शासन को बेहतर बनाने के लिये पारदर्शिता,जवाबदेहिता,संस्थागत तथा अन्य उपाय (Transparency, accountability, institutional and other measures to improve governance)

Posted on April 6th, 2020 | Create PDF File

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शासन को बेहतर बनाने के लिये पारदर्शिता,जवाबदेहिता,संस्थागत तथा अन्य उपाय
(Transparency, accountability, institutional and other measures to improve governance)

 

 

अधिकतर सरकारें और उनकी एजेंसियों के पास पदसोपानीय तंत्र का ढांचा होता है। ऐसे ढांचे में, प्रत्येक पदाधिकारी के महत्वपूर्ण कामों में से एक यह होता है कि वह ठीक अपने नीचे के अधीनस्थ अधिकारी के कार्य का निरीक्षण करे, जो उसे रिपोर्ट करता/ करती हो। लोक पदाधिकारियों में निहित विवेकशीलता के प्रति प्रभावकारी निरीक्षण और सन्तुलन होना चाहिए। निरीक्षण एक ऐसी ही व्यवस्था प्रदान करता है। केवल यह तथ्य कि भ्रष्ट अधिकारियों के विरुद्ध विभाग द्वारा कई मामलों में कार्यवाई की पहल नहीं की जाती, इस बात का द्योतक है कि निशक्षण के कार्य पर उतना ध्यान नहीं दिया जा रहा जितना कि दिया जाना चाहिए।

 

किसी कार्यालय या संगठन में भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करना कार्यालय के अध्यक्ष की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। फिर सभी सरकारी कार्यालयों / एजेंसियों में अधिकारी वर्गीय ढांचा होता है,प्रत्येक स्तर पर विद्यमान ढांचा अपने नीचे के स्तर के लिए भ्रष्टाचार की गुंजाइश को न्यूनतम करने,रोकथाम के कदम उठाने के लिए उत्तरदाई होना चाहिए। प्रायः यह देखा गया है कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए स्वतंत्र एजेंसियों के गठन से विभागीय अधिकारी यह महसूस करने लगे हैं कि उनके कार्यालयों / अधीनस्थ कर्मचारियों में भ्रष्टाचार रोकने की जिम्मेदारी उनकी नहीं है अथवा वे इस समस्या को नजरअंदाज कर देते हैं। इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि बाहरी भ्रष्टाचार निरोध व्यवस्था अपने सीमित संसाधनों और पहुंच से किसी भी प्रकार से अग्रणीय पदों पर बैठे अधिकारियों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार निरोध उपायों की जगह नहीं ले सकती।

 

ऐसे उपाय इस प्रकार के हो सकते हैं : अंधाघुंध निरीक्षण, आकस्मिक निरीक्षण, नागरिकों / ग्राहकों से गोपनीय सूचना लेना, ऐसी कार्य-पद्धति अपनाना जिससे रिश्वत लेना कठिन हो जाए, फर्जी लालच देकर पकड़ने वाले ग्राहकों का प्रयोग करना आदि। अत: यह सुझाव दिया जाता है कि रिपोर्ट लिखने वाले अधिकारियों को चाहिए कि वे अपने अधीन अधिकारियों के कार्य निष्पादन का आकलन करते समय उनके द्वारा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए किए गए प्रयासों पर स्पष्ट रूप से टिप्पणी करें। वार्षिक निष्पादन रिपोर्ट के स्वतः मूल्यांकन भाग में एक स्तम्भ होना चाहिए जिसमें प्रत्येक निरीक्षण अधिकारी को उन उपायों के बारे में लिखना चाहिए जो उस अधीनस्थ अधिकारी ने अपने कार्यालय में और अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के बीच भ्रष्टाचार को रोकने के लिए उठाए हों और ऐसे उपायों का क्‍या परिणाम हुआ। रिपोर्ट लिखने वाला अधिकारी फिर इस स्वत:मूल्यांकन पर अपनी टिप्पणी देगा।

 

यह देखा गया है कि अधिकारियों की गोपनीय रिपोर्टों हेतु रिपोर्ट लिखने वाले अधिकारी हमेशा सावधानी से और मेहनत से नहीं लिखते। रिपोर्ट लिखने वाले अधिकारी किसी लोक सेवक की सत्यनिष्ठा पर किसी टिप्पणी को न लिखकर सुरक्षित रहना चाहते हैं, चाहे उस अधिकारी के ध्यान में कुछ अनैतिक बातें ही क्‍यों न आई हों। ऐसा मुख्यतः इसलिए होता है क्‍योंकि जिस प्रकार से वे अपने अधीनस्थों का आंकलन करते हैं, उससे रिपोर्ट लिखने वाले अधिकारी के लिए बहुत ही कम जवाबदेही रह जाती है। 'कुछ भी विपरीत देखने में नहीं आया' जैसी तटस्थ प्रविष्टियां अति सामान्य होती हैं। तथापि भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए निरीक्षण को और अधिक सक्रिय बनाने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि रिपोर्ट लिखने वाले अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की सत्यनिष्ठा के बारे में अपना मूल्यांकन शुद्धता से रिकॉर्ड करें, यह अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए कि यदि रिपोर्ट लिखने वाला अधिकारी अपने किसी अधीनस्थ अधिकारी की मूल्यांकन रिपोर्ट में 'साफ छवि' दे देता है और ऐसे अधिकारी पर भ्रष्टाचार निवारण-अधिनियम के अन्तर्गत किसी अपराध का आरोप लगता है और वह भ्रष्ट कृत्य पूर्णतः या अंशतः रिपोर्ट लिखे जाने वाले वर्ष के दौरान किया जाता है तो रिपोर्ट लिखने वाले अधिकारी को यद्ठ स्पष्टीकरण देना होगा कि उस अधिकारी के बारे में 'सत्यनिष्ठा प्रमाण-पत्र' क्‍यों दिया गया था।

 

निरीक्षण अधिकारी द्वारा आकस्मिक निरीक्षण करना लोक कार्यालयों में गलत काम करने वाले को पकड़ने के लिए एक और हथियार है। ऐसे निरीक्षण को उन कार्यालयों में अधिक सख्ती से किया जाना चाहिए कि जिनका जनता के साथ सीधा सम्पर्क हो। जैसे जांच केन्द्र, टोल टैक्स संग्रह बिन्दु पार्किंग स्थल, प्रदूषण जांच, भार और माप तथा मीटर जांच केन्द्र, खुली खदानें, खानें, वेतन और लेखा कार्यालय, संकट के दौरान राहत वितरण केन्द्र आदि का निरीक्षण अधिकारी द्वारा आकस्मिक निरीक्षण हो। निष्पादित किए जा रहे कामों का स्थल पर ही निरीक्षण और लाभार्थियों की वास्तविकता का सत्यापन, ये ऐसे आकस्मिक निरीक्षण का एक और रूप हैं। आकस्मिक जांच का काम स्थापना अनुभागों और रोकड़ शाखाओं तक भी बढ़ाया जा सकता है, विशेष तौर पर कर विभागों में प्राप्त हुई नकदी के तुरन्त बाद लेखांकन को सत्यापित करने के लिए, चेकों और ड्रॉफ्टों का सरकारी खातों में जमा करना, वेतन बिलों को तैयार करने में परिशुद्धता, सरकारी कर्मचारियों के वेतनों में से वसूल की गई रकमों को सरकारी खाते में जमा कराना आदि ताकि निधियों के गबन (misappropriation) का पता लगाया जा सके। जनता के साथ सीधे सरकारी कार्य में संलग्न अधिकारियों के पास व्यक्तिगत रूप से रोकड़ होने का आकस्मिक सत्यापन कार्यात्रय में रहते हुए रिश्वत लेने को हतोत्साहित करने में हितकर है। यह एक ऐसा उपाय है जो सभी कार्यालयों में किया जाना चाहिए, जिसमें वरिष्ठ अधिकारियों के लिए यह अनिवार्य कर दिया जाए कि वे समय-समय पर इस काम को करते रहें।

 

विभिन क्षेत्र, विभागों, स्थानीय निकायों और पैरास्टेटल्स (सरकार द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से नियंत्रित संस्था / संगठन) द्वारा लेखन-सामग्री, कम्प्यूटर सहायक सामग्री और कार्यालय उपकरण, उपभोक्‍ता सामग्री और विभागीय विशिष्ट सामग्री जैसे कि रोशनी और सफाई की आवश्यकताएँ, दवाएँ और औषधियाँ, अस्पताल की आवश्यकताएँ, अस्पताल की वस्त्र आवश्यकताएँ, वर्दी की सेवाएँ, शिक्षा संस्थानों और होस्टल की पुस्तकें तथा अन्य शैक्षिक सहायक वस्तुएँ और निर्माण सामग्रियों के लिए व्यापक यप से खरीदी गई वस्तुओं के लिए अदा किए गए मूल्य से सम्बन्धित सूचना समीक्षाओं / जांचों को आन्तरिक रूप से आयोजित किया जाना चाहिए। इन सत्यापनों को किसी एक कार्यालय में किसी समय बिन्दु पर खरीदी गई वस्तुओं के मूल्य की तुलना केवल बाजार मूल्यों के साथ ही करने तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि इसका विस्तार एक या दो वर्ष की अवधि के लिए विद्यमान बाजार मूल्य के साथ किया जाना चाहिए। ऐसी तुलना उसी विभाग के विभिन्‍न कार्यालयों द्वारा उसी अवधि के दौरान अदा किए गए मूल्य और उसी उत्पादन के लिए विभिन्‍न विभागों द्वारा अदा किए गए मूल्यों के साथ की जानी चाहिए। इसी प्रकार का तुलनात्मक विश्लेषण उन विभागों में लाभदायक हो सकता है जिन्होंने नागरिकों से समय-समय पर विवरणियां प्राप्त करनी होती है जैसे कि विविध कर विभाग ।

 

भ्रष्टाचार तब होता है जब कोई लोक सेवक किसी गैर कानूनी काम को करता है ताकि किसी नागरिक को लाभ हो सके। भ्रष्टाचार किसी लोक सेवक की ओर से जानबूझ कर उपेक्षा बरतने पर भी हो सकता है। चेक-पोस्ट पर किसी गैर कानूनी प्रेषण को जाने की मंजूरी दे देना, इसका एक उदाहरण है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए, भ्रष्टाचार के घटना-क्रम का सावधानी से विश्लेषण करने के बाद ही किसी संस्थागत प्रणाली का गठन करना भ्रष्टाचार से प्रभावशाली ढंग से निपटने का पहला आवश्यक कदम है। यह सभी निरीक्षण अधिकारियों की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए।

 

द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की चौथी रिपोर्ट से सम्बन्धित सिफारिशें-

(Related recommendations in Fourth Report of the 2nd ARC)

 

1. अधिकारियों की निगरानी सम्बन्धी भूमिका पर पुनः जोर दिए जाने की आवश्यकता है। यह पुनः उल्लेख कर देना आवश्यक होगा कि पर्यवेक्षी अधिकारी (Supuervisor) अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के बीच भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए मुख्य तौर पर जिम्मेदार हैं और इस प्रयोजन के लिए उन्हें सभी रोकथाम के उपाय करने चाहिए।

 

2. प्रत्येक पर्यवेक्षी अधिकारी को अपने संगठन, कार्यालय में गतिविधियों का विश्लेषण सावधानी से करना चाहिए, ऐसी गतिविधियों का पता लगाना चाहिए जिनसे भ्रष्टाचार फैलता हो और फिर रोकथाम और सतर्कता के उचित उपाय करने चाहिए। सरकार अथवा जनता को अधिकारियों के गलत कामों के द्वारा हुए नुकसान के सभी प्रमुख मामलों की जांच करनी चाहिए और एक निश्चित समयबद्ध अवधि में त्रुटिपूर्ण अधिकारी का उत्तरदायित्व नियत किया जाना चाहिए।

 

3. प्रत्येक अधिकारी की वार्षिक निष्पादन रिपोर्ट में एक स्तम्भ (Column) होना चाहिए जहाँ अधिकारी को यह प्रकट करना चाहिए कि उसने अपने कार्यालय और अपने अधीनस्थ लोगों के बीच भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने के लिए क्या-क्या उपाय किए।

 

4. उन पर्यवेक्षी अधिकारियों को अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा जाना चाहिए जो अपने अधीनस्थ भ्रष्ट अधिकारियों को उनकी वार्षिक निष्पादन रिपोर्टों में साफ छवि का प्रमाण पत्र दे देते हैं, यदि उस अधिकारी पर जिसकी रिपोर्ट लिखी जा रही है, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अन्तर्गत अपराध का आरोप है। इसके अतिरिक्त, उनकी रिपोर्टों में यह तथ्य दर्ज किया जाना चाहिए कि उन्होंने अपने अधीनस्थ भ्रष्ट अधिकारियों की सत्यनिष्ठा के बारे में कोई विपरीत टिप्पणी नहीं की है।

 

5. पर्यवेक्षी अधिकारियों को सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके अधीन सभी कार्यालय सूचना अधिकार अधिनियम के अधीन सूचना के ब्यौरे स्वप्रेरणा से देने की नीति का अनुसरण करें।