राष्ट्रीय समसामयिकी 2 (25-January-2022)
‘पैंगोंग त्सो’ झील पर चीन के निर्माणाधीन पुल का सामरिक महत्व
(Strategic importance of China's under construction bridge over 'Pangong Tso' lake)

Posted on January 25th, 2022 | Create PDF File

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‘पैंगोंग त्सो’ (Pangong Tso) झील पर चीन द्वारा एक पुल का निर्माण किया जाना, भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में जारी गतिरोध की श्रंखला में चीन की नवीनतम कार्रवाई है।

 

चीन के निर्माणाधीन पुल की अवस्थित :

 

चीन द्वारा यह पुल, ‘पैंगोंग त्सो झील’ के उत्तरी तट पर, तथा दक्षिण तट पर स्थित चुशुल सब-सेक्टर में बनाया जा रहा है।

 

यह पुल भारत द्वारा दावा किए जाने वाले क्षेत्र के भीतर स्थित है, हालांकि इस क्षेत्र पर 1958 से चीन का नियंत्रण है।

 

भारत के लिए इस पुल का महत्व :

 

यह पुल, ‘पैंगोंग त्सो झील’ के दोनों किनारों के मध्य सबसे नजदीकी बिंदुओं में से एक बिंदु पर ‘पीपल्स लिबरेशन आर्मी’ (PLA) के सैनिकों की त्वरित लामबंदी में मदद करेगा।

 

कैलाश पर्वत श्रेणी इस ‘पुल’ से लगभग 35 किमी पश्चिम में अवस्थित है। पुल का निर्माण होने जाने पर, चीनी सैनिक ‘कैलाश पर्वत श्रेणी’ को आसानी से पार करने में सक्षम हो जाएंगे तथा इसे पार करने में लगने वाला लगभग 12 घंटे का समय घटाकर लगभग चार घंटे का हो जाएगा।

 

इससे इस क्षेत्र में बीजिंग द्वारा किए जाने अपने अधिकार के दावे को मजबूती मिलेगी।

 

पैंगोंग त्सो :

 

पैंगोंग त्सो (Pangong Tso) का शाब्दिक अर्थ “संगोष्ठी झील” (Conclave Lake) है। लद्दाखी भाषा में पैंगोंग का अर्थ है, समीपता और तिब्बती भाषा में त्सो का अर्थ झील होता है।

 

पैंगोंग त्सो, लद्दाख में 14,000 फुट से अधिक की ऊँचाई पर स्थित एक लंबी संकरी, गहरी, स्थलरुद्ध झील है, इसकी लंबाई लगभग 135 किमी है।

 

इसका निर्माण टेथीज भू-सन्नति से हुआ है।

 

यह एक खारे पानी की झील है।

 

काराकोरम पर्वत श्रेणी, जिसमे K2 विश्व दूसरी सबसे ऊंची चोटी सहित 6,000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली अनेक पहाड़ियां है तथा यह ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन और भारत से होती हुई पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे पर समाप्त होती है।

 

इसके दक्षिणी तट पर भी स्पंगुर झील (Spangur Lake) की ओर ढलान युक्त ऊंचे विखंडित पर्वत हैं।

 

इस झील का पानी हालाँकि, एकदम शीशे की तरह स्वच्छ है, किंतु ‘खारा’ होने की वजह से पीने योग्य नहीं है।

 

इस स्थान पर विवाद का कारण :

 

वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control– LAC) – सामान्यतः यह रेखा पैंगोंग त्सो की चौड़ाई को छोड़कर स्थल से होकर गुजरती है तथा वर्ष 1962 से भारतीय और चीनी सैनिकों को विभाजित करती है। पैंगोंग त्सो क्षेत्र में यह रेखा पानी से होकर गुजरती है।

 

दोनों पक्षों ने अपने क्षेत्रों को चिह्नित करते हुए अपने- अपने क्षेत्रों को घोषित किया हुआ है।

 

भारत का पैंगोंग त्सो क्षेत्र में 45 किमी की दूरी तक नियंत्रण है, तथा झील के शेष भाग को चीन के द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

 

फिंगर्स :

 

पैंगोंग त्सो झील में, ‘चांग चेन्मो रेंज’ (Chang Chenmo range) की पहाड़ियां आगे की ओर निकली हुई (अग्रनत) हैं, जिन्हें ‘फिंगर्स’ (Fingers) कहा जाता है।

 

इनमे से 8 फिंगर्स विवादित है। इस क्षेत्र में भारत और चीन के बीच LAC को लेकर मतभेद है।

 

भारत का दावा है कि LAC फिंगर 8 से होकर गुजरती है, और यही पर चीन की अंतिम सेना चौकी है।

 

भारत इस क्षेत्र में, फिंगर 8 तक, इस क्षेत्र की संरचना के कारण पैदल ही गश्त करता है। लेकिन भारतीय सेना का नियंत्रण फिंगर 4 तक ही है।

 

दूसरी ओर, चीन का कहना है कि LAC फिंगर 2 से होकर गुजरती है। चीनी सेना हल्के वाहनों से फिंगर 4 तक तथा कई बार फिंगर 2 तक गश्त करती रहती है।

 

पैंगोंग त्सो क्षेत्र में चीनी अतिक्रमण का कारण :

 

पैंगोंग त्सो झील रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चुशूल घाटी (Chushul Valley) के नजदीक है। वर्ष 1962 के युद्ध के दौरान चीन द्वारा मुख्य हमला चुशूल घाटी से शुरू किया गया था।

 

चुशूल घाटी का रास्ता पैंगोंग त्सो झील से होकर जाता है, यह एक मुख्य मार्ग है, चीन, इसका उपयोग, भारतीय-अधिकृत क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए कर सकता है।

 

चीन यह भी नहीं चाहता है, कि भारत LAC के आस पास कहीं भी अपने बुनियादी ढांचे को विस्तारित करे। चीन को डर है, कि इससे अक्साई चिन और ल्हासा-काशगर (Lhasa-Kashgar) राजमार्ग पर उसके अधिकार के लिए संकट पैदा हो सकता है।

 

इस राजमार्ग के लिए कोई खतरा, लद्दाख और पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर में चीनी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाओं के लिए बाधा पहुचा सकता है।