भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएं (भाग -4) -जाति व्यवस्था एवं कर्म एवं पुनर्जन्म का सिद्धान्त (Salient features of Indian Society Part-4-Caste System and Doctrine of Karma and Reincarnation)
Posted on March 19th, 2020
जाति व्यवस्था (Caste System)-
जाति-व्यवस्था के आधार पर भारतीय समाज को कई भागों व उपभागों में बांटा गया है। जन्म से ही जाति की सदस्यता प्राप्त होती है तथा प्रत्येक जाति का समाज में अपना एक विशिष्ट स्थान होता है। इनके खान-पान एवं सामाजिक गतिविधियों के नियम हैं तथा इनमें एक परम्परागत व्यवसाय भी पाया जाता है। प्राचीन काल के चार वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ही कालान्तर में जाति के रूप में विकसित हो गए।जाति व्यवस्था भारतीय समाज को अनेक ढंग से प्रभावित करती रही है।
कर्म एवं पुनर्जन्म का सिद्धान्त (Doctrine of Karma and Reincarnation)-
भारतीय समाज में कर्म को काफी महत्व दिया गया है। ऐसी मान्यता है कि अच्छे कर्मों का अच्छा जबकि बुरे कर्मों का बुरा फल प्राप्त होता है। मृत्यु के बाद पुनः: वह किस योनि में जन्म लेगा यह उसके पिछले जन्म के कर्म पर निर्भर करता है। अच्छे कर्म करने वाले को उच्च योनि में जबकि बुरे कर्म करने वालों को निम्न योनि में जन्म लेना होता है। उच्च योनि में जन्म लेने वाले सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं जबकि निम्न योनि में जन्म लेने वालों को अनेक कष्ट उठाने पड़ते हैं। इस विशेषता के कारण ही हमें हमेशा अच्छे कर्म करने की प्रेरणा मिलती है|
भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएं (भाग -4) -जाति व्यवस्था एवं कर्म एवं पुनर्जन्म का सिद्धान्त (Salient features of Indian Society Part-4-Caste System and Doctrine of Karma and Reincarnation)
जाति-व्यवस्था के आधार पर भारतीय समाज को कई भागों व उपभागों में बांटा गया है। जन्म से ही जाति की सदस्यता प्राप्त होती है तथा प्रत्येक जाति का समाज में अपना एक विशिष्ट स्थान होता है। इनके खान-पान एवं सामाजिक गतिविधियों के नियम हैं तथा इनमें एक परम्परागत व्यवसाय भी पाया जाता है। प्राचीन काल के चार वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ही कालान्तर में जाति के रूप में विकसित हो गए।जाति व्यवस्था भारतीय समाज को अनेक ढंग से प्रभावित करती रही है।
कर्म एवं पुनर्जन्म का सिद्धान्त (Doctrine of Karma and Reincarnation)-
भारतीय समाज में कर्म को काफी महत्व दिया गया है। ऐसी मान्यता है कि अच्छे कर्मों का अच्छा जबकि बुरे कर्मों का बुरा फल प्राप्त होता है। मृत्यु के बाद पुनः: वह किस योनि में जन्म लेगा यह उसके पिछले जन्म के कर्म पर निर्भर करता है। अच्छे कर्म करने वाले को उच्च योनि में जबकि बुरे कर्म करने वालों को निम्न योनि में जन्म लेना होता है। उच्च योनि में जन्म लेने वाले सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं जबकि निम्न योनि में जन्म लेने वालों को अनेक कष्ट उठाने पड़ते हैं। इस विशेषता के कारण ही हमें हमेशा अच्छे कर्म करने की प्रेरणा मिलती है|