मूल्य विकसित करने में समाज की भूमिका (Role of Society in developing value)

Posted on March 27th, 2020 | Create PDF File

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मूल्य विकसित करने में समाज की भूमिका (Role of Society in developing value)

 

प्रायः व्यक्तित्व निर्माण के पक्षों में परिवार, समाज, विद्यालय एवं आनुवांशिकी को स्वीकार किया जाता है। यही चार तत्व मुख्यतः व्यक्तित्व के निर्धारक हैं। इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण परिवार नामक संस्था है, लेकिन समाज भी परिवार से कम महत्वपूर्ण नहीं है। वास्तव में परिवार समाज से अलग इकाई नहीं है। प्रायः परिवार में वही मूल्य पाए जाते हैं जो सामाजिक परिवेश में विद्यमान होते हैं। परिवार में भी समाज के लोगों का आना-जाना होता है। परिवार एवं समाज दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। बच्चा जेसे ही घर की चाहरदीवारी से बाहर निकलना प्रारम्भ करता है वह सामाजिक परिवेश से प्रभावित होना प्रारंभ करता है। भारतीय समाज स्वयं मूल्यों के संक्रमण काल से गुजर रहा है। यद्यपि मूल्यों का विकास क्रमिक रूप से होता रहा है। भारतीय सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन यद्यपि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान होना प्रारंभ हुआ। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान ही भारत में राजनैतिक राष्ट्रवाद की स्थापना हुई। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात्‌ लोकतांत्रिक मूल्य हमारे राजनैतिक आदर्श के रूप में स्वीकृत हुए तथा धीरे-धीरे ये राजनीतिक आदर्श,सामाजिक आदर्श का रूप लेने लगे। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इन राजनैतिक आदर्शों की स्थापना प्रशासन के माध्यम से सामाजिक रूप से स्थापित करने की है। वास्तव में वर्तमान में प्रशासन का मुख्य कर्तव्य लोकतांत्रिक आदर्शों को सामाजिक आदर्श के रूप में स्थापित करने की है। इसमें प्रशासन की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है।प्रशासन शासन का एक उपकरण है। शासन के लक्ष्य प्रशासन के माध्यम से ही सुनिश्चित किए जाते हैं।

 

भारतीय समाज की समस्या यह है कि यह स्वतंत्रता प्राप्ति के 60 वर्ष के पश्चात्‌ भी नागरिक समाज का रूप नहीं ले सका है। वास्तव में नागरिक समाज का मुख्य आधार शिक्षा होती है। जब तक जन सामान्य अपने अधिकार एवं कर्तव्य के प्रति सचेत नहीं होते तब तक शासकीय एवं प्रशासकीय सुधार का लाभ जनता तक नहीं पहुंच पाता। अर्थात्‌ जनता का जागरूक होना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। भारत में जितने कानूनों का विधान किया गया है उनका प्रयोग करने वालों की प्रतिशतता अत्यंत न्यून है।

 

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारतीय प्रशासन के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती नवीन सामाजिक मूल्यों को प्राप्त करना है। अभी राजनेतिक आदर्श, समानता, स्वतंत्रता, न्याय एवं भातृत्व सामाजिक मूल्य का रूप नहीं ले सके हैं। इसी सन्दर्भ में प्रशासन की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। प्रशासन से अपेक्षा की जाती है कि वह इन नवीन सामाजिक मूल्यों को न केवल स्थापित करें, बल्कि इनके उपयोग को भी सुनिश्चित करें।