कला एवं संस्कृति समसामियिकी 2 (31-July-2020)^टाइम कैप्सूल (Time capsule)
Posted on July 31st, 2020
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट की ओर से राम मंदिर निर्माण स्थल पर जमीन में लगभग 200 फीट एक टाइम कैप्सूल रखे जाने के बाद एक बार फिर से इसकी चर्चा होने लगी है। इस टाइम कैप्सूल का मकसद यह है कि सालों बाद भी यदि कोई श्रीराम जन्मभूमि के बारे में जानना चाहे तो वो इससे जान सकता है।ऐसा नहीं है कि किसी जगह पर टाइम कैप्सूल पहली बार रखा जा रहा है इससे पहले भी देश में अलग-अलग जगहों पर टाइम कैप्सूल रखे जा चुके हैं। लाल किला, कानपुर के आइआइटी कॉलेज और कृषि विश्वविद्यालय में इसे रखा जा चुका है। अब ऐतिहासिक रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण में टाइम कैप्सूल रखा जा रहा है। टाइम कैप्सूल का इस्तेमाल दुनिया के अन्य देशों में भी किया जा रहा है।
टाइम कैप्सूल एक कंटेनर की तरह होता है जिसे विशिष्ट सामग्री से बनाया जाता है। टाइम कैप्सूल हर तरह के मौसम का सामना करने में सक्षम होता है, उसे जमीन के अंदर काफी गहराई में दफनाया जाता है। काफी गहराई में होने के बावजूद भी हजारों साल तक न तो उसको कोई नुकसान पहुंचता है और न ही वह सड़ता-गलता है।टाइम कैप्सूल एक कंटेनर की तरह होता है जिसे विशेष प्रकार के तांबे (कॉपर) से बनाया जा रहा है और इसकी लंबाई करीब तीन फुट होगी। इस कॉपर की विशेषता यह है कि यह सालों साल खराब नही होता है और सैकड़ों हजारों साल बाद भी इसे जब जमीन से निकाला जाएगा तो इसमें मौजूद सभी दस्तावेज पूरी तरह से सुरक्षित होंगे। टाइम कैप्सूल हर तरह के मौसम का सामना करने में सक्षम होता है, उसे जमीन के अंदर काफी गहराई में दफनाया जाता है। काफी गहराई में होने के बावजूद भी हजारों साल तक न तो उसको कोई नुकसान पहुंचता है और न ही वह सड़ता-गलता है।
30 नवंबर, 2017 में स्पेन के बर्गोस में करीब 400 साल पुराना टाइम कैप्सूल मिला था। यह यीशू मसीह के मूर्ति के रूप में था। मूर्ति के अंदर एक दस्तावेज था जिसमें 1777 के आसपास की आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सूचना थी। फिलहाल इसे ही सबसे पुराना टाइम कैप्सूल माना जा रहा है। इसके बाद फिलहाल ऐसा कोई टाइम कैप्सूल नहीं मिला है।टाइम कैप्सूल को दफनाने का मकसद किसी समाज, काल या देश के इतिहास को सुरक्षित रखना होता है। यह एक तरह से भविष्य के लोगों के साथ संवाद है। इससे भविष्य की पीढ़ी को किसी खास युग, समाज और देश के बारे में जानने में मदद मिलती है।
कला एवं संस्कृति समसामियिकी 2 (31-July-2020)टाइम कैप्सूल (Time capsule)
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट की ओर से राम मंदिर निर्माण स्थल पर जमीन में लगभग 200 फीट एक टाइम कैप्सूल रखे जाने के बाद एक बार फिर से इसकी चर्चा होने लगी है। इस टाइम कैप्सूल का मकसद यह है कि सालों बाद भी यदि कोई श्रीराम जन्मभूमि के बारे में जानना चाहे तो वो इससे जान सकता है।ऐसा नहीं है कि किसी जगह पर टाइम कैप्सूल पहली बार रखा जा रहा है इससे पहले भी देश में अलग-अलग जगहों पर टाइम कैप्सूल रखे जा चुके हैं। लाल किला, कानपुर के आइआइटी कॉलेज और कृषि विश्वविद्यालय में इसे रखा जा चुका है। अब ऐतिहासिक रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण में टाइम कैप्सूल रखा जा रहा है। टाइम कैप्सूल का इस्तेमाल दुनिया के अन्य देशों में भी किया जा रहा है।
टाइम कैप्सूल एक कंटेनर की तरह होता है जिसे विशिष्ट सामग्री से बनाया जाता है। टाइम कैप्सूल हर तरह के मौसम का सामना करने में सक्षम होता है, उसे जमीन के अंदर काफी गहराई में दफनाया जाता है। काफी गहराई में होने के बावजूद भी हजारों साल तक न तो उसको कोई नुकसान पहुंचता है और न ही वह सड़ता-गलता है।टाइम कैप्सूल एक कंटेनर की तरह होता है जिसे विशेष प्रकार के तांबे (कॉपर) से बनाया जा रहा है और इसकी लंबाई करीब तीन फुट होगी। इस कॉपर की विशेषता यह है कि यह सालों साल खराब नही होता है और सैकड़ों हजारों साल बाद भी इसे जब जमीन से निकाला जाएगा तो इसमें मौजूद सभी दस्तावेज पूरी तरह से सुरक्षित होंगे। टाइम कैप्सूल हर तरह के मौसम का सामना करने में सक्षम होता है, उसे जमीन के अंदर काफी गहराई में दफनाया जाता है। काफी गहराई में होने के बावजूद भी हजारों साल तक न तो उसको कोई नुकसान पहुंचता है और न ही वह सड़ता-गलता है।
30 नवंबर, 2017 में स्पेन के बर्गोस में करीब 400 साल पुराना टाइम कैप्सूल मिला था। यह यीशू मसीह के मूर्ति के रूप में था। मूर्ति के अंदर एक दस्तावेज था जिसमें 1777 के आसपास की आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सूचना थी। फिलहाल इसे ही सबसे पुराना टाइम कैप्सूल माना जा रहा है। इसके बाद फिलहाल ऐसा कोई टाइम कैप्सूल नहीं मिला है।टाइम कैप्सूल को दफनाने का मकसद किसी समाज, काल या देश के इतिहास को सुरक्षित रखना होता है। यह एक तरह से भविष्य के लोगों के साथ संवाद है। इससे भविष्य की पीढ़ी को किसी खास युग, समाज और देश के बारे में जानने में मदद मिलती है।