हवा में घुला है जहर : वायु प्रदूषण और दिल्ली(Poison in the air: Air Pollution and Delhi)

Posted on November 8th, 2018 | Create PDF File

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जीवन जीने के लिए कम से कम सांसें तो जरूरी हैं ही।और ये सांसें सुचारु रूप से आती रहें इसके जरूरी है साफ हवा। लेकिन जब प्राण वायु ही जहरीली हो जाए और मौत देने पर उतारू हो जाए, तो कोई भला क्या करे। दुनिया भर की तमाम रिपोर्टों और शोधों के मुताबिक भारत दुर्भाग्य से उन देशों की सूची में सबसे ऊंचे पायदान पर है, जहां हवा जीने लायक नही है।

   

सर्दियां शुरू होते ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की हवा सांस लेने लायक नही रह गई है। 15 अक्टूबर से दिल्ली में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान यानी ग्रैप लागू किया गया, लेकिन दिल्ली एनसीआर के सभी 15 निगरानी केन्द्रों में हवा की गुणवत्ता का स्तर बेहद खराब कैटेगरी में पहुंच चुका है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के डेटा के मुताबिक आनंद विहार में इसका स्तर मानक से सात गुना अधिक और शेष दिल्ली में फिलहाल एयर क्वालिटी इंडेक्स की क्वालिटी 300 के करीब पहुंच चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक वायु  प्रदूषण के मामले में दिल्ली दुनिया का छठा सबसे खराब शहर बनने जा रहा है। विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि आने वाले समय में प्रदूषण का यह स्तर और भी ज्यादा बढ़ सकता है।

 

क्या है प्रदूषण-

प्रदूषण, पर्यावरण में दूषक पदार्थों के प्रवेश के कारण प्राकृतिक संतुलन में पैदा होने वाले दोष को कहते हैं। प्रदूषक पर्यावरण को और जीव-जन्तुओं को नुकसान पहुंचाते हैं। प्रदूषण का अर्थ है - 'हवा, पानी, मिट्टी आदि का अवांछित द्रव्यों से दूषित होना', जिसका सजीवों पर प्रत्यक्ष रूप से विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान द्वारा अन्य अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ते हैं। वर्तमान समय में पर्यावरणीय अवनयन का यह एक प्रमुख कारण है।

 

 

प्रदूषण के प्रकार-

 

वायु प्रदूषण-  वातावरण में रसायन तथा अन्य सुक्ष्म कणों के मिश्रण को वायु प्रदुषण कहते हैं। सामान्यतः वायु प्रदूषण कार्बन मोनोआक्साइड, सल्फर डाइआक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी)और उद्योग और मोटर वाहनों से निकलने वाले नाइट्रोजन आक्साइड जैसे प्रदूषको से होता है। धुआँसा वायु प्रदुषण का परिणाम है। धूल और मिट्टी के सूक्ष्म कण सांस के साथ फेफड़ों में पहुंचकर कई बीमारियाँ पैदा कर सकते हैं।

 

जल प्रदूषण:-  जल में अनुपचारित घरेलू सीवेज के निर्वहन और क्लोरीन जैसे रासायनिक प्रदूषकों के मिलने से जल प्रदूषण फैलता है। जल प्रदूषण पौधों और पानी में रहने वाले जीवों के लिए हानिकारक होता है।

 

भूमि प्रदूषण:-  ठोस कचरे के फैलने और रासायनिक पदार्थों के रिसाव के कारण भूमि में प्रदूषण फैलता है।

 

प्रकाश प्रदूषण:-  यह अत्यधिक कृत्रिम प्रकाश के कारण होता है।

 

ध्वनि प्रदूषण:-  अत्यधिक शोर जिससे हमारी दिनचर्या बाधित हो और सुनने में अप्रिय लगे, ध्वनि प्रदूषण कहलाता है।

 

रेडियोधर्मी प्रदूषण:-  परमाणु उर्जा उत्पादन और परमाणु हथियारों के अनुसंधान, निर्माण और तैनाती के दौरान उत्पन्न होता है!

 

 

वायु प्रदूषण-

वायु प्रदूषण अर्थात हवा में ऐसे अवांछित गैसों, धूल के कणों आदि की उपस्थिति, जो लोगों तथा प्रकृति दोनों के लिए खतरे का कारण बन जाए। दूसरे शब्दों में कहें तो प्रदूषण अर्थात दूषित होना या गन्दा होना। वायु का अवांछित रूप से गन्दा होना अर्थात वायु प्रदूषण है। दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ने का मुख्य कारण वाहनों की बढ़ती संख्या है। इसके साथ ही तापीय विद्युत् संयंत्र, पड़ोसी राज्यों में स्थित ईंट भट्ठा आदि  से भी दिल्ली में प्रदूषण बढ़ रहा है।

 

एक अध्ययन के अनुसार वायु प्रदूषण भारत में मौत का पांचवां बड़ा कारण है। वायु में मौजूद पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे छोटे कण मनुष्य के फेफड़े में पहुंच जाते हैं, जिससे श्वास व हृदय संबंधित रोग होने का खतरा बढ़ जाता है और इससे फेफड़ों के कैंसर की भी आशंका हो सकती है।

 

पीएम10 के मुकाबले पीएम 2.5 जिन्हें बारीक कण भी कहा जाता है, स्वास्थ्य के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं।पीएम10 वे कण हैं जिनका व्यास 10 माइक्रोमीटर होता है।

 

गौरतलब है कि एयर क्वालिटी इंडेक्स में शून्य से 50 के बीच एक्यूआई ‘अच्छा’ माना जाता है। इसके तहत 50 से 100 के बीच ‘संतोषजनक’, 101 से 200 के बीच ‘मध्यम’ श्रेणी का, 201 से 300 के बीच ‘खराब’, 301 से 400 के बीच ‘बेहद खराब’ और 401 से 500 के बीच एक्यूआई ‘गंभीर’ माना जाता है।

 

 

वायु प्रदूषण के असर-

 

हवा में अवांक्षनीय गैसों की उपस्थिति से मनुष्य, पशुओं और पक्षियों को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे दमा, सर्दी खांसी, सांस लेने में दिक्कत, अंधापन, सुनने की क्षमता में कमी, तथा त्वचा रोग जैसी बीमारियां पैदा होती हैं। वायु प्रदूषण के कारण त्वचा के कैंसर के कतरे भी बढ़ जाते हैं। लंबे समय तक वायु प्रदूषण की ज़द मे रहने से जेनेटिक समस्याएं भी पैदा हो जाती हैं। जो बेहद घातक साबित होती हैं। सर्दियों के मौसम में हवा में धुएं और मिट्टी के कण मिल जाते हैं। और इस स्मॉग के कारण आखों में जलन होती है। गले में खराश और सांस लेने में दिक्कत होने के साथ साथ ओजोन परत का क्षय, ग्लोबल वार्मिंग और अम्लीय वर्षा का खतरा भी पैदा हो जाता है। चूंकि बारिश के पानी में सल्फर डाई आक्साइड और नाइट्रोजन आक्साइड जैसी जहरीली गैसों के घुलने की संभावना बढ़ी है, इससे मनुष्यों के साथ ही फसलों,पेड़ो,भवनों और एतिहासिक इमारतों को भी नुकसान पहुंच रहा है।

 

देश में 5 साल से कम उम्र के 4 करोड़ 70 लाख बच्चे वायु प्रदूषण के दायरे मे रहते हैं। इसमें से 1 करोड़ 70 लाख बच्चे मानक से दो गुने प्रदूषण स्तर वाले इलाके में रहते हैं। भारत की 47 फीसदी आबादी उन इलाकों में रह रही है, जहां वायु की गुणवत्ता बेहद खराब है। इन इलाकों में वायु की गुणवत्ता मापने के लिए कोई मानीटरिंग भी नही हो रही है। कई लोगों को तो यह भी नही पता कि वे किस तरह की हवा में सांस ले रहे हैं। देश में सिर्फ 16 प्रतिशत लोगों को ही स्वच्छ वायु उपलब्ध है।

 
वर्तमान में वायु प्रदूषण एक सर्वाधिक विकट पर्यावरणीय समस्या के रूप में उभरा है। केवल राजधानी दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे देश में वायु प्रदूषण का स्तर अपने भयावह स्तर तक पहुँच चुका है। हाल में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के तकरीबन 90% से अधिक शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर निर्धारित मानकों की तुलना में काफी अधिक दर्ज किया गया है। 



2015 में एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) ग्रीनपीस इंडिया द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार देश के 168 शहरों में से 154 शहरों की वायु में प्रदूषक कणों की मात्रा राष्ट्रीय औसत से अधिक थी। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की राष्ट्रीय व्यापक वायु गुणवत्ता मानकों (National Ambient Air Quality Standards) रिपोर्ट के अनुसार भारत में राजधानी दिल्ली सर्वाधिक प्रदूषित शहर है।


डब्ल्यूएचओ ने वायु प्रदूषण को लेकर 91 देशों के 1600 शहरों पर डाटा आधारित अध्ययन रिपोर्ट जारी की है। जिसमें दिल्ली की हवा में पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) 2.5 सबसे अधिक पाया गया है। 

दूसरी ओर एक समय विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहर कहे जाने वाले चीन की राजधानी बीजिंग में पीएम 25 की सघनता 56 माइक्रोग्राम तथा पीएम 10 की सघनता 121 माइक्रोग्राम है। उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पहले तक बीजिंग की गिनती विश्व के सबसे प्रदूषित शहर के रूप में होती थी, लेकिन चीन की सरकार ने इस समस्या को दूर करने के लिए कई प्रभावी कदम उठाए और इनके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।

 

 

प्रदूषण के प्रभाव-

हाल ही में दिवाली के त्यौहार के दौरान पटाखों की बिक्री पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई रोक पटाखों से होने वाले प्रदूषण पर नियंत्रण करने के लिये उठाया गया एक सराहनीय कदम है। विदित हो कि भारत में ‘प्रदूषण’ से ही सर्वाधिक मौतें होती हैं। लांसेट आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015 में प्रदूषण से होने वाली 92% मौतें निम्न और मध्यम आय वर्ग वाले देशों में हुईं थीं। देशों के भीतर भी प्रदूषण संबंधी रोगों से अल्पसंख्यक समुदाय अधिक प्रभावित हुए थे। बच्चे प्रदूषण संबंधी रोगों से होने वाली मौतों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं।

 

वर्ष 2015 में भारत में प्रदूषण के कारण 2.51 मिलियन मौतें हुई थीं। अतः इस रिपोर्ट में भारत को प्रदूषण संबंधी मौतों के मामले में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है। प्रदूषण से होने वाली मौतों के मामले में चीन दूसरे स्थान पर है, जहाँ 2015 में प्रदूषण से 1.8 मिलियन मौतें हुई थीं। वर्ष 2015 में विश्वभर में पूर्वानुमानित 9 मिलियन मौतों में से 28% मौतें भारत में हुई  थीं। वर्ष 2015 में विश्वभर में 6.5 मिलियन मौतें असामयिक (समय से पूर्व) हुई थीं, जिनका एकमात्र कारण ‘वायु प्रदूषण’ था। 

 

ध्यातव्य है कि 1.58 मिलियन मौतों के साथ ही प्रदूषण संबंधी मौतों के मामले में चीन इस लिस्ट में भारत (1.81 मिलियन) के बाद दूसरे स्थान पर था। जहाँ एक ओर चीन में जल प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों की संख्या मात्र 34,000 थी वहीं भारत में जल प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों की संख्या 0.64 मिलियन थी। वर्ष 2015 में भारत में हुई तक़रीबन 25% मौतों का कारण प्रदूषण था। दरअसल, पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश और केन्या में होने वाली 4 में से 1 व्यक्ति की मौत का कारण भी प्रदूषण ही था।

 

यदि वायु प्रदूषण की बात की जाए तो इस मामले में भारत में ‘परिवेशी वायु प्रदूषण’ (ambient air pollution) के कारण होने वाली मौतों की संख्या 1.09 मिलियन थी, जबकि ‘घरेलू वायु प्रदूषण’ (household air pollution) जैसे-घर में जलाए जाने वाले ठोस ईंधनों के कारण होने वाली मौतों की संख्या 0.97 मिलियन थी। 

 

वायु प्रदूषण के कारण होने वाली हृदय संबंधी बीमारियों, फेफड़ों का कैंसर और ‘क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी रोग’ (chronic obstructive pulmonary disease -COPD) के कारण ही अधिकांश मौते हुईं थीं।

 

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिन पूर्व देशभर में पटाखों की बिक्री पर पाबंदी लगाने से इनकार करते हुए कुछ शर्तों के साथ दिवाली पर आतिशबाज़ी की छूट दी थी। दिवाली पर पटाखों की बिक्री पर लगा बैन सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ हटा दिया था।साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में दायर याचिका की सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिए थे।

 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कम प्रदूषण वाले ग्रीन पटाखे यानी कम प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों को ही इस्तेमाल किया जा सकेगा। दिवाली या ऐसे किसी दूसरे त्योहार में रात 8 से 10 बजे के बीच ये पटाखे जलाए जा सकेंगे। क्रिसमस और नए साल के मौकों पर ये समय एक घंटे का है। ये समय रात के 11.45 से लेकर 12.45 तक होगा।

 

यह याचिका तीन बच्चों अर्जुन गोपाल, आरव भंडारी और ज़ोया राव भसीन की ओर से कोर्ट में साल 2015 में दायर की गई थी। इन बच्चों की उम्र अब तीन से चार साल के बीच है। बच्चों की तरफ से वकील गोपाल संकरानारायण ने पटाखों की बिक्री पर पूरी तरह से बैन लगाने की अपील की थी।

जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने कहा कि प्रतिबंधित पटाखे बेचे जाते हैं तो संबंधित इलाक़े के थाना प्रभारियों को ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा और उन पर अवमानना का मामला चलेगा।

 

क्या हैं ग्रीन पटाखे-

यह विषय बहुत ही हास्यास्पद है कि सुप्रीम कोर्ट ने जिन 'ग्रीन पटाखों' की बात की है उनका इस्तेमाल दुनिया के किसी देश में नहीं होता है।

 

दरअसल 'ग्रीन पटाखे' राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) की खोज हैं जो पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं पर इनके जलने से कम प्रदूषण होता है। नीरी एक सरकारी संस्थान है जो वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंघान परिषद (सीएसआईआर) के अंदर आता है।

 

ग्रीन पटाखे दिखने, जलाने और आवाज़ में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं, लेकिन इनसे प्रदूषण कम होता है। सामान्य पटाखों की तुलना में इन्हें जलाने पर 40 से 50 फ़ीसदी तक कम हानिकारण गैस पैदा होते हैं।

 

ग्रीन पटाखे फ़िलहाल भारत के बाज़ारों में उपलब्ध नहीं हैं। यह नीरी की खोज है और इसे बाज़ार में आने में काफी वक़्त लग सकता है। इसे बाज़ार में उतारने से पहले सरकार के सामने इसके गुण और दोष का प्रदर्शन करना होगा जिसके बाद इसे बाज़ार में उतारने की अनुमति मिलेगी। फ़िलहाल भारत के बाज़ारों में पारंपरिक तरीके़ से पटाखों का निर्माण हो रहा है। हालांकि कुछ केमिकल पर प्रतिबंध लगने के बाद कई तरह के पटाखों का निर्माण बंद हो चुका है। गौरतलब है कि नीरी ने भले ही ग्रीन पटाखे बनाए हों, लेकिन इसके निर्माण की ज़िम्मेदारी भारतीय बाज़ारों पर ही होगी। ऐसे में बिना बेहतर प्रशिक्षण के इसे बनाना चुनौती होगी।

 

 

पटाखों का असर-

पूरी दुनिया में पटाखों का सबसे बड़ा उत्पादक चीन है। दूसरे नंबर पर भारत है। भारत में पटाखों का व्यापार 2600 करोड़ रुपये से ज़्यादा का है। भारत में तमिलनाडु के शिवकाशी को पटाखा उत्पादन का गढ़ माना जाता है। हर साल हादसों की वजह से इस धंधे में काम करने वाले कम से कम 20-25 लोगों की मौत हो जाती है।

 

विशेषज्ञों का मानना है कि एक फुलझड़ी जलने से होने वाला नुकसान 74 सिगरेट पीने के बराबर होता है। वहीं अनार को जलाने से 34 सिगरेट पीने जितना फर्क पड़ता है।

 

 

पटाखों का इतिहास-

 

भारत में पटाखे मुग़ल ही लेकर आए थे ये कहना सही नहीं होगा। ईसा पूर्व काल में रचे गए कौटिल्य के अर्थशास्त्र में एक ऐसे चूर्ण का विवरण है जो तेज़ी से जलता था, तेज़ लपटें पैदा करता था और अगर इसे एक नलिका में ठूंस दिया जाए तो पटाख़ा बन जाता था। बंगाल के इलाक़े में बारिश के मौसम में बाद कई इलाक़ों में सूखती हुई ज़मीन पर ही लवण की एक परत बन जाती थी। इस लवण को बारीक पीस लेने पर तेज़ी से जलने वाला चूर्ण बन जाता था। अगर इसमें गंधक और कोयले के बुरादे की उचित मात्रा मिला दी जाए तो इसकी ज्वलनशीलता भी बढ़ जाती थी। जहां ज़मीन पर यह लवण नहीं मिलता था, वहां इसे उचित क़िस्म की लकड़ी की राख की धोवन से बनाया जाता था। वैद्य भी इस लवण का इस्तेमाल अनेक बीमारियों के लिए करते थे। लगभग सारे देश में ही यह चूर्ण और इससे बनने वाला बारूद मिल जाता था। यह बारूद इतना ज्वलनशील भी नहीं था कि इसका इस्तेमाल दुश्मन को मारने के लिए किया जा सके।

 

ग्रेडेड रिपांस एक्शन

 

आपात योजना यानी ग्रेडेड रिपांस एक्शन के तहत शहर में वायु गुणवत्ता के आधार पर कुछ फैसले लिए गए हैं। इसके अंतर्गत कचरा फेकने वाले स्थानों पर कचरा जलाना रोक दिया जाएगा। ईंट भट्टों और औद्योगिक इकाइयों में प्रदूषण नियंत्रण के सभी नियमों को कड़ाई से लागू किया जाएगा।हवा की गुणवत्ता बहुत खराब होने पर डीजल से चलने वाली जनरेटर मशीनों पर रोक लगा दी जाएगी। इसके अलावा आपातकालीन योजना के तहत बदरपुर पॉवर प्लांट बंद कर दिया गया है। राजधानी 1131 औद्योगिक इकाइयों में से 950 पीएनजी में बदल दी गई हैं। और बाकी को बंद करने आदेश दे दिए गए हैं। स्वीपिंग मशीन के जरिए राजधानी की सभी सड़कें साफ की जाएंगी। फिलहाल ऐसी 52 रोड स्वीपनल मशीनें दिल्ली में आपरेशनल हैं। इसे नवंबर आखिर तक बढ़ाकर 64 किए जाने की योजना है। साथ ही धूल को रोकने के लिए नगर निगम को पानी के छिड़काव करने के आदेश दिए गए हैं। जिन सड़कों पर अधिक धूल उड़ती है, उनकी पहचान कर उन पर पानी का छिड़काव किया जाएगा। ठंड में धूल पर नियंत्रण रखने के लिए 400 वाटर स्प्रिंकलर का इस्तेमाल किया जाएगा। हवा की गुणवत्ता अगर बहुत आपात श्रेणी में होती है, तो कुछ और भी कड़े कदम उठाए जाएंगे। ऐसा होने पर दिल्ली में ट्रकों का प्रवेश रोक दिया जा सकता है। इसमें आवश्यक सामानों को ढ़ोने वाले ट्रक शामिल नही होगें। अगर हवा की गुणवत्ता गंभीर से अतिगंभीर स्तर की पाई गई तो दिल्ली में निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी जाएगी। दिल्ली में प्रदूषण पर नजर रखने के लिए केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड की 41 टीमों को भी तैनात किया गया है। ये टीमें दिल्ली और एनसीआर के शहर गाजियाबाद, दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा, और फरीदाबाद में अलग-अलग जगहों पर  मुआइना कर रही हैं और समय समय पर जानकारी दे रही हैं।

 

वायु गुणवत्ता अग्रिम चेतावनी प्रणाली

 

दिल्ली के लिए वायु गुणवत्ता अग्रिम चेतावनी प्रणाली का विकास किया गया है। केन्द्र सरकार ने अमेरिका और फिनलैंड के साथ मिलकर इस प्रणाली को 15 अक्टूबर से दिल्ली में शुरू किया है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और विभिन्न मौसम शोध संस्थानों की सहायता से विकसित इस प्रणाली की शुरुआत पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और वन मंत्री हर्षवर्धन ने की।  इसका संचालन विभाग की राष्ट्रीय मौसम पूर्वानुमान इकाई की ओर से किया जाएगा। मौसम विभाग, सीपीसीबी, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति और अन्य एजेंसियों से मिले हवा की गुणवत्ता संबंधी आंकड़ो के आधार पर यह चेतावनी प्रणाली का संचालन करेगा। इसको बिगड़ते वायु प्रदूषण के पहले से अनुमान लगाने और उसकी चेतावनी देने के लिए केन्द्र सरकार की ग्रेडेड रिस्पांस कार्य योजना के तहत विकसित किया गया है। दिल्ली और आस पास के इलाकों में वायु की गुणवत्ता अत्यधिक खराब होने पर वायुप्रदूषण की चेतावनी देने वाली यह प्रणाली 15 अक्टूबर से लागू कर दी गई है। यह लगभग 3 दिन पहले ही मौसम, तापमान, हवा की गति और उसकी दिशा, तथा नमी की पूरी जानकारी देगी। इस सिस्टम के जरिए अगले 3 दिन का पूर्वानुमान रोज जारी किया जाएगा।

 

पराली का समस्या

अक्टूबर और नवंबर के बीच हर साल पंजाब और हरिय़ाणा के क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में पराली का जलाया जाना दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में वायु प्रदूषण का बड़ा कारण बनता है। पराली जलाने से निकलने वाला धुंआ दिल्ली की ओर आता है। और शहर में मौजूद कोहरे के साथ मिलकर हवा में जहर घोलता है। हालांकि केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक पिछले साल के मुकाबले इस साल पंजाब में 75 फीसदी तथा हरियाणा में 40 फीसदी पराली कम जलाई गई है।

 

निष्कर्ष-

प्रदूषण एक राष्ट्रीय समस्या है। प्रदूषण के मुख्य स्रोतों में जीवाश्म ईंधनों का सर्वाधिक योगदान होता है। विश्व बैंक, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) तथा कई अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा किये गए अध्ययनों से यह तथ्य उजागर होता है कि वायु प्रदूषण के कारण विश्व को भारी सामाजिक-आर्थिक लागत वहन करनी पड़ती है। विश्व बैंक के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण कल्याण कार्यों पर खर्च एवं ‘खोयी श्रम लागत’ (Lost labour income) वर्ष 2013 में भारत की  GDP के 8.5% के बराबर थी। जिन क्षेत्रों में पर्यावरण क्षरण और प्रदूषण अधिक है, ऐसे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है। वायु प्रदूषण के कारण श्वास संबंधी बीमारियों, हृदय रोगों, फेफड़ों के कैंसर में वृद्धि हुई है जिनके इलाज की लागत काफी अधिक है। इस प्रकार के अध्ययनों के परिणामों से सबक लेते हुए हमें वायु प्रदूषण कम करने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाने चाहिये एवं इसके लिये सभी हितधारकों को सामूहिक प्रयास करना चाहिये। 

 

डीजल से चलने वाले परिवहन वाहनों तथा शक्ति संयंत्रों की संख्या पर नियंत्रण करके,  ‘सम-विषम फॉर्मूला’ से, परिवहन साधनों में उच्च तकनीकी के ईंजन तथा कलपुर्जे प्रयोग करके, प्रदूषण निगरानी केन्द्रों की संख्या बढ़ाकर, पौधारोपण को अधिक-से-अधिक बढ़ावा देकर, वनों की कटाई रोककर, तथा सार्वजनिक स्थलों पर हवा शुद्धक यंत्रों के प्रयोग को बढ़ावा देकर इसपर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। इसके अलावा स्वच्छता अभियान को अधिक सुदृढ़ता से लागू करना चाहिये ताकि पर्यावरण के स्वास्थ्य को स्वस्थ रखा जा सके। अत्यधिक प्रदूषण की स्थिति में समय-समय पर कृत्रिम-वर्षा भी कराई जा सकती है। साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लिये गए पर्यावरणीय एवं जलवायु परिवर्तन संबंधी निर्णयों को नीति-निर्माण एवं क्रियान्वयन के असली धरातल पर लाया जाना चाहिये तथा वायु प्रदूषण के बारे में अधिक-से-अधिक जागरूकता फैलाई जानी चाहिये। इस प्रकार के उपायों से वायु प्रदूषण जैसी विकट समस्या से काफी हद तक बचा जा सकता है। 

 

ज्ञात हो कि हाल ही में दिवाली के पर्व पर जिनमें भारी मात्रा में पटाखे और आतिशबाजी का सामान प्रयोग किया जाता है। जिनके जलने से धुयें के साथ-साथ खतरनाक कार्बनिक रसायन वायुमंडल में घुलकर हवा को प्रदूषित कर देते हैं। आस्था के सवाल के चलते प्रशासन भी इस पर कोई सख्त कदम नही उठाता दिख रहा है।

 

इससे पहले एनजीटी ने दिल्‍ली सरकार पर प्रदूषण रोकने में नाकाम रहने पर दिल्ली सरकार पर 50 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया है। एनजीटी के मुताबिक दिल्ली की करीब 62 बड़ी यूनिट्स पर लगाम लगाने में डीपीसीसी के नाकाम रही है। बता दें कि पिछले साल भी खराब हवा और प्रदूषण की वजह से दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में इमरजेंसी जैसे हालात बन गए थे। जिसकी वजह से भारत और श्रीलंका के बीच फिराजशाह कोटला के मैदान में होने वाले टेस्ट मैच में रुकावट आई थी। और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की गरिमा को ठेस पहुंची थी। इसके अलावा धार्मिक अनुष्ठानों की पूजा सामग्री और मूर्तियों को विसर्जित करने की परंपरा ने यमुना और उसके आस- पास के क्षेत्र को पहले से बदतर कर दिया है। इस संबंध में न तो सरकार के पास कोई नीति ही दिखाई दे रही है, और न ही लोगों की इच्छाशक्ति।