भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएं (भाग -5) - सर्वागीण,संयुक्त परिवार एवं पुरुषार्थ की अवधारणा (Salient features of Indian Society Part-5 - Completeness, Joint Family and Concept of Purushartha)

Posted on March 19th, 2020 | Create PDF File

सर्वागीण (Completeness)-

 

भारतीय समाज का निर्माण किसी एक जाति, वर्ग, धर्म या व्यक्ति विशेष से नहीं हुआ है बल्कि इसके निर्माण में विभिन्‍न धर्मों, वर्गों, जातियों एवं अनेक महापुरुषों का योगदान रहा है। यही कारण है कि भारतीय
समाज में सभी के कल्याण की बात कही गई है। सर्वे भवन्तु सुखिन: भारतीय संस्कृति का सार है अर्थात्‌ यहाँ सभी के सुख की कामना की गई है।

 

संयुक्त परिवार (Joint Family)- 

 

अति प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में संयुक्त परिवार प्रथा का प्रचलन रहा है। इसमें सामान्यतः दो या तीन या अधिक पीढ़ियों के सदस्य एक साथ निवास करते हैं। सभी सदस्य परिवार के मुखिया के अधीन
होते हैं तथा सभी सदस्यों का सम्पत्ति पर स्वामित्व होता है। इस प्रथा को जन्म देने में भारतीय कृषि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

 

पुरुषार्थ की अवधारणा (Concept of Purushartha) -

 

भारतीय परम्परा में जीवन का ध्येय पुरुषार्थ को माना गया है। पुरुषार्थ की संख्या चार बताई गई है :धर्म (Religion or Righteousness), अर्थ (Wealth), काम (Work, Desire and Sex) और मोक्ष (Salvation or Liberation) | इसमें धर्म से आशय अपने कर्तव्यों का पालन करने से है। हर मनुष्य के लिए कुछ कर्तव्यों का निर्धारण किया गया है और उसे इनका पालन करना चाहिए। वही उसके धर्म का पालन भी है। अर्थ से तात्पर्य है-जिसके द्वारा भौगोलिक सुख-समृद्धि की सिद्धि होती हो। ऐसे कर्म हों जिससे अर्थोपार्जन हो। अर्थोपार्जन से ही काम साधा जाता है। काम की अवधारणा में संसार के सुखों को शामिल किया गया है। जिन व्यक्तिगत सुखों से परिवार और समाज को हानि होती है ऐसे सुखों को वर्जित माना गया है। मोक्ष का अर्थ है-जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति और संसार में आवागमन से मुक्ति। मोक्ष भारतीय समाज का चरम लक्ष्य समझा गया है। माना गया है कि प्रत्येक प्राणी को मोक्ष प्राप्त करने की दिशा में प्रयास करना चाहिए। कुछ अपवादों को छोड़कर समूचे भारतीय दर्शन में मोक्ष को सर्वोच्च आदर्श माना गया है।