भारतीय संविधान का अनुच्छेद - 31

Posted on March 30th, 2022 | Create PDF File

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भाग- 3 

अनुच्छेद- 31.[संपत्ति का अनिवार्य अर्जन|]-

संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978  की धारा 6 द्वारा (20-6-1979 से) निरसित।

 1[कुछ विधियों की व्यावृति]

2[31क. संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति-

3[(1) अनुच्छेद 13 में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी,-

(क) किसी संपदा के या उसमें किन्हीं अधिकारों के राज्य द्वारा अर्जन के लिए या किन्हीं ऐसे अधिकारों के निर्वापन या उनमें परिवर्तन के लिए, या

(ख) किसी संपत्ति का प्रबंध लोकहित में या उस संपत्ति का उचित प्रबंध सुनिश्चित या करने के उद्देश्य से परिसीमित अवधि के लिए राज्य द्वारा ले लिए जाने के लिए,

(ग) दो या अधिक निगमों को लोकहित में या उन निगमों में से किसी का  उचित प्रबंध सुनिश्चित करने के उद्देश्य से समामेलित करने के लिए, या

(घ) निगमों के प्रबंध अभिकर्ताओं, सचिवों और कोषाध्यक्षों, प्रबंध निदेशकों, निदेशकों या प्रबंधकों के किन्हीं अधिकारों या उनके शेयरधारकों के मत देने के किन्हीं अधिकारों के निर्वापन या उनमें परिवर्तन के लिए, या

(ङ) किसी खनिज या खनिज तेल की खोज करने या उसे प्राप्त करने के  प्रयोजन के लिए किसी करार, पट्टे या अनुज्ञप्ति के आधार पर प्रोद्धूत होने वाले किन्हीं अधिकारों के निर्वापन या उनमें परिवर्तन के लिए या किसी ऐसे करार, पट्टे या अनुज्ञप्ति को समय से पहले समाप्त करने या रद्द करने के लिए, उपबंध करने वाली विधि इस आधार पर शून्य नहीं समझी जाएगी कि वह 4[अनुच्छेद 14 या  अनुच्छेद 19] द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसे छीनती है या न्यून करती है।

परंतु जहां ऐसी विधि किसी राज्य के विधान -मंडल द्वारा बनाई गई विधि है वहां इस अनुच्छेद के उपबंध उस विधि को तब तक लागू नहीं होंगे जब तक ऐसी विधि को, जो राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखी गई है, उसकी अनुमति प्राप्त नहीं हो गई है :]

5[ परंतु यह और कि जहां किसी विधि में किसी संपदा के राज्य द्वारा अर्जन के लिए कोई उपबंध किया गया है और जहां उसमें समाविष्ट कोई भूमि किसी व्यक्ति की अपनी जोत में  है वहां राज्य के लिए ऐसी भूमि के ऐसे भाग को, जो किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन  उसको लागू अधिकतम सीमा के भीतर है, या उस पर निर्मित या उससे अनुलग्न किसी भवन या संरचना को अर्जित करना उस दशा के सिवाय विधिपूर्ण नहीं होगा जिस दशा में ऐसी भूमि, भवन या संरचना के अर्जन से संबंधित विधि उस दर से प्रतिकर के संदाय के लिए उपबंध करती है जो उसके बाजार-मूल्य से कम नहीं होगी |]

(2) इस अनुच्छेद में,-

6[(क) "संपदा" पद का किसी स्थानीय क्षेत्र के संबंध में वही अर्थ है जो उस पद का या उसके समतुल्य स्थानीय पद का उस क्षेत्र में प्रवृत्त भू-धृतियों से संबंधित विद्यमान विधि में है और इसके अंतर्गत-

(i) कोई जागीर, इनाम या मुआफी अथवा वैसा ही अन्य अनुदान और

7[तमिलनाडु] और केरल राज्यों में कॉई जन्मम् अधिकार भी होगा;

(ii) रैयतबाड़ी बंदोबस्त के अधीन धृत कोई भूमि भी होगी

(iii) कृषि के प्रयोजनों के लिए या उसके सहायक प्रयोजनों के लिए धृत  या पट्टे पर दी गई कोई भूमि भी होगी, जिसके अंतर्गत बंजर भूमि, वन भूमि,चरागाह या भूमि के कृषकों, कृषि श्रमिकों और ग्रामीण कारीगरों के अधिभोग  में भवनों और अन्य संरचनाओं के स्थल हैं ;]

(ख) "अधिकार पद के अंतर्गत, किसी संपदा के संबंध में, किसी स्वत्वधारी, उप-स्वत्वधारी, अवर स्वत्वधारी, भू-धृतिधारक, 8[रैयत, अवर रैयत] या अन्य मध्यवर्ती  में निहित कोई अधिकार और भू-राजस्व के संबंध में कोई अधिकार या विशेषाधिकार होंगे]

 

      1.संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम 1976 की धारा 3 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित ।

  1. संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 4 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतःस्थापित ।
  2. संविधान (चौथा संशोधन) अधिनियम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  3. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम 1978 की धारा 7 द्वारा ( 20-6-1979 से) "अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19 या अनुच्छेद 31" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  4. संविधान (सत्रहवां संशोधन) अधिनियम, 1964 की धारा 2 द्वारा ( 20-6-1964 से) अंतःस्थापित।
  5. संविधान (सत्रहवां संशोधन) अधिनियम, 1964 की धारा 2 द्वारा भूतलक्षी प्रभाव से उपखंड (क ) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. मद्रास राज्य (नाम परिवर्तन) अधिनियम, 1968 (1968 का 53) की धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) "मद्रास" के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

      ৪. संविधान (चौथा संशोधन) अधिनियम, 1955 की धारा 3 द्वारा ( भूतलक्षी प्रभाव से) अंतःस्थापित ।

 

1[ 131ख. कुछ अधिनियमों और विनियमों का विधिमान्यकरण-

अनुच्छेद 31क में अंतर्विष्ट उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, नवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट  अधिनियमों और विनियमों में से और उनके उपबंधों में से कोई इस आधार पर शून्य या कभी  शून्य हुआ नहीं समझा जाएगा कि वह अधिनियम, विनियम या उपबंध इस भाग के किन्हीं  उपबंधों द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसे छीनता है या न्यून करता है  और किसी न्यायालय या अधिकरण के किसी प्रतिकूल निर्णय, डिक्री या आदेश के होते भी, उक्त अधिनियमों और विनियमों में से प्रत्येक, उसे निरसित या संशोधित करने की किसी सक्षम  विधान-मंडल की शक्ति के अधीन रहते हुए, प्रवृत्त बना रहेगा|]

 

2[ 31ग. कुछ निदेशक तत्त्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्यावृत्ति-

अनुच्छेद 13 में किसी बात के होते हुए भी, कोई विधि, जो  3[ भाग 4 में अधिकथित सभी या किन्हीं तत्त्वों] को सुनिश्चित करने के लिए राज्य की नीति को प्रभावी करने वाली है, इस आधार पर शून्य  नहीं समझी जाएगी कि वह 4[ अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19] द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी  से असंगत है या उसे छीनती है या न्यून करती है 5[ और कोई विधि, जिसमें यह घोषणा है कि  वह ऐसी नीति को प्रभावी करने के लिए है, किसी न्यायालय में इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि वह ऐसी नीति को प्रभावी नहीं करती है]:

परंतु जहां ऐसी विधि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई जाती है वहां इस अनुच्छेद के उपबंध उस विधि को तब तक लागू नहीं होंगे जब तक ऐसी विधि को, जो राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखी गई है, उसकी अनुमति प्राप्त नहीं हो गई है।

631घ. [राष्ट्र विरोधी क्रियाकलाप के संबंध में विधियों की व्यावृत्ति ]-

संविधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1977 की धारा 2 द्वारा ( 13-4-1978 से) निरसित।

 

  1. संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 5 द्वारा (18-6-1951 से) अंतःस्थापित ।
  2. संविधान (पच्चीसवां संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 3 द्वारा (20-4-1972 से) अंतःस्थापित ।
  3. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 4 द्वारा (3-1-1977 से) "अनुच्छेद 39 के खंड (ख) या खंड (ग) में विनिर्दिष्ट सिद्धांतों" के स्थान पर प्रतिस्थापित । धारा 4 को उच्चतम न्यायालय द्वारा, मिनवा मिल्स लि0 और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य ए.आई.आर. 1980 एस0सी0 1789 में अविधिमान्य घोषित कर दिया गया ।
  4. संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 8 द्वारा (20-6-1979 से) "अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19 या अनुच्छेद 31" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  5. 5. उच्चतम न्यायालय ने, केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य ए.आई.आर. 1973, एस0सी0 1461 में तिरछे टाइप में दिए गए उपबंध को अविधिमान्य घोषित कर दिया है ।
  6. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम 1976 की धारा 5 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित ।