1773 ई० का रेग्युलेटिंग ऐक्ट (Regulating Act of 1773)
Posted on April 21st, 2020 | Create PDF File
रेग्युलेटिंग एक्ट की पृष्ठभूमि और लाए जाने का कारण -
कंपनी में बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण कंपनी घाटे में जा रही थी।
इस घाटे की स्थिति से निपटने के लिए कंपनी ने 1772 में बंगाल की शासन व्यवस्था को प्रत्यक्षतः अपने हाथों में ले लिया
शासन चलाने के लिए वित्त की आवश्यकता
ब्रिटिश सरकार से ऋण लिया
अधिनियम का महत्व -
इस अधिनियम का अत्यधिक संवैधानिक महत्व है -
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भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने की दिशा में ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया यह पहला कदम था
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इसके द्वारा पहली बार कंपनी के प्रशासनिक और राजनैतिक कार्यों को मान्यता मिली
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इसके द्वारा भारत में केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी गयी
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कंपनी के शासन पर संसदीय नियंत्रण स्थापित किया गया
अधिनियम के प्रावधान -
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इस अधिनियम के माध्यम से कंपनी को बीस वर्षों के लिए व्यापारिक एवं राजनीतिक अधिकार दे दिए गए थे
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इस अधिनियम द्वारा बंगाल के गवर्नर को “बंगाल का गवर्नर जनरल” पद नाम दिया गया तथा मुंबई व मद्रास के गवर्नर को इसके अधीन किया गया
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इस ऐक्ट के तहत बनने वाले पहले गवर्नर जनरल लॉर्ड वॉरेन हेस्टिंग्स थे
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गवर्नर जनरल की सहायता के लिए एक चार सदस्यीय कार्यकारिणी का गठन किया गया
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इस अधिनियम के अंतर्गत कलकत्ता में 1774 ई० में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गयी
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इसमें एक मुख्य न्यायाधीश एवं तीन अन्य न्यायाधीश थे
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प्रथम मुख्य न्यायाधीश - सर एलिजाह इम्पे
- अन्य तीन न्यायाधीश -
- चैम्बर्स
- लिमेंस्टर
- हाइड
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इसके तहत कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने और भारतीय लोगों से उपहार व रिश्वत लेना प्रतिबंधित कर दिया गया
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इस अधिनियम के द्वारा, ब्रिटिश सरकार का ‘कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स’ (कंपनी की गवर्निंग बॉडी) के माध्यम से कंपनी पर नियंत्रण सशक्त हो गया
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‘कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स’ - भारत में इसके राजस्व, नागरिक और सैन्य मामलों की जानकारी ब्रिटिश सरकार को देना आवश्यक कर दिया गया
- इस प्रकार पहली बार ब्रिटिश कैबिनेट को भारतीय मामलों में हस्तक्षेप का अधिकार दिया गया
- कार्यकारिणी परिषद के सदस्यों की नियुक्ति - ‘कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स’ द्वारा
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कार्यकारिणी परिषद के सदस्य -
- फ़िलिप फ़्रांसिस
- क्लेवरिंग
- मॉनसन
- बरवैल