आधिकारिक बुलेटिन -1 (11-Feb-2019)
विश्‍व सतत विकास सम्‍मेलन 2019 का उद्धाटन
(Inauguratio of World Sustainable Development Summit 2019)

Posted on February 11th, 2019 | Create PDF File

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व्‍यापक स्‍तर पर हो रहे पर्यावरण क्षरण और उसके खतरनाक दुष्‍प्रभावों पर गहरी चिंता व्‍यक्‍त करते हुए उपराष्‍ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने दुनिया के सभी देशों से टिकाऊ विकास के लिए व्‍यापक स्‍तर पर सहयोग का आह्वान किया है। 

 

श्री नायडू ने ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान, टेरी द्वारा आयोजित विश्‍व सतत विकास सम्‍मेलन 2019 को संबोधित करते हुए कहा कि समावेशी विकास टिकाऊ विकास पर केन्द्रित है। टिकाऊ कृषि, टिकाऊ शहरीकरण, टिकाऊ ऊर्जा सुरक्षा, टिकाऊ स्‍वच्‍छ ऊर्जा, टिकाऊ कचरा प्रबंधन, टिकाऊ वन्‍य जीव संरक्षण और टिकाऊ हरित पहलें इसमें ही समाहित हैं।

 

उपराष्‍ट्रपति ने कहा कि भारत के पांरपरिक रीति रिवाज सतत जीवन शैली को परिलक्षित करते हैं। भारत के वैदिक दर्शन ने भी हमेशा से ही प्रकृति और मानव के बीच गहरे संबधों पर बल दिया है। उन्‍होंने कहा कि सत‍त विकास के लिए प्रत्‍येक व्‍यक्ति को योगदान करना चाहिए। ऐसा  चाहे तो लंबे ट्रैफिक जाम पर वाहन का इंजन बंद करके या फिर भीड़ भाड़ वाले शहरों में कार्यालय आने जाने के लिए साइकिल का इस्‍तेमाल करके या फिर बेकार हो चुकी वस्‍तुओं का पुनर्चक्रण या फिर उनका खाद बनाकर भी किया जा सकता है। प्राकृतिक संसाधानों के तर्कसंगत इस्‍तेमाल कर भविष्‍य की पीढि़यों के लिए उन्‍हें संरक्षित रखने के महत्‍व पर जोर देते हुए श्री नायडू ने कहा कि सबको इस बात का एहसास होना चाहिए कि हमें धरती से जो कुछ मिला है वह हमारी विरासत नहीं है बल्कि हम केवल इसके संरक्षक हैं। ऐसे में यह हमारी अहम जिम्‍मेदारी है कि हम इसे प्राचीन गौरव के साथ अगली पीढ़ी के सुपुर्द करें।

 

उपराष्‍ट्रपति ने धर्मो रक्षतिः रक्षतः की प्राचीन भारतीय उक्‍ती को उदृत करते हुए कहा “यदि आप धर्म पर कायम रहते हैं तो यह आपकी रक्षा करेगा और यदि आप प्रकृति को संरक्षित रखेंगे तो बदले में प्रकृति आपको संरक्षण देगी और आपका पोषण करेगी।” उन्‍होंने कहा कि यदि “हम ऐसा नहीं करते तो इससे हमारे खत्‍म होने का संकट पैदा हो सकता है”। श्री नायडू ने कहा “धरती हमारी मां के समान है। ऐसे में संपूर्ण मानव जाति को अपने धार्मिक, जातिगत और नस्‍लीय भेद भुलाकर इसे संरक्षित रखने का एकजुट प्रयास करना चाहिए।” विकासशील देशों द्वारा जलवायु परिवर्तन के तत्‍काल दुष्‍प्रभाव झेलने का जिक्र करते हुए  उन्‍होंने कहा कि ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि वे जलवायु में होने वाले बदलावों पर ज्यादा से ज्यादा निर्भर हैं। ऐसे में सबको मिलकर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने का प्रयास करना चाहिए।

 

उपराष्ट्रपति ने स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए फ्रांस के साथ मिलकर अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन बनाने के सरकार के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि भारत जल्दी ही 175 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन का लक्ष्य हासिल कर लेगा। 2022 तक देश में 40 प्रतिशत बिजली गैर-जीवाष्म ईंधन से बनाई जाने लगेगी और अभिष्ट राष्ट्रीय निर्धारित योगदान-एनडीसी के तहत 2030 तक उत्सर्जन गहनता को 2005 के स्तर के मुकाबले सकल घरेलू उत्पाद के 33-35 प्रतिशत तक घटाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि कृषि के क्षेत्र में टिकाऊ विकास के लिए जैव प्रौद्योगिकी और नैनो प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की तत्काल जरूरत है, ताकि इसके जरिए नैनो फर्टिलाइजर सहित कई हरित उत्पाद विकसित किए जा सकें। 

 

श्री नायडू ने कहा कि किसानों को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक बनाना जरूरी है। उन्होंने सिंचाई के लिए प्रभावी तंत्र विकसित करने के वास्ते प्रति बूंद अधिक फसल पर जोर दिया। उन्होंने जैविक खेती पर बल देते हुए कीटों को मारने के लिए प्राकृतिक उपायों को अपनाने की बात कही।

 

उपराष्ट्रपति ने ग्रामीण क्षेत्रों से हताशा में पलायन को रोकने की जरूरत बताई और साथ ही शहरी क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए उन्हें संस्थागत और वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने के लिए सही नीतियां बनाने पर बल दिया।

 

श्री नायडू ने कहा कि एक सक्षम, स्मार्ट, हरित और उत्पादकतापूर्ण शहरों का निर्माण सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप किया जाना चाहिए। सरकारों को इस पर ध्यान देना चाहिए। कचरा प्रबंधन पर उन्होंने कहा कि इसके लिए हमें टिकाऊ व्यवस्था करनी चाहिए। खासतौर से शहरी क्षेत्रों से निकलने वाले गैर-जैविक कचरे के निपटान की उचित व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि ऐसा कचरा हमारे जल स्रोतों और समुद्रों को प्रदूषित कर रहा है। उपराष्ट्रप

ति ने वैज्ञानिकों से कचरे से कनक बनाने की देश की क्षमताओं का पता लगाने को कहा और साथ ही कचरा कम करने तथा उसके पुनर्चक्रण के सिद्धांत पर अमल करने पर जोर दिया।

श्री नायडू ने कहा कि भारत दुनिया के उन कुछ देशों में से एक है, जहां बढ़ती आबादी और मवेशियों के चारे के बढ़ते दबाव के बावजूद वन क्षेत्रों का विस्तार हो रहा है। देश के वन क्षेत्र कार्बन सिंक का काम कर रहे हैं। भारत ने व्यापक स्तर पर वनीकरण के माध्यम से अपना वन क्षेत्र मौजूदा 21.54 प्रतिशत से बढ़ाकर 33 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा है।

 

 

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ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान, टेरी-

 

ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान, जो आमतौर पर टेरी के नाम से जाना जाता है (पूर्व में टाटा ऊर्जा अनुसंधान संस्थान), 1974 में स्थापित, ऊर्जा, पर्यावरण और टिकाऊ विकास के क्षेत्रों में अनुसंधान गतिविधियों पर केंद्रित नई दिल्ली में आधारित शोध संस्थान है।


परिचय-


टेरी एक स्वतंत्र, लाभ के लिए नहीं, ऊर्जा अनुसंधान संस्थान है जो पर्यावरण और स्थाई विकास पर केंद्रित, प्राकृतिक संसाधनों के कुशल और टिकाऊ उपयोग करने के लिए समर्पित है।

 

उत्पत्ति-


टेरी का मूल मीठापुर, गुजरात के एक दूरदराज के शहर में निहित है जहां एक टाटा इंजीनियर, दरबारी सेठ, अपने कारखाने मे अलवणीकरण पर ऊर्जा की भारी मात्रा में खर्च के बारे में चिंतित था।उन्होने प्राकृतिक संसाधनों और ऊर्जा की कमी की कमी से निपटने के लिए एक शोध संस्थान बनाने का प्रस्ताव रखा। जेआरडी टाटा, टाटा समूह के अध्यक्ष, ने इस विचार को पसंद किया और प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। टेरी 3.5 करोड रुपये की मामूली रकम के साथ शुरु किया गया।तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निमंत्रण पर, टेरी ने 1974 में दिल्ली में टाटा ऊर्जा अनुसंधान संस्थान के रूप में पंजीकृत किया। समय के साथ गतिविधियों का दायरा बढ़ने पर, इसका नाम बदलकर 2003 में ऊर्जा और संसाधन संस्थान कर दिया गया।

 

अवस्थिति-


टेरी ने मुंबई में बॉम्बे हाउस, टाटा घराने के मुख्यालय में कार्य शुरू किया था।1974 में, यह दिल्ली स्थानांतरित हो गया।आज टेरी की भारत और विदेश दोनों में कई केंद्रों के साथ एक वैश्विक उपस्थिति है।

 

कार्यकलाप-


टेरी एक प्रमुख भारतीय गैर सरकारी (एनजीओ) संगठन, ऊर्जा और पर्यावरण की शैलियों में अनुसंधान और विश्लेषण का आयोजन करने वाला एक वैश्विक संस्थान है। अपने अस्तित्व के 30 वर्षों में, टेरी ने 2600 से अधिक परियोजनाएं पूरी की है।


टेरी विश्वविद्यालय-


टेरी विश्वविद्यालय 19 अगस्त 1998 को स्थापित किया गया था और एक विश्वविद्यालय के रूप में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा 1999 में मान्यता दी गई।1999 में टेरी विस्तृत अध्ययन स्कूल के रूप में स्थापित, संस्था को बाद में टेरी विश्वविद्यालय नाम दिया गया था।टेरी विश्वविद्यालय भारत में अपनी तरह का पहला संस्थान है जो स्थायी विकास के लिए पर्यावरण, ऊर्जा और प्राकृतिक विज्ञान के अध्ययन के लिए समर्पित है।