पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी समसामयिकी 1(24-Nov-2022)
हाथीदाँत व्यापार की पुनः शुरुआत और भारत
(Resumption of the ivory trade and India)

Posted on November 24th, 2022 | Create PDF File

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वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora- CITES) के सम्मेलन में भारत ने हाथीदाँत व्यापार की पुनः शुरुआत से संबंधित मतदान में भाग नहीं लेने का निर्णय लिया है।

 

हाथीदाँत व्यापार का मामला :

 

अफ्रीकी हाथी की पूरी आबादी को CITES परिशिष्ट I में सम्मिलित किये जाने के बाद वर्ष 1989 में हाथीदाँत के व्यापार पर विश्व स्तर पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

 

नामीबिया, बोत्सवाना और ज़िम्बाब्वे के अफ्रीकी हाथी वर्ष 1997 में तथा दक्षिण अफ्रीका के हाथी वर्ष 2000 में परिशिष्ट II में शामिल किये गए।

 

CITES ने ज़िम्बाब्वे, बोत्सवाना और दक्षिण अफ्रीका के साथ नामीबिया को वर्ष 1999 एवं वर्ष 2008 में ऐसे हाथी जिनकी मृत्यु प्राकृतिक रूप से हुई हो और शिकारियों से बरामद हाथीदाँत की एकमुश्त बिक्री करने की अनुमति दी।

 

CoP17 (2016) और CoP18 (2019) में CITES परिशिष्ट II से चार देशों की हाथी आबादी को हटाकर नियमित रूप से विनियमित हाथीदाँत व्यापार की अनुमति देने के नामीबिया के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया।

 

ज़िम्बाब्वे ने CoP19 में इस पर विचार करने का प्रस्ताव रखा लेकिन इसे फिर निरस्त कर दिया गया।

 

नामीबिया और अन्य दक्षिणी अफ्रीकी सरकारों का कहना है कि उनकी हाथियों की आबादी पहले जैसी हो गई है और अगर उनके पास संगृहीत हाथीदाँत को विश्व भर में बेचा जाता है तो इससे हाथी संरक्षण हेतु आवश्यक राजस्व पैदा किया जा सकता है।

 

इस प्रकार के व्यापार के विरोधियों का तर्क है कि किसी भी प्रकार की आपूर्ति से मांग में वृद्धि होती है और जब CITES ने वर्ष 1999 एवं वर्ष 2008 में एकमुश्त बिक्री की अनुमति दी थी, तब दुनिया भर में हाथियों के अवैध शिकार में पर्याप्त वृद्धि देखी गई थी।

 

भारत का रुख :

 

भारत तीन दशकों से भी अधिक समय से अंतर्राष्ट्रीय हाथीदाँत व्यापार का मुखर विरोधी रहा है।

 

यह पहली बार है जब भारत ने वर्ष 1976 में CITES में शामिल होने के बाद से हाथीदाँत व्यापार की पुनः शुरुआत से संबंधित मतदान में भाग नहीं लेने का निर्णय लिया है।

 

उसी CoP19 में नामीबिया ने भारत के उत्तर भारतीय शीशम - Dalbergia sissoo के स्थायी व्यावसायिक उपयोग की अनुमति देने के प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया था और उसे भी खारिज कर दिया गया था।

 

हालाँकि "हाथीदाँत" शब्द का उल्लेख नहीं किया गया था, नामीबिया ने हाथीदाँत में व्यापार की अनुमति के लिये भारत का समर्थन मांगा था।

 

हाथीदाँत पर प्रतिबंध लगाने के भारत के प्रयास :

 

लुप्तप्राय एशियाई हाथी को वर्ष 1975 में CITES परिशिष्ट I में शामिल किया गया था, जिसने एशियाई देशों से हाथीदाँत के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था।

 

वर्ष 1986 में भारत ने हाथीदाँत की घरेलू बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के लिये वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संशोधन किया। हाथीदाँत के व्यापार पर विश्व स्तर पर प्रतिबंध लगने के बाद भारत ने वर्ष 1991 में अफ्रीकी हाथीदाँत के आयात पर प्रतिबंध लगाने हेतु कानून में फिर से संशोधन किया।

 

वर्ष 1981 में जब नई दिल्ली ने CoP3 की मेज़बानी की तो भारत ने प्रतिष्ठित CITES का प्रतीक चिह्न हाथी के रूप में डिज़ाइन किया। पिछले कुछ वर्षों में हाथीदाँत के मुद्दे पर भारत का रुख स्पष्ट रहा है।

 

CoP9 (1994) : अमेरिका के लॉडरडेल में भारत ने दक्षिण अफ्रीका के हाथियों की आबादी को परिशिष्ट I से डाउन-लिस्ट कर परिशिष्ट II में शामिल करने का विरोध कियाक

 

CoP10 (1997) : हरारे, जिम्बाब्वे में भारत ने दक्षिणी अफ्रीकी हाथी को डाउन-लिस्ट करने के प्रस्ताव का विरोध किया और एशियाई हाथी को लेकर सामने आए अवैध शिकार से संबंधित नतीजों पर चिंता व्यक्त की है।

 

CoP11 (2000) : केन्या के गिगिरी में भारत ने मेज़बान देश के साथ मिलकर सभी हाथियों की आबादी को परिशिष्ट II से परिशिष्ट I में सूचीबद्ध करने के लिये एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है।