आधिकारिक बुलेटिन -6 (26-Aug-2020)
नीति आयोग ने निर्यात तैयारी सूचकांक (ईपीआई) पर रिपोर्ट जारी की
(NITI Aayog releases report on Export Preparedness Index (EPI) 2020)

Posted on August 26th, 2020 | Create PDF File

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नीति आयोग ने प्रतिस्पर्धात्मकता संस्थान की साझीदारी में आज निर्यात तैयारी सूचकांक (ईपीआई) 2020 पर रिपोर्ट जारी की। भारतीय राज्यों की निर्यात तैयारी और निष्पादन की जांच करने के लिए इस रिपोर्ट के माध्यम से ईपीआई का उद्वेश्य चुनौतियों और अवसरों की पहचान करना, सरकारी नीतियों की प्रभावोत्पादकता को बढ़ाना और एक सुविधाजनक नियामकीय संरचना को प्रोत्साहित करना है।

 

ईपीआई की संरचना में 4 स्तंभ- नीति, व्यवसाय परितंत्र, निर्यात परितंत्र, निर्यात निष्पादन तथा 11 उप स्तंभ - निर्यात संवर्धन नीति, संस्थागत संरचना, व्यवसाय वातावरण, अवसंरचना, परिवहन संपर्क, वित्त की सुविधा, निर्यात अवसंरचना, व्यापार सहायता, अनुसंधान एवं विकास अवसंरचना, निर्यात विविधीकरण और विकास अनुकूलन शामिल हैं।

 

नीति आयोग के उपाध्यक्ष डा. राजीव कुमार ने कहा, ‘ भारतीय अर्थव्यवस्था में विश्व स्तर पर एक मजबूत निर्यातक बनने की असीम क्षमता है। इस क्षमता का उपयोग करने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि भारत अपने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर मुड़े और उन्हें देश के निर्यात प्रयासों में सक्रिय सहभागी बनाये। इस विजन को प्राप्त करने की एक कोशिश में, निर्यात तैयारी सूचकांक 2020 राज्यों की संभावनाओं एवं क्षमताओं का मूल्यांकन करता है। ऐसी उम्मीद की जाती है कि इस सूचकांक की विस्तृत अंतर्दृष्टि सभी हितधारकों को राष्ट्रीय एवं उप-राष्ट्रीय दोनों ही स्तरों पर निर्यात परितंत्र को सुदृढ़ बनाने के लिए दिशा निर्देशित करेंगे। ‘

 

नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने कहा, ‘ निर्यात तैयारी सूचकांक उप-राष्ट्रीय स्तर पर निर्यात संवर्धन के लिए महत्वपूर्ण प्रमुख क्षेत्रों की पहचान के लिए एक डाटा केंद्रित प्रयास है। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का उन महत्वपूर्ण मानदंडों पर आकलन किया गया है जो टिकाऊ निर्यात वृद्धि अर्जित करने के लिए किसी भी पारंपरिक आर्थिक इकाई के लिए निर्णायक हैं। यह सूचकांक निर्यात संवर्धन के संबंध में क्षेत्रीय निष्पादन के मानदंड के लिए राज्य सरकारों के लिए एक सहायक मार्गदर्शिका होगी। ‘

 

 

इस संस्करण के साथ ईपीआई ने यह प्रदर्शित किया है कि अधिकांश भारतीय राज्यों ने निर्यात विविधीकरण, परिवहन संपर्क एवं अवसंरचना के उप स्तंभों में औसतन अच्छा प्रदर्शन किया है। इन तीनों उप स्तंभों में भारतीय राज्यों का औसत स्कोर 50 प्रतिशत से अधिक रहा। इसके अतिरिक्त, निर्यात विविधीकरण एवं परिवहन संपर्क में निम्न मानक विचलन को देखते हुए, औसतों को असमान रूप से कुछ अधिक अच्छा प्रदर्शन करने वालों के द्वारा उच्चतर नहीं किया गया है। तथापि, भारतीय राज्यों को निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार लाने के लिए अन्य प्रमुख घटकों पर भी फोकस करना चाहिए।

 

कुल मिलाकर, अधिकांश तटीय राज्य सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वालों में से हैं। गुजरात, महाराष्ट्र एवं तमिलनाडु क्रमशः शीर्ष तीन स्थानों पर काबिज हैं। शीर्ष 10 की रैंकिंग में आठ में से छह तटीय राज्य शामिल हैं जो निर्यात को बढ़ावा देने के लिए मजबूत सक्षमकारी और सुगमकारी कारकों की उपस्थिति का संकेत देते हैं। भूमि से घिरे हुए राज्यों में, राजस्थान का प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ रहा है जिसके बाद तेलंगाना और हरियाणा का स्थान है। हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड सर्वश्रेष्ठ है जिसके बाद त्रिपुरा और हिमाचल प्रदेश का स्थान है। केंद्र शासित प्रदेशो एवं शहर राज्य (City States)  में दिन्नी ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है जिसके बाद गोवा और चंडीगढ़ हैं।

 

रिपोर्ट यह भी रेखांकित करती है कि निर्यात अनुकूलन और तैयारी केवल समृद्ध राज्यों तक ही सीमित नहीं है। उभरते हुए राज्य भी गतिशील निर्यात नीति उपाय कर सकते हैं, वहां कार्यशील संवर्धन संबंधी परिषद हो सकती है और अपने निर्यातों को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय संभार तंत्र संबंधी योजनओं के साथ तालमेल बिठा सकते हैं। छत्तीसगढ़ और झारखंड भूमि से घिरे हुए दो राज्य हैं जिन्होंने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कई उपाय आरंभ किए। इसी प्रकार की सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे अन्य राज्य भी छत्तीसगढ़ और झारखंड द्वारा किए गए उपायों पर गौर कर सकते हैं और अपने निर्यात को बढ़ाने के लिए उन्हें कार्यान्वित कर सकते हैं।

 

वृद्धि अनुकूलन उप स्तंभ के तहत पूर्वोत्तर के कई राज्य अपने स्वदेशी उत्पाद बास्केट पर ध्यान केंद्रित करने के द्वारा निर्यात में बढोतरी करने में सक्षम रहे। यह प्रदर्शित करता है कि ऐसे बास्केटों (जैसे मसाले)का केंद्रीकृत विकास एक तरफ निर्यात को बढ़ावा दे सकता है तो दूसरी तरफ इन राज्यां में किसानों की आय में भी बढोतरी कर सकता है।

 

रिपोर्ट के निष्कर्षों के आधार पर, भारत में निर्यात संवर्धन को तीन बुनियादी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है: निर्यात अवसंरचनाओं में क्षेत्रों के भीतर एवं अंतःक्षेत्रीय विषमताएं, राज्यों के बीच निम्न व्यापार सहायता तथा विकास अनुकूलन, जटिल एवं अनूठे निर्यात को बढ़ावा देने के लिए निम्न अनुसंधान एवं विकास अवसंरचना।

 

इन चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रमुख कार्यनीतियों पर जोर दिए जाने की आवश्यकता है: निर्यात अवसंरचना का एक संयुक्त विकास, उद्योग-शिक्षा क्षेत्र संपर्क का सुदृढ़ीकरण और आर्थिक कूटनीति के लिए राज्य स्तरीय भागीदारी। इन कार्यनीतियों की पुनर्निर्मित्त डिजाइनों एवं स्थानीय उत्पादों के लिए मानकों द्वारा तथा केंद्र से समुचित सहायता के साथ ऐसे उत्पादों के लिए नए उपयोग मामले उपलब्ध कराने हेतु नवोन्मेषी डिजाइनों के दोहन के माध्यम से सहायता की जा सकती है।

 

‘आत्म निर्भर भारत‘ पर फोकस करने के द्वारा भारत को एक विकसित अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को अर्जित करने के लिए, सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों से निर्यात को बढ़ाने की आवश्यकता है। ईपीआई मूल्यवान अंतर्दृष्टि उपलब्ध कराता है कि किस प्रकार राज्य इस लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।

 

ईपीआई की अंतिम संरचना राज्यों, यूटी एवं एक्जिम बैंक, आईआईएफटी जैसे संगठनों से अनिवार्य फीडबैक पर आधारित थी। आंकड़े मुख्य रूप से राज्य सरकारों द्वारा उपलब्ध कराये गए हैं। कुछ संकेतकों के लिए भारतीय रिजर्व बैंक, डीजीसीआईएस एवं केंद्रीय मंत्रालयों से संपर्क किया गया।

 

संरचना-

 

चार स्तंभ एवं उनमें से प्रत्येक के चयन के पीछे का औचित्य नीचे दिया गया हैः

 

1. नीति: एक व्यापक व्यापार नीति निर्यातों एवं आयातों के लिए एक कार्यनीतिक दिशा प्रदान करती है।

 

2. व्यवसाय परितंत्र: एक दक्ष व्यवसाय परितंत्र राज्यों को निवेश आकर्षित करने में सहायता कर सकती है और व्यक्ति विशेषों के लिए स्टार्ट अप्स आरंभ करने हेतु एक सक्षमकारी अवसंरचना का निर्माण कर सकती है।

 

3. निर्यात परितंत्र: इस स्तंभ का उद्वेश्य व्यवसाय वातावरण का आकलन करना है जो निर्यात के लिए विशिष्ट है।

 

4. निर्यात निष्पादन: यह केवल आउटपुट आधारित स्तंभ है और राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की निर्यात उपस्थिति की पहुंच की जांच करता है।