व्यक्ति विशेष समसामयिकी 1 (19-July-2021)
टीपू सुल्तान
(Tipu Sultan)

Posted on July 19th, 2021 | Create PDF File

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हाल ही में, मैसूर के शासक ‘टीपू सुल्तान’ का नाम, बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) द्वारा पूर्वी मुंबई के एक उपनगर गोवंडी में एक उद्यान का नामकरण इसके नाम पर करने के प्रयासों को लेकर विवाद के केंद्र में आ गया है।

 

पूर्वी मुंबई के एक स्थानीय पार्षद द्वारा, टीपू सुल्तान’ को एक “स्वतंत्रता सेनानी” और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ युद्ध करने वाला बताते हुए, हाल ही में विकसित किए गए एक नए उद्यान का नामकरण इसके नाम पर करने के सुझाव दिया गया।

 

पार्षद की मांग को BMC प्रशासन द्वारा ‘जून’ में स्वीकार कर लिया गया, और इसकी मंजूरी के लिए 15 जुलाई को ‘मार्केट एंड गार्डन कमेटी’ के पास भेज दिया गया।

 

किंतु, BMC के इस निर्णय की विपक्ष द्वारा आलोचना की जा रही है और इसका कहना है कि, टीपू सुल्तान एक हिंदू-विरोधी शासक था और उनके नाम पर उद्यान का नामकरण किए जाने से हिंदू समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत होंगी।

 

‘टीपू सुल्तान’ :

‘टीपू सुल्तान’ मैसूर राज्य का शासक और मैसूर के सुल्तान हैदर अली का सबसे बड़ा पुत्र था।

 

विस्तृत राष्ट्रीय इतिहास में, टीपू को अब तक कल्पनाशील और साहसी व्यक्ति, तथा प्रतिभाशाली सैन्य रणनीतिकार के रूप में देखा गया है, जिसने अपने 17 वर्षों के छोटे से शासनकाल के दौरान, भारत में ब्रिटिश कंपनी को सबसे गंभीर चुनौती दी।

 

टीपू सुल्तान के योगदान:

टीपू सुल्तान ने मात्र 17 साल की उम्र में पहले एंग्लो-मैसूर युद्ध (1767-69) और बाद में, मराठों के खिलाफ और दूसरे एंग्लो-मैसूर युद्ध (1780-84) में भाग लिया।

 

उसने 1767-99 के दौरान कंपनी की सेना से चार युद्ध किए और चौथे आंग्ल मैसूर युद्ध में अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनम की रक्षा करते हुए मारा गया।

 

टीपू ने नई तकनीक का उपयोग करते हुए यूरोपीय तर्ज पर अपनी सेना को पुनर्गठित किया, और अपनी सेना में पहली बार लड़ाई में काम आने वाले रॉकेट को शामिल किया।

 

उसने, विस्तृत सर्वेक्षण और वर्गीकरण के आधार पर एक भू-राजस्व प्रणाली तैयार की, जिसमें करों को सीधे किसानों पर आरोपित किया जाता था, और राज्य के संसाधन-आधार को विस्तृत करते हुए, इन करों को वेतनभोगी एजेंटों के माध्यम से नकदी के रूप में एकत्र किया जाता था।

 

उसने, कृषि का आधुनिकीकरण, बंजर भूमि के विकास के लिए कर छूट, सिंचाई हेतु बुनियादी ढांचे का निर्माण और पुराने बांधों की मरम्मत करवाई। कृषि उत्पादों और रेशम उत्पादन को बढ़ावा दिया। व्यापार में सहयोग करने के लिए एक नौसेना का गठन किया।

 

उसने, कारखानों की स्थापना के लिए एक “राज्य वाणिज्यिक निगम” का भी गठन किया।

 

‘टीपू सुल्तान’ के संबंध में विवादों का कारण:

 

लगभग हर ऐतिहासिक शख्सियत द्वारा टीपू सुल्तान के प्रति दिलचस्पी दिखाई गई है और लगभग सबका दृष्टिकोण भिन्न रहा है।

 

हैदर और टीपू, दोनों अपने राज्य का विस्तार करने की महत्वाकांक्षाएं रखते थे, उन्होंने मैसूर के बाहर राज्यों पर आक्रमण किए और उन पर अपना अधिकार स्थापित किया। इन हमलों के दौरान, उन्होंने छोटे- छोटे कई नगरों कस्बों और गांवों को जला दिया, सैकड़ों मंदिरों और चर्चों को नष्ट कर दिया, और हिंदुओं का जबरन धर्मांतरण करवाया।

 

ऐतिहासिक दस्तावेजों में, टीपू द्वारा “काफिरों” को इस्लाम में धर्म परिवर्तिन करने हेतु मजबूर करने उनके पूजा स्थलों को नष्ट करने की शेखी बघारने के संबंध में विवरण दर्ज है।

 

टीपू के संबंध में असहमति रखने वाले दो प्रकार के लोग है, एक जो उसे “मैसूर का बाघ” बताते हुए उसे उपनिवेशवाद के खिलाफ एक प्रतिरोध और कर्नाटक के एक महान सपूत के रूप में देखते हैं तथा दूसरे वे, जो उसे मंदिरों को नष्ट करने और हिंदुओं एवं ईसाइयों के जबरन धर्मांतरण का आरोप लगाते हुए कट्टर और अत्याचारी बताते हैं।