केरल बाढ़ के कारण (Reasons Behind The Kerala Flood)

Posted on October 22nd, 2018 | Create PDF File

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जिस दिन राज्य सरकार ने सभी बांधों को खोलने का फैसला किया तभी केरल की अनहोनी की पटकथा लिख गई थी। केरल में 8 से 18 अगस्त तक बाढ़ ने सभी 14 जिलों को आगोश मे ले लिया। बारिश से मलबे की तरह पहाड़ ढ़हने लगे। तेज धार में लोग बह गए, बांध पानी से लबालब हो गए और अधिकांश नगर व गांव विस्थापित लोगों से भर गए।

 

19 अगस्त को पहली बार उपग्रह से प्राप्त चित्रों में आसमान कुछ साफ दिखा। इसके बाद राज्य सरकार ने रेड अलर्ट हटा लिया। अब सबके जहन में एक ही सवाल है कि केरल में जो हुआ क्या वह सामान्य है?  भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ( आईएमडी) में जलवायु सेवा डिवीजन के प्रमुख डी. एस. पई कहते हैं कि- यह असामान्य जरूर है लेकिन विचित्र कतई नही। आधिकारिक प्रतिक्रिया हमेशा शब्दजालों में प्रस्तुत की जाती है। केरल में लगातार 11 दिन प्रचण्ड बारिश हुई और करीब 25 ट्रिलियन लीटर पानी राज्य में बरसा। 38800 किमी. वर्ग के क्षेत्र में फैले इस राज्य में पर्वत श्रृंखलाऐं हैं। आबादी के घनत्व में इसका देश में तीसरा स्थान है। यहां 44 नदियां और 61 बांध हैं। जो बारिश के वक्त कहर बरपा रहे थे।

 

सैकड़ो लोग मारे गए। राज्य सरकार ने नुकसान का प्रारंभिक आंकलन 20000 करोड़ लगाया है। जो साल 2018-19 में राज्य की जीडीपी आंकलन का करीब 15 प्रतिशत है। आपदा प्रबंधन एजेंसी केयर रेटिंग्स के अनुसार बाढ़ ने 40 लाख से अधिक लोगो को प्रभावित किया है। इनमें मजदूरों की अच्छी खासी संख्या है। अगस्त में ही लोग 4000 करोड़ रुपये की मजदूरी को खो देंगें। करीब 10 लाख लोग राहत शिविरों मे हैं। इन पर एक महीने में करीब 300 करोड़ रुपये खर्च होगें। 12000 किमी. सड़कें क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं, जो तत्काल लाभ पहुंचाने और पुनर्निर्माण में बाधक हैं। कुल मिलाकर राज्य की विकास दर 1 प्रतिशत नीचे पहुंच जाएगी।

 

केरल साल में औसतन 3000 एमएम बारिश प्राप्त करता है। इसमें से 2000 एमएम बारिश मानसून से होती है। लेकिन इस साल यह सीमा पार हो गई है। 19 अगस्त तक राज्य तकरीबन 2350 एमएम बारिश प्राप्त कर चुका है। आईएमडी के अनुसार केरल ने जून की शुरुआत से सामान्य मानसून 1649.5 एमएम के मुकाबले 2346.6 एमएम बारिश प्राप्त की है। यह 42 प्रतिशत अधिक बारिश है।

 

आमतौर पर केरल में जून और जुलाई में दक्षिण पश्चिम मानसून की मजबूती के साथ ही मानसून की तेज बारिश होती है। इसके बाद के 3 महीनों में मानसून की तीव्रता कम हो जाती है। इसलिए शुरुआत के दो महीनों में सामान्य से कुछ अधिक बारिश हुई लेकिन अगस्त में यह बरकरार नही रह पाई। मई के शुरुआती 3 सप्ताह मे राज्य मे करीब 500 एमएम बारिश हुई जो सामान्य बारिश अर्थात् 290 एमएम से बहुत अधिक है। महीने की शुरुआत से 760 एमएम के करीब आधी बारिश राज्य को हासिल हुई है। इसकी 75 प्रतिशत बारिश 9 से 17 अगस्त के बीच हुई। यह इस महीने में होने वाली सामान्य बारिश का करीब 300 प्रतिशत है।

 

भारतीय मानसून का वितरण कम दबाब की पट्टी जिसे ट्रफ भी कहा जाता है, की स्थिति से निर्देशित होता है। इसका आवागमन हिमालय के निचले हिस्से और मध्य भारत के बीच होता है। सामान्य स्थिति में ट्रफ उत्तर- पश्चिम भारत से उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के पास पूर्वी तट की ओर बढ़ता है। इस स्थिति में मध्य भारत और पश्चिमी तट पर अच्छी बारिश होती है।जब ट्रफ उत्तर की ओर बढ़ता है तो इसे मानसून का ब्रेक फेज कहा जाता है। और इस दौरान हिमालयी राज्यों को छोड़कर अधिकांश उपमहाद्वीप में कम या नगण्य बारिश होती है। मानसून का सक्रिय चरण तब होता है जब ट्रफ सामान्य स्थिति में दक्षिण की ओर जाता है। इससे दक्षिण में तेज बारिश होती है। 8 से 16 अगस्त के बीच केरल ने व्यापक बारिश के दो चरण देखे। 10 अगस्त से पहले भारी बारिश का पहला चरण इसी वजह से था। और मानसून पर नजर रखने वालों की नजर मे यह प्रत्याशित था। लेकिन 14 अगस्त के बाद दूसरे चरण मे हुई बारिश अचरज का विषय थी।

 

दरअसल पश्चिमी सीमा पर ट्रप स्थिर नहीं था। इस वजह से अरब सागर में भी पश्चिमी तट के पास एक ऑफशोर ट्रफ ( समुद्र के पास बना कम दबाव का क्षेत्र) बन गया जो पश्चिमी तट पर अधिकांश मानसूनी बारिश के लिए जिम्मेदार है। मनसून के ट्रफ की अस्थिरता का नतीजा था कि यह उत्तर की तरफ नही बढ़ पाया। 13 अगस्त के बाद दूसरे चरण की यह असामान्य बारिश राज्य के उस क्षेत्र में बहुत तेज थी जहां जलाशयों की संख्या सर्वाधिक है।

 

8 से 15 अगस्त के बीच राज्य के सभी 14 जिलों मे सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई। सर्वाधिक प्रभावित जिलों में इडुकी(679 एमएम), वायनाड(536.8 एमएम), मणाप्पुरम्(447एमएम), कोझिकोड(375.4 एमएम) शामिल थे। इन सभी जिलों में सामान्य से कई गुना अधिक बारिश हुई।

 

कोझिकोड और पलक्कड़ में हालात तब और बुरे हो गए जब 18 अगस्त तक भारी बारिश होती रही। पई का कहना है कि इस साल मानसूनी बारिश और ट्रफ के बीच संबंध उतना मजबूत नही रहा जितना अधिकांश वर्षों मे होता है। स्वतंत्र भविष्यवक्ता अक्षर देवरा कहते हैं कि पश्चिमी तट पर ऑफशोर ट्रफ कमजोर होने के कारण केरल मे लगातार और भारी बारिश हुई। केरल मे हुई हालिया बारिश बताती है कि ऑफशोर ट्रफ गतिहीन था। हवाऐं उत्तर मे गोवा और महाराष्ट्र की ओर नही बढ़ पाईं। मजबूत मानसूनी हवाऐं केवल एक क्षेत्र के ऊपर थी। इसलिए केरल बारिश इतनी अधिक हुई।

 

ऑफशोर ट्रप बारिश के लिए जिम्मेदार है लेकिन यह बारिश को निर्धारित करने वाला एकमात्र कारण नही है। मानसूनी हवाओं की गति बंगाल की खाड़ी के ऊपर बनते कम दबाव के तंत्र और उसके मुख्य भूभाग की ओर प्रस्थान पर निर्भर करती है। आमतौर पर कम दबाव का तंत्र पश्चिम बंगाल के तट के पास उत्तरी बंगाल की खाड़ी के ऊपर विकसित होता है और पश्चिम-उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ता है। केरल में अगस्त के मध्य में बारिश के वक्त बारिश से संबंधित कम दबाव का तंत्र उड़ीसा के तट के पास विकसित हुआ। तत्पश्चात् यह महाराष्ट्र की तरफ पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम की ओर बढ़ा। यह सामान्य मार्ग नही था जिसके कारण मध्य भारत और गंगा के मैदानी इलाकों में बारिश होती है।

 

पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रापिकल मेट्रोलॉजी में मानसून रिसर्चर रॉक्सी मैथ्यू कोल के अनुसार आमतौर पर ऐसे दबाव के चलते बंगाल की खाड़ी के उत्तर में बाढ़ आती है। लेकिन इस बार यह बंगाल की खाड़ी के दक्षिण हिस्से मे आई। शुरुआती विश्लेषण बताते हैं कि पश्चिमी हवाऐं केरल में सक्रिय हुईं। सामान्य स्थिति मे उत्तरी बंगाल की खाड़ी में दबाव के चलते पश्चिमी हवाऐं पश्चिमी घाट के उत्तर की ओर प्रस्थान करनी चाहिए।

 

इस बार कम दबाव के तंत्र के कारण मनसूनी बारिश का वितरण औसत से कम रहा। दबाव की कम संख्या के चलते उपमहाद्वीप में बारिश का वितरण बाधित हुआ और मानसून की पूर्व संख्या तक मुख्य रूप से यह पश्चिमी तट पर सक्रिय रहा। अब तक देश के बाकी हिस्सों में उम्मीदों के अनुरूप बारिश नही हुई थी, जबकि केवल एक-चौथाई मानसून ही शेष रहा था। 9 राज्यों मे बाढ़ के बावजूद बारत के 41 प्रतिशत जिलों में कम बारिश हुई।

 

आपदा प्रबंधन में खामियां

 

मौसम की इस असामान्य परिघटना को जानलेवा बनाने में राज्य की दोषपूर्ण लघु और दीर्घकालीन प्रतिक्रिया रही। चौकाने वाली बात यह है कि भारत में बाढ़ का पूर्वानुमान लगाने वाली एकमात्र एजेंसी केन्द्रीय जल आयोग के पास केरल में बाढ़ पूर्वानुमान का तंत्र नही है। इससे स्थानीय लोग बाढ़ से बचाव करने की तैयारी में असमर्थ रहते हैं।

 

केरल का भूगोल और भौगोलिक स्थिति पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील है। पूरे राज्य के पानी की निकासी पश्चिमी घाट से अरब सागर की ओर होती है। राज्य में पहाड़ो को समुद्र से जोड़ने वाली नदियों का अच्छा-खासा घना नेटवर्क है। मानसून के हालिया आंकड़े बताते हैं कि तटीय क्षेत्र खासकर उत्तर केरल में पश्चिमी घाट के मुकाबले अधिक बारिश हो रही है। पहले पानी बह जाने की वजह ये केरल की नदियां बाढ़ से बची हुई थीं। इस साल केरल के घाट पर कम दबाव का क्षेत्र काफी नम था और इसी वजह से राज्य डूब गया। 1 से 15 अगस्त के बीच पश्चिमी घाट पर स्थित सर्वाधिक 17 जलाशयों वाले इडुकी जिले में 800 एमएम बारिश हुई। इससे कम से कम 29 बांधों के पाटक खोलने पड़े जिससे निचले इलाकों में बाढ़ और भूस्खलन की विभीषिका बढ़ गई।

 

पुणे विश्विद्यालय में भूगोल विज्ञान के पूर्व प्रमुख और जलविज्ञान के विशेषज्ञ विश्वास काले के अनुसार आधारभूत ढ़ांचे की संरचना ने बाढ़ का दंश बढ़ाया है। उन्होने बताया कि वर्तमान बाढ़ की तुलना 1924 की बाढ़ से नही की जा सकती क्योंकि तब आधारभूत संरचनाओं की स्थिति अब के जैसी नही थी। समय के साथ यह स्पष्ट हो चुका है कि भारी बारिश से जूझ रहे राज्य में बांधों के फाटक खोलने से स्थिति नियंत्रण से बाहर चली गई।

 

जुलाई के अंत तक 39 बांध 85-100 प्रतिशत क्षमता तक भर चुके थे। अगस्त में बाढ़ की उम्मीद नहीं थी इसलिए बांधों को उच्चतम स्तर तक भर लिया गया। राज्य जब पहले से पानी में डूबा हुआ था, तभी 35 बांधों का पानी छोड़ा गया। अंतिम क्षणों में फाटक खोल दिए गए। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, नई दिल्ली के अशोक केसरी कहते हैं कि अगर बारिश रुकने के दो सप्ताह के अंदर धीरे-धीरे पानी छोड़ा जाता तो 20 से 40 प्रतिशत तक नुकसान कम होता। राज्य के पास अग्रिम सूचना तंत्र नही है। बांध का पानी खतरे के निशान से ऊपर (जिस स्तर पर बांध की संरचना को नुकसान हो सकता है) जाने के बाद छोड़ दिया गया।

 

बांध सुरक्षा पर बनी राष्ट्रीय समिति द्वारा तैयार आपदा प्रबंधन योजना के अनुसार राज्य को हर बड़े बांध के लिए आपातकालीन कार्य योजना तैयार करनी है। चौंकाने वाली बात यह है कि सीडब्ल्यूसी ने आपातकालीन कार्य योजना के लिए विकास एवं क्रियान्वयन दिशानिर्देश मई 2006 मे तैयार किए और राज्य सरकारों के पास कार्यवाई के लिए भेजा। भारत के महालेखा एवं नियंत्रक परीक्षक (सीएजी) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार केरल के 61 बाधों में से किसी मे भी आपातकालीन कार्य योजना व ऑपरेशन एवं मेंटिनेंस मैन्युअल नही हैं।

 

राज्य के जलमग्न होने से पहले पर्यावरण को पहुंचाई गई क्षति ने विनाश को बढ़ाया। राज्य के आपदा प्रबंधन कंट्रोल रूम  के दस्तावेजों के अनुसार एक स्वरूप स्पष्ट तौर पर उभरा कि जान माल का ज्यादा नुकसान ऐसे क्षेत्र में ही हुआ है। ये ऐसे क्षेत्र हैं जो पर्यावरण के लिहाज से अत्यधिक संवेदनशील हैं और यहां बारिश के दिनों हमेशा भू-स्खलन का खतरा रहता है। केरल में दो सप्ताह के भीतर कीचड़ और भू-स्खलन 211 जगहों पर हुआ। खनन और पेड़ों की अवैध कटाई ने इसमें बड़ा योगदान दिया है। इडुकी और वायनाड राज्य में जंगलों के सबसे समृध्द क्षेत्र माने जाते हैं। दोनों क्षेत्रों में 2011 से 2017 के बीच वन क्षेत्र काफी कम हुए हैं। इडुकी जिले में वन क्षेत्र 3930 वर्ग किमी. से घटकर 3139 वर्ग किमी. रह गया। यानी 20.13 प्रतिशत वन क्षेत्र कम हुए हैं। वहीं वायनाड में 11 प्रतिशत वन क्षेत्र कम हुए हैं। दोनों जिलों हुई भीषण तबाही के पीछे यह भी कारण हो सकता है।

 

अभी राज्य सरकार बाढ़ से हुए नुकसान का आंकलन कर रही है। लेकिन मौसम विज्ञान इस न्यू-नॉर्मल के पीछे जलवायु परिवर्तन का हाथ मान रहा है। दुनिया को इस साल भी मौसम की अतिशयता से उत्पन्न घटनाओं से निजात नही मिली है। प्राकृतिक आपदाओं की किताबों में केरल की बाढ़ एक अध्याय भर है।