अन्तर्राष्ट्रीय समसामियिकी 2 (23-Oct-2020)^श्रीलंका के संविधान का 20वां संशोधन पारित^( The 20th amendment of the Constitution of Sri Lanka passed)
Posted on October 23rd, 2020
हाल ही में, श्रीलंका की संसद ने दो तिहाई बहुमत के साथ संविधान के 20वें संशोधन को पारित कर दिया।श्रीलंका की संसद के 225 सदस्यीय सदन में 156 सांसदों ने इसके पक्ष में मतदान किया, जबकि 65 विधायकों ने इस विधेयक के खिलाफ मतदान किया।
20वें संशोधन के द्वारा कार्यकारी राष्ट्रपति की शक्तियों में विस्तार किया गया है तथा अधिक प्रतिरक्षा प्रदान की गयी है।20वें संशोधन द्वारा, वर्ष 2015 में पारित किये गए 19वें संशोधन को निरस्त कर दिया गया है। 19वें संविधान संशोधन के द्वारा राष्ट्रपति को प्राप्त शक्तियों को कम करके संसद को ज्यादा शक्तिशाली बनाया गया था।इस नए संशोधन के पश्चात प्रधान मंत्री की भूमिका मात्र नाममात्र की रह गयी है।
श्रीलंकाई संविधान में 18वें संशोधन द्वारा राष्ट्रपति को काफी शक्तिशाली बना दिया गया था, 19वे संशोधन को लागू करने का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रपति पद की शक्तियों को कम करके संसद को अधिक शक्तियां प्रदान करना था।
पारित संविधान संशोधन में संवैधानिक परिषद को संसदीय परिषद में बदलने का प्रावधान किया गया है। मौजूदा नियमों के अनुसार, संवैधानिक परिषद के निर्णय राष्ट्रपति के लिये बाध्यकारी हैं, किंतु पारित संसदीय परिषद के निर्णय मानने के लिये राष्ट्रपति बाध्य नहीं है।संविधान संशोधन के माध्यम से मंत्रिमंडल और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति एवं बर्खास्तगी में प्रधानमंत्री की सलाह की आवश्यकता से संबंधित प्रावधान को हटा दिया गया है। साथ ही अब श्रीलंका में प्रधानमंत्री की बर्खास्तगी संसद के विश्वास पर नहीं बल्कि राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करेगी। पारित संशोधन के तहत राष्ट्रपति को संसद की एक वर्ष की अवधि के बाद उसे भंग करने के संबंध में निर्णय लेने की शक्ति दी गई है, जिसका अर्थ है कि संसद की एक वर्ष की अवधि की समाप्ति के बाद राष्ट्रपति उसे किसी भी समय भंग कर सकता है।
श्रीलंकाई संसद में दो दिवसीय बहस के दौरान विपक्षी सांसदों ने तर्क दिया कि इस संशोधन ने राष्ट्रपति को बेलगाम अधिकार देते हुए देश को सत्तावाद के रास्ते पर ले जाने की राह प्रस्तुत की है, जबकि सरकार के सांसदों ने बेहतर प्रशासन के लिये केंद्रीकृत शक्ति की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।20वाँ संविधान संशोधन ऐसे समय में पारित किया गया है जब देश COVID-19 की एक नई लहर का सामना कर रहा है, जिसमें मामलों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। 20वाँ संविधान संशोधन संवैधानिक परिषद की बहुलवादी और विचारशील प्रक्रिया के माध्यम से स्वतंत्र संस्थानों के लिये महत्त्वपूर्ण नियुक्तियों के संबंध में राष्ट्रपति की शक्तियों पर बाध्यकारी सीमाओं को समाप्त करने का प्रावधान करता है।श्रीलंका के कई कानून विशेषज्ञों ने सरकार पर आरोप लगाया है कि सरकार इस संशोधन के माध्यम से देश की संस्थाओं के राजनीतिकरण का प्रयास कर रही है, जबकि इन्हें राजनीति के दायरे से स्वतंत्र कर आम नागरिकों के कल्याण के लिये गठित किया गया था। सरकार द्वारा किये जा रहे ये संविधान संशोधन जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही को प्रभावित करेंगे और श्रीलंका के संविधान में निहित लोकतांत्रिक मूल्यों के समक्ष चुनौती उत्पन्न करेंगे।संवैधानिक नियंत्रण और संतुलन के सिद्धांत की समाप्ति से सार्वजनिक धन के कुशल, प्रभावी और पारदर्शी उपयोग पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
भारत ने श्रीलंका के 20वें संविधान संशोधन को लेकर अभी तक कोई भी आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है और न ही भारत द्वारा बयान जारी करने का कोई अनुमान है, क्योंकि यह संशोधन पूरी तरह से श्रीलंका का आंतरिक मामला है।हालाँकि भारत सरकार निश्चित रूप से श्रीलंका के घटनाक्रम पर नज़र बनाए हुए है, क्योंकि 20वें संशोधन के प्रावधान स्पष्ट रूप से राष्ट्रवादी सिंहली भावनाओं को प्रकट करते हैं। ऐसे में यह घटनाक्रम भारत-श्रीलंका के दीर्घकालिक संबंधों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।हालाँकि भारत के दृष्टिकोण से 19वें संविधान संशोधन से ज़्यादा 13वाँ संविधान संशोधन महत्त्वपूर्ण है। इसी वर्ष फरवरी माह में जब श्रीलंका के वर्तमान प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे भारत के दौरे पर आए थे, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात को दोहराया था कि श्रीलंका को 13वें संशोधन के कार्यान्वयन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।13वें संविधान संशोधन के प्रावधानों का हटना श्रीलंका के तमिल अल्पसंख्यकों के लिये एक बड़ा खतरा उत्पन्न कर सकता है।
अन्तर्राष्ट्रीय समसामियिकी 2 (23-Oct-2020)श्रीलंका के संविधान का 20वां संशोधन पारित( The 20th amendment of the Constitution of Sri Lanka passed)
हाल ही में, श्रीलंका की संसद ने दो तिहाई बहुमत के साथ संविधान के 20वें संशोधन को पारित कर दिया।श्रीलंका की संसद के 225 सदस्यीय सदन में 156 सांसदों ने इसके पक्ष में मतदान किया, जबकि 65 विधायकों ने इस विधेयक के खिलाफ मतदान किया।
20वें संशोधन के द्वारा कार्यकारी राष्ट्रपति की शक्तियों में विस्तार किया गया है तथा अधिक प्रतिरक्षा प्रदान की गयी है।20वें संशोधन द्वारा, वर्ष 2015 में पारित किये गए 19वें संशोधन को निरस्त कर दिया गया है। 19वें संविधान संशोधन के द्वारा राष्ट्रपति को प्राप्त शक्तियों को कम करके संसद को ज्यादा शक्तिशाली बनाया गया था।इस नए संशोधन के पश्चात प्रधान मंत्री की भूमिका मात्र नाममात्र की रह गयी है।
श्रीलंकाई संविधान में 18वें संशोधन द्वारा राष्ट्रपति को काफी शक्तिशाली बना दिया गया था, 19वे संशोधन को लागू करने का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रपति पद की शक्तियों को कम करके संसद को अधिक शक्तियां प्रदान करना था।
पारित संविधान संशोधन में संवैधानिक परिषद को संसदीय परिषद में बदलने का प्रावधान किया गया है। मौजूदा नियमों के अनुसार, संवैधानिक परिषद के निर्णय राष्ट्रपति के लिये बाध्यकारी हैं, किंतु पारित संसदीय परिषद के निर्णय मानने के लिये राष्ट्रपति बाध्य नहीं है।संविधान संशोधन के माध्यम से मंत्रिमंडल और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति एवं बर्खास्तगी में प्रधानमंत्री की सलाह की आवश्यकता से संबंधित प्रावधान को हटा दिया गया है। साथ ही अब श्रीलंका में प्रधानमंत्री की बर्खास्तगी संसद के विश्वास पर नहीं बल्कि राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करेगी। पारित संशोधन के तहत राष्ट्रपति को संसद की एक वर्ष की अवधि के बाद उसे भंग करने के संबंध में निर्णय लेने की शक्ति दी गई है, जिसका अर्थ है कि संसद की एक वर्ष की अवधि की समाप्ति के बाद राष्ट्रपति उसे किसी भी समय भंग कर सकता है।
श्रीलंकाई संसद में दो दिवसीय बहस के दौरान विपक्षी सांसदों ने तर्क दिया कि इस संशोधन ने राष्ट्रपति को बेलगाम अधिकार देते हुए देश को सत्तावाद के रास्ते पर ले जाने की राह प्रस्तुत की है, जबकि सरकार के सांसदों ने बेहतर प्रशासन के लिये केंद्रीकृत शक्ति की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।20वाँ संविधान संशोधन ऐसे समय में पारित किया गया है जब देश COVID-19 की एक नई लहर का सामना कर रहा है, जिसमें मामलों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। 20वाँ संविधान संशोधन संवैधानिक परिषद की बहुलवादी और विचारशील प्रक्रिया के माध्यम से स्वतंत्र संस्थानों के लिये महत्त्वपूर्ण नियुक्तियों के संबंध में राष्ट्रपति की शक्तियों पर बाध्यकारी सीमाओं को समाप्त करने का प्रावधान करता है।श्रीलंका के कई कानून विशेषज्ञों ने सरकार पर आरोप लगाया है कि सरकार इस संशोधन के माध्यम से देश की संस्थाओं के राजनीतिकरण का प्रयास कर रही है, जबकि इन्हें राजनीति के दायरे से स्वतंत्र कर आम नागरिकों के कल्याण के लिये गठित किया गया था। सरकार द्वारा किये जा रहे ये संविधान संशोधन जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही को प्रभावित करेंगे और श्रीलंका के संविधान में निहित लोकतांत्रिक मूल्यों के समक्ष चुनौती उत्पन्न करेंगे।संवैधानिक नियंत्रण और संतुलन के सिद्धांत की समाप्ति से सार्वजनिक धन के कुशल, प्रभावी और पारदर्शी उपयोग पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
भारत ने श्रीलंका के 20वें संविधान संशोधन को लेकर अभी तक कोई भी आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है और न ही भारत द्वारा बयान जारी करने का कोई अनुमान है, क्योंकि यह संशोधन पूरी तरह से श्रीलंका का आंतरिक मामला है।हालाँकि भारत सरकार निश्चित रूप से श्रीलंका के घटनाक्रम पर नज़र बनाए हुए है, क्योंकि 20वें संशोधन के प्रावधान स्पष्ट रूप से राष्ट्रवादी सिंहली भावनाओं को प्रकट करते हैं। ऐसे में यह घटनाक्रम भारत-श्रीलंका के दीर्घकालिक संबंधों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।हालाँकि भारत के दृष्टिकोण से 19वें संविधान संशोधन से ज़्यादा 13वाँ संविधान संशोधन महत्त्वपूर्ण है। इसी वर्ष फरवरी माह में जब श्रीलंका के वर्तमान प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे भारत के दौरे पर आए थे, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात को दोहराया था कि श्रीलंका को 13वें संशोधन के कार्यान्वयन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।13वें संविधान संशोधन के प्रावधानों का हटना श्रीलंका के तमिल अल्पसंख्यकों के लिये एक बड़ा खतरा उत्पन्न कर सकता है।