राष्ट्रीय समसामयिकी 1 (27-November-2021)
रामप्पा मंदिर: तेलंगाना का पहला ‘यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल’
(Ramappa Temple: Telangana's first 'UNESCO World Heritage Site')

Posted on November 27th, 2021 | Create PDF File

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हाल ही में, यूनेस्को का टैग मिलने के बाद से तेलंगाना के ‘रामप्पा मंदिर’ (Ramappa Temple), बड़े पैमाने पर ध्यानाकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है।

 

तेलंगाना के वारंगल में अवस्थित, ‘रामप्पा मंदिर’ छह फीट ऊंचे एक सितारे के आकार के मंच पर निर्मित किया गया है।

 

इसकी दीवारों, स्तंभों और छतों को सूक्षम और जटिल तक्षणकला / नक्काशी से सुसज्जित किया गया है, जोकि काकतीय मूर्तिकारों के अद्वितीय कौशल का उत्कृष्ट उदाहरण है।

 

इस मंदिर का नामकरण इसके ‘वास्तुकार रामप्पा’ के नाम पर किया गया है।

 

‘रामप्पा मंदिर’ का निर्माण 13 वीं शताब्दी में काकतीय राजा गणपतिदेव के सेनापति ‘राचेरला रुद्रय्या’ (Racherla Rudrayya) द्वारा करवाया गया था।

 

इस मंदिर के पीठासीन देवता ‘रामलिंगेश्वर स्वामी’ हैं।

 

काकतीय राजवंश :

 

काकतीय राजवंश का उत्कर्ष 12वीं -14वीं शताब्दी के दौरान हुआ था।

 

ये पहले कल्याण के पश्चिमी चालुक्यों के सामंत थे और इनका शासन वारंगल के पास एक छोटे से क्षेत्र पर थे।

 

इस राजवंश ने गणपति देव और रुद्रमादेवी जैसे प्रतापी शासक हुए।

 

प्रतापरुद्र प्रथम (Prataparudra I), जिसे काकतीय रुद्रदेव के नाम से भी जाना जाता है, काकतीय शासक प्रोल द्वितीय का पुत्र था। इसके शासनकाल के दौरान काकतीयों ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया था। इसने 1195 ई. तक राज्य पर शासन किया।

 

प्रतापरुद्र प्रथम के शासनकाल के दौरान शिलालेखों में तेलुगु भाषा का प्रयोग शुरू हुआ।

 

काकतीयों ने अपनी पहली राजधानी हनमकोण्डा (Hanamakonda) बनायी, बाद में इन्होने अपनी राजधानी ओरुगलु / वारंगल में स्थांतरित कर ली।

 

काकतीय राजवंश के शासक के रूप में रुद्रमादेवी के शासनकाल के दौरान महान इतालवी यात्री मार्को पोलो ने काकतीय साम्राज्य का भ्रमण किया और उनकी प्रशासनिक शैली की प्रशंसा करते हुए विस्तृत रूप से वर्णन किया।

 

कला और वास्तुकला :

 

12वीं शताब्दी में रूद्रमादेवी के पिता द्वारा एक अनुप्रतीकात्मक ‘काकतीय तोरणम’ (Kakatiya Thoranam) का निर्माण करवाया गया था। इस अलंकृत तोरण के बारे में कहा जाता है, कि इसकी कई विशेताएँ ‘सांची स्तूप’ के प्रवेश द्वार से मिलती-जुलती हैं, और यह तेलंगाना का प्रतीक चिंह भी है।

 

वारंगल में एक दर्शनीय पाखल झील (Pakhal lake) का निर्माण, गणपति देव द्वारा करवाया गया था।

 

वारंगल में 1000 स्तंभ मंदिर का निर्माण काकतीय शासनकाल के दौरान करवाया गया था और यह काकतीय वास्तुकला का एक उत्तम उदाहरण है।

 

कोहेनूर हीरा, जो अब ब्रिटिश क्राउन में जड़े हुए रत्नों में से एक है, का खनन काकतीय राजवंश द्वारा कराया गया था और वे इसके पहली स्वामी थे।

 

काकतीय शासनकाल में समाज :

 

काकतीय शासनकाल के दौरान, जाति व्यवस्था कठोर नहीं थी और वास्तव में, सामाजिक रूप से इसे बहुत महत्व नहीं दिया गया था। कोई भी व्यक्ति किसी भी पेशे को अपना सकता था और लोग जन्म से ही एक ही व्यवसाय अपनाने के लिए बाध्य नहीं थे।

 

1323 ई. में वारंगल पर दिल्ली के तत्कालीन सुल्तान ग़यासुद्दीन तुगलक द्वारा विजय प्राप्त करने के पश्चात काकतीय शासन वर्ष समाप्त हो गया।