कैलेंडरों की दुनिया-एक विवेचना

Posted on December 31st, 2018 | Create PDF File

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1 जनवरी अर्थात ग्रेगोरियन कैलेंडर का नववर्ष, नया संवंत, नया कैलेंडर। आइये जानते है इन कैलेंडरो के बारे मे।

 

कैलेंडर(पंचांग) एक प्रणाली है जो समय को व्यवस्थित करने के लिये प्रयोग की जाती है। कैलेंडर का प्रयोग सामाजिक, धार्मिक, वाणिज्यिक, प्रशासनिक या अन्य कार्यों के लिये किया जा सकता है। यह कार्य दिन, सप्ताह, मास, या वर्ष आदि समयावधियों को कुछ नाम देकर की जाती है। प्रत्येक दिन को जो नाम दिया जाता है वह “तिथि” कहलाती है। प्राय: मास और वर्ष किसी खगोलीय घटना से सम्बन्धित होते हैं (जैसे चन्द्रमा या सूर्य का चक्र से) किन्तु यह सभी कैलेण्डरों के लिये जरूरी नहीं है। अनेक सभ्यताओं और समाजों ने अपने प्रयोग के लिये कोई न कोई कैलेंडर निर्मित किये थे जो प्राय: किसी दूसरे कैलेंडर से व्युत्पन्न थे।

 

रोमन कैलेंडर

 

मान्यता है कि रोमन पंचांग की स्थापना राजा नूमा पोम्पिलियस-Numa Pompilius (716-673 ई. पू.) ने की थी। उसमें वर्ष में केवल दस महीने (300 दिन) होते थे। क्योंकि वर्ष के अंतिम काफी ठंढे दो महीनों में खास काम न हो पाने की वजह से संभवतः उन दिनों की गिनती नहीं की जाती थी।

 

45 ईसा पूर्व में जूलियन कैलेंडर अस्तित्व में आया और इसकी पहली जनवरी को नए साल का जश्न मनाया गया। तब से आज तक विश्व के ज्यादातर हिस्सों में हर साल 1 जनवरी को ही नए साल के पहले दिन के रूप में मनाया जाता है।

 

रोम का शासक बनने के तुरंत बाद ही जूलियस सीजर ने पहले से चले आ रहे रोमन कैलेंडर को सुधारने पर ध्यान दिया। ईसा पूर्व 7वीं सदी से चले आ रहे इस रोमन कैलेंडर में चंद्रमा के चक्र के अनुसार ही दिनों को निर्धारित करने की कोशिश की गई थी। मगर अक्सर बदलते मौसमों के साथ चंद्रमा का चक्र थोड़ा बदल जाता था और उसके हिसाब से ही दिनों को खिसकाना पड़ता था।

 

नया कैलेंडर डिजाइन करने में सीजर ने अलेक्जांड्रिया के प्रख्यात खगोलविद् सोसिजीन्स की मदद ली। उन्हीं की सलाह पर चंद्रमा के चक्र यानि लूनर साइकिल को छोड़ सूर्य के चक्र यानि सोलर साइकिल को कैलेंडर का आधार बनाया जाना तय हुआ। मिस्र के लोग पहले से ही सोलर साइकिल को मानते आ रहे थे। नए कैलेंडर में साल को 365 और चौथाई दिनों का माना गया। वर्ष 45 ईसा पूर्व में नए सुधारों को लागू करने के लिए सीजर को 67 दिन और जोड़ने पड़े। इस तरह 46वां ईसा पूर्व 1 जनवरी से शुरू हो पाया। हर चौथे साल में फरवरी में एक अतिरिक्त दिन जोड़े जाने का आदेश भी तभी लागू किया गया।

 

44वें ईसा पूर्व में सीजर की हत्या के बाद ऑगस्टस ने गद्दी संभाली। जनवरी यानि क्विंटिलिस से जुलाई या जूलियस तक के महीनों के नाम सीजर ने खुद रखे। उसके मरने के बाद अगस्त महीने का नाम जो पहले सेक्सटिलिस था, उसे ऑगस्टस ने अपने नाम पर बदल दिया। 1 जनवरी को नए साल का जश्न मनाने का सिलसिला सदियों तक जारी रहा लेकिन मध्य काल में इसमें थोड़ा विराम लगा। साल के दिनों की पूरी तरह सटीक गणना ना होने के कारण 15वीं सदी के मध्य तक आते आते साल में 10 दिनों का अंतर आ गया। रोमन चर्च ने फिर से इसमें हस्तक्षेप किया और 1570 में पोप ग्रेगोरी 13वें ने खगोलविद् क्रिस्टोफर क्लावियस की मदद से नया कैलेंडर तैयार किया।

 

ग्रेगोरियन कैलेंडर

 

वर्तमान समय में सबसे अधिक उपयोग में आने वाला कैलेंडर ग्रेगोरियन है। इस कैलेंडर की शुरुआत पोप ग्रेगोरी तेरहवें नें सन 1582 में की थी। इस कैलेंडर में प्रत्येक 4 वर्षों के बाद एक लीप वर्ष होता है जिसमें फरवरी माह 29 दिन का हो जाता है। आरंभ में कुछ गैर कैथोलिक देश जैसे ब्रिटेन नें ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपनाने से इंकार कर दिया था। ब्रिटेन में पहले जूलियन कैलेंडर का प्रयोग होता था जो कि सौर वर्ष के आधार पर चलता था। इस कैलेंडर के मुताबिक एक वर्ष 3‍65.25 दिनों का होता था(जबकि असल में यह 3‍65.24219 दिनों का होता है) अत: यह कैलेंडर मौसमों के साथ कदम नही मिला पाया। इस समस्या को हल करने के लिए सन 1752 में ब्रिटेन नें ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपना लिया। इसका नतीजा यह हुआ कि 3 सितम्बर 14 सितम्बर में बदल गया। इसीलिए कहा जाता है कि ब्रिटेन के इतिहास में 3 सितंबर 1752 से 13 सितंबर 1752 तक कुछ भी घटित नही हुआ। इससे कुछ लोगों को भ्रम हुआ कि इससे उनका जीवनकाल 11 दिन कम हो गया और वे अपने जीवन के 11 दिन वापिस देने की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए।

 

आजकल अधिकतर देश ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपना चुके हैं। किन्तु अब भी कई देश ऐसे हैं जो प्राचीन कैलेंडरों का उपयोग करते हैं। इतिहास में कई देशों नें कैलेंडर बदले। आइए उनके विषय में एक नजर देखें:

 

 

समय घटना
37‍61 ई.पू. यहूदी कैलेंडर का आरंभ
2‍637 ई.पू. मूल चीनी कैलेंडर आरंभ हुआ
56 ई.पू. विक्रम संवंत आरंभ
45 ई.पू. रोमन साम्राज्य के द्वारा जूलियन कैलेंडर अपनाया गया
0 इसाई कैलेंडर का आरंभ
79 हिन्दू शक संवंत आरंभ हुआ
597 ब्रिटेन में जूलियन कैलेंडर को अपनाया गया
‍622 इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत
1582 कैथोलिक देश ग्रेगोरियन कैलेंडर से परिचित हुए
1752 ब्रिटेन और उसके अमेरिका समेत सभी उपनिवेशो में ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया गया
1873 जापान नें ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया
1949 चीन नें ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया

 

माया कैलेंडर-

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जहां पर आज मैक्सिको का यूकाटन नामक स्थान है वहां किसी जमाने में माया सभ्यता के लोग रहा करते थे। माया सभ्यता के लोग ज्ञान विज्ञान गणित आदि के क्षेत्र में काफी अग्रणी थे। स्पेनी आक्रांताओं के आने के बाद उनकी सभ्यता और संस्कृति का धीरे धीरे क्षरण होने लगा । माया कैलेंडर में 20-20 दिनों के 18 महीने होते थे और 3‍65 दिन पूरा करने के लिए 5 दिन अतिरिक्त जोड़ दिए जाते थे। इन 5 दिनों को अशुभ माना जाता था।

 

माया कैलेंडर के महीने:

  1. Pop(पॉप),
  2. Uo(उओ),
  3. Zip(जिप),
  4. Zotz(जॉ्ट्ज),
  5. Tzec(टीजेक),
  6. Xul(जुल),
  7. Yaxkin(याक्सकिन),
  8. Mol(मोल),
  9. Chen(चेन),
  10. Yax(याक्स),
  11. Zac(जैक),
  12. Ceh(सेह),
  13. Mac(मैक),
  14. Kankin(कान किन),
  15. Muan(मुआन),
  16. Pax(पैक्स),
  17. Kayab(कयाब),
  18. Cumbu(कुम्बू)

 

हिब्रू (यहूदी) और इस्लामी कैलेंडर

 

हिब्रू और इस्लामी कैलेंडर दोनों ही चंद्रमा की गति पर आधारित हैं। नये चंद्रमा के दिन अथवा उसके दिखाई देने के दिन से नववर्ष आरंभ होता है। लेकिन मौसम की वजह से कभी कभी चंद्रमा दिखाई नही देता अत: छपे कैलेंडरों में नव वर्ष की शुरूआत के दिनों में थोड़ा अंतर हो सकता है।

 

क्र0 हिब्रू महीने दिन इस्लामी महीने
1 तिशरी 30 मुहर्रम
2 हेशवान 29 सफ़र
3 किस्लेव 30 रबिया 1
4 तेवेत 29 रबिया 2
5 शेवत 30 जुमादा 1
‍6 अदर 29 जुमादा 2
7 निसान 30 रजाब
8 अइयर 29 शबान
9 सिवान 30 रमादान
10 तम्मूज 29 शव्वल
11 अव 30 धु-अल-कायदा
12 एलुल 29 धु-अल-हिज्जाह

 

चीनी कैलेंडर

 

भारत की ही तरह चीन नें भी ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपना लिया है फिर भी वहां छुट्टियां, त्योहार और नववर्ष इत्यादि चीनी कैलेंडर के अनुसार ही मनाए जाते हैं।

 

भारतीय सौर कैलेंडर

 

भारतीय राष्ट्रीय पंचांग या ‘भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर’ भारत में उपयोग में आने वाला सरकारी सिविल कैलेंडर है। यह शक संवत पर आधारित है और ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ-साथ 22 मार्च 1957 से अपनाया गया। भारत मे यह भारत का राजपत्र, आकाशवाणी द्वारा प्रसारित समाचार और भारत सरकार द्वारा जारी संचार विज्ञप्तियों मे ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ प्रयोग किया जाता है।

 

चैत्र भारतीय राष्ट्रीय पंचांग का प्रथम माह होता है। राष्‍ट्रीय कैलेंडर की तिथियाँ ग्रेगोरियम कैलेंडर की तिथियों से स्‍थायी रूप से मिलती-जुलती हैं। सामान्‍यत: 1 चैत्र 22 मार्च को होता है और लीप वर्ष में 21 मार्च को।

 

आजादी के बाद महान वैज्ञानिक डॉ. मेघनाद साहा (Meghnad Saha), जिनके ज्ञान की विविधता भी अद्भूत थी, के देखरेख में एक नए संशोधित राष्ट्रीय पंचांग का निर्माण किया गया।

 

क्र0 माह दिन ग्रेगोरियन दिनांक
1 चैत्र 30 22 मार्च
2 वैशाख 31 21 अप्रैल
3 ज्येष्ठ 31 22 मई
4 आषाढ़ 31 22 जून
5 श्रावण 31 23 जुलाई
‍6 भ्राद्रपद 31 23 अगस्त
7 अश्विन 30 23 सितम्बर
8 कार्तिक 30 23 अक्टूबर
9 अग्रहायण(मार्गशीर्ष) 30 22 नवम्बर
10 पूस 30 22 दिसम्बर
11 माघ 30 21 जनवरी
12 फाल्गुन 30 20 फरवरी

 

 

अधिवर्ष में, चैत्र मे 31 दिन होते हैं और इसकी शुरुआत 21 मार्च को होती है। वर्ष की पहली छमाही के सभी महीने 31 दिन के होते है, जिसका कारण इस समय कांतिवृत्त में सूरज की धीमी गति है। महीनों के नाम पुराने, हिंदू चन्द्र-सौर पंचांग से लिए गये हैं इसलिए वर्तनी भिन्न रूपों में मौजूद है और कौन सी तिथि किस कैलेंडर से संबंधित है इसके बारे मे भ्रम बना रहता है। शक् युग, का पहला वर्ष सामान्य युग के 78 वें वर्ष से शुरु होता है, अधिवर्ष निर्धारित करने के शक् वर्ष मे 78 जोड़ दें- यदि ग्रेगोरियन कैलेंडर मे परिणाम एक अधिवर्ष है, तो शक् वर्ष भी एक अधिवर्ष ही होगा।

 

इस कैलेंडर को कैलेंडर सुधार समिति द्वारा 1957 में, भारतीय पंचांग और समुद्री पंचांग के भाग के रूप मे प्रस्तुत किया गया। इसमें अन्य खगोलीय आँकड़ों के साथ काल और सूत्र भी थे जिनके आधार पर हिंदू धार्मिक पंचांग तैयार किया जा सकता था, यह सारी कवायद इसको एक समरसता प्रदान करने की थी। इस प्रयास के बावजूद, पुराने स्रोतों पर आधारित स्थानीय रूपान्तर जैसे सूर्य सिद्धांत अभी भी मौजूद हैं।

 

इसका आधिकारिक उपयोग 1 चैत्र, 1879 शक् युग, या 22 मार्च 1957 में शुरू किया था। हालांकि, सरकारी अधिकारियों इस कैलेंडर के नये साल के बजाय धार्मिक कैलेंडरों के नये साल को तरजीह देते प्रतीत होते हैं।

 

भारतीय चंद्र आधारित कैलेंडर

 

चंद्रमा की कला की घट-बढ़ वाले दो पक्षों (कृष्‍ण और शुक्ल) का जो एक माह होता है वही चंद्रमाह कहलाता है। यह दो प्रकार का शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होकर अमावस्या को पूर्ण होने वाला ‘अमांत’ माह मुख्‍य चंद्रमाह है। कृष्‍ण प्रतिपदा से ‘पूर्णिमात’ पूरा होने वाला गौण चंद्रमाह है। यह तिथि की घट-बढ़ के अनुसार 29, 30 व 28 एवं 27 दिनों का भी होता है।

 

पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। सौर-वर्ष से 11 दिन 3 घटी 48 पल छोटा है चंद्र-वर्ष इसीलिए हर 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है।

 

सौरमाह 365 दिन का और चंद्रमाह 355 दिन का होने से प्रतिवर्ष 10 दिन का अंतर आ जाता है। इन दस दिनों को चंद्रमाह ही माना जाता है। फिर भी ऐसे बड़े हुए दिनों को ‘मलमाह’ या ‘अधिमाह’ कहते हैं।

 

चंद्रमाह के नाम : चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन।

 

भारत में भी सौर वर्ष और चन्द्र वर्ष में सामंजन के प्रयास किये जाते रहे जिसमें समय के साथ अन्य सभ्यताओं के परस्पर ज्ञान का भी काफी प्रभाव पड़ा। मगर विविधता और उसमें भी पारंपरिकता के प्रति विशेष आग्रह ने हमें इस दिशा में कोई क्रन्तिकारी कदम उठाने नहीं दिए। विक्रम संवत और शक संवत पंचांगों के माध्यम से हालाँकि प्रभावशाली प्रयास हुए। मगर वैश्विक प्रगति और खगोलीय गणनाओं को देखते हुए ये समुचित नहीं है।

 

डॉ साहा ने अपने आलेखों के माध्यम से पूरे विश्व में प्रचलित कैलेंडरों की त्रुटियों की ओर ध्यानाकर्षण करते हुए एक ‘विश्व पंचांग’ (World Calendar) की आवश्यकता जताई। संभवतः पारंपरिकता और धार्मिक आदि कई अन्य आग्रहों के कारण यह प्रस्तावना हकीकत का स्वरुप नहीं ले पाई मगर प्रयास अब भी जारी हैं, और आशा है कि एक साझा वैश्विक कैलेण्डर एक-न-एक दिन जरुर अस्तित्व में आएगा। आखिर सूर्य-चंदमा, नक्षत्र आदि हमारे साझे हैं तो उनकी गणना में अंतर क्यों?