मानव की जिज्ञासु प्रवृत्ति ही उसकी निरंतर प्रगति का आधार है। तर्कपूर्ण और व्यवस्थित ज्ञान के माध्यम से इंसान ने काफी हद तक प्रकृति के अलग- अलग अवरूपों पर नियंत्रण स्थापित करने में सफलता अर्जित की है। आकाश भी उन्ही में से एक है। आकाश यानी अंतरिक्ष, शुरु से ही मानव के कौतूहल का विषय रहा है। समय- समय पर अपनी कल्पनाओं के माध्यम से इसकी अलग- अलग व्याख्याऐं की जाती रहीं हैं। किसी ने इसे देवताओं के रहने का स्थान बताया, तो किसी ने परियों का स्वर्ग। चांद, तारे, सूर्य, ग्रह, पिण्ड, नक्षत्र, आकाशगंगायें और न जाने कितने अज्ञात अवयवों से आच्छादित अंतरिक्ष भारतीय ज्योतिष विज्ञान के अनुमानों से होते हुए धीरे- धीरे खगोल विज्ञान की विस्तृत विवेचना का विषय बन कर उभरा, और आज भारत सहित विश्व के तमाम देशों में विधिवत अंतरिक्ष प्रयोगशालायें और वेधशालायें अत्याधुनिक संसाधनों के माध्यम से एक- एक करके व्योम के रहस्यों से पर्दा हटा रही हैं। चाहे वह इंसान का चांद पर पहला कदम रखना रहा हो, यूरी गागरिन का अंतरिक्ष में पहुंचना अथवा मानव द्वारा मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाऐं खोजना। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन भी इतने अल्प समय में चंद्रयान और मंगलयान मिशन जैसी अप्रतिम सफलताओं की विभिन्न इबारतों को लिखने के बाद विश्व अंतरिक्ष कार्यक्रमों की शीर्ष पंक्ति में जा खड़ा हुआ है। शीघ्र ही वर्ष 2022 तक भारत अपने पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन- ‘‘गगनयान’’ की सफलता के बाद अतरिक्ष में कदम रखने वाला विश्व का चौथा देश बन जायेगा।
15 अगस्त 2018 को देश के 72वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नें लाल किले की प्राचीर से गगनयान मिशन के 2022 तक या उससे पहले पूरा कर लिए जाने का औपचारिक एलान किया। यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ( ISRO) द्वारा विकसित किया जायेगा। इसके अंतर्गत 3 भारतीय व्योमनॉट्स ( अंतरिक्ष यात्रियों) को पृथ्वी से 350-400 किमी. दूर अंतरिक्ष की कक्षा में 7 दिनों के लिए भेजे जाने और फिर सकुशल वापस लौट आने की योजना है। यह अंतरिक्षयान GSLV (जियो सिंक्रांमस सेटेलाइट लांच व्हीकल) मार्क- III के जरिये लांच किया जायेगा, जिसका हाल ही में सफल परीक्षण किया जा चुका है। इससे पहले भारत अपने गगनयान मिशन के अंतर्गत ही 2 मानव रहित मिशन अंतरिक्ष में भेजेगा।
गगनयान भारतीय चालित कक्षीय अंतरिक्षयान है, जो 3.7 टन वज़नी कैप्सूल में 3 लोगों को ले जाने के अनुसार डिजाइन किया गया है। इसके अंतर्गत अपग्रेड किया गया संस्करण डॉकिंग क्षमता से लैस है। यानी कि लांच के समय आपातकालीन स्थितियों में इसके क्रू माड्यूल कैप्सूल को मुख्य लांच व्हीकल से अलग किया जा सकता है। यह अंतरिक्षयान 7 दिनों के लिए 400 किमी. की ऊंचाई पर पृथ्वी की कक्षा की परिक्रमा करेगा। इसमें लिक्विड प्रोपेलेंटयुक्त दो इंजन होगें, जिन्हें 9000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से विकसित किया जायेगा। साथ ही यह सिस्टम जीवन रक्षक और पर्यावरण नियंत्रक प्रणाली से विकसित होगा ताकि अंतरिक्ष की मानव के जीवन विरोधी परिस्थितियों में यह सुचारु रूप से काम कर सके। भारत का यह अंतरिक्षयान अन्य विदेशी अंतरिक्षयानों जैसे ओरियन और अपोलो से आकार में छोटा, जबकि अमेरिकी अंतरिक्षयान जेमिनी से थोड़ा बड़ा होगा। इस मिशन की निगरानी बेंगलूरू में इसरो के टेलीमेट्री ट्रैकिंग कमांड सेंटर से की जायेगी। इसे अंतरिक्ष की कक्षा में भेजने और वापस पृथ्वी तक लाने तक की तकनीक से विकसित किया जा रहा है। जिसकी कमान एक महिला वैज्ञानिक- वी. आर. ललितांबिका के हाथों में होगी। उन्होनें भारत के राकेट प्रोग्राम में काफी अहम भूमिका निभाई है। ललितांबिका ऑटोपायलट राकेट्स के निर्माण पर कार्य कर चुकीं हैं। वह जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लांच व्हीकल (वीएसएल-एमके-3) सहित राकेट्स के डिजाइन की समीक्षा करने वाली टीम की अगुवाई करेंगी। यह राकेट ही भारत के मानवयुक्त मिशन को अंतरिक्ष में ले जायेगा। ललितांबिका इससे पहले तिरुअनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र (VSSC) में बतौर उपनिदेशक के रूप में भी कार्य कर चुकी हैं। वे एडवांस्ड लॉंचर तकनीकी की विशेषज्ञ हैं। साथ ही वे वीएससीसी में कंट्रोल, गाइडेंस और साइमुलेशमन रिसर्च वर्क की प्रभारी भी रही हैं। साधारण शब्दों में कहें तो रॉकेट को उड़ाने की जिम्मेदारी इनके कंधों पर ही होती है। वे ईंधन प्रणाली, ऑटो पायलट प्रणाली, रॉकेट कंप्यूटर्स एवं हार्डवेयर की डिजाइन करने वाली टीम की अगुवाई करती हैं। इनकी अध्यक्षता में भारत के इस अंतरिक्ष मिशन में यात्रा कर रहे अंतरिक्षयात्रियों को व्योमनॉट नाम से पुकारा जायेगा। इसरो ने इस मिशन को राष्ट्रीय मिशन करार दिया है। बताते चलें कि 5 जुलाई 2018 को इसी अभियान के एक हिस्से क्रू स्केप कैप्सूल का सफलता पूर्वक प्रयोग किया जा चुका है। वैसे तो इस अभियान की नींव काफी पहले ही (वर्ष 2004 में) रखी जा चुकी थी, लेकिन हाल ही में प्रधानमंत्री जी के एलान के बाद इसमें सक्रियता से तेजी आई है।
इस मिशन के अंतर्गत सबसे पहला कार्य अंतरिक्षयात्रियों के चयन का है। जिसमें विभिन्न चयन परीक्षाओं के माध्यम से चयन से लेकर प्रशिक्षण देने तक 6 महीने से लेकर 1 साल तक का समय लग सकता है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के पास इसका पूरा खाका पहले से मौजूद है। इसके लिए देवनहल्ली, बेंगलूरू में एक ट्रेनिंग सेंटर भी विकसित किया जा रहा है, जो केंपगोड़ा इंटरनेशनल एयरपोर्ट से 8 – 10 किमी. की दूरी पर स्थित है। इस ट्रेनिंग सेंटर का नाम- एस्ट्रानाट ट्रेनिंग एण्ड बायोमेडिकल इंजीनियरिंग सेंटर है। जिसे 40- 50 एकड़ के क्षेत्र में भारतीय वायु सेना के एक संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ एविएशन मेडिसिन की सहायता से विकसित किया जा रहा है। हालांकि गगनयान मिशन में जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण इसमें नहीं हो पायेगा। तब तक शायद इसे पूरी तरह विकसित नहीं किया जा सकेगा। उन्हें अमेरिका या रूस के ही किसी प्रशिक्षण केंन्द्र से प्रशिक्षण लेना होगा। लेकिन बाद के वर्षों में भविष्य के लिए यह स्वदेशी प्रशिक्षण केंद्र पूरी तरह से उपयोग के योग्य हो जायेगा। इस प्रशिक्षण केंद्र में अंतरिक्षयात्रियों के ज़ीरो- ग्रेविटी में रहने की व्यवस्था के साथ-साथ अंतरिक्ष सदृश परिस्थितियां उपलब्ध कराई जा सकेंगी। साथ ही इसमें थर्मल साइकलिंग तथा एडिशनल रेगूलेशन चेंबर की भी सुविधाऐं उपलब्ध होगीं। इसमें अंतरिक्षयात्रियों को वाटर सिमुलेटर में पानी के नीचे शून्य गुरुत्व पर रहने का प्रशिक्षण दिया जायेगा। साथ ही विभिन्न आपातकालीन परिस्थितियों, शारीरिक समस्याओं, अलगाव से उपजे मनोविकारों और आत्मसंयम से संबंधित प्रशिक्षण भी दिये जायेंगे।
यदि भारत गगनयान मिशन को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष तक भेजने में सफल हो पाता है तो वर्ष 2022 तक वह अमेरिका, रूस और चीन के बाद ऐसा करने वाला विश्व का चौथा देश बन जायेगा। इससे पहले अप्रैल, 1961 में सोवियत रूस नें अपने पहले अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन को अंतरिक्ष में उतारने में कामयाबी पाई थी। उसके बाद मई, 1961 में अमेरिका ने एलनशेफर्ड को अंतरिक्ष भेजा। वर्ष 2003 में चीन यह उपलब्धि हासिल करने वाला विश्व की तीसरी शक्ति था। और अब वर्ष 2022 में भारत के साथ- साथ डेनमार्क ने भी अपने अंतरिक्ष मिशन का औपचारिक ऐलान कर दिया है। हालांकि राकेश शर्मा अंतरिक्ष मे जाने वाले पहले भारतीय तो बने, लेकिन वे रूस की मदद से ऐसा कर पाये। लेकिन अब वो दिन दूर नही जब भारत अपने स्वदेशी अंतरिक्षयान से भारतीय अंतरिक्षयात्रियों को अंतरिक्ष में भेजेगा।
भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू के प्रयासों के फलस्वरूप डॉ. विक्रम साराभाई जी के नेतृत्व में वर्ष 1960 में शुरु हुई। 21 नवंबर 1963 को थुंबा, केरल से भारत ने अपने पहले राकेट का सफल परीक्षण किया। इसे एक साइकिल पर रखकर ले जाया गया था। इसके बाद वर्ष 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की नींव रखी गई। 1975 में भारत में केन्द्र सरकार के अंतर्गत अंतरिक्ष आयोग और अंतरिक्ष विभाग का गठन हुआ। 19 अप्रैल 1975 को भारत ने 360 किग्रा. वजनी अपने प्रायोगिक उपग्रह आर्यभट्ट का सफल प्रक्षेपण किया। इस उपग्रह का नाम प्रसिध्द भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलविज्ञानी आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था। इसके बाद आर्यभट्ट, रोहिणी, भास्कर, ऐपल जैसी कई प्रयोगात्मक उपग्रहों की श्रृंखलायें भारत द्वारा सफलतापूर्वक स्थापित की गयीं। SLV-3 लांचर (1979), रोहिणी RS- I (1980), इनसैट B- I (1983), इनसैट (दूरसंचार उपग्रह) 1984, 1984 में ही भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा सोवियत रूस की मदद से अंतरिक्ष पहुंचे। इसके बाद 1988 में भारत का पहला रिमोट सेंसिंग उपग्रह IRS-1A, 1992 में इनसैट 2A, 1993 में इनसैट 2B, 1997 में PSLV, 2002 में कल्पना-1, 2004 में पूर्णतया शिक्षा पर आधारित उपग्रह एडूसैट GS- 3, 2005 में DTH उपग्रह इनसैट- 4A, वर्ष 2008 में PSLV C 11 की मदद से चंद्रयान-1 तथा 2013 में स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम उपग्रह IRNSS-1A के सफल प्रक्षेपण किए गए। इन सबके अतिरिक्त भारत 2014 में अपने पहले प्रयास में ही मंगलयान मिशन भेजने में कामयाब रहा। हाल ही में वर्ष 2018 में भारत ने अपने स्वदेशी GPS प्रणाली श्रृंखला के 8वें और अंतिम उपग्रह नाविक IRNS 1- SS को स्थापित करने में कामयाबी हासिल की है। जल्द ही अमेरिका के बाद भारत का अपना नेविगेशन सिस्टम होगा। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के अंतर्गत स्थापित इसरो नें 15 फरवरी 2017 को एक साथ 104 उपग्रह लांच करके विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है। यह संगठन अब तक 28 देशों के 237 उपग्रह लांच करके विश्व की छोटे उपग्रह लांच करने की सर्वाधिक विश्वसनीय और किफायती संस्था के रूप में पहचान बनाने में सफल हुआ है। गगनयान मिशन तथा इसकी तैयारी को लेकर इसरो के वैज्ञानिक पूरी तरह आश्वस्त नजर आ रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि वर्ष 2022 तक निर्धारित भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन पूरी तरह कामयाब रहे और अंतरिक्ष प्रणाली में देश को विश्व के शीर्ष विकसित देशों की श्रृंखला में शामिल कर सके। इससे न केवल अंतरिक्ष के रहस्यों को सुलझाने में मदद मिलेगी, वरन् विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी देश में नई प्रणालियां और अवसर सृजित किये जा सकेंगें।
मानव की जिज्ञासु प्रवृत्ति ही उसकी निरंतर प्रगति का आधार है। तर्कपूर्ण और व्यवस्थित ज्ञान के माध्यम से इंसान ने काफी हद तक प्रकृति के अलग- अलग अवरूपों पर नियंत्रण स्थापित करने में सफलता अर्जित की है। आकाश भी उन्ही में से एक है। आकाश यानी अंतरिक्ष, शुरु से ही मानव के कौतूहल का विषय रहा है। समय- समय पर अपनी कल्पनाओं के माध्यम से इसकी अलग- अलग व्याख्याऐं की जाती रहीं हैं। किसी ने इसे देवताओं के रहने का स्थान बताया, तो किसी ने परियों का स्वर्ग। चांद, तारे, सूर्य, ग्रह, पिण्ड, नक्षत्र, आकाशगंगायें और न जाने कितने अज्ञात अवयवों से आच्छादित अंतरिक्ष भारतीय ज्योतिष विज्ञान के अनुमानों से होते हुए धीरे- धीरे खगोल विज्ञान की विस्तृत विवेचना का विषय बन कर उभरा, और आज भारत सहित विश्व के तमाम देशों में विधिवत अंतरिक्ष प्रयोगशालायें और वेधशालायें अत्याधुनिक संसाधनों के माध्यम से एक- एक करके व्योम के रहस्यों से पर्दा हटा रही हैं। चाहे वह इंसान का चांद पर पहला कदम रखना रहा हो, यूरी गागरिन का अंतरिक्ष में पहुंचना अथवा मानव द्वारा मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाऐं खोजना। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन भी इतने अल्प समय में चंद्रयान और मंगलयान मिशन जैसी अप्रतिम सफलताओं की विभिन्न इबारतों को लिखने के बाद विश्व अंतरिक्ष कार्यक्रमों की शीर्ष पंक्ति में जा खड़ा हुआ है। शीघ्र ही वर्ष 2022 तक भारत अपने पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन- ‘‘गगनयान’’ की सफलता के बाद अतरिक्ष में कदम रखने वाला विश्व का चौथा देश बन जायेगा।
15 अगस्त 2018 को देश के 72वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नें लाल किले की प्राचीर से गगनयान मिशन के 2022 तक या उससे पहले पूरा कर लिए जाने का औपचारिक एलान किया। यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ( ISRO) द्वारा विकसित किया जायेगा। इसके अंतर्गत 3 भारतीय व्योमनॉट्स ( अंतरिक्ष यात्रियों) को पृथ्वी से 350-400 किमी. दूर अंतरिक्ष की कक्षा में 7 दिनों के लिए भेजे जाने और फिर सकुशल वापस लौट आने की योजना है। यह अंतरिक्षयान GSLV (जियो सिंक्रांमस सेटेलाइट लांच व्हीकल) मार्क- III के जरिये लांच किया जायेगा, जिसका हाल ही में सफल परीक्षण किया जा चुका है। इससे पहले भारत अपने गगनयान मिशन के अंतर्गत ही 2 मानव रहित मिशन अंतरिक्ष में भेजेगा।
गगनयान भारतीय चालित कक्षीय अंतरिक्षयान है, जो 3.7 टन वज़नी कैप्सूल में 3 लोगों को ले जाने के अनुसार डिजाइन किया गया है। इसके अंतर्गत अपग्रेड किया गया संस्करण डॉकिंग क्षमता से लैस है। यानी कि लांच के समय आपातकालीन स्थितियों में इसके क्रू माड्यूल कैप्सूल को मुख्य लांच व्हीकल से अलग किया जा सकता है। यह अंतरिक्षयान 7 दिनों के लिए 400 किमी. की ऊंचाई पर पृथ्वी की कक्षा की परिक्रमा करेगा। इसमें लिक्विड प्रोपेलेंटयुक्त दो इंजन होगें, जिन्हें 9000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से विकसित किया जायेगा। साथ ही यह सिस्टम जीवन रक्षक और पर्यावरण नियंत्रक प्रणाली से विकसित होगा ताकि अंतरिक्ष की मानव के जीवन विरोधी परिस्थितियों में यह सुचारु रूप से काम कर सके। भारत का यह अंतरिक्षयान अन्य विदेशी अंतरिक्षयानों जैसे ओरियन और अपोलो से आकार में छोटा, जबकि अमेरिकी अंतरिक्षयान जेमिनी से थोड़ा बड़ा होगा। इस मिशन की निगरानी बेंगलूरू में इसरो के टेलीमेट्री ट्रैकिंग कमांड सेंटर से की जायेगी। इसे अंतरिक्ष की कक्षा में भेजने और वापस पृथ्वी तक लाने तक की तकनीक से विकसित किया जा रहा है। जिसकी कमान एक महिला वैज्ञानिक- वी. आर. ललितांबिका के हाथों में होगी। उन्होनें भारत के राकेट प्रोग्राम में काफी अहम भूमिका निभाई है। ललितांबिका ऑटोपायलट राकेट्स के निर्माण पर कार्य कर चुकीं हैं। वह जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लांच व्हीकल (वीएसएल-एमके-3) सहित राकेट्स के डिजाइन की समीक्षा करने वाली टीम की अगुवाई करेंगी। यह राकेट ही भारत के मानवयुक्त मिशन को अंतरिक्ष में ले जायेगा। ललितांबिका इससे पहले तिरुअनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र (VSSC) में बतौर उपनिदेशक के रूप में भी कार्य कर चुकी हैं। वे एडवांस्ड लॉंचर तकनीकी की विशेषज्ञ हैं। साथ ही वे वीएससीसी में कंट्रोल, गाइडेंस और साइमुलेशमन रिसर्च वर्क की प्रभारी भी रही हैं। साधारण शब्दों में कहें तो रॉकेट को उड़ाने की जिम्मेदारी इनके कंधों पर ही होती है। वे ईंधन प्रणाली, ऑटो पायलट प्रणाली, रॉकेट कंप्यूटर्स एवं हार्डवेयर की डिजाइन करने वाली टीम की अगुवाई करती हैं। इनकी अध्यक्षता में भारत के इस अंतरिक्ष मिशन में यात्रा कर रहे अंतरिक्षयात्रियों को व्योमनॉट नाम से पुकारा जायेगा। इसरो ने इस मिशन को राष्ट्रीय मिशन करार दिया है। बताते चलें कि 5 जुलाई 2018 को इसी अभियान के एक हिस्से क्रू स्केप कैप्सूल का सफलता पूर्वक प्रयोग किया जा चुका है। वैसे तो इस अभियान की नींव काफी पहले ही (वर्ष 2004 में) रखी जा चुकी थी, लेकिन हाल ही में प्रधानमंत्री जी के एलान के बाद इसमें सक्रियता से तेजी आई है।
इस मिशन के अंतर्गत सबसे पहला कार्य अंतरिक्षयात्रियों के चयन का है। जिसमें विभिन्न चयन परीक्षाओं के माध्यम से चयन से लेकर प्रशिक्षण देने तक 6 महीने से लेकर 1 साल तक का समय लग सकता है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के पास इसका पूरा खाका पहले से मौजूद है। इसके लिए देवनहल्ली, बेंगलूरू में एक ट्रेनिंग सेंटर भी विकसित किया जा रहा है, जो केंपगोड़ा इंटरनेशनल एयरपोर्ट से 8 – 10 किमी. की दूरी पर स्थित है। इस ट्रेनिंग सेंटर का नाम- एस्ट्रानाट ट्रेनिंग एण्ड बायोमेडिकल इंजीनियरिंग सेंटर है। जिसे 40- 50 एकड़ के क्षेत्र में भारतीय वायु सेना के एक संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ एविएशन मेडिसिन की सहायता से विकसित किया जा रहा है। हालांकि गगनयान मिशन में जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण इसमें नहीं हो पायेगा। तब तक शायद इसे पूरी तरह विकसित नहीं किया जा सकेगा। उन्हें अमेरिका या रूस के ही किसी प्रशिक्षण केंन्द्र से प्रशिक्षण लेना होगा। लेकिन बाद के वर्षों में भविष्य के लिए यह स्वदेशी प्रशिक्षण केंद्र पूरी तरह से उपयोग के योग्य हो जायेगा। इस प्रशिक्षण केंद्र में अंतरिक्षयात्रियों के ज़ीरो- ग्रेविटी में रहने की व्यवस्था के साथ-साथ अंतरिक्ष सदृश परिस्थितियां उपलब्ध कराई जा सकेंगी। साथ ही इसमें थर्मल साइकलिंग तथा एडिशनल रेगूलेशन चेंबर की भी सुविधाऐं उपलब्ध होगीं। इसमें अंतरिक्षयात्रियों को वाटर सिमुलेटर में पानी के नीचे शून्य गुरुत्व पर रहने का प्रशिक्षण दिया जायेगा। साथ ही विभिन्न आपातकालीन परिस्थितियों, शारीरिक समस्याओं, अलगाव से उपजे मनोविकारों और आत्मसंयम से संबंधित प्रशिक्षण भी दिये जायेंगे।
यदि भारत गगनयान मिशन को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष तक भेजने में सफल हो पाता है तो वर्ष 2022 तक वह अमेरिका, रूस और चीन के बाद ऐसा करने वाला विश्व का चौथा देश बन जायेगा। इससे पहले अप्रैल, 1961 में सोवियत रूस नें अपने पहले अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन को अंतरिक्ष में उतारने में कामयाबी पाई थी। उसके बाद मई, 1961 में अमेरिका ने एलनशेफर्ड को अंतरिक्ष भेजा। वर्ष 2003 में चीन यह उपलब्धि हासिल करने वाला विश्व की तीसरी शक्ति था। और अब वर्ष 2022 में भारत के साथ- साथ डेनमार्क ने भी अपने अंतरिक्ष मिशन का औपचारिक ऐलान कर दिया है। हालांकि राकेश शर्मा अंतरिक्ष मे जाने वाले पहले भारतीय तो बने, लेकिन वे रूस की मदद से ऐसा कर पाये। लेकिन अब वो दिन दूर नही जब भारत अपने स्वदेशी अंतरिक्षयान से भारतीय अंतरिक्षयात्रियों को अंतरिक्ष में भेजेगा।
भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू के प्रयासों के फलस्वरूप डॉ. विक्रम साराभाई जी के नेतृत्व में वर्ष 1960 में शुरु हुई। 21 नवंबर 1963 को थुंबा, केरल से भारत ने अपने पहले राकेट का सफल परीक्षण किया। इसे एक साइकिल पर रखकर ले जाया गया था। इसके बाद वर्ष 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की नींव रखी गई। 1975 में भारत में केन्द्र सरकार के अंतर्गत अंतरिक्ष आयोग और अंतरिक्ष विभाग का गठन हुआ। 19 अप्रैल 1975 को भारत ने 360 किग्रा. वजनी अपने प्रायोगिक उपग्रह आर्यभट्ट का सफल प्रक्षेपण किया। इस उपग्रह का नाम प्रसिध्द भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलविज्ञानी आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था। इसके बाद आर्यभट्ट, रोहिणी, भास्कर, ऐपल जैसी कई प्रयोगात्मक उपग्रहों की श्रृंखलायें भारत द्वारा सफलतापूर्वक स्थापित की गयीं। SLV-3 लांचर (1979), रोहिणी RS- I (1980), इनसैट B- I (1983), इनसैट (दूरसंचार उपग्रह) 1984, 1984 में ही भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा सोवियत रूस की मदद से अंतरिक्ष पहुंचे। इसके बाद 1988 में भारत का पहला रिमोट सेंसिंग उपग्रह IRS-1A, 1992 में इनसैट 2A, 1993 में इनसैट 2B, 1997 में PSLV, 2002 में कल्पना-1, 2004 में पूर्णतया शिक्षा पर आधारित उपग्रह एडूसैट GS- 3, 2005 में DTH उपग्रह इनसैट- 4A, वर्ष 2008 में PSLV C 11 की मदद से चंद्रयान-1 तथा 2013 में स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम उपग्रह IRNSS-1A के सफल प्रक्षेपण किए गए। इन सबके अतिरिक्त भारत 2014 में अपने पहले प्रयास में ही मंगलयान मिशन भेजने में कामयाब रहा। हाल ही में वर्ष 2018 में भारत ने अपने स्वदेशी GPS प्रणाली श्रृंखला के 8वें और अंतिम उपग्रह नाविक IRNS 1- SS को स्थापित करने में कामयाबी हासिल की है। जल्द ही अमेरिका के बाद भारत का अपना नेविगेशन सिस्टम होगा। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के अंतर्गत स्थापित इसरो नें 15 फरवरी 2017 को एक साथ 104 उपग्रह लांच करके विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है। यह संगठन अब तक 28 देशों के 237 उपग्रह लांच करके विश्व की छोटे उपग्रह लांच करने की सर्वाधिक विश्वसनीय और किफायती संस्था के रूप में पहचान बनाने में सफल हुआ है। गगनयान मिशन तथा इसकी तैयारी को लेकर इसरो के वैज्ञानिक पूरी तरह आश्वस्त नजर आ रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि वर्ष 2022 तक निर्धारित भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन पूरी तरह कामयाब रहे और अंतरिक्ष प्रणाली में देश को विश्व के शीर्ष विकसित देशों की श्रृंखला में शामिल कर सके। इससे न केवल अंतरिक्ष के रहस्यों को सुलझाने में मदद मिलेगी, वरन् विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी देश में नई प्रणालियां और अवसर सृजित किये जा सकेंगें।