शाहजहाँ का शासनकाल -एक स्वर्ण युग या सतही अवधारणा (Reign Of Shahjahan : A Golden Era or Superficious Concept)

Posted on September 13th, 2018 | Create PDF File

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राजनैतिक क्षेत्र मे शाहजहां का शासनकाल उसके प्रशंसकों के अनुसार सुख एवं शांति का काल था। केवल दो विद्रोह इस अवधि में हुए जिनके नेता क्रमशः खानेजहां लोदी तथा झुझार सिंह बुंदेला थे। दोनों विद्रोह दबा दिए गये और प्रजा को शासक के प्रति किसी प्रकार की शिकायत नहीं रही। साम्राज्य का विस्तार भी संभव हुआ। दकन में अहमदनगर मुगल साम्राज्य में मिल गया तथा बीजापुर और गोलकुंडा ने भी मुगलों की आधीनता स्वीकार कर ली। उत्तर -पश्चिम सीमांत में कंधार का खोया हुआ प्रांत कुछ समय के लिए पुनः जीता गया तथा पहली बार मध्य एशिया तक मुगलों ने सैनिक अभियान किये। इससे साम्राज्य की शक्ति एवं सुदृढ़ता का बोध होता है। 

 

आर्थिक क्षेत्र में यह काल अत्यधिक समृध्दि का काल रहा। कृषि में उन्नति तथा लगान में वृध्दि से राज्य की आमदनी बढ़ी। समुन्नत विदेश व्यापार से सोने एवं एवं चांदी का बाहुल्य साम्राज्य में हुआ और इसका प्रयोग साम्राज्य के गौरव में वृध्दि के लिए किया गया। अनेक विशाल एवं सुन्दर भवनों का निर्माण हुआजिनसे विदेशी यात्री बर्निये, पीटर मुंडी आदि अत्यधिक प्रभावित हुए। मुगल साम्राज्य के वैभव की इन यात्रियों ने अत्यधिक प्रशंसा की है। कुछ अंशों में उन्ही के विवरण शाहजहां के शासनकाल को स्वर्णयुग के रूप में प्रस्तुत करने में सहायक रहे हैं।

 

साजिक जीवन के क्षेत्र में यह समय विशेष तनाव या संकट से मुक्त था। शाहजहां नें जनकल्याण के उपाय भी किए और प्रजा से उसका व्यवहार पैतृक स्नेह का द्योतक है। सास्कृतिक जीवन की दृष्टि से भी यह काल उल्लेखनीय है। शाहजहां का दरबार साहित्यकारों एवं कलाकारों का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। अब्दुल हमीद लाहौरी तथा सुजान राय इस काल के प्रसिध्द इतिहासकार थे। भारतीय भाषाओं का विकास भी हुआ। हिंदी के कई प्रसिध्द कवि शाहजहां के दरबार से संबंधित थे। संगीतकारों में सुखसेन व लालसेन उसके दरबार में प्रमुख थे। चित्रकला तथा अन्य ललित कलाओं का भी इस समय में पर्याप्त विकास हुआ। मुगल स्थापत्य कला अपने काल के चरम पर पहुंची। शाहजहां के समय में जितने अधिक और सुंदर भवनों का निर्माण किया गया वह पहले या बाद में कभी संभव नही हुआ। आगरा स्थित ताजमहल एवं लालकिला का कुछ भाग, दिल्ली स्थित लाल किला, जामा मस्जिद, आगरा स्थित मोती मस्जिद, मुसम्मन बुर्ज तथा कश्मीर स्थित निशात बाग एवं चश्मा-ए-शाही आदि इस काल के स्तापत्य के उत्कृष्ट एदाहरण हैं। संगमरमर के उपयोग, सुंदर बेलबूटे एवं रत्नजड़ित सजावट आदि इस काल के स्थापत्य की शोभा और अलंकार की विशेषताऐं हैं। अतः उपरोक्त तथ्यों के आधार पर शाहजहां का शासनकाल स्वर्णयुग प्रतीत होता है।

 

शाहजहां के आलोचक इन तथ्यों के सवीकार नहीं करते। उनके अनुसार जिस शासनकाल का आरंभ तथा अंत दोनों ही उत्तराधिकार के संघर्ष से हुआ हो, उसे सुख एवं शांति का काल मानना निरर्थक है। इतना ही नहीं, शाहजहां पहला मुगल शासक है जो जीवन में ही गद्दी से वंचित करके कैदी बना लिया गया। अतः यह काल राजनैतिक उपद्रवों का काल है जो आगे चलकर मुगल साम्राज्य के लिए घातक सिध्द हुआ। विशेषकर 1657 के उत्तराधिकार के संघर्ष ने मुगल साम्राज्य की राजनैतिक, सैनिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था को गंभीर क्षति पहुंचाई। 

 

विदेश नीति में शाहजहां की सफलता संदिग्ध है। दकन में अहमदनगर की विजय एवं बीजापुर तथा गोलकुंड़ा की संधि, अकबर एवं जहांगीर की सीमित विस्तार की नीति के विपरीत थी। इससे दकन में नई समस्याओं ने जन्म लिय़ा जिनका भाषण रूप औरंगजेब के समय में प्रकट हुआ।  उत्तर-पश्चिम में कंधार की विजयअल्पकालीन सिध्द हुई और मध्य एशिया में मुगलों द्वारा सैनिक अभियान में जो सैनिक एवं आर्थिक क्षति हुई उसके अनुपात में कोई प्रत्य क्ष लाभ मुगलों को प्राप्त नही हुआ। 

 

इस काल में कई बार अकाल पड़े और फसलें नष्ट हुईं। राज्य की आय में वृध्दि भी किसानों पर कर के बोझ को बढ़ाने से ही संभव हुई। विदेस व्यापार से प्राप्त धन का अपव्यय व्यर्थ सैनिक अभियानों और भवन निर्माम पर हुआ। जागीरों के प्रबंधन में संकट की स्थिति उत्पन्न हुई। शाहजहां की आर्थिक नीति इतनी दोषपूर्ण थी कि उसके संपन्न राज्य के उत्तराधिकारी औरंगजेब को  आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा।

 

सामाजिक जीवन के क्षेत्र में भी शासनकाल में अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति का परित्याग आरंभ हो चुका था। मंदिरों को तोड़ने की घटनाऐं इस काल में मिलती हैं। धार्मिक संकीर्णता की यह नीति औरंगजेब के समय में पूर्ण रूप से सामने आई और साम्राज्य में समस्याओं का कारण भी बनी।

 

सांस्कृतिक क्षेत्र में भी शाहजहां के समय की साहित्यिक रचनाऐंअकबर के समय की रचनाओं से संख्या एवं गुणवत्ता दोनों में ही कम पड़ती हैं। इसी प्रकार संगीत के क्षेत्र में शाहजहां के दरबार में तानसेन की प्रतिभा वाला कोई व्यक्ति नहीं मिलता है। हिंदी भाषा में भी अकबर के समकालीन संत तुलसीदास या रहीम जैसा कोई व्यक्तित्व शाहजहां के शासनकाल  में नही मिलता। इसी प्रकार चित्रकला के क्षेत्र में जहांगीर का शासनकाल चरमोत्कर्ष का समय था जो शाहजहां के शासनकाल की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण है।

 

शाहजहां के शासनकाल का वास्तविक महत्त्व स्थापत्य कला के क्षेत्र में है और ताजमहल सभी मुगल भवनों की तुलना में अद्वितीय है। इसी प्रकार ललितकला के क्षेत्र में शाहजहां के शासनकाल की श्रेष्ठता का प्रमाण रत्नजटित मयूर सिंहासन है। उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि शासक के रूप में शाहजहां कोई असामान्य प्रतिभा रखने वाला व्यक्ति नही था। अतः शाहजहां का शासनकाल केवल मुगल स्थापत्य कला का स्वर्ण-युग माना जा सकता है, मुगल इतिहास का स्वर्ण युग नहीं।