जब गैलीलियो को पृथक-वास में जाना पड़ा!
( When Galileo had to go in isolation!)

Posted on June 7th, 2020 | Create PDF File

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खगोल विज्ञानी और भौतिक शास्त्री गैलीलियो गैलिली को 1630 के दशक के दौरान मुश्किल वक्त का सामना करना पड़ा- उनकी सेहत ठीक नहीं थी, एक विवादास्पद किताब के लिये उन्हें नजरबंद रखा गया और मुकदमे का सामना करना पड़ा तो वहीं उस वक्त प्लेग फैलने की वजह से उन्हें लगभग एक महीने तक पृथकवास में रहना पड़ा। उनके बारे में हाल में प्रकाशित एक किताब में इन घटनाओं का जिक्र किया गया है।

खगोल-भौतिक शास्त्री मारियो लीवियो ने गैलीलियो के ऐतिहासिक जीवन-वृतांत पर “गैलीलियो एंड द साइंस डिनायर्स” शीर्षक से एक किताब लिखी है जो उस व्यक्ति के जीवन की झलकियां दिखाती हैं तो “बौद्धिक रूप से कट्टर था और अपने समय के हिसाब से काफी आगे।”

 

वैज्ञानिक के तौर पर गैलीलियो का सफर 1583 में तब शुरू हुआ जब उन्हें मेडिकल स्कूल से बाहर निकाला गया और उन्होंने गणित पढ़ना शुरू किया। 1590 तक, उन्होंने गति को लेकर अरस्तू के सिद्धांतों की आलोचना शुरू कर दी। अरस्तू का कहना था कि वस्तुएं अंतर्निर्मित संवेग की वजह से चलती हैं।

 

करीब 13 साल बाद समतल और दोलकों की मदद से खुद किये गए कई प्रयोगों के बाद उन्होंने पहले “गति के नियम” का सूत्र दिया हालांकि वह 1638 तक उन्हें प्रकाशित नहीं करवा पाए।

 

गैलीलियो के कई साहसी बयानों ने उन्हें कैथोलिक चर्च के साथ टकराव की राह पर ला खड़ा किया और उन्हें 22 जून 1633 को विधर्म का संदेश देने का दोषी ठहराया गया।

 

कुछ रुढ़ीवादी चर्चों के संदेशों के प्रति व्यक्तिगत असहमति के बावजूद 16 मई 1630 को पोप अर्बन अष्टम द्वारा रोम में सम्मानित अतिथि के तौर पर मेजबानी की गयी और वह यह मानकर रोम से रवाना होते हैं कि पोप ने उनकी किताब “डायलॉग ऑन द टू चीफ वर्ल्ड सिस्टम्स” के प्रकाशन की मंजूरी दे दी है और ऐसा करने के लिये उन्हें कुछ मामूली सुधार और शीर्षक में बदलाव करना होगा।

 

लीवियो ने कहा कि पोप के साथ अपनी दोस्ती की ताकत को जरूरत से ज्यादा आंकने और सुधारवाद के बाद के दौर में पोप की कमजोर मनोवैज्ञानिक व राजनीतिक स्थिति को कमतर आंकने वाले गैलीलियो यही मानते रहे कि स्थिति ऐसी बनी रहेगी।

 

लीवियो ने लिखा कि बाद में उनकी किताब ‘डायलोगो’ को वेटिकन की प्रतिबंधित पुस्तकों की श्रेणी में रख दिया गया और यह 1835 तक जारी रहा।

 

उन्होंने कहा कि कोई रास्ता न बचता देख अपनी गिरती सेहत के बावजूद गैलीलियो 20 जनवरी 1633 को रोम के लिये रवाना हुए लेकिन प्लेग के बढ़ते प्रकोप के कारण उन्हें तस्कनी पार करने से पहले खुद पृथक-वास में रहना पड़ा।

 

वह किसी तरह 12 फरवरी को रोम पहुंच पाए।

 

वहां चर्च के अधिकारियों ने उनसे लोगों से ज्यादा न मिलने-जुलने को कहा। इसके बाद उन्हें मुकदमे का सामना करना पड़ा और 1642 में उनका निधन हो गया।