नये दौर का क्रिकेट- नई तकनीकें और नियम(New Era Of Cricket - New Techniques and Rules)
Posted on December 6th, 2018 | Create PDF File
टीवी प्रसारण के साथ साथ बेहतरीन अत्याधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से भी इस खेल में काफी बदलाव हुए हैं। कई प्रकार के कैमरे, स्कैनर, हॉकआई, एनीमेशन, प्रोजेक्शन, स्टंप माइक, स्टंप लाइट, फ्लड लाइट्स आदि की सहायता से खेल में एक ओर जहां पैनापन आया है, वहीं दूसरी ओर कई बाधाएं और दबाव पैदा हो गए हैं। इसके अलावा आईसीसी द्वारा जारी किए गए नए नियम भी खेल को प्रभावित करते हैं। आज हम यहां ऐसे ही कुछ ऐसे ही नए नियमों और तकनीकियों के बारे में बात करेंगे-
क्रिकेट के नियम मैरीलिबोन क्रिकेट क्लब (एमसीसी) द्वारा स्थापित नियमों का एक समूह है जो निष्पक्षता और एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए दुनिया भर के क्रिकेट के नियमों की व्याख्या करता है। वर्तमान में 42 कानून हैं जो इस खेल को खेलने के विषय में जानकारी देते हैं, जिनमें किसी टीम के जीतने तथा बल्लेबाज के आउट होने के तरीकों से लेकर पिच को तैयार करने तथा उसके रख-रखाव तक के सभी पहलुओं की जानकारी शामिल है। एमसीसी इंग्लैंड के लंदन में स्थित एक निजी क्लब है और अबू इस खेल का अधिकारिक प्रबंध निकाय नहीं है; हालांकि एमसीसी इस खेल के नियमों का कॉपीराइट अपने पास बरकरार रखे हुए हैं और केवल एमसीसी ही इन नियमों को बदल सकता है, यद्यपि आजकल आम तौर पर केवल खेल की वैश्विक नियामक संस्था इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल(आईसीसी) के साथ विचार विमर्श के बाद ही ऐसा किया जाता है।
'क्रिकेट उन गिने-चुने खेलों में से एक है जिसके लिए नियामक सिद्धांतों को 'नियमों' या 'विनियमों' की बजाय 'क़ानून' के रूप में संदर्भित किया जाता है। हालांकि विशेष प्रतियोगिताओं के लिए कानूनों का पूरक तैयार करने और/या इनमें भिन्नता के लिए विनियमों पर सहमती बनायी जा सकती है।
नए नियम-
डीआरएस
टेस्ट क्रिकेट की बात की जाए तो पहले 80 ओवर के बाद दो रिव्यू टीम को मिल जाते थे, लेकिन नए नियम के मुताबिक टीम को कुल दो ही डीआरएस मिलेंगे। टी-20 क्रिकेट में आईसीसी ने डीआरएस का प्रयोग करने की इजाजत दे दी है। बता दें कि अंपायर निर्णय समीक्षा प्रणाली (जिसे संक्षिप्त रूप से यूडीआरएस (UDRS) या डीआरएस (DRS) कहा जाता है) वर्तमान में क्रिकेट के खेल में प्रयोग की जाने वाली एक नई तकनीक आधारित प्रणाली है।
बल्ले के साइज में भी बदलाव
कुछ खिलाड़ी भारी बल्ले का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में उन्हें भी अपने बल्ले में बदलाव करना होगा। अब बल्ले की चौड़ाई 108 मिमी और एज 40 मिमी की रहेगी।
रन आउट के नियम में बदलाव
अगर बल्लेबाज क्रीज के अंदर आ जाएगा और उसका बल्ला हवा में भी रहेगा तो वह आउट नहीं होगा। ऐसा पहले नही होता था। पहले अगर हवा में बल्ला रहने पर बल्लेबाज को आउट दे दिया जाता था।
रेड कार्ड के नियम
इस नए नियम के अनुसार अगर कोई खिलाड़ी मैदान पर खेल भावना के खिलाफ जाता है तो अंपायर उसे रेड कार्ड दिखा कर मैदान से बाहर भेज सकता है।
डेड नियम में बदलाव
जब गेंदबाज गेंद डालने की तैयारी में रहता है यदि उसी वक्त नॉन स्ट्राइकर क्रीज के बाहर निकल गया तो उसे रन आउट किया जा सकेगा। इस बदलाव के कारण अब नॉन स्ट्राइकर ज्यादा समय तक क्रीज में रहेगा।
हैंडल्ड द बॉल नहीं, अब 'ऑब्सट्रक्टिंग द फील्ड' के तहत आउट होगा
अब 'हैंडल्ड द बॉल' नियम को हटाकर उस तरीके से आउट होने वाले बल्लेबाज को 'ऑब्सट्रक्टिंग द फील्ड' नियम के तहत आउट दिया जाएगा। अब तक अगर शॉट खेलने के बाद गेंद फील्डर के हेलमेट पर लगती थी तो ना तो उसे कैच आउट दिया जाता था और ना ही रन आउट।
इसके अलावा कुछ और नियमों में बदलाव हुए हैं जैसे-
- टेस्ट क्रिकेट में हर टीम के पास अब 6 अतिरिक्त ख़िलाड़ी होंगे, इससे पहले खिलाड़ियों की संख्या 4 हुआ करती थी।
- आईसीसी ने विकेट पर रखी बेल्स को अब एक धागे के साथ बांधने का नियम लागू किया है। यह फैसला फील्डर और विकेटकीपर को किसी भी प्रकार की चोट बेल्स उड़ने से न लगे इसलिए लिया गया है।
- टेस्ट क्रिकेट में सेशन खत्म होने से 3 मिनट पहले ही अगर विकेट गिरता है तो तभी सेशन खत्म होने की घोषणा कर दी जाएगी। इससे पहले यह समय 2 मिनट था।
- टी20 अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अगर कोई मैच 10 ओवर से कम का खेला जाता है, तो कोई भी गेंदबाज 2 ओवर से कम गेंदबाजी नहीं करेगा। मतलब अगर कोई मैच 5 ओवर का है, तो 2 गेंदबाजों को 2 ओवर करने की अनुमति दी जाएगी।
- सीमारेखा पर खड़े फील्डर को गेंद को सीमारेखा से पहले पकड़ना या छूना होगा, यदि ऐसा नहीं होता है तो वह बाउंड्री दे दी जाएगी और साथ ही बाउंड्री देने का एक नियम यह भी होगा, अगर कोई फील्डर सीमारेखा के उसपार किसी भी वस्तु या फील्डर से टच होते हुए गेंद को मैदान के अंदर फेंकता है तो वह बाउंड्री दी जाएगी। मतलब गेंद को सीमारेखा से पहले रोकना या कैच लपकना होगा।
- अगर गेंदबाज की गेंद बल्लेबाजी क्रीज से पहले दो बार बाउंस करती है, तो उसे नो बॉल दिया जायेगा। इससे पहले यह नियम लागू था कि गेंद दो बाउंस ले सकती है। यदि कोई फील्डर गेंद को बल्लेबाज तक पहुंचने से पहले ही पकड़ लेता है, तो अंपायर के द्वारा या तो वह गेंद नो बॉल होगी या फिर डेड बॉल।
- अंपायर के द्वारा बल्लेबाज को आउट देने के बाद वापस बुलाया जा सकता है। अगर वह नॉटआउट पाया गया हो तो अंपायर इस फैसले को वापस ले सकते हैं, यदि उस गेंद के बाद कोई भी गेंदबाज द्वारा गेंद न फेंकी गई हो। इससे पहले अगर कोई बल्लेबाज मैदान छोड़ कर चला जाता था, तो उसे वापस नहीं बुलाया जाता था।
- अगर किसी भी फील्डर या विकेटकीपर के द्वारा हेलमेट पहने जाने पर गेंद हेलमेट से लग कर कैच, रनआउट या स्टंप हो जाता है, तो उसे आउट दिया जायेगा।
- यदि अंपायर के फैसले को किसी टीम के द्वारा टीवी अंपायर को रेफर किया जाता है और मैदान पर लिया गया फैसला सही रहता है क्योंकि डीआरएस में अंपायर कॉल के कारण यह नतीजा निकला है, तो वह टीम अपना रिव्यु नहीं गंवाएगी।
क्रिकेट में प्रयोग होने वाली नई तकनीकियां-
हॉक आई
इस तकनीक को बकिंघमशायर के पूर्व खिलाड़ी डॉ. पॉल हॉकिंस ने ईजाद किया। इस तकनीक का इस्तेमाल तब किया जाता है जब बल्लेबाज विकेट के सामने खड़ा हो। कंप्यूटर ग्राफिक की मदद से बताया जाता है कि अगर बल्लेबाज विकेट के सामने न खडम होता तो क्या बॉल विकेट पर जाकर लगती। इसमें छह कैमरों का इस्तेमाल किया जाता है जो गेंदबाज के हाथ से बॉल छूटने से लेकर बल्लेबाज तक पहुंचने तक के सभी एक्शन को रिकॉर्ड करता है। इसके बाद थ्री-डी इमेज के जरिए बताया जाता है कि गेंद किस तरह बल्लेबाज तक पहुंची। इसकी मदद से टीवी अंपायर फील्ड अंपायर की तुलना में सटीक निर्णय दे सकते हैं। इस तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ क्रिकेट में ही नहीं बल्कि टेनिस, ब्रेन सर्जरी और मिसाइल ट्रैकिंग में भी किया जाता है। निर्णय के लिए यह तकनीक बेहद उपयोगी साबित होती है।
स्निकोमीटर
क्रिकेट स्टेडियम में शोर-शराबे की कमी नहीं होती। ऐसे में अंपायर के लिए हल्की आवाजों को सुनना लगभग असंभव हो जाता है। इसलिए अंपायर स्निकोमीटर पर निर्भर रहते हैं। इस तकनीक को इस तरह से प्रोग्राम किया गया है कि आवाज में थोड़े बदलाव को भी पहचान लिया जाए। इससे यह पता लग जाता है कि बल्ले ने बॉल को छुआ है या नहीं। स्निकोमीटर में एक माइक्रोफोन लगा होता है। इसे पिच की दोनों तरफ किसी एक स्टंप में लगाया जाता है और यह ऑसीलोस्कोप से कनेक्ट रहता है। जो ध्वनि तरंगों को मापती है।
हॉट स्पॉट
हॉट स्पॉट तकनीक को पहली बार साल 2006-2007 की एशेज टेस्ट श्रंखला में इस्तेमाल किया गया था। हॉट स्पॉट यह बताता है कि बॉल बल्ले से टकराई है या फिर नहीं। कई बार अंपायर के लिए यह निर्णय लेना आसान नहीं होता कि आउट की अपील सही है या नहीं। यह बॉल की हीट सिग्नेचर पर निर्भर करता है। अंपायर आजकल किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले हॉट स्पॉट और स्निकोमीटर दोनों तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। इस तकनीक में, स्टेडियम में इंफ्रारेड कैमरा लगाए जाते हैं ताकि बॉल के हीट सिग्नेचर में आए थोड़े से बदलाव को भी पकड़ा जा सके। फिर सॉफ्टवेयर एक काली इमेज बनाता है और जहां गेंद टकराई है उस जगह धब्बा दिखने लगता है और पता चल जाता है कि बॉल बल्ले से टकराई है।
जिंग विकेट
जिंग विकेट सिस्टम वास्तव में एलईडी लाइट वाले स्टंप और उनके ऊपर लगने वाली गिल्ली हैं जो गेंद के टकराते ही फ्लैश होने लगती हैं। यह सिस्टम ऑस्ट्रेलियाई मकैनिकल इंडस्ट्रियल डिजाइनर ब्रोंटे एककैरमन ने बनाया। इस तकनीक की एक गिल्ली की कीमत तकरीबन एक आईफोन जितनी होती है और इसका पूरा सेट लगभग 25 लाख रुपये तक आता है। रन आउट या स्टंप आउट के समय एक बल्लेबाज को तभी आउट करार दिया जाता है जब गिल्ली पूरी तरह हट जाए। स्टंप को माइक्रोप्रोसेसर और कम वोल्टेज वाली बैटरी के साथ-साथ लगाया जाता है। इन बिल्ट सेंसर की मदद से यह सेकेंड के हजारवें हिस्से में ही डिटेक्ट कर लेता है कि कोई चीज पास आ रही है। टीवी अंपायर के लिए रन आउट और स्टंप आउट का फैसला देना बेहद आसान हो जाता है।
स्पाइडर कैम
टेलीविजन पर आपको हर एंगल से मैदान दिखाने के लिए स्पाइडर कैम का इस्तेमाल होता है। यह कैमरा बहुत ही पतली केबल में जुड़कर स्टेडियम के हर कोने में लगा रहता है। स्पाइडर कैमरा ब्रॉडकास्टर की जरूरतों के मुताबिक स्टेडियम में होने वाली गतिविधियों को टिल्ट, जूम या फोकस कर देता है। इसके पतले केबल में फाइबर ऑप्टिक केबल भी होते हैं, जो कैमरा में रिकॉर्ड होने वाली तस्वीरों को प्रोडक्शन रूम तक पहुंचाते हैं।
सुपर स्लो मोशन
आपने क्रिकेट मैच में रिप्ले जरुर देखा होगा। ब्रॉडकास्टर्स स्लो मोशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कई सालो से कर रहे है। सुपर स्लो मोशन कैमरा को स्टेडियम में 500 फ्रेम प्रति सैंकड़ पर लगाया जाता है। वही एक समान्य कैमरा 24 फ्रेम प्रति सैंकड़ इमेज रिकॉर्ड करता है। आप इससे अंदाजा लगा सकते हो कि स्लो मोशन तकनीक कितनी कारगर साबित होती है। इस तकनीक का इस्तेमाल रीप्ले ,रन आउट और स्टम्पिंग देखने के लिए किया जाता है।
स्पीड गन
इस तकनीक का इस्तेमाल सबसे पहले टेनिस में हुआ था। गेंदबाज के हाथ से बॉल किस गति पर छूटी, यह मापने के लिए स्पीड गन का इस्तेमाल किया जाता है। गेंद की गति का पता लगाने के लिए डॉपलर रडार का इस्तेमाल किया जाता है। स्पीड गन माइक्रोवेव तकनीक का इस्तेमाल करती है।
स्टंप कैमरा
क्रिकेट स्टंप में कैमरे का इस्तेमाल 1990 के दौर में हुआ था। सबसे पहले हिताची KP-D8s कैमरे का स्टंप में इस्तेमाल हुआ था। ये माइक्रो लैंस से लैस 4,10,000 पिक्स वाला कलर कैमरा था। इसके बाद स्टंप्स में HD कैमरों का इस्तेमाल होने लगा। रनआउट और स्टंपिंग के सटीक नतीज़ों के लिए ये कैमरे काफी मददगार साबित हुए। इससे विशेषज्ञों और दर्शकों को एक नए एंगल से क्रिकेट देखने को मिला।
UDRS (अंपायर डिसिज़न रिव्यू सिस्टम)
इस तकनीक को क्रिकेट में तब शामिल किया गया जब कई खिलाड़ी गलत फैसलों के शिकार होने लगे। सबसे पहले इसका इस्तेमाल साल 2008 में हुआ। इस फैसला का इस्तेमाल बल्लेबाज या मैदान में मौजूद खिलाड़ी ही कर सकता है। इस तकनीक ने कई गलत फैसलों से खिलाड़ियों को बचाया। UDRS में अंपायर हॉक आई, हॉट स्पॉट और स्निकोमीटर जैसी तकनीक इस्तेमाल करते हैं।
मैजिक माइक
T-20 क्रिकेट शुरू होने के बाद इस तकनीक का इस्तेमाल ज्यादा होने लगा। मैजिक माइक के ज़रिए खिलाड़ी मैदान से ही बॉक्स में बैठे कॉमेंटेटर्स से बात कर सकता है। कॉमेंटेटर्स खिलाड़ियों से खेल की बारीकी और उनकी रणनीति पर बात करते हैं। इसके ज़रिए क्रिकेट दर्शकों को मैदान में मौजूद खिलाड़ी की मनोस्थिति जानने का मौका मिलता है। साथ ही खेल के प्रति एक नज़रिया मिलता है।
निष्कर्ष :
इन नई तकनीकियों और नियमों खेल को और भी अधिक रोचक, विश्वसनीय और पारदर्शी बनाया है। इससे खेल मे ईमानदारी बढ़ी है। पूर्वाग्रह खत्म हुआ है। अब काफी हद तक खिलाड़ियों के साथ अन्याय नही होने पाता। तकनीकि पर बढ़ती निर्भरता से क्रिकेट में अंपायरों का महत्त्व कम हुआ है। यह एक ओर खेल भावना के नजरिए से अच्छी चीज है लेकिन वहीं दूसरी ओर इससे खेल खेल की मर्यादा में न रहकर उससे कुछ आगे निकल गया है। अंपायर के फैसले को चुनौती देना, और फिर उसके गलत साबित होने पर अंपायर का बीच मैदान मे माफी मांगना कहीं न कहीं सही नही है। वैसे प्रगति का हमेशा स्वागत होना चाहिए, हो रहा है। आशा की जानी चाहिए इन तकनीकों और नियमों से खेल को और भी ज्यादा रोचक बनाने में मदद मिलेगी। साथ ही खेल की आत्मा मरने नही पाएगी।