आधिकारिक बुलेटिन -1 (30-Nov-2019)
उपराष्ट्रपति ने कुंजा बहादरपुर के बहादुरों को श्रद्धांजलि अर्पित की
(Vice President pays tribute to the bravehearts of Kunja Bahdurpur)

Posted on November 30th, 2019 | Create PDF File

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उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को स्वतंत्रता संग्राम के स्थानीय नायकों पर शोध और उनके इतिहास का संकलन करने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित करना चाहिए। उन्होंने इस इतिहास को स्थानीय भाषाओं में भी प्रकाशित करने पर जोर दिया ताकि इसे अधिकतम लोगों तक पहुंचाया जा सके।

 

उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में कुंजा बहादुर गाँव में शहीद राजा विजय सिंह और उनके साथियों की याद में आयोजित एक कार्यक्रम में श्री नायडू ने अंग्रेजों के खिलाफ राजा विजय सिंह के साथ कुंजा बहादुर गांव के लोगों की वीरता की कहानियों को याद किया।

 

अंग्रेजों ने वर्ष 1824 तक भारत के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था। उसी समय राजा विजय सिंह ने आजादी की घोषणा की। उन्होंने गढ़वाल, कुमाऊँ, बिजनौर, सहारनपुर और मेरठ जैसे आस-पास के क्षेत्रों से एक हजार लोगों की सेना बनाई और अंग्रेजों को कर देना बंद कर दिया। उन्होंने इलाके से अंग्रेजों के कब्जे के सभी प्रतीकों को हटा दिया।

 

अंग्रेजों ने कुंजा बहादुर के किले पर हमला कर दिया। इस भीषण युद्ध में लगभग 40 अंग्रेज मारे गए और सैकड़ों गुर्जर सैनिक शहीद हुए। अंग्रेजों ने लोगों पर अनगिनत अत्याचार किए। उन्होंने सैकड़ों लोगों को एक ही पेड़ से लटका दिया। राजा विजय सिंह और उनके बहादुर जनरल कल्याण सिंह को भी अंग्रेजों ने काट डाला और देहरादून जेल के सामने उनके शवों को रख दिया।

 

उपराष्ट्रपति ने कहा कि राजा विजय सिंह और उनके लोगों ने 1857 में आजादी की पहली लड़ाई से तीन दशक पहले 1824 में आजादी के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया, लेकिन यह विडंबना है कि कुंजा बहादुरपुर जैसी कहानियां हमारे इतिहास में नजरअंदाज की गईं। उन्होंने कहा कि हमारा इतिहास इन नायकों की बहादुरी के बिना अधूरा है।

 

राम प्यारी गुर्जर, रानी कर्णावती, शाहमल सिंह तोमर और किशोर योद्धा शिवदेवी तोमर जैसे उत्तराखंड के दिग्गज योद्धाओं के नामों का उल्लेख करते हुए श्री नायडू ने कहा कि हमारा इतिहास कई संघर्षों का गवाह रहा है, जिसमें स्थानीय नायकों के नेतृत्व में लोग अपनी आजादी, सम्मान, संस्कृति और संपत्ति की रक्षा करने के लिए आक्रमणकारियों के खिलाफ उठ खड़े हुए थे।

 

श्री नायडू ने कहा कि इन प्रतिरोधों का हमारे इतिहास में शायद ही कोई उल्लेख मिलता है, अब हमें इस गलती को सुधारने की आवश्यकता है।

 

श्री नायडू ने इन कहानियों को हमारे स्कूल के पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाने की आवश्यकता पर भी बल दिया ताकि नई पीढ़ी उनसे प्रेरणा ले सके।

 

उपराष्ट्रपति ने इतिहास के लिए एक राष्ट्रवादी दृष्टिकोण विकसित करने और इसके लिए नए स्रोतों पर शोध करने का भी आह्वान किया। उन्होंने स्थानीय संस्कृति, साहित्य और सामाजिक इतिहास के अध्ययन की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि इतिहास केवल शासकों का नहीं, बल्कि लोगों और समुदायों का भी होता है।

 

श्री नायडू ने कहा कि स्थानीय समुदायों की वीरता की कहानियां पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक परंपरा से प्रसारित होती हैं और उनके अस्तित्व का अभिन्न हिस्सा बनती हैं। उन्होंने कहा कि स्थानीय शैक्षणिक संस्थानों, सिविल सोसाइटी संगठनों और मीडिया को इतिहास की इन मौखिक परंपराओं पर गंभीर शोध करना चाहिए और पूरे देश को इनसे अवगत कराना चाहिए।