भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएं (भाग -3) -धर्म की प्रधानता, अनुकूलनशीलता एवं वर्णाश्रम व्यवस्था (Salient features of Indian Society Part-3-Dominance of Religion, Adaptability and Varna System)

Posted on March 19th, 2020 | Create PDF File

धर्म की प्रधानता (Dominance of Religion) -

 

भारतीय समाज एक धर्म प्रधान समाज है। यहाँ मानव जीवन के प्रत्येक व्यवहार को धर्म के द्वारा नियंत्रित करने का प्रयास किया गया है। प्रत्येक भारतीय अपने जीवन काल में अनेक धार्मिक कार्यों व अनुष्ठानों का आयोजन करते हैं। यह धर्म संकुचित धर्म नहीं बल्कि मानवतावादी धर्म है, जो सभी जीवों के प्रतिदया और कल्याण की भाव रखता है। इस प्रकार भारतीय समाज व संस्कृति के विभिन्‍न अंगों पर धर्म की स्पष्ट छाप दिखाई देती है।

 

अनुकूलनशीलता  (Adaptability)-

 

भारतीय समाज के अनुलनशील प्रकृति होने के काण ही यह आज भी कायम है। भारतीय समाज में समय के साथ परिवर्तित होने क्ली विशिष्ट क्षमता है। यहाँ के परिवार, जाति, धर्म एवं संस्थाओं ने समय के साथ स्वयं को अनुकूलित किया है। यही कारण है कि भारतीय समाज एवं संस्कृति का विघटन के स्थान पर परिवर्तन होता रहा और यह स्वयं को नष्ट होने से बचाने में कामयाब रहा।

 

वर्णाश्रम व्यवस्था (Varna System)-

 

वर्ण एवं आश्रमों की व्यवस्था भी भारतीय समाज की एक विशेषता है। यहाँ समाज में श्रम विभाजन के लिए चार वर्णो-ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र की रचना की गई। इनमें ब्राहमणों को सबसे ऊपर रखा गया
और उन्हें बुद्धि और शिक्षा के प्रतीक के रूप में माना गया। उनके बाद क्षत्रिय का स्थान है जिन्हें शक्ति के प्रतीक के रूप में माना गया। तीसरे पदानुक्रम पर वैश्यों को रखा गया, जो भरण-पोषण एवं अर्थव्यवस्था का संचालन करते हैं तथा शूद्र जिन्हें चौथे एवं अन्तिम पायदान पर रखा गया, अन्य सभी वर्णों की सेवा करते हैं। प्राचीन भारतीय ऋषि-मुनियों ने मनुष्य के लिए चार आश्रमों-ब्रह्म्चर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास की व्यवस्था की। जहाँ वर्ण मनुष्यों के बीच कार्य विभाजन को इंगित करते हैं वहीं आश्रम उनके मानसिक और आध्यात्मिक विकास को प्रकट करते हैं। वर्णाश्रम व्यवस्था मानव जीवन की समस्याओं व जीवन दर्शन पर निर्भर हैं। भारतीय समाज की यह व्यवस्था संसार को एक अनुपम भेंट है।