भारत ने किया जैव-ईंधन से नागरिक विमान उड़ाने का सफल परीक्षण (Bio Fuel)

Posted on September 13th, 2018 | Create PDF File

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पारंपरिक ऊर्जा संसाधनों की सीमित उपलब्धता, उनके अपघटन से उत्पन्न अवांछनीय रसायनों और भविष्य की जरूरतों को दृष्टिगत रखते हुए, समय-समय पर ऊर्जा के गैर- पारंपरिक स्त्रोत विकसित किए जाने के विविध प्रयास होते रहे हैं। भारत में ऐसा ही एक प्रयास CSIR- IIP ( भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून) के द्वारा जैव-ईंधन को विकसित करने में किया गया, जिसका सफल परीक्षण 27 अगस्त 2018 को कर लिया गया है। अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और जर्मनी सहित भारत अब विश्व के उन गिने चुने विकसित देशों की श्रृंखला में जाकर खड़ा हो गया है, जिन्होने जैव-ईंधन से विमान उड़ाने में सफलता पाई हो।

 

दरअसल 27 अगस्त 2018 को जैव- ईंधन से संचालित होने वाले भारत के पहले नागरिक विमान ने देहरादून से दिल्ली तक की उड़ान सफलतापूर्वक पूरी की। इस उड़ान के लैंडिंग व टेक-ऑफ दोनों नार्मल रहे। यह स्पाइस जेट एयरलाइन का एक टर्बो- प्रोपेलर विमान Q- 400  था। इस उड़ान का उद्देश्य महंगे टर्बाइन ईंधन की लागत को कम करके हवाई यात्रा की लागत को कम करना, ऊर्जा के वैकल्पिक साधनों का सफल प्रयोग करना तथा भविष्य में हवाई यात्राओं द्वारा होने वाले पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करना था।

 

काउंसिल ऑफ़ साइंटिफिक एण्ड इंस्ट्रियल रिसर्च ( CSIR) के तहत देहरादून में संचालित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम ( IIP ) ने भारत मे पाये जाने वाले जेट्रोफा पौधे की मदद से यह बायो-फ्यूल तैयार किया है। उन्होंने छत्तीसगढ़ के 500 किसानों से जेट्रोफा के करीब 2 टन बीज एकत्रित किए थे, जिससे कुल 400 किलोग्राम बायो-फ्यूल बनकर तैयार हुआ है। परीक्षण के दौरान विमान के दायें विंग में 300 लीटर ( 25% )  बायोफ्यूल के साथ 900 लीटर (75 %) परंपरागत विमान ईंधन ( ATF)  भरा गया था। तथा इमरजेंसी के लिए बायें विंग में 1200 लीटर ATF (विमान ईंधन) रखा गया था। खास बात यह रही कि- परीक्षण के दौरान बायोफ्यूल पर काम कर रहे अधिकारियों नें भी इसी विमान से उड़ान भरी। इससे पहले भारतीय रेल द्वारा भी 5% मिश्रित जेट्रोफा- डीजल का परीक्षण ( दिल्ली से अमृतसर) तक शताब्दी एक्सप्रेस में सफलता पूर्वक किया जा चुका है। साथ ही महिंद्रा एण्ड महिंद्रा आटोमोबाइल कंपनी भी अपने ट्रैक्टरों में इस जैव- ईंधन का सफल परीक्षण कर चुकी है।

 

ज्ञात हो कि एक ओर जहां जैव ईंधन के बहुउद्देश्यीय लाभ हैं वहीं दूसरी ओर इसके उपयोग से पर्यावरण प्रदूषण में आमूल-चूल कमी आती है। वास्तव में जैव ईंधन गैस या द्रव ईंधन हैं, जो भूगर्भीय प्रक्रियाओं द्वारा उत्पादित परंपरागत ईंधन से कहीं अलग नवीकरणीय बायो-स्त्रोतों की जैविक प्रक्रियाओं द्वारा उत्पादित होते हैं। आंशिक रूप से ये कृषि अवशेषों, पेड़-पौधों, गैर-खाद्य तेलों या नगर पालिकाओं के जैव अपघटन योग्य पदार्थों जैसे संसाधनों से बनाये जाते हैं। इनके कई रूप हैं, जैसे- ईथेनॉल एवं बायो-डीजल। ईथेनॉल का उत्पादन चीनी युक्त पदार्थों (गन्ना, चुकंदर, शकरकंद ) एवं स्टार्चयुक्त पदार्थों ( मक्का, कसावा, शैवाल ) इत्यादि से होता है। साथ ही इसके उत्पादन में सेलुलोजयुक्त सामग्री जैसे गन्ने की खोई, लकड़ी का अपशिष्ट, कृषि और वानिकी का अपशिष्ट इत्यादि का भी प्रयोग किया जाता है। खाद्य एवं गैर-खाद्य वनस्पति तेल तथा पशु वसा से उत्पादित फैटीय एसिड के मिथाइल या एथिल ईस्टर को ही बायोडीजल कहा जाता है। अन्य बायो ईंधनों में बायो-मेथेनाल और बायो सिंथेटिक इत्यादि आते हैं। इस प्रकार के बायो ईंधनों में पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले तत्वों जैसे सल्फर और कार्बन की मात्रा काफी कम होती है। इसलिए इन्हें पारंपरिक ईंधन की अपेक्षा अधिक प्राथमिकता दी जाती है।

 

जिस जेट्रोमा पौधे के बीजों से यह जैव- ईंधन तैयार किया गया है, उसे भारत में पहले जंगली अरण्डी के नाम से जाना जाता था। कालान्तर में इसकी उपयोगिता और महत्त्व के बारे में जानकारी न होने के अभाव में इसे भुला दिया गया। यानि कि इसकी व्यापारिक तौर पर खेती नही की जा रही थी। विगत वर्षों में इसके तेल का प्रयोग बायो-डीजल के रूप में होने के कारण यह केरोसीन तेल, डीजल, कोयला, लोन लकड़ी आदि के विकल्प के तौर पर उभरा है। जेट्रोमा के पौधों से बने डीजल में सल्फर की मात्रा काफी कम होने के कारण इसे बायो फ्यूल की श्रेणी में रखा गया है।

 

एक अनुमान के मुताबिक वर्तमान में विश्व भर में करीब 20000 हवाई-जहाजों से सालाना 3 बिलियन से अधिक लोग यात्रा करते हैं। केवल विमानों से उत्सर्जित कार्बन-डाई-आक्साइड की मात्रा विश्व के कुल कार्बन उत्सर्जन का लगभग 2.5% है। जिसके अगले 30 वर्षों में बढ़कर 4 गुना तक होने के अनुमान हैं। NASA के अनुसार यदि विमानो में उपयोग होने वाले ईंधन में 50 प्रतिशत मात्रा जैव- ईंधनों की मिला दें तो यह उत्सर्जन 50 से 60 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। साथ ही उड़ान-यात्राओं में आने वाले खर्चे को भी 17 से 20 प्रतिशत तक घटाया जा सकता है। इतना ही नही इस ईंधन के दहन से प्राप्त होने वाली ऊर्जा का घनत्व भी परंपरागत ईंधन के मुकाबले 1.8 प्रतिशत अधिक पाया गया है। यानी जैव- ईंधन हमारे लिए हर प्रकार से उपयोगी सिध्द हो सकते हैं।

 

इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोशिएसन (IATA ) नें भी जैव-ईधनों को विकसित करने और प्रयोग करने की स्वीकृति दे रखी है। जुलाई, 2011 से ही इसके व्यवसायिक प्रयोग (कामर्शियल य़ूज)  को वैधता मिली हुई है। भारत में नागर विमानों को नियंत्रित करने वाली संस्था – डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन ( DGCA) ने भी जल्द ही इसके ऊपर विचार-विमर्श कर सकारात्मक नीति बनाने का आश्र्वासन दिया है।

 

दरअसल जैव-ईंधन एक प्रकार का ‘ड्रॉप-इन’  प्रकार का ईंधन होता है, जिसके दहन के लिए विशेष प्रकार के विमान इंजन ही अनुकूल होते हैं। इसलिए इसके उपयोग हेतु विमान-निर्मात्री कंपनियों और शोधकर्त्ताओं के बीज बेहतर तालमेल का होना अत्यावश्यक है। आधुनिक विमानों में तीन तरह के विमान-ईंधनों का प्रयोग होता आया है। केरोसीन प्रकार के विमान ईंधन, नेप्था प्रकार के विमान ईंधन और ड्रॉप-इन ईंधन। केरोसीन और नेप्था प्रकार के विमान ईंधनों में जटिल हाइड्रोकार्बनों का मात्रा अधिक पाई जाती है, जबकि ड्रॉप-इन प्रकार का विमान ईंधन उत्परिवर्तनीय( Interchangable) होता है। यानी कि इसे एक रूप से दूसरे रूप में बदला जा सकता है। जैव ईंधन की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध न होने की स्थिति में अथवा आपातकालीन परिस्थितियों में पारंपरिक और गैर- पारंपरिक दोनों प्रकार के ईंधन प्रयोग मे लाये जा सकते हैं। पारंपरिक विमान ईंधनों में 17 से 50 प्रतिशत तक की जैव ईंधनों की मिश्रित मात्रा सुगमता से उपयोग में लाई जा सकती है। इससे अधिक प्रतिशतता अनुपात बढ़ाने पर इंजन में ईंधन की दहन प्रक्रिया प्रभावित होने लगती है।

 

 हाल ही में केन्द्र सरकार द्वारा घोषित बायो-फ्यूल नीति, 2018 निकट भविष्य में भारत की जैव-ऊर्जा दक्षता बढ़ाने, जीवाश्म ईंधनों के प्रयोग को सीमित करने, तथा पर्यावरण हितैषी नई प्रौद्योगिकी के विकास में कारगर सिध्द होगी, ऐसी आशा की जानी चाहिए। इससे न केवल हमारी कच्चे तेलों के आयात में विदेशों पर निर्भरता को कम किया जा सकेगा वरन् दिन- प्रतिदिन घटने -बढ़ने वाली तेल की कीमतों में भी स्थिरता आयेगी। जिससे देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती दी जा सकेगी। इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा वर्गीकृत बेसिक, एडवांस और बायो-सीएनजी( तीनों प्रकार के जैव-ईंधनों) के विकास के लिए देश में अद्युनातन वित्त, तंत्र और तकनीकि को विकसित करने की नई राह प्रशस्त होगी तथा किसानों के वैकल्पिक आय के साधन भी सुगमता से विकसित किये जा सकेंगे। सरकार की तरफ से उन्हें (किसानों और आम नागरिकों को) इस दिशा में जागरूक करने के लिए उचित दिरेदोशन तथा प्रशिक्षण के अतिरिक्त आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाना और भी श्रेयस्कर होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि हमारी यह परिकल्पना (बायो-फ्यूल की) जीवाश्म ईंधनों को सफलतापूर्वक विस्थापित करके विज्ञान के विकास की एक नई इबारत लिख सकेगी और प्राकृतिक पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण के अनुकूल सिध्द होगी।