कला एवं संस्कृति समसामयिकी 1(18-June-2022)
भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेष
(Sacred Relics of Lord Buddha)

Posted on June 19th, 2022 | Create PDF File

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मंगोलियाई बुद्ध पूर्णिमा समारोह के अवसर पर भगवान बुद्ध के चार पवित्र अवशेषों को 11 दिवसीय प्रदर्शनी के लिये भारत से मंगोलिया ले जाया जा रहा है। 

 

इन अवशेषों को उलानबटार में गंडन मठ परिसर के बटसागान मंदिर में प्रदर्शित किया जाना है। 

 

चारो अवशेष बुद्ध के 22 अवशेषों में से हैं, जो वर्तमान में दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखे गए हैं। 

 

साथ ही उन्हें 'कपिलवस्तु अवशेष' के रूप में जाना जाता है क्योंकि वे बिहार के एक स्थान जिसे कपिलवस्तु का प्राचीन शहर माना जाता है, से प्राप्त किये गए हैं। इस स्थान की खोज 1898 में हुई थी। 

 

वे अवशेष पवित्र व्यक्तियों से जुड़ी पवित्र वस्तुएंँ हैं। 

 

वे शरीर के अंग (दांँत, बाल, हड्डियांँ) या अन्य वस्तुएंँ हो सकती हैं जिन्हें पवित्र व्यक्ति ने इस्तेमाल किया या छुआ है। 

 

कई परंपराओं में यह माना जाता है कि लोगों को स्वस्थ करने, अनुग्रह प्रदान करने या राक्षसों को भगाने के लिये अवशेषों में विशेष शक्तियांँ होती हैं। 

 

बुद्ध के पवित्र अवशेष : 

 

बौद्ध मान्यताओं के अनुसार, 80 वर्ष की आयु में बुद्ध ने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ज़िले में मोक्ष प्राप्त किया। 

 

कुशीनगर के मल्लों ने एक सार्वभौमिक राजा के रूप में समारोहों के साथ उनके शरीर का अंतिम संस्कार किया। 

 

अंतिम संस्कार की चिता से उनके अवशेषों को एकत्र कर उन्हें आठ भागों में विभाजित किया गया, जिन्हें मगध के अजातशत्रु, वैशाली के लिच्छवी, कपिलवस्तु के शाक्य, कुशीनगर के मल्ल, अल्लकप्पा के बुलीज, पावा के मल्ल, रामग्राम के कोलिया और वेथादिपा के एक ब्राह्मण के बीच वितरित किया गया। 

 

इसका उद्देश्य पवित्र अवशेषों पर स्तूप का निर्माण करना था। 

 

इसके बाद दो और स्तूपों का पता चलता है जिनमें से एक का निर्माण एकत्र किये गए अस्ति कलश के ऊपर तथा दूसरे का निर्माण अंगारे (लकड़ी का बिन जला कोयला) के ऊपर हुआ है। 

 

बुद्ध के शरीर के अवशेषों पर बने स्तूप (सरिरिका स्तूप) सबसे पहले जीवित बौद्ध मंदिर हैं। इन आठ स्तूपों में से सात को अशोक (272-232 ईसा पूर्व) ने बनवाया, तथा बौद्ध धर्म के साथ-साथ स्तूपों के पंथ को लोकप्रिय बनाने के प्रयास में उनके द्वारा बनाए गए 84,000 स्तूपों के भीतर अवशेषों के बड़े हिस्से को एकत्र किया। 

 

कपिलवस्तु अवशेष की खोज : 

 

वर्ष1898 में पिपरहवा (UP के सिद्धार्थनगर के पास) में स्तूप स्थल पर एक उत्खनित ताबूत की खोज ने प्राचीन कपिलवस्तु की पहचान करने में मदद की। 

 

ताबूत के ढक्कन पर मौजूद शिलालेख बुद्ध और उनके समुदाय, शाक्य के अवशेषों को संदर्भित करता है। 

 

वर्ष 1971-77 के दौरान भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा एक और स्तूप की खुदाई में दो शैलखडी ताबूत सामने आए, जिनमें कुल 22 पवित्र अस्थि अवशेष थे, जो अब राष्ट्रीय संग्रहालय की देख-रेख में हैं। 

 

इसके बाद पिपरहवा के पूर्वी मठ में विभिन्न स्तरों और स्थानों से 40 से अधिक टेराकोटा मुद्रण की खोज की गई, जिससे यह प्रमाणित हुआ कि पिपरहवा ही प्राचीन कपिलवस्तु था। 

 

मंगोलिया यात्रा के लिये सुरक्षा : 

 

11 दिवसीय यात्रा के दौरान अवशेषों को मंगोलिया में 'राज्य अतिथि' का दर्जा दिया जाएगा और फिर से भारत के राष्ट्रीय संग्रहालय में ले जाया जाएगा। 

 

यात्रा के लिये भारतीय वायु सेना ने एक विशेष हवाई जहाज़, सी-17 ग्लोबमास्टर उपलब्ध कराया है, जो भारत में उपलब्ध सबसे बड़े विमानों में से एक है। 

 

वर्ष 2015 में पवित्र अवशेषों को प्राचीन वस्तुओं और कला खजाने की 'एए' श्रेणी के तहत रखा गया था, जिन्हें उनकी नाजुक प्रकृति को देखते हुए प्रदर्शनी के लिये देश से बाहर नहीं ले जाया जाना चाहिये। 

 

गौतम बुद्ध :

 

उनका जन्म सिद्धार्थ के रूप में लगभग 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी में एक शाही परिवार में हुआ था, जो भारत-नेपाल सीमा के पास स्थित है। 

 

उनका परिवार शाक्य वंश से संबंधित था, जो कपिलवस्तु, लुंबिनी में शासन करता था। 

 

29 वर्ष की आयु में गौतम ने गृह त्याग दिया और सांसारिक जीवन को त्याग कर तपस्या या अत्यधिक आत्म-अनुशासन की जीवनशैली को अपनाया। 

 

लगातार 49 दिनों के ध्यान के बाद गौतम ने बिहार के बोधगया में एक पीपल के पेड़ के नीचे बोधि (ज्ञान) प्राप्त किया। 

 

बुद्ध ने अपना पहला उपदेश उत्तर प्रदेश में वाराणसी के पास सारनाथ गाँव में दिया था। इस घटना को धर्म चक्र प्रवर्तन  के रूप में जाना जाता है। 

 

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में 80 वर्ष की आयु में 483 ईसा पूर्व में उनका निधन हो गया। इस घटना को महापरिनिर्वाण के नाम से जाना जाता है। 

 

उन्हें भगवान विष्णु (दशवतार) के दस अवतारों में से आठवाँ अवतार माना जाता है।