञानिक सीधे सीधे इसे लागु नही कर सकते है। विभिन्न प्रयोगो के परिणाम बताते है कि नई परिभाषा उत्तम है लेकिन यह भी तथ्य है कि यह परिपूर्ण नही है। जब तक विश्व मे द्रव्यमान मापन मे आने वाली सूक्ष्म अंतर दूर नही हो जाते है BIPM एक मध्यस्थ की भूमिका निभायेगा। यह संस्थान हर समूह को एक ही वस्तु का मापन करने के लिये कहेगा और उनके औसत द्रव्यमान को प्रकाशित करेगा जिसका प्रयोग समस्त विश्व तुलना के लिये करेगा। इस प्रक्रिया मे सभी अशुद्धियों और समस्याओं को दूर करने मे कम से कम दस साल तो लग जायेंगे।

 

इस समय सभी देशो की राष्ट्रीय मापन प्रयोगशाला मे रखे गये मानक वजन बाट फ़ेंके नही जायेंगे। विश्व मे बहुत कम प्रयोगशालाओं के पास नई परिभाषा से एक मानक किलोग्राम बाट निर्माण की क्षमता है, जिससे इन पर निर्भरता अगले कुछ वर्षो तक बनी रहेगी।

 

NIST तथा युनाईटेड किंगडम और जर्मनी की राष्ट्रीय मानक प्रयोगशालायें सस्ती और टेबल पर रखे जा सकने वाले किब्बल संतुलन पर कार्य कर रही है जिससे कि विभिन्न उद्योग और छोटी कंपनी स्वयं मानक किलोग्राम बाट स्वयं बना सकेंगी।

 

एक सेकंड बस-

 

सेकंड की नई परिभाषा पर वैज्ञानिक 2005 से काम कर रहे है। वर्तमान मे एक सेकंड सीजीयम-133 द्वारा अवशोषित और उत्सर्जित माइक्रोवेव प्रकाश की आवृत्ति के संदर्भ मे पारिभाषित है। इन परमाणुओ का स्थान आप्टिकल घड़ीयो (optical clock) ने ले लिया है और वे दूसरे परमाणुओ के प्रयोग से उच्च आवृत्ति वाली दृश्य प्रकाश तरंग का प्रयोग करते है। इन आप्टिकल घडीयों की अचूकता अत्याधिक है और इनमे ब्रह्मांड की संपूर्ण आयु मे केवल एक सेकंड की चूक हो सकती है।

 

वैज्ञानिको की योजना के अनुसार सेकंड की परिभाषा मे परिवर्तन 2026 मे किया जायेगा। क्योंकि उन्हे समस्त विश्व मे आप्टिकल घड़ियो के प्रयोग के लिये सर्वोत्तम परमाणु को खोजने के साथ तुलना के लिये विधियाँ खोजनी होगी।

 

इसके अतिरिक्त SI प्रणाली मे विमाओ के मापन के लिये ईकाई के समावेश के लिये भी दबाव है। उदाहरण के लिये रेडीयन जोकि किसी वृत्त चाप(arc) और त्रिज्या का अनुपात है।

 

1857 मे स्थापित BIPM जोकि वर्तमान मे मानक किलोग्राम और मीटर को रखे हुये है, SI प्रणाली मे यह परिवर्तन कुछ खट्टा मीठा है। अब किसी को भी मानक किलोग्राम या मीटर के लिये पेरिस जाने की आवश्यकता नही है।