पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी समसामियिकी 2 (4-Aug-2020)
अरावली में वृक्षों को बांधी गयी राखियाँ (Rakhis tied to trees in Aravalis)

Posted on August 4th, 2020 | Create PDF File

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रक्षाबंधन की पूर्व संध्या पर, महिलाओं और बच्चों ने, वृक्षों को पत्तियों की बेलों की राखी बांधी तथा अरावली जंगलों की रक्षा करने की शपथ ली। अरावली के जंगल गुरुग्राम तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्वच्छ हवा और पानी के लिए जीवन रेखा के समान भूमिका निभाते हैं।

 

अरावली  के निरंतर क्षरण होने से गुरुग्राम और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में जल सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न हो रहा है। अरावली पहाड़ियों में पड़ने वाली प्राकृतिक दरारों से इस पर्वत श्रृंखला में भूजल के पुनर्भरण के लिए बेहतर स्थिति बन गयी है। वर्तमान में यह क्षेत्र जल-सनाक्त की दृष्टि से ‘रेड जोन’ में है, क्योंकि यह जल भराव की तुलना में जल-निष्कर्षण कई गुना अधिक होता है।

 

अरावली पर्वत श्रेणी उत्तर-पूर्व में दक्षिण-पश्चिम दिशा में दिल्ली तथा पालनपुर, गुजरात के मध्य फ़ैली हुई है।इसकी सबसे ऊँची चोटी ‘गुरु शिखर’ है, जिसकी ऊंचाई 1,722 मीटर (5,650 फीट) है।ये विश्व के सबसे पुराने वलित पर्वतों में से एक है, तथा ये भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रंखला है।कुछ भूगोलवेत्ताओं के अनुसार, अरावली की एक शाखा खंभात की खाड़ी से होती हुई लक्षद्वीप द्वीपसमूह तक विस्तृत है तथा दूसरी शाखा आंध्र प्रदेश और कर्नाटक तक फ़ैली हुई है।अरावली श्रेणी के दक्षिण-पश्चिम छोर पर इसकी ऊंचाई 1,000 मीटर से अधिक हो जाती है तथा यहाँ पर माउंट आबू (1,158 मीटर) को बनास नदी की घाटी मुख्य श्रेणी से अलग करती है।इस श्रेणी में पिपली घाट, दिवेर (Dewair) तथा देसुरी दर्रों से होकर सड़क और रेलवे यातायात विकसित किया गया है।अरावली पर्वतश्रेणी भू-पर्पटी के दो प्राचीन खंडो, अरावली भाग तथा बुंदेलखंड भाग को जोडती है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के वर्तमान आकार में निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

 

इस श्रेणी से तीन प्रमुख नदियाँ व उनकी सहायक नदियाँ निकलती है, जिनमे बनास तथा साहिबी (Sahibi) नदियाँ यमुना नदी में मिल जाती है, तथा ‘लूणी’ नदी कच्छ के रण में प्रवाहित होती है।

 

अरावली की ग्रेट ग्रीन वाल (Great Green wall of Aravalli) गुजरात से दिल्ली के मध्य अरावली पर्वतश्रेणी के साथ 1,600 किमी लंबा और 5 किमी चौड़ा हरित पारिस्थितिकी गलियारा है।इस गलियारे को शिवालिक पर्वत श्रेणी से जोड़ा जायेगा।इस गलियारे को अफ्रीका के ‘ग्रेट ग्रीन वॉल ऑफ़ सहारा’ की अवधारणा पर बनाया जाएगा तथा यह प्रदूषण के खिलाफ एक बफर ज़ोन के रूप में कार्य करेगा।