डीबीटी/कोरोना-रोधी संकाय द्वारा कोविड 19 के खिलाफ उपचारात्मक एंटीबाडीज के उत्पादन के प्रयास जारी^(DBT/ Anti-COVID consortium- Efforts underway to produce therapeutic antibodies against COVID-19)
Posted on April 12th, 2020
कोविड 19 सार्स कोरोनावायरस-2 (सार्स-सीओवी-2) द्वारा उत्पन्न होता है और इसका परिणाम कई मौतों के रूप में आ रहा है। तथापि, बड़ी संख्या में संक्रमित व्यक्ति बिना किसी विशिष्ट उपचार के भी ठीक हो रहे हैं। ऐसा वायरस के हमले की प्रतिक्रिया में शरीर के भीतर उत्पादित एंटीबाडीज के कारण होता है।
पिछले कई वर्षों से संक्रमण से ठीक हो चुके कन्वलसेंट रोगियों के प्लाज्मा से प्राप्त एंटीबाडीज के निष्क्रिय हस्तांतरण का उपयोग डिपथिरिया, टिटनस, रैबीज एवं इबोला जैसी अनगिनत रोग स्थितियों के उपचार में किया गया है। आज ऐसे उपचारात्मक एंटीबाडीज को डीएनए आधारित रिकाम्बीनेंट प्रौद्योगिकियों द्वारा प्रयोगशाला में उत्पादित किया जा सकता है। सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ उपचारात्मक एंटीबाडीज के उत्पादन के प्रयास वैश्विक रूप से काफी तेज गति से जारी हैं।
भारत में, एक ऐसा ही प्रयास भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय में जैवप्रौद्योगिकी विभाग की सहायता से दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस-सेंटर फार इनोवेशन इन इंफेक्शस डिजीज रिसर्च, एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (यूडीएससी-सीआईआईडीआरईटी) में प्रोफेसर विजय चौधरी के नेतृत्व में किया जा रहा है।
प्रोफेसर चौधरी का ग्रुप जीन्स इंकोडिंग एंटीबाडीज को पृथक कर रहा है जो पहले से ही आंतरिक रूप सेएवं ऐसे मरीजों जो कोविड 19 संक्रमण से ठीक हो चुके हैं, की कोशिकाओं से बने लाइब्रेरी से उपलब्ध बड़ी संख्या में एंटीबाडी लाइब्रेरी का उपयोग कर सार्स-सीओवी-2 को निष्प्रभावी बना सकते हैं।
इन एंटीबाडी जीन्स का उपयोग प्रयोगशाला में रिकाम्बीनेंट एंटीबाडीज का उत्पादन करने में किया जाएगा जो अगर वायरस को निष्प्रभावी करने में सफल रहे तो इस वायरस के खिलाफ प्रोफिलैक्टिक एवं उपचारात्मक दोनों ही प्रकार से एंटीबाडीज के सदाबहार स्रोत बन जाएंगे।
यह कार्य प्रोफेसर चौधरी के नेतृत्व एवं नेशनल इंस्टीच्यूट आफ इम्युनोलोजी के डा अमूल्या पांडा तथा जिनोवा बायोफार्मास्यूटिकल लिमिटेड (जीबीएल), पुणे के डा संजय सिंह के सहयोग से एक कोविड रोधी संकाय के एक हिस्से के रूप में आरंभ किया जा रहा है।
डीबीटी/कोरोना-रोधी संकाय द्वारा कोविड 19 के खिलाफ उपचारात्मक एंटीबाडीज के उत्पादन के प्रयास जारी(DBT/ Anti-COVID consortium- Efforts underway to produce therapeutic antibodies against COVID-19)
कोविड 19 सार्स कोरोनावायरस-2 (सार्स-सीओवी-2) द्वारा उत्पन्न होता है और इसका परिणाम कई मौतों के रूप में आ रहा है। तथापि, बड़ी संख्या में संक्रमित व्यक्ति बिना किसी विशिष्ट उपचार के भी ठीक हो रहे हैं। ऐसा वायरस के हमले की प्रतिक्रिया में शरीर के भीतर उत्पादित एंटीबाडीज के कारण होता है।
पिछले कई वर्षों से संक्रमण से ठीक हो चुके कन्वलसेंट रोगियों के प्लाज्मा से प्राप्त एंटीबाडीज के निष्क्रिय हस्तांतरण का उपयोग डिपथिरिया, टिटनस, रैबीज एवं इबोला जैसी अनगिनत रोग स्थितियों के उपचार में किया गया है। आज ऐसे उपचारात्मक एंटीबाडीज को डीएनए आधारित रिकाम्बीनेंट प्रौद्योगिकियों द्वारा प्रयोगशाला में उत्पादित किया जा सकता है। सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ उपचारात्मक एंटीबाडीज के उत्पादन के प्रयास वैश्विक रूप से काफी तेज गति से जारी हैं।
भारत में, एक ऐसा ही प्रयास भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय में जैवप्रौद्योगिकी विभाग की सहायता से दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस-सेंटर फार इनोवेशन इन इंफेक्शस डिजीज रिसर्च, एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (यूडीएससी-सीआईआईडीआरईटी) में प्रोफेसर विजय चौधरी के नेतृत्व में किया जा रहा है।
प्रोफेसर चौधरी का ग्रुप जीन्स इंकोडिंग एंटीबाडीज को पृथक कर रहा है जो पहले से ही आंतरिक रूप सेएवं ऐसे मरीजों जो कोविड 19 संक्रमण से ठीक हो चुके हैं, की कोशिकाओं से बने लाइब्रेरी से उपलब्ध बड़ी संख्या में एंटीबाडी लाइब्रेरी का उपयोग कर सार्स-सीओवी-2 को निष्प्रभावी बना सकते हैं।
इन एंटीबाडी जीन्स का उपयोग प्रयोगशाला में रिकाम्बीनेंट एंटीबाडीज का उत्पादन करने में किया जाएगा जो अगर वायरस को निष्प्रभावी करने में सफल रहे तो इस वायरस के खिलाफ प्रोफिलैक्टिक एवं उपचारात्मक दोनों ही प्रकार से एंटीबाडीज के सदाबहार स्रोत बन जाएंगे।
यह कार्य प्रोफेसर चौधरी के नेतृत्व एवं नेशनल इंस्टीच्यूट आफ इम्युनोलोजी के डा अमूल्या पांडा तथा जिनोवा बायोफार्मास्यूटिकल लिमिटेड (जीबीएल), पुणे के डा संजय सिंह के सहयोग से एक कोविड रोधी संकाय के एक हिस्से के रूप में आरंभ किया जा रहा है।