भारतीय संविधान का अनुच्छेद - 124

Posted on April 7th, 2022 | Create PDF File

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भाग- 5 अध्याय 4-संघ की न्यायपालिका

अनुच्छेद- 124.उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन-

(1) भारत का एक उच्चूतम न्यायालय होगा ज़ो भारत के मुख्य न्यायमूर्ति और, जब तक संसद विधि. द्वारा अधिक  संख्या विहित नहीं करती है तब तक, सात1 से अनधिक अन्य न्यायाधीशों से मिलकर  बनेगा।

(2) 2[अनुच्छेद 124क में निर्दिष्ट राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की सिफारिश पर], राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सेहित अधिपत्र द्वारा उच्चतम न्यायालय के  प्रत्येक न्यायाधीशु को नियुक्त करेगा और वृह न्यायाधीश तब तक पद धारण करेगा जब तक वह पैंसठ वर्ष की आये प्राप्त नहीं कर लेता है :

3*                               *                           *                         *                    *

4[परन्तु],

(क) कोई न्यायाधीश, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना' पद त्योंग संकेंगा ;

(ख) किसी न्यायाधीश को खंड (4) में उपबंधित रीति से उसके पद से हटाया जा सकेगी।

5[ (2क) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की आयु ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से अवधारित की जाएगी जिसका संसद् विधि द्वारा उपबंध करे ।]

(3) कोई व्यक्ति, उच्चतम न्यायालूय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए तभी अरहित होगा जब वह भारत का नागरिक है और-

(क) किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार  कम से कम पांच वर्ष तक न्यायाधीश रहा है ; या

(ख) किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार  कम से कम दस वर्ष तक अधिवक्ता रहा है ; या

(ग) राष्ट्रपति की राय में पारंगत विधिवेत्ता है।

स्पष्टीकरण 1- इस खंड में, "उच्च न्यायालय" से वह उच्च न्यायालय अभिप्रेत है जो भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में अधिकारिता का प्रयोग करता है, या इस संविधान  के प्रारंभ से पहले किसी भी समय प्रयोग करता था।

स्पष्टीकरण 2- इस खंड के प्रयोजन के लिए, किसी व्यक्ति के अधिवक्ता रहने की अवधि की संगणना करने में वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान किसी  व्यक्ति ने अधिवक्ता होने के पश्चात् ऐसा न्यायिक पद धारण किया है जो जिला  न्यायाधीश के पद से अवर नहीं है ।

(4) उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर ऐसे हटाए जाने के लिए  संसद् के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित  और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहमत द्वारा समर्थित समावेदन, राष्ट्रपति के समक्ष उसी सत्र में रखे जाने पर राष्ट्रपति ने आदेश नहीं दे दिया है।

(5) संसद् खंड (4) के अधीन किसी समावेदन के रखे जाने की तथा न्यायाधीश के कदाचार या असमर्थता के अन्वेषण और साबित करने की प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन  कर सकेगी।

(6) उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश होने के लिए नियुक्त प्रत्येक व्यक्ति, अपना पद ग्रहण करने के पहले राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष, तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्रूप के अनुसार, शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।

(7) कोई व्यक्ति, जिसने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पद धारण किया है, भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी न्यायालय में या किसी प्राधिकारी के समक्ष  अभिवचन या कार्य नहीं करेगा।

 

6[124क. राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग-

(1) राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग नामक एक आयोग होगा, जो निम्नलिखित से मिलकर बनेगा, अर्थात्  --

(क) भारत का मुख्य न्यायमूर्ति -- अध्यक्ष, पदेन ;

(ख) भारत के मुख्य न्यायमूर्ति से ठीक नीचे के उच्चतम न्यायालय के दो  अन्य ज्येष्ठ न्यायाधीश -- सदस्य, पदेन ;

(ग) संघ का विधि और न्याय का भारसाधक मंत्री

(घ) प्रधान मंत्री, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति और लोक सभा में विपक्ष के  नेता या जहां ऐसा कोई विपक्ष का नेता नहीं है वहां, लोक सभा में सबसे बड़े  एकल विपक्षी दल के नेता से मिलकर बनने वाली समिति द्वारा नामनिर्दिष्ट किए  जाने वाले दो विख्यात व्यक्ति -- सदस्य :

परंतु विख्यात व्यक्तियों में से एक विख्यात व्यक्ति, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक वर्ग के व्यक्तियों अथवा स्त्रियों में से नामैनैर्दिष्ट  किया जाएगा :

परंतु यह और कि विख्यात व्यक्ति तीन वर्ष की अवधि के लिए नामनिर्दिष्ट किया जाएगा और पुनःनामनिर्देशन का पात्र नहीं होगा।

(2) राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का कोई कार्य या कार्यवाहियां केवल इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएँगी या अविधिमान्य नहीं होंगी कि आयोग में कोई रिक्ति है या उसके गठन में कोई त्रुटि है।

 

124ख. आयोग के कृत्य--राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के निम्नलिखित कर्तव्य होंगे,--

(क) भारत के मुख्य न्यायमूर्ति, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायमूर्तियों तथा उच्च न्यायालयों के अन्य न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए व्यक्तियों की सिफारिश करना ;

(ख) उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायमूर्तियों और अन्य न्यायाधीशों का एक उच्च न्यायालय से किसी अन्य उँच्च न्यायालेय में स्थानांतरण करने की सिफारिश करना ; और

(ग) यह सुनिश्चित करना कि वह व्यक्ति, जिसकी सिफारिश की गई है, सक्षम और सत्यनिष्ठ हैं ।

124. विधि बनाने की संसद की शक्ति -

संसद्, विधि द्वारा, भारत के न्यायमुर्ति और उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों तथा उच्च न्यायालयों के मुँख्य न्यायमूर्तियों और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया विनियमित कर सकेगी तथा आयोग को विनियमों द्वारा उसके कृत्यों के निर्वहन, नियुक्ति के लिए व्यक्तियों के चयन की रीति और ऐसे अन्य विषयों के लिए, जो उसके द्वारा आवश्यक समझे जाएं, प्रक्रिया अधिकथित करने के लिए सशक्त कर सकेगी।]

 

  1. उच्चतम न्यायालय (न्यायाधीश संख्या) संशोधन अधिनियम, 2019 (2019 का 37) की धारा 2 के अनुसार (09-08- 2019 से) अब यह संख्या "तैंतीस" है ।
  2. संविधान (निन्यानवेवां संशोधन) अधिनियम, 2014 की धारा 2 द्वारा ( 13 4-2015 से) "उच्चतम न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श करने के पश्चात्, जिनसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए परामर्श करना आवश्यक समझे" शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित । यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ वाले मामले में उच्चतम न्यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदेश  द्वारा अभिखंडित कर दिया गया है।
  3. संविधान (निन्यानवेवां संशोधन) अधिनियम, 2014 की धारा 2 द्वारा ( 13-4-2015 से) पहले परन्तुक का लोप किया गया। यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ ए.आई. आर. 2016 एस. सी. 117 वाले मामले में उच्चतम न्यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदेश द्वारा अभिखंडित कर दिया गया है।  संशोधन के पूर्व यह निम्नानुसार था--

           "परन्तु मुख्य न्यायमूर्ति से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति की दशा में भारत के मुख्य न्यायमूर्ति से  सदैव परामर्श किया जाएगा :"।

  1. संविधान (निन्यानवेवां संशोधन) अधिनियम, 2014 की धारा 2 द्वारा ( 13-4-2015 से) "परन्तु यह और कि" शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित । यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकारईड एसोसिएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले में उच्चतम न्यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदेश द्वारा  अभिखंडित कर दिया गया है।
  2. संविधान (पन्द्रहवां संशोधन) अधिनियम 1963 की धारा 2 द्वारा ( 5-10-1963 से) अंतःस्थापित ।
  3. संविधान (निन्यानवेवां संशोधन) अधिनियम, 2014 की धारा 3 द्वारा (13-4-2015 से) अन्तःस्थापित । यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले में उच्चतम न्यायालय के तारीख 16 अक्तूबर, 2015 के आदेश द्वारा अभिखंडित कर दिया गया है।