आधिकारिक बुलेटिन -1 (4-Aug-2019)
शिक्षा मात्र रोजगार का साधन नहीं। शिक्षा मनुष्य को सभ्य, परिष्कृत, सुसंस्कृत और कुशल बनाती है - उपराष्ट्रपति
(Education is not merely a means of employment. Education makes man civilized, sophisticated, cultured and skilled - Vice President)

Posted on August 4th, 2019 | Create PDF File

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उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने आज कहा कि “शिक्षा मात्र रोजगार का साधन नहीं है।” उन्होंने कहा कि शिक्षा मनुष्य को सभ्य, परिष्कृत, और कुशल बनाती है तथा उसे समाज, समुदाय और देश के प्रति कर्तव्यनिष्ठ और उत्तरदायी बनाती है। उपराष्ट्रपति ने छात्रों से कहा कि “एक समुदाय, समाज और राष्ट्र के नागरिक के रुप में सामाजिक और राष्ट्रीय हितों के प्रति आपकी प्रतिबद्धता आवश्यक है - साथी नागरिकों, अपने सामाजिक परिवेश, अपने प्राकृतिक पर्यावरण के प्रति आपकी निष्ठा जरुरी है।”

 

उपराष्ट्रपति पटना हाई स्कूल के शताब्दी वर्ष समारोह के अवसर पर छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर श्री नायडु ने छात्रों से कहा कि “सच्ची शिक्षा अज्ञानता, रुढ़ियों और अंधविश्वास से मुक्त करती है। आवश्यक है कि हम अपने संस्कारों, परंपराओं के प्रति निष्ठावान तो रहें लेकिन उन्हें रुढ़ि न बनायें और उन्हें सामयिक दृष्टि से प्रासंगिक बनायें।”

 

श्री नायडु ने मातृ भाषा के उपयोग पर बल देते हुए कहा कि “शिक्षा में रुचि बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि प्रारंभिक शिक्षा मातृ भाषा में दी जाय।” भारतीय भाषाओं को सीखने का आग्रह करते हुए उन्होंने कहा कि “मातृभाषा में हम अपने सच्चे भाव आसानी से व्यक्त कर सकते हैं। हमारे संस्कार एक हैं, हमारे भाव एक हैं। अत: किसी भी भारतीय भाषा को सीखना समझना हमारे लिए सरल है। मैं आग्रह करूंगा कि आज के इस युग में जब किसी भी भाषा को इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री द्वारा सीखा जा सकता है - आप भी भारतीय भाषाओं को सीखने का प्रयास करें। इससे हमारी भाषाई, भावनात्मक और सांस्कृतिक एकता और दृढ़ होगी।”

 

उपराष्ट्रपति ने छात्रों को चौथी औद्योगिक क्रांति की नयी तकनीकों में तैयार रहने का आह्वाहन करते हुए कहा “आज हम नयी और तेजी से बदलती संभावनाओं के युग में जी रहे हैं। हमें स्वयं को चौथी औद्योगिक क्रांति के लिए तैयार रखना है। आने वाले युग में आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस, मशीन लर्निंग, ई- कामर्स, 3डी प्रिटिंग जैसी तकनीकें अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन लायेगी। उन्होंने कहा कि “देश का सौभाग्य है कि आगामी लगभग चार दशकों तक हमारी जनसंख्या का अधिकांश भाग युवा होंगे। हम इस Demographic Dividend का लाभ तभी उठा सकते हैं - जब हमारे युवा चौथी औद्योगिक क्रांति के लिए प्रशिक्षित हों।”

 

युवाओं में उद्यमिता और स्वरोजगार प्रोत्साहित करने के संदर्भ में श्री नायडु ने शिक्षकों और अभिभावकों से आग्रह किया कि “छात्रों को इनोवेशन और स्व उद्यम के लिए प्रेरित करें – हमारी नयी पीढ़ी के विद्यार्थी रोजगार खोजने वाले नहीं बल्कि रोजगार देने वाले बनें। नव उद्यमियों को समाज में आदर दें, उद्यमिता के लिए सामाजिक परिवेश बनायें।”

 

उपराष्ट्रपति ने कहा कि जरुरी है कि विद्यार्थियों में सामुदायिक सरोकारों के प्रति चेतना जताई जाय। उनमें स्वेच्छा से सामुदायिक कल्याण के कार्य करने का संस्कार उत्पन्न हो। “मेरा सदैव मानना रहा है कि विद्यार्थियों को एनसीसी, एनएसएस जैसी स्वयंसेवी संगठनों से जुड़ना चाहिए।”

 

इस अवसर पर अनेक मंत्री, उच्च अधिकारी और अतिथि उपस्थित थे।

 

Following is the text of Vice President's address:-

 

"पटना हाई स्कूल के इस शताब्दी वर्ष के अवसर पर आपके बीच आकर, आपकी प्रसन्नता में शामिल होकर संतोष और हर्ष का अनुभव कर रहा हूं। देश के उपराष्ट्रपति का पदभार संभालने के बाद भी मैंने युवा विद्यार्थियों के साथ अपने आत्मीय संपर्क को हर संभव बनाये रखा है। इन अवसरों से मुझे आपकी अपेक्षाओं, आपकी आकांक्षाओं को जानने का मौका मिलता है। साथ ही मैं भावी पीढ़ी से, उनके गुरुजनों और अभिभावकों से अपनी आशाऐं साझा कर पाता हूं।

 

1919 में बिहार की नयी राजधानी पटना के सरकारी कर्मचारियों के बच्चों के लिए बने इस स्कूल की गौरवशाली परंपरा रही है। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान, तिरंगे झंड़े के सम्मान के लिए इस विद्यालय के छात्र स्वर्गीय राजेन्द्र प्रसाद सिंह ने प्राणों की आहुति दी थी - आपका विद्यालय धन्य है कि इस विद्यालय का नाम उस अमर शहीद की स्मृति में रखा गया।

 

मुझे ज्ञात हुआ है कि स्वाधीनता के बाद के वर्षों में भी विद्यालय के पूर्व छात्रों ने राष्ट्रीय जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में ख्याति प्राप्त की है। हमारे सदन के सदस्य श्री आर.के. सिन्हा भी इस विद्यालय के छात्र रहे हैं। उनकी उपलब्धियों पर गर्व करने का आपको अधिकार है परंतु यह आपका उत्तरदायित्व भी है कि उत्कृष्टता की इस परंपरा को आप और समृद्ध करें - अपनी उपलब्धियों से अपने विद्यालय की ख्याति को बढ़ायें।

 

मित्रों,

 

सदियों तक भारत विश्व गुरु रहा है। इस मगध के नालंदा, दर्शन विक्रमशिला विश्वविद्यालयों में सुदूर देशों से विद्वान पढ़ने-पढ़ाने आते थे। आध्यात्म, खगोलशास्त्र, आयुर्वेद, स्थापत्य, खनिज विज्ञान या साहित्य, ज्ञान के हर क्षेत्र में भारत के मेधावी मनीषियों ने मानवता का नेतृत्व किया – “सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया” - यही हमारा जीवन दर्शन है।

 

“वसुधैव कुटंबकम्” हमारा विश्व दर्शन है। जिस पर चल कर हमने अपना ज्ञान सहर्ष अखिल मानवता के कल्याण के लिए समर्पित किया। हम बुद्धि को संपदा नहीं मानते - हमारा मानना है कि ज्ञान बांटने से बढ़ता है।

 

मित्रों,

 

भारत और विशेषकर मगध जिसमें गौतमबुद्ध, भगवान महावीर, गुरु गोविन्द सिंह जैसे आध्यात्मिक विभूतियों ने जन्म लिया - यहां की ज्ञान परपंरा को आप समृद्ध करेंगे। शिक्षा मात्र रोजगार का साधन नहीं है - महात्मा गांधी ने ऐसी शिक्षा जो चरित्र निर्माण न करे, उसे एक सामाजिक गुनाह माना। शिक्षा नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों से मानव चरित्र का निर्माण करती है। शिक्षा मनुष्य को समाज, समुदाय और देश के प्रति कर्तव्यनिष्ठ और उत्तरदायी बनाती है। शिक्षा ज्ञान और विवेक के माध्यम से व्यक्ति का सशक्तिकरण करती है।

 

मित्रों,

 

एक समुदाय, समाज और राष्ट्र के नागरिक के रुप में सामाजिक और राष्ट्रीय हितों के प्रति आपकी प्रतिबद्धता आवश्यक है - साथी नागरिकों, अपने सामाजिक परिवेश, अपने प्राकृतिक पर्यावरण के प्रति आपकी निष्ठा जरुरी है।

 

इस प्रतिष्ठित विद्यालय के विद्यार्थी के रुप में आपसे अपेक्षित है कि आप हमारी प्राचीन संस्कृति, संस्कारों, परंपराओं और ऐतिहासिक विरासत के प्रति निष्ठावान रहेंगे, उन्हें समृद्ध करेंगे।

 

सच्ची शिक्षा अज्ञानता, रुढ़ियों और अंधविश्वास से मुक्त करती है। आदि शंकराचार्य ने कहा भी है “ज्ञानादेव तु कैवल्यम्” अर्थात ज्ञान से ही कैवल्य या मुक्ति प्राप्त होती है, “या विद्या सा विमुक्तये” जो पूर्वाग्रहों, रुढ़ियों से मुक्ति प्रदान करे वही विद्या है। अत:, आवश्यक है कि हम अपने संस्कारों, परंपराओं के प्रति निष्ठावान रहें लेकिन उन्हें रुढ़ि न बनायें और उन्हें सामयिक दृष्टि से प्रासंगिक बनायें। शिक्षा मनुष्य को सभ्य, परिष्कृत, सुसंस्कृत और कुशल बनाती है।

 

मित्रों,

 

मुझे अपेक्षा है कि हमारी आज की पीढ़ी हमारी प्राचीन ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित करेगी। मैं, आपके स्वप्नों में, आपके संकल्पबद्व पुरुषार्थ में, नये भारत को पुन: विश्व गुरु बनते देखता हूं। अगर हम पुन: विश्व गुरु का रुतबा हासिल करना चाहते हैं तो सर्वप्रथम हमें अपनी शिक्षा गुणवत्ता को सामयिक आवश्यकताओं के अनुरूप ढ़ालना होगा, उसे समाज की जरुरतों से जोड़ना होगा उसे सर्वस्पर्शी, समावेशी बनाना होगा।

 

इस संदर्भ में सरकार द्वारा नयी शिक्षा नीति का जो प्रारूप तैयार किया गया है उसका उद्देश्य भी यही है “The National Education Policy 2019 envisions an India-centred education system that contributes directly to transforming our nation sustainably into an equitable and vibrant knowledge society, by providing high quality education to all.”

 

मुझे हर्ष है कि इस शिक्षा नीति में शिक्षा भाषा और गणित शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया है। जिस प्रदेश में श्री आनंद कुमार जैसे शिक्षक हों जिन्होंने प्रतिष्ठित आईआईटी के द्वार दुर्बल वर्ग के मेधावी छात्रों के लिए खोल दिये - गणित शिक्षा पद्धति पर उनका परामर्श उपयोगी होगा। स्कूल स्तर पर शिल्प, पारंपरिक शिल्प प्रशिक्षण, व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को विकसित करने पर जोर दिया गया है।

 

शिक्षा में रुचि बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में दी जाय। नई शिक्षा नीति में पुस्तकों को स्थानीय/मातृ भाषा में उपलब्ध कराने की बात कही गई है। यह एक सराहनीय पहल है। मेरा सदैव से मत रहा है कि भाषा, भाव की वाहक है। मातृभाषा में हम अपने सच्चे भाव आसानी से व्यक्त कर सकते हैं। मेरा मानना है कि हमारा सांस्कृतिक परिवेश एक है। हमारे संस्कार एक हैं, हमारे भाव एक हैं। अत: किसी भी भारतीय भाषा को सीखना समझना हमारे लिए सरल है। मैं आग्रह करूंगा कि आज के इस युग में जब किसी भी भाषा को इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री द्वारा सीखा जा सकता है - आप भी भारतीय भाषाओं को सीखने का प्रयास करें। उनके साहित्य का हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया जाना चाहिए। इससे भारतीय भाषाओं के बीच संवाद बढ़ेगा। इससे हमारी भाषाई, भावनात्मक और सांस्कृतिक एकता और दृढ़ होगी।

 

मैं विद्यालय के शिक्षकों और छात्रों के अभिभावकों से आग्रह करूंगा कि वे नयी शिक्षा नीति को पढ़कर, अपनी सलाह दें कि किस प्रकार इन उद्देश्यों को पूरा किया जा सकता है। आपका व्यावहारिक परामर्श सरकार का मार्गदर्शन करेगा।

 

मित्रों,

 

आज हम नयी और तेजी से बदलती संभावनाओं के युग में जी रहे हैं। हमें स्वयं को चौथी औद्योगिक क्रांति के लिए तैयार रखना है। आने वाले युग में आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस, मशीन लर्निंग, ई- कामर्स, 3डी प्रिटिंग जैसी तकनीकें अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन लायेगी, कोई भी अर्थव्यवस्था, कोई भी क्षेत्र, इस परिवर्तन से अलग नहीं रहेगा। अर्थव्यवस्था कहीं अधिक सक्षम होगी - देश का सौभाग्य है कि आगामी लगभग चार दशकों तक हमारी जनसंख्या का अधिकांश भाग युवा होंगे। हम इस Demographic Dividend का लाभ तभी उठा सकते हैं - जब हमारे युवा चौथी औद्योगिक क्रांति के लिए प्रशिक्षित हों।

 

मैं छात्रों और अभिभावकों से आग्रह करूंगा कि वे भविष्य की इन तकनीकों के विषय में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करें। इतिहास की हर औद्योगिक क्रांति की भांति ही, चौथी औद्योगिक क्रांति सामाजिक disruption पैदा करेगी जो इन तकनीकों में सक्षम होंगे वही चौथी औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व करेंगे। मैं अपेक्षा करता हूं कि सुशिक्षित, युवाओं के साथ, हमारा देश चौथी औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व करेगा।

 

गुरुजनों और अभिभावकों से आग्रह करूंगा कि छात्रों को इनोवेशन और स्व उद्यम के लिए प्रेरित करें – हमारी नयी पीढ़ी के विद्यार्थी रोजगार खोजने वाले नहीं बल्कि रोजगार देने वाले बनें। नव उद्यमियों को समाज में आदर दें, उन्हें प्रोत्साहित करे उद्यमिता के लिए सामाजिक परिवेश बनायें। विद्यार्थियों को इस दिशा में सरकारी योजनाओं और नीतियों से परिचित कराऐं।

 

मित्रों,

 

नयी शिक्षा नीति में शिक्षा को सामाजिक सरोकारों से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है। हमारी शिक्षा समाज के लिए प्रासंगिक होनी चाहिए। स्कूल सामुदायिक संपदा हैं, वे समाज की चेतना के केन्द्र हैं। हमारी शिक्षा को सामाजिक रूप से प्रासंगिक बनाने के लिए जरुरी है कि विद्यार्थियों में सामुदायिक सरोकारों के प्रति चेतना जताई जाय। उनमें स्वेच्छा से सामुदायिक कल्याण के कार्य करने का संस्कार उत्पन्न हो। मेरा सदैव मानना रहा है कि विद्यार्थियों को एनसीसी, एनएसएस जैसी स्वयंसेवी संगठनों से जुड़ना चाहिए। छात्रों को पड़ोस के समुदायों या आसपास के गांवों में स्वेच्छा से सामुदायिक कार्य करना चाहिए - बाढ़ जैसी आपदा की स्थिति में आपदा राहत दल और स्थानीय प्रशासन का भरसक सहयोग करना चाहिए।

 

देश और प्रदेश की जनसंख्या का बड़ा भाग गांवों में रहता है। अपेक्षा करता हूं कि आप सभी जागरूक छात्र ग्रामीण जीवन कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के मुद्दों को समझें और एक सकारात्मक समाधान पर विचार करें। कृषि तथा ग्रामीण उद्योगों में नवाचार या इनोवेशन की बहुत संभावनाऐं हैं। मैं आशा करूंगा कि आप इन संभावनाओं का लाभ समाज को प्रदान करेंगे।

 

मुझे हर्ष है कि देश में खेलों में अवसर बढ़ रहे हैं हमारे युवा खिलाड़ियों की अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियां आपको खेल की ओर प्रेरित करें। इससे आपके व्यक्तित्व का चतुर्दिक विकास होगा।

 

मैं आप सभी को आपके सफल भविष्य के लिए शुभकामनाऐं देता हूं मुझे विश्वास है कि अपने गुरुजनों और अभिभावकों के संस्कारों तथा इस विद्यालय की ज्ञान परंपरा के अनुरूप आप अपने शिक्षण संस्थान की प्रतिष्ठा को बढ़ायेंगे।

 

जय हिंद।"