अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका (Role of women in the economy)

Posted on March 20th, 2020 | Create PDF File

भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाएँ अग्रणी भूमिका निभाती आई हैं। कृषि कार्य और उच्च बचत दर निर्माण सहित आर्थिक गतिविधियों के विस्तृत दायरे में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। हाल तक भारत की विकास दर उच्च रही है और इसका कारण बचत और पूंजी निर्माण की उच्च दर है। भारत में बचत दर सकल घरेलू उत्पाद का 33 प्रतिशत है, जिसमें 70 प्रतिशत घरेलू बचत और 20 प्रतिशत निजी क्षेत्र की बचत तथा 10 प्रतिशत सार्वजनिक क्षेत्र की बचत का योगदान है। बचत, उपभोग-अभिवृत्ति और पुनर्चक्रण-प्रवृत्ति के मामले में कोई संदेह नहीं है कि भारत की अर्थव्यवस्था महिला केन्द्रित है। कृषि उत्पादन में महिलाओं की औसत भागीदारी का अनुमान कुल श्रम का 55 पतिशत से 66 प्रतिशत तक है। डेयरी उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी कुल रोजगार का 94 प्रतिशत है। वन-आधारित लघु-स्तरीय उद्यमों में महिलाओं की संख्या कुल कार्यरत श्रमिकों का 54 प्रतिशत है।

 

ग्रामीण महिलाओं को श्रम के मामले में दोहरी भूमिका का निर्वहन करना होता है। उनकी एक भूमिका परिवार की भोजन और अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने की होती है तो दूसरी ओर उन्हें जरूरत पड़ने पर खेती के कार्यों में सहयोग देना होता है। शहरों में रहने वाली महिलाओं की श्रम के क्षेत्र में भूमिका भिन्‍न है।यहाँ पर मोटे तौर पर श्रमिक महिला और घरेलू महिला के दो वर्ग है।

 

यह प्रश्न सामने आता है कि आने वाले समय में थर्ड बिलियन यानी दुनिया की तीन अरब महिलाएँ किस प्रकार की भूमिका निभाएंगी और दुनिया की सरकारी व पूंजीवादी संस्थाएँ उन्हें संरक्षण और प्रोत्साहन देंगी या फिर उनके मार्ग को रोकने की कोशिश करेंगी। पिछले दिनों अंतराष्ट्रीय परामर्श व प्रबंधन संस्था 'बूज एंड कम्पनी' ने 'थर्ड बिलियन इंडेक्स' नाम की अपनी एक शोध रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला है कि अगले एक दशक में दुनिया के कुल कार्यबल में एक अरब महिलाएँ शामिल होंगी, लेकिन आर्थिक सशक्तीकरण तथा पेशेवर सफलता के मामले में उनके सामने काफी चुनौतियाँ भी आएंगी। थर्ड बिलियन शब्द विकासशील और औद्योगिक देशों की उन महिलाओं का प्रतिनिधित्व करता है जो 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता, उत्पादक, कर्मचारी और उद्यमियों का स्थान ग्रहहण कर पहली बार अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा में शामिल होंगी। कम से कम भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाओं पर इन महिलाओं का प्रभाव महत्वपूर्ण तरीके से पड़ने की आशा की जा सकती है क्योंकि इन देशों में इनकी आबादी लगभग एक अरब से अधिक है।

 

अर्थव्यवस्था में सूचना प्रौद्योगिकी के दृष्टतम उपयोगकर्ताओं के रूप में महिलाओं की भूमिका में दिनोंदिन विस्तार होता जा रहा है। एयरलाइंस एक बड़ा सेवा क्षेत्र है जिसमें महिलाओं को अच्छा व्यक्तित्व, संचार कौशल और कंप्यूटर योग्यता के साथ प्राथमिकता मिलती है। बैकिंग प्रौद्योगिकी के माध्यम से क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, एटीएम, वेस्टर्न मनी ट्रांसफर, टेलर प्रणाली और ई बैंकिंग प्रणालियाँ तेजी से विकसित हुई
हैं। इन कार्यों को महिलाएँ कम्प्यूटर अनुप्रयोगों के साथ संभव बना रही है। इसी तरह शिक्षा के क्षेत्र में आईटी के जरिए महिलाओं के लिए अवसरों में बढ़ोत्तरी हुई है। मोबाइल फोन, इनटरनेट आदि की सुविधा के साथ अन्य सेवाओं में भी महिलाओं की मांग अत्यधिक बढ़ रही है। मेडिकल ट्रांस्क्रिप्सन (Transcription) सेवा क्षेत्र पिछले कुछ वर्षों में उभरा है। इसमें मुख्य रूप से महिलाएँ की इलाज और संबंधित चिकित्सा शर्तों को समझाती हैं। ई-पुस्तकों में नए कैरियर, ई-पत्रिकाएँ, ई-प्रकाशन और वेब डिजाइन वर्तमान परिदृश्य में लोकप्रिय हैं जहाँ महिलाओं की संख्या और उनकी भूमिका तेजी से बढ़ी हैं। थर्ड बिलियन इंडेक्स रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि महिलाओं के रोज़गार की दर पुरूषों की रोजगार दर के सामान हो तो भारत के सकल घरेलू उत्पादन में 27 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। विदित है कि महिलाओं और पुरूषों की रोजगार-दर में समानता लाकर संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र सरीखी विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ अपने सकल घरेलू उत्पाद में क्रमश: 42 और 34 प्रतिशत की वृद्धि कर सकती हैं। कमोबेश ऐसा ही विकसित देशों की अर्थव्यवस्था के साथ भी हो सकता है। महिलाओं की रोजगार दर को पुरूषों की रोजगार दर के समान लाकर अमेरिका की अर्थव्यवस्था 5 प्रतिशत और जापान की अर्थव्यवस्था 9 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर सकती हैं। अर्थव्यवस्था के दरवाजे के बाहर खड़ी भारतीय महिलाओं की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि “अधिकांश भारतीय महिलाओं को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा, सामाजिक सेवा, परिवहन तथा गुणव्त्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त नहीं है। अगर अपनी महिला जनसंख्या को आर्थिक रूप से मजबूत बनाना चाहता है तो उसे इन बुनियादी समस्याओं का समाधान करना चाहिए। हालाँकि भारत में प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए अच्छा-खासा जोर दिया गया है लेकिन भारत में विनिर्माण का क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है और इसके लिए व्यावसायिक रूप से दक्ष लोगों की आवश्यकता है, जबकि देश की शिक्षा व्यवस्था इस मामले में मांग के अनुरूप पूर्ति नहीं कर पा रही है।”

 

11वीं पंचवर्षीय योजना में महिला सशक्तिकरण पर बने एक कार्यकारी समूह के अनुसार वैश्वीकरण ने महिलाओं पर विपरीत प्रभाव डाला है। इसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण तथा उदारीकरण के बढ़ने और सेवाओं के निजीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण सामूहिक रूप से महिलाएँ पीछे रह गई हैं और इसकी सफलता से होने वाले लाभ उठाने में असफल रही हैं। नए और अन्य उभरते हुए क्षेत्रों में महिलाओं को मुख्य धारा में लाना अनिवार्य है। इसके लिए संबंधित क्षेत्रों में प्रशिक्षण और कौशल आवश्यक होगा, इससे इन क्षेत्रों में महिलाओं को व्यावसायिक शिक्षा और रोजगार के लिए प्रोत्साइन मिलेगा। इसके लिए यह भी आवश्यक होगा कि कार्य के लिए महिलाओं को शहरों और महानगरों में आने के लिए प्रवृत्त किया जाए। सुरक्षित आवास तथा कार्यस्थल पर लिंगभेद रहहित सुविधाएँ प्रदान करना भी आवश्यक होगा।

महिलाओं की भूमिकाओं को सुदृढ़ बनाने छेतु निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं जिन पर अमल किए जाने की आवश्यकता है:

 

*सकरात्मक आर्थिक और सामाजिक नीतियों के माध्यम से महिलाओं के विकास के लिए ऐसा वातावरण बनाना जो उन्हें अपनी पूर्ण क्षमता का अनुभव करने के लिए सक्षम बनाए।

*पुरुषों के साथ महिलाओं को राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और नागरिक क्षेत्रों में मानवाधिकारों का वैधानिक और वास्तविक उपभोग के समान अवसर प्रदान किया जाए।

*देश के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन में सहयोग तथा निर्णय लेने की प्रक्रिया में महिलाओं की समान भागीदारी होनी चाहिए |

*स्वास्थ्य, सभी स्तरों पर शिक्षा की गुणवत्ता का समान उपयोग, करियर तथा व्यावसायिक मार्गदर्शन और रोजगार में समान पारिश्रमिक, व्यावसायिक स्वास्थ्य की सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा तथा सार्वजनिक कार्यालय आदि तक समान पहुँच हो।

*महिलाओं के विरूद्ध भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन के उद्देश्य से वैधानिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता।

*पुरूषों और महिलाओं की सक्रिय भागीदारी से सामाजिक व्यवहार और समुदाय प्रथाओं में परिवर्तन।

*विकास और प्रक्रिया में लिंग दृष्टिकोण को मुख्यधारा में लाना।

*महिलाओं और बालिकाओं के विरूद्ध भेदभाव तथा सभी प्रकार की हिंसा का उन्मूलन।

*नागरिक समाज के साथ भागीदारी का निर्माण और उसे सुदृढ़ बनाना, विशेषकर महिला संगठनों के साथ ।