अर्थव्यवस्था समसामियिकी 1 (24-May-2020)
केजी-डी6 के लागत वसूली विवाद में रिलायंस का 20-40 करोड़ डॉलर की देनदारी का अनुमान

Posted on May 24th, 2020 | Create PDF File

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रिलायंस इंडस्ट्रीज का अनुमान है कि सरकार के साथ नौ साल पुराने विवाद में उसपर अधिकतम अनुमानित देनदारी 40 करोड़ डॉलर या 3,000 करोड़ रुपये बैठेगी। सरकार के साथ कंपनी का यह विवाद मंजूर निवेश योजना का अनुपालन करने में विफल रहने की वजह से केजी-डी6 क्षेत्र में क्षमता का पूरा उपयोग नहीं हो पाने से जुड़ा है।

 

बंगाल की खाड़ी में केजी-डी6 ब्लॉक के धीरूभाई-1 और 3 क्षेत्रों में उत्पादन दूसरे साल यानी 2010 से ही कंपनी के अनुमान से नीचे आना शुरू हो गया था। इस साल फरवरी में इन क्षेत्रों से उत्पादन बंद हो गया। यह इन क्षेत्रों की अनुमानित ‘आयु’ से काफी पहले है।

 

सरकार का आरोप है कि कंपनी ने मंजूर विकास योजना का अनुपालन नहीं किया। सरकार ने इस वजह से कंपनी को तीन अरब डॉलर की लागत निकालने की अनुमति नहीं दी है। कंपनी ने इसका विरोध करते हुए सरकार को मध्यस्थता में घसीटा है।

 

रिलायंस ने अपने एक बड़े राइट्स इश्यू के दस्तावेज में कहा है कि सरकार ने कंपनी और उसकी केजी-डी 6 में भागीदार को नोटिस भेजकर कहा है कि उन्होंने मंजूर विकास योजना का अनुपालन नहीं किया और क्षमता का इस्तेमाल नहीं किया जिसकी वजह से उनको लागत वसूली की अनुमति नहीं दी जा सकती। इसके अलावा सरकार ने अतिरिक्त मुनाफे की भी मांग की है।

 

वहीं कंपनी की दलील है कि केजी-डी6 के अनुबंध में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है, जो केंद्र सरकार को इस आधार पर लागत वसूली की अनुमति नहीं देने का अधिकार देता हो।

 

कंपनी ने कहा कि उत्पादन भागीदारी अनुबंध (पीएससी) ठेका प्राप्त करने वाली कंपनी को किसी ब्लॉक से खोजी गई गैस और तेल की बिक्री से अपनी सारी पूंजीगत और परिचालन लागत को निकालने की अनुमति देता है। लागत निकालने के बाद सरकार के साथ मुनाफा साझा करना होता है। कुल लागत को निकालने की अनुमति नहीं देकर सरकार मुनाफे में अधिक हिस्से की मांग कर कर ही है।

 

कंपनी ने 23 नवंबर, 2011 को केंद्र सरकार को मध्यस्थता का नोटिस दिया था। तीन सदस्यीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण के समक्ष कंपनी और सरकार अपना-अपना पक्ष रख चुके हैं। अब इस मामले की अंतिम सुनवाई सितंबर से दिसंबर, 2021 तक होने की संभावना है।

 

कंपनी ने कहा है कि यह मामला अभी लंबित है। हालांकि, इस मामले में उसपर 20 करोड़ डॉलर से 40 करोड़ डॉलर का वित्तीय प्रभाव पड़ सकता है।