विश्व असमानता सूचकांक और भारत (World Ineqality Index and Indian)

Posted on October 19th, 2018 | Create PDF File

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विश्व असमानता सूचकांक और भारत

 

 

कुछ सोना है तो कुछ स्याह,  रंगों में बदरंग है दुनिया यहां

सिमट गया है चंद तिजोरियों में तरक्की का पैमाना अफसोस यहां ।।

 

आर्थिक असमानता दुनिया में बड़े पैमाने पर मौजूद है। अमीरों और गरीबों की यह खाई लगातार बढ़ती ही जा रही है। दुनिया में मौजूद आबादी के आधे सबसे गरीब लोगों के पास कुल मिलाकर जितना पैसा है उतनी दौलत दुनिया के महज 8 लोगों के पास है। दूसरे शब्दों में कहें तो केवल 1 फीसदी शीर्ष अमीरों के पास शेष 99 फीसदी लोगों से ज्यादा धन है। आर्थिक विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगले 20 सालों में महज 500 लोगों के पास 2.5 ट्रिलियन डॉलर मुद्रा होगी, जो 2.1 बिलियन आबादी वाले भारत के सकल घरेलू उत्पाद से भी ज्यादा है। जो देश इस भीषण असमानता को कम करने की कोशिश नही करते हैं, उन देशों में सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक समस्याऐं जीवन का सामान्य हिस्सा बनती चली जाती हैं। मसलन यह स्थिति किसी कल्याणकारी राज्य के लिए विडम्बना जैसी होती है। जहां संविधान के द्वारा अपने नागरिकों के साथ असमानता का व्यवहार न किए जाने की बात कहने के बावजूद असमानता की गहरी खाई मौजूद रहती है। आय असमानता की वजह से लोगों की जीवन जीने की गुणवत्ता पर आधारभूत प्रभाव पड़ता है। हाल ही में आक्सफैम इंटरनेशनल द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत इस मामले में काफी पिछड़ा हुआ है। दुनिया के 157 देशों के लिए तैयार की गई इस सूची में भारत को 147वां स्थान दिया गया है।

 

दरअसल ऑक्सफैम इंटरनेशनल इंग्लैंड की एक गैर-लाभकारी संस्था है। जिसकी स्थापना ऑक्सफोर्ड कमेटी फॉर फैमिन रिलीफ द्वारा साल 1942 में की गई थी।उनका लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गरीबी और अन्याय को कम करने के लिए अधिक प्रभाव हेतु मिलकर काम करना था।। 1965 में इस संस्था का नाम बदलकर ऑक्सफैम रख दिया गया। भारत में इसका क्रियाकलाप साल 1951 से शुरु हुआ था। विन्नी ब्यानयीमा इसकी एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं। वे इस पद पर साल 2013 से कार्यरत हैं। इसका मुख्यालय- ऑक्सफोर्ड, यूके में है।

 

9 अक्टूबर 2018, मंगलवार को असमानता सूचकांक को कम करने की प्रतिबद्धता (कमिटमेंट टू रिड्यूज इंक्वेलिटी इंडेक्स - सीआरआईआई) की वार्षिक रिपोर्ट जारी कर दी गई है। भारत इस सूचकांक में 157 देशों में से 147वें स्थान पर है अथवा यह भी कहा जा सकता है की यह नीचे से 11वें स्थान पर है। जो कि बहुत चिंता का विषय है। रिपोर्ट में कहा गया हैं कि अगर भारत अपनी गरीबी को एक-तिहाई हिस्से तक कम कर लेता  है तो उसके 170 मिलियन लोग गरीबी रेखा से ऊपर आ जायेंगे। यह रिपोर्ट यूके स्थित एक चैरिटी संस्था ऑक्सफोर्ड इंटरनेशनल द्वारा जारी की गई है। इस सूचकांक को तैयार करते समय मुख्यतः तीन बिन्दुओं को मद्देनजर रखा गया था-

 

1. कर प्रणाली और सरकार की सार्वजनिक विकास के क्षेत्र में योजनाऐं

 

2. मजदूरों के अधिकार

 

3. कामकाजी महिलाओं का सम्मान और सुरक्षा

 

रिपोर्ट बताती है कि भारत में कागजों पर भले ही यहां की कर प्रणाली प्रगतिशील दिखाई दे, लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं है। यहां कुल जीडीपी का महज 16 फीसदी हिस्सा आयकर के माध्यम से आता है। सरकार के पास ऐसा कोई तंत्र मौजूद नहीं है जो कर-चोरी को रोकने में कारगर सिध्द हो सके। कम टैक्स की वजह से राजस्व में कमी आती है, जिसके चलते सरकार शिक्षा, पानी, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविदाओं पर पर्याप्त खर्च करने में अक्षम है। साथ ही प्राइवेट सेक्टर को दी जाने वाली सब्सिडी अन्य सब्सिडी से अपेक्षाकृत अधिक हैं। जिससे अमीरों और गरीबों के बीच का अंतर बढ़ता ही जा रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अधिकांश मजदूर कृषि और असंगठित क्षेत्रों से आते हैं। उनके बीच संगठनों और यूनियनों का अभाव है। जिसके चलते काम के अधिक घंटे और कम मजदूरी उनकी मजबूरी बनती जा रही है। यहां मजदूरों के अधिकारों की श्रेणी में भारत को – ‘बहुत खराब  वर्ग में रखा गया है। यही हाल काम करने वाली जगह कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान से संबंधित श्रेणी में भी है।

आपको बताते चलें कि इससे पहले साल 2017 में इस सूचकांक में भारत को 132वां स्थान दिया गया था। तब इस सूची में 152 देश शामिल थे। उस समय चीन- 87वां, पाकिस्तान- 146वां और बांग्लादेश- 148वें पायदान पर थे। मौजूदा रिपोर्ट में कहा गया है कि- पिछले 10 सालों में ( 2005-15) दुनिया में अमीरी और गरीबी के बीच की असमानता 20 फीसदी तक बढ़ी है।

ज्ञात हो कि वर्ष 2018 में अपनी बेहतरीन सुधार कार्यों की वजह से डेनमार्क को इस सूची में पहला स्थान दिया गया है। रिपोर्ट ने डेनमार्क के प्रगतिशील कराधान, सार्वजनिक कार्यों में भारी सरकारी निवेश और कामकाजी महिलाओं के लिए सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करने वाली योजनाओं को सराहा है। दूसरे, तीसरे और चौथे पायदान पर क्रमशः जर्मनी, फिनलैंड और आस्ट्रिया हैं। स्वीडन को इस सूची में 7वां स्थान दिया गया है। इससे पहले साल 2017 की रिपोर्ट में उसे प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था। तब डेनमार्क तीसरे स्थान पर था।

मौजूदा ऑक्सफोर्ड असमानता सूचकांक में जापान को 11वां स्थान मिला है। यह एशिया महाद्वीप में सर्वश्रेष्ठ है। इसके अलावा इथोपिया-131, चिली- 35 और इंडोनेशिया को 90वें पायदान पर जगह मिली है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अभी भी 60 लाख से ज्यादा बच्चे स्कूली शिक्षा से वंचित हैं। सरकार वस्तुतः विकास के प्रोजेक्ट पर ध्यान केन्द्रित किए हुए है। जबकि आवश्यकता समग्र विकास यानी जीडीपी को बढ़ाने की है। पिछले कुछ सालों (1988- 2011) के बीच 10 फीसदी से ज्यादा लोगों की आय में महज 3 डॉलर से भी कम की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है, वहीं यही आंकड़ा अमीरों के लिए कई गुना ज्यादा है। जहां एक ओर दुनिया के 1 प्रतिशत लोगों की विकास दर 300 फीसदी से अधिक आंकी गई है, वहीं दूसरी तरफ निचले 50 प्रतिशत लोगों की विकास दर 0(शून्य) फीसद है। यानी अमीरी और गरीबी का यह फासला दिन-ब- दिन बढ़ता ही जा रहा है।2015 में दुनिया के सबसे ज्यादा 62 अमीरों के पास 3 अरब 60 करोड़ (दुनिया की आधी आबादी) जितना पैसा है। 2010 में इतनी दौलत 388 लोगों के पास थी। 2011 में 177 और मौजूदा समय में यह आंकड़ा 8 पर आ चुका है। पिछले कुछ सालों में गरीबों की आय में भारी गिरावट आई है। इसका मुख्य कारण सरकारों की  कमजोर आर्थिक नीतियां हैं। दुनिया के देशों में गरीबी मापने के पैमाने और आंकड़े अलग-अलग हैं। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक की गरीबी की परिभाषाऐं भी अलग अलग हैं। लेकिन लक्ष्य सबका एक ही है, और वो है दुनिया से गरीबी का खात्मा। सरकारों को इस संबंध में गंभीरता से सोचने की जरूरत है। जैसा कि कहा गया है-

 

 

अनगिनत सदियों के ताऱीके बहीमाना तिलिस्म

रेशमों अतलसों कमख्वाब में बुनवाये हुए

जाबजां बिकते हुए कूचा और बाजार में जिस्म

खाक में लिथड़े हुए खून में नहलाये हुए

लौट जाती है उधर को भी नजर क्या कीजै,

                                                  अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीजै ?!                      ---- फैज़ अहमद फैज़