आधिकारिक बुलेटिन -2 (18-Aug-2020)
डॉ. हर्षवर्धन ने इंडियन रेडक्रॉस में थैलीसीमिया स्क्रीनिंग और परामर्श केंद्र का उद्घाटन किया
(Dr. Harsh Vardhan inaugurates the Thalassemia Screening and Counselling Centre at Indian Red Cross)

Posted on August 19th, 2020 | Create PDF File

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केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने आज यहां इंडियन रेडक्रॉस सोसाइटी के राष्ट्रीय मुख्यालय (आईआरसीएस एनएचक्यू) के ब्लड बैंक में थैलीसीमिया स्क्रीनिंग और परामर्श केंद्र का उद्घाटन किया।

 

इस केंद्र के शुरू होने पर खुशी व्यक्त करते हुए डॉ. हर्षवर्धन ने इंडियन रेडक्रॉस सोसाइटी के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा “इन पहलों के माध्यम से हम इस बीमारी की रोकथाम के लिए आम लोगों को शिक्षित करने में सक्षम होंगे।”

 

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि वर्तमान समय में दुनिया के लगभग 270 मिलियन लोग थैलीसीमिया से पीड़ित हैं। दुनिया में थैलीसीमिया मेजर बच्चों की सबसे बड़ी संख्या भारत में है जिनकी संख्या लगभग 1 से 1.5 लाख है, और थैलीसीमिया मेजर के साथ लगभग 10,000-15,000 बच्चों का जन्म प्रत्येक वर्ष होता है। ऐसे बच्चों के लिए उपलब्ध इलाज केवल बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन (बीएमटी) ही है। हालांकि, इस रोग से प्रभावित सभी बच्चों के माता-पिता के लिए बीएमटी बहुत ही मुश्किल और मंहगा है। इसलिए, उपचार का मुख्य स्वरूप बार-बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन (रक्‍ताधान) कराना है, इसके बाद आयरन के अत्यधिक भार को कम करने के लिए नियमित रूप से आयरन किलेशन थैरेपी की जाती है, जिसके कारण कई ब्लड ट्रांसफ्यूजन होते हैं।

 

डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि आईआरसीएस की इस नई पहल के द्वारा इस रोग से प्रभावित लोगों को पर्याप्त चिकित्सा प्रदान करने का सुनहरा अवसर प्राप्त होगा, जिससे कि वे बेहतर जीवन व्यतीत कर सकें और वाहक स्क्रीनिंग, आनुवंशिक परामर्श और जन्म से पूर्व निदान के माध्यम से हीमोग्लोबिनोपैथी से प्रभावित बच्चों के जन्म को रोका जा सकेगा। उन्होंने कहा कि "यह कार्यक्रम ठीक प्रकार से नियोजित स्क्रीनिंग कार्यक्रमों, सूचना प्रसार और जागरूकता फैलाने वाली गतिविधियों के माध्यम से हीमोग्लोबिनोपैथी से प्रभावित बच्चों के जन्म की रोकथाम में सहायता प्रदान करेगा और इस आनुवंशिक विकार के आसन्न खतरे को टालने में मदद करेगा, जो कि एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या बनता चला जा रहा है। इन प्रगतिशील प्रयासों के साथ, हम जल्द ही, 2022 तक, प्रधानमंत्री द्वारा परिकल्पित न्यू इंडिया को प्राप्त करने में सक्षम होंगे।”

 

हीमोग्लोबिनोपैथी, जैसे कि थैलेसीमिया और सिकल सेल रोग, लाल रक्त कोशिकाओं के लिए विरासत में मिले विकार हैं और उन्हें रोका जा सकता है। ये बीमारियां दीर्घकालिक हैं, जो जीवन बिगाड़ देती है और कुछ मामलों में यह जीवन के लिए खतरा बन जाती है और परिवार पर बहुत ही भावनात्मक और आर्थिक बोझ डालती है। भारत में थैलेसीमिया मेजर (टीएम) और थैलेसीमिया इंटरमीडिया (टीआई) का गंभीर रूप, बीमारी पर अत्यधिक बोझ डालता है। दोनों का प्रबंधन, पूरे जीवन काल में नियमित रूप से ब्लड ट्रांसफ्यूजन और आयरन किलेशन द्वारा किया जाता है। ये थैलेसीमिया सिंड्रोम, माता-पिता दोनों से असामान्य (बीटा) थैलेसीमिया जीन के वंशानुक्रम के कारण उत्पन्न होता है या माता-पिता में एक से असामान्य बीटा-थैलेसीमिया जीन और दूसरे से असामान्य रूपांतर हीमोग्लोबिन जीन (एचबीई, एचबीडी) के कारण उत्पन्न होता है।

 

उद्घाटन के अवसर पर, महासचिव, आईआरसीएस और आईआरसीएस, थैलीसीमिक्स इंडिया और स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।

 

थैलीसीमिया मेजर (Thalassemia Major):


* थैलेसीमिया मेजर बीटा थैलेसीमिया का सबसे गंभीर रूप है। यह तब विकसित होता है जब बीटा ग्लोबिन जीन (Beta Globin Genes) विलुप्त होते हैं।

* थैलेसीमिया मेजर के लक्षण आमतौर पर बच्चे के दूसरे जन्मदिन से पहले दिखाई देते हैं।

* इस स्थिति से संबंधित गंभीर एनीमिया जानलेवा साबित हो सकता है।


थैलेसीमिया इंटरमीडिया (Thalassemia Intermedia):


* बीटा-थैलेसीमिया इंटरमीडिया एक आनुवांशिक (या विरासत में मिली) रक्त विकार है जिसे कभी-कभी कूलेयस (Cooley's) या मेडिटेरेनियन एनीमिया (Mediterranean Anemia) या कभी-कभी थैलेसीमिया (Thalassemia) कहा जाता है।


* बीटा- थैलेसीमिया इंटरमीडिया, विकार का मिडिल फॉर्म है। यह शरीर की ‘एडल्ट’ हीमोग्लोबिन के उत्पादन करने की क्षमता को कम कर देता है और एनीमिया का कारण बनता है।